दैनिक जागरण में कोडरमा डेटलाइन से एक खबर है. इस खबर में शीर्षक है ”धुलने लगा है माथे पर लगा कलंक”. खबर पढ़ते-पढ़ते आप भी मान बैठेंगे कि पाठक परिवार पर लगा दाग गलत था और यह गलत दाग जांच रिपोर्टों की बारिश में धुल रहा है. जागरण की वेबसाइट पर प्रकाशित खबर को आप भी पढ़ें. -एडिटर
कोडरमा। पाठक परिवार के माथे पर लगा कलंक धीरे-धीरे धुल रहा है। अपनी ही इकलौती बेटी और बहन की मौत के बाद पत्रकार निरुपमा के मां-बाप और भाई के माथे पर आनर किलिंग का कलंक लगा था। पहले सुसाइड नोट पर हैंडराइटिंग एक्सपर्ट की रिपोर्ट और अब फारेंसिक जांच रिपोर्ट में हत्या के कोई संकेत नहीं मिले है। बल्कि, दोनों रिपोर्टो के निष्कर्ष मामले को आत्महत्या की ओर ले जाते हैं।
वैसे निरुपमा को जन्म देने और बड़े प्यार से पालन-पोषण करने वाली मां बेटी की मौत के बाद से ही दोहरी सजा झेल रही है। एक तो जवान बेटी की मौत का गम दूसरी तरफ पुलिस की प्रताड़ना के बाद के अभी तक जेल में रहने की सजा। बाप-भाई भी पिछले दो महीने से नौकरी-चाकरी छोड़कर कोर्ट-कचहरी का चक्कर काट रहे हैं। घर में खाना पकाने और मां को जेल में खाना पहुंचाने की जिम्मेदारी भी भाईयों पर है।
घटना के बाद से ही मीडिया में रोज-रोज मामले को सनसनीखेज तरीके से परोसा जा रहा है। ऐसे में घरवालों के लिए कई दिनों तक तो बाहर निकलना भी मुश्किल हो गया था। पुलिस के भय से रिश्तेदारों का आना मुश्किल हो गया था। वहीं पड़ोसी भी दूरी बनाने लगे थे। भगवान और न्याय पर भरोसा कर परिवार के लोग सब झेलते आ रहे हैं।
इधर, दोनों जांच रिपोर्टों से परिवार के लोगों को थोड़ी राहत मिली है। पिता धर्मेद्र पाठक, भाई समरेंद्र और सलील का कहना है-उनकी निरुपमा तो अब वापस नहीं आएगी, लेकिन पूरे परिवार के माथे पर लगा कलंक जरूर मिटेगा, क्योंकि उन्हें भगवान और न्याय पर पूरा भरोसा है।
Comments on “‘जागरण’ ने निरुपमा केस में फैसला सुनाया”
जागरण ने अपना फैसला सुना दिया पर इसमें कितनी हकीकत है यह तो आनेवाला समय ही बताएगा. जागरण के उसी दिन के अख़बार में जागरण ने एक और फैसला सुनाया था. यह भी खबर छपी थी की निरुपमा ने आत्महत्या ही की थी. यह खबर कोडरमा संस्करण की लीड न्यूज थी. इसमें राज्य विधि विज्ञान प्रयोगशाला की रिपोर्ट के हवाले से कहा गया कि इस रिपोर्ट में निरुपमा के दुपट्टे में सेलायिवा यानी लार के अंश पाए गए. जागरण की रिपोर्ट में इसके साथ ही यह भी फैसला सुना दिया गया कि यह पुरी तरह से आत्महत्या का ही मामला है. पर सवाल उठना बाकी है कि जब २९ अप्रैल को निरुपमा की मौत हुई उसके बाद कई दिनों तक उसका दुपट्टा पुलिस को नहीं मिला था. निरुपमा के शव का अंतिम संस्कार घटना के अगले दिन ही गया में कर दिया गया. ऐसे में जिस दुपट्टे पर सेलायिवा का अंश पाए जाने की बात कही जा रही है, वह सेलायिवा निरुपमा का ही था इसकी पुष्टि कौन करेगा. उस दुपट्टे का किसी और ने उपयोग नहीं किया था या फिर दुपट्टे पर किसी और के सेलायिवा का अंश नहीं है इसे भी कैसे प्रमाणित किया जायेगा. समाचार को प्रमुखता तो मिली पर इन विन्दुवों का भी ख्याल रखा जाना चाहिए था ताकि अखबार की विश्वसनीयता पर उंगली नहीं उठे. यों इस प्रकरण में कई अखबारों पर तो वहीँ टीवी चैनलों पर भी उंगली उठती रही है.
संजीव समीर जी, आपने सही सवाल उठाया है. जागरण को इस विन्दु पर गौर करके ही रिपोर्ट निकालनी चाहिए थी. क्या पत्रकार जिसने खबर छापी उसके साथ ही संपादक को इस विन्दु पर गौर नहीं आया. निरुपमा के साथ जो भी हुआ उसका खुलासा करने में इतना समय क्यों लग रहा है, यही समझ से परे है.
aur nirupama ke handwriting ke bare men jo expert report aai hai uske bare men aap kya kahenge sanjeevji. isi tarah ka kutark karna ho io shayad aap kah sakten hain ki use nirupama ke baap bhai ne gun pwoint par likhai hogi. kyonki aap jaise patrakaron ne to parijanon ko hatyara sabit karne ki jaise jeed pal rakhi hai.hindustan ne to forensic repart dedh mahina pahle hi prakashit kar parijanon ko hatyara bata diya tha. ab to thodi sahanubhuti rakhen.
Nirupma mamle mein uske bhandwe premi Priybhanshu ko bhi jail me dala jana chahiye. Wah partakar hone ka najayaz fayada utha raha hai. Ab uski bolati kyon band ho gayi hai.
ये पेड न्यूज की श्रेणी में आता है क्या?
pagal ho gaye jagranwale ,
निरुपमा की ह्त्या या आत्महत्या के मामले में मेरी यही सोच है की मीडिया को ट्रायल से बचना चाहिए. कोडरमा के अधिकांश पत्रकारों ने इस मामले में दोनों पक्ष को रखने का काम किया. अपवाद तो जरुर है. राजेश जी ने जो कहा है कि कुतर्क तो किया ही जा सकता है, ये तो हरेक मामले में लागु होता है. अगर हत्या की बात भी सामने आयेगी तो भी तर्क दिया जायेगा. मैं यही चाहता हूँ कि हकीकत सामने आये चाहे फिर वो ख़ुदकुशी हो या हत्या. पर यदि अखबार ही फैसला सुनाने लगेंगे तो फिर अदालत क्या करेंगे? और इस तरह के समाचार से क्या सन्देश देना चाहेंगे, यह भी तो स्पष्ट होना चाहिए.