बात लगभग पांच-छह साल पुरानी है। उन दिनों मैं पत्रकारिता की पढ़ाई के अलावा शौकिया तौर पर कभी कभार मॉडलिंग भी किया करता था। कानपुर में किसी एक संस्था ने टैलेंट हंट और मॉडलिंग शो आयोजित किया। मुझे अपने मित्रों से सूचना मिली और मैंने भी हिस्सा लिया। उस दौरान मेरे काफी लंबे बाल होते थे और मैं पोनी टेल रखता था। हालांकि सभी इसको फैशनपरस्ती कहते थे लेकिन मेरे लिए इन्हें रखने का मकसद कुछ और था। कभी भी मुझे किसी ने खुले बालों में नहीं देखा था क्योंकि पोनी टेल बांधकर ही मैं घर से बाहर निकलता था।
उस दिन शायद रविवार था। शाम को कानपुर के मैनावती मार्ग के एक वाटर पार्क में कार्यक्रम होना था। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि और निर्णायक के रूप में निर्मल पांडे मौजूद थे। सबसे पहले टैलेंट हंट प्रतियोगिता शुरू हुई। उस वक्त तक निर्मल नहीं आए थे। हंट के पहले दौर के बाद मॉडलिंग का पहला चरण शुरू हुआ। पहला दौर सामान्य पहनावे का था जिसमें सूट, शर्ट-पैंट या साधारण कपड़े पहन कर आने थे। मेरा शायद आठवां नंबर था। जैसे ही पांच नंबर का प्रतियोगी मंच पर चढ़ा तभी पता चला कि निर्मल आ गए हैं और वे आकर मंच के ही किनारे बने निर्णायक मंडल की सीट पर बैठ गए।
मैंने निर्मल की करीब सभी फिल्में देखी हैं। उनका व्यक्तित्व और उनका अभिनय मुझे हमेशा से ही प्रभावित करता रहा। खैर, आठवां नंबर आया। मैंने भी मंच पर अपना पहला दौर पार कर लिया। उस राउंड में मैने पोनी टेल बांध रखी थी और बाकी सभी प्रतियोगी सामान्य केशविन्यास वाले थे। इसलिए सभी का ध्यान मेरी ओर गया। कुछ देर अन्य कार्यक्रमों के बाद अगला दौर शुरू हुआ और पारंपरिक वेशभूषा में पहुंचना था। फिर से राजा महाराजा की तरह सजधज कर सभी प्रतियोगी मंच पर पहुंचते जा रहे थे। सभी अलग-अलग कद-काठी के और अलग-अलग शारीरिक सौष्ठव वाले थे। मेरा इकहरा बदन था लेकिन दुबला हर्गिज नहीं। दूसरा चरण भी पूरा हो गया।
बारी आई तीसरे चरण की जिसमें फंकी या फिर कूल लुक में जाना था। उसी दौरान मंच के पीछे मेरे कोरियोग्राफर ने कहा कि इस बार अपने लुक को कुछ चेंज करो। मैंने पूछा कैसे? तो तुरंत जवाब दिया- अपने बाल खोल के जाओ। मैंने शांतचित्त होकर सीधे नकारते हुए कहा कि ऐसा नहीं हो सकता, मैं पोनी टेल में ही जाऊंगा। शायद उसे मेरी बात कुछ चुभी लेकिन मौके की नजाकत भांपते हुए उसने समझाया कि देखो, यह मॉडलिंग कंपटीशन नहीं बल्कि एक शो भर है, जिसमें टैलेंट हंट के फिलर्स के रूप में फैशन-मॉडलिंग शो को दिखाया जा रहा है। इसलिए अगर तुम चाहते हो कि तुम्हारी एक अलग छवि बने तो फिर तुम्हें बाल खोल कर जाना चाहिए। निर्मल का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि उनसे सीखो, कितनी बार तुमने उन्हें चोटी में देखा है और कितनी बार खुले बालों में।
कुछ देर सोचने के बाद मैंने बेमन से हामी भर दी। तीसरा दौर शुरू हो चुका था। पांचवें नंबर पर मुझे जाना था। फंकी लुक लेने के लिए अजीब तरह की जींस-टीशर्ट के साथ खुले बाल और हेड फोन लगाकर हिप्पियों की तरह झूमता हुआ मैं भी स्टेज पर पहुंच गया। अचानक पब्लिक चिल्ला उठी। कुछ ने हूटिंग भी की लेकिन आवाज पहचान कर पता चला कि यह जोरदार तालियों की गूंज है और दर्शकों को यह कूल लुक शायद काफी पंसद आया। लेकिन उसी दौरान मंच के किनारे अपनी कुर्सी पर बैठे निर्मल की ओर मेरी नजर गई। यकीन मानिए, मेरे लंबे बालों को देखने के बाद निर्मल की नजरें बार-बार अपने बालों को देखने के लिए दाएं-बाएं हो रही थीं। मेरे बाद नौ लोगों ने मंच पर और शिरकत की और दौर खत्म हो गया। सभी प्रतियोगी चेंज रूम में अपनी सामान्य वेशभूषा पहन रहे थे। इसी बीच, वहां निर्मल पांडे खुद ब खुद आ पहुंचे। उनके साथ आयोजक भी थे।
चेंज रूम में पहुंच कर कोरियोग्राफर ने मॉडल्स से परिचय की जिम्मेदारी संभाली। लेकिन उन्हें पता नहीं क्या हुआ था, वे सीधे मेरी तरफ आ गए। आते ही जोरदार ढंग से हाथ मेरी तरफ हाथ बढ़ाते हुए उन्होंने सबसे पहले कहा कि मुझसे भी लंबे बाल है तुम्हारे, काफी अच्छा स्टाइल है, लेकिन इन्हें देखने से लगता है कि तुम इन्हें खोलकर नहीं रखते बल्कि पोनी टेल ही लगाए रहते हो। मैंने उनसे हाथ तो मिलाया लेकिन हाथ पकड़े ही इतनी बातें हो गईं और मैं भौचक्का हो उन्हें सुनता रहा। फिर उन्होंने कहा कि सुनो पर्सनालिटी, स्टाइल, हाईट, चेहरा-मोहरा सब अच्छा है, फिल्म इंडस्ट्री में क्यों नहीं ट्राई करते हो। मैंने जवाब दिया- नहीं सर, यह केवल मेरा शौक है अभी तक इसे पेशा नहीं बनाया। मेरी मंजिल अभी काफी आगे हैं। उस तक पहुंचने के लिए कभी-कभी मन बहलाने के लिए मॉडलिंग करता हूं।
फिर उन्होंने कहा कि बाल खोलकर रखा करो, चोटी मत बांधा करो। लेकिन बाल मैने फैशन या स्टाइल के लिए नहीं, बल्कि किसी और वजह से बढ़ाए थे। इसलिए मुस्करा कर कहा- ठीक है, सर अगली बार से ट्राई करूंगा। इस बीच, मैंने ध्यान दिया कि बाकी सभी प्रतियोगी और आयोजक मेरी ओर बड़ी ही अचरज भरी निगाहों से देख रहे थे। शायद सोच रहे थे कि देखो, लंबे बाल वाले को लंबे बाल वाले कितने अच्छे लगते हैं, सभी को छोड़कर केवल उसी से बतिया रहा है। लेकिन इस बीच निर्मल की सहजता, बातचीत में पारदर्शिता, इमानदारी और घुलमिल जाने की इस अनोखी अदा ने मुझे काफी प्रभावित किया। निर्मल के इस अप्रत्याशित और आश्चर्यजनक व्यवहार का मैंने कभी सपने में भी विचार नहीं किया था। जिसे मैं फिल्मों में बड़े पर्दे पर देखता था वो आज मुझसे हाथ मिलाकर मुझसे दोस्तों की तरह बतिया रहा था।
आज मैं सोच रहा हूं कि निर्मल हृदय निर्मल अपने चाहने वालों को इतनी निर्ममता से क्यों छोड़ गया? पता नहीं भगवान को भी वही लोग क्यों भाते हैं जो अच्छे होते हैं। दुनिया में न जाने कितने ही कमीने पड़े हुए हैं जो दूसरों को दुख देने के बाद भी लंबी उम्र तक धरती के बोझ बने हुए हैं।
लेखक अमित कुमार बाजपेयी अमर उजाला, ग्रेटर नोएडा में सब एडिटर / रिपोर्टर पद पर कार्यरत हैं. उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.
vedparkash tyagi
March 5, 2010 at 11:22 am
waise. hair look sandaar hai, lekin poni tale ka raj ab to bata do., kyonki kisi baat ka dil mein bojh nahi rakna chahiye. patarkarita ka matlab hi baat ko ujagar karna hai.
ajay jain
February 20, 2010 at 12:31 pm
are bhai,ab to choti bandhne ka raj bata dete….
Akhilesh Singh(Lko),journalist Noida
February 20, 2010 at 5:28 pm
patrakar bandhu aap ne ye to bataya hi nhai ki poni tale kyo banato ho, eska raj kya hai.ya fir es raj ko raj hi rahne diya jaye.
anam
March 14, 2010 at 3:13 am
kanpur me patrkarita ki padai ..? kanhi us “sva vitta sansthan ” me to nahi ..?janha……? khair ..choro jaane do!;D[b][/b]