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दुख-दर्द

निशीथ का आवास किसी और को एलाट करने पर रोक

यूपी सरकार को नोटिस : इलाहाबाद और लखनऊ से प्रकाशित हिंदी दैनिक ‘डेली न्यूज एक्टिविस्ट’ के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर प्रो. निशीथ राय का लखनऊ स्थित आवास जबरन खाली कराने के मामले में नया मोड़ आ गया है. हाईकोर्ट की खंडपीठ ने निशीथ राय की तरफ से दायर रिट को स्वीकार कर लिया है और यूपी सरकार को 15 दिनों के भीतर अपना जवाब दाखिल करने को कहा गया है. साथ ही, इस मामले की सुनवाई होने तक निशीथ राय का खाली कराया गया सरकारी आवास किसी को भी न आवंटित करने का निर्देश दिया है.

<p align="justify"><strong>यूपी सरकार को नोटिस : </strong>इलाहाबाद और लखनऊ से प्रकाशित हिंदी दैनिक 'डेली न्यूज एक्टिविस्ट' के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर प्रो. निशीथ राय का लखनऊ स्थित आवास जबरन खाली कराने के मामले में नया मोड़ आ गया है. हाईकोर्ट की खंडपीठ ने निशीथ राय की तरफ से दायर रिट को स्वीकार कर लिया है और यूपी सरकार को 15 दिनों के भीतर अपना जवाब दाखिल करने को कहा गया है. साथ ही, इस मामले की सुनवाई होने तक निशीथ राय का खाली कराया गया सरकारी आवास किसी को भी न आवंटित करने का निर्देश दिया है.</p>

यूपी सरकार को नोटिस : इलाहाबाद और लखनऊ से प्रकाशित हिंदी दैनिक ‘डेली न्यूज एक्टिविस्ट’ के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर प्रो. निशीथ राय का लखनऊ स्थित आवास जबरन खाली कराने के मामले में नया मोड़ आ गया है. हाईकोर्ट की खंडपीठ ने निशीथ राय की तरफ से दायर रिट को स्वीकार कर लिया है और यूपी सरकार को 15 दिनों के भीतर अपना जवाब दाखिल करने को कहा गया है. साथ ही, इस मामले की सुनवाई होने तक निशीथ राय का खाली कराया गया सरकारी आवास किसी को भी न आवंटित करने का निर्देश दिया है.

निशीथ राय की तरफ से दायर याचिका में कहा गया है कि सरकार और नौकरशाहों ने अंधेरे में रखकर अरली हियरिंग कराकर फैसला ले लिया और इसकी कापी मिलने नहीं दी. साथ ही फैसले को अलोकतांत्रिक तरीके से लागू कराया गया. बिना कोई समय व चेतावनी दिए, अचानक उस समय घर खाली कराया गया जब घर पर कोई पुरुष सदस्य नहीं था. जानकारी के मुताबिक हाईकोर्ट ने अवकाश होने के बावजूद महत्वपूर्ण मामला होने के कारण रिट पर सुनवाई की. ढाई घंटे तक बहस चली जिसमें निशीथ राय की तरफ से सीनियर एडवोकेट प्रशांत चंद्रा और आईपी सिंह ने पक्ष रखा. अगली सुनवाई की तारीख 8 फरवरी रखी गई है.

इस बीच पता चला है कि लखनऊ के ऐसे पत्रकार जो माया सरकार के प्रति तटस्थ रुख रखते हैं, निशीथ राय का घर जबरन खाली कराने के मामले में आंदोलन करने पर विचार कर रहे हैं. साथ ही माया सरकार के भक्त व चारण पत्रकारों की निंदा भी करने की योजना बना रहे हैं.

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0 Comments

  1. ekhlaque khan

    January 17, 2010 at 6:48 am

    Dr. NISHITH RAI PAR RAJYA SARKAR DWARA KIYA GAYA ATYACHAR PATRAKAR KISI BHI KIMAT PAR BARDASHT NAHI KARENGE. ISKE LIYE KISI BHI HAD TAK SANGHARSH KARNA PARE.( EKHLAQUE KHAN PATRAKAR DAILY NEWS ACTIVIST)

  2. Hariom Trivedi

    January 16, 2010 at 9:49 am

    सभी पत्रकारों को इस बात की निंदा करनी चाहिए। लोकतंत्र में इस तरह किसी का उत्‍पीडन निहायत ही गलत है।
    हरिओम त्रिवेदी
    संवाददाता- अमर उजाला, खुटार-शाहजहांपुर उ0प्र0

  3. Tau

    January 16, 2010 at 11:38 am

    All accredited journalists of Uttar Pradesh have bowed down before Uttar Pradesh Government. None of them can’t dare go against the government.

  4. Tau

    January 16, 2010 at 11:40 am

    All accredited journalists of Uttar Pradesh have bowed down before Uttar Pradesh Government. None of them can’t dare going against the government.

  5. Rohit Mathur

    January 16, 2010 at 2:51 pm

    mera kehna hai ki sarkar se makan lene ki zaroorat kya hai. har bade akhbar aur channel mein aajkal ache paise milte hain. fir kyon hamare patrakar bhai sarkar ke samne makan ke liye ririyate hain. yahan ek baat note ki jaye ki jin patrakar bhaiyon ko wakai makan ki zaroorat hai unhe makan nahin mil pata hai aur wo log jo arthik taur pe majboot hain wo makan hathiyane me kamyab ho jate hain.

    yahan nishith ji ke saath jo hua wo behad nindaniya hai lekin sarkari makan lene ki parampara ke ant hona zaroori hai. jab hum sarkari makan ke bojh se itna dabe rahenge to sarkar ke khilaf kya khak likhenge.

    Rohit Mathur

  6. Aashish Agarwaal,Editor Side Story,Dehradoon

    January 16, 2010 at 3:02 pm

    पत्रकारों के उत्पीडन चाहे वोह सरकारी हो या मालिकों की और से इस तरह के सारे मामलों को एक नज़र से देखा जाए| आज के दौर में पत्रकारिता जितनी सशक्त हुई है उतना ही तेज रफ़्तार से पत्रकारों का उत्पीडन| तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाये तो उत्पीडन के सरकारी मामले कम हैं और मालिकों के द्वारा उत्पीडन के ज्यादा | पत्रकार उत्पीडन को साबित करने और उसको एक मुद्दा बनाने का हमारे मुल्क में नायब तरीका है ,वह यह की जब तक किसी अखबार में छप न जाए तब तक उत्पीडन साबित नहीं होगा |अब उत्पीडन की खबर वही छापेगा जिसका अपना अखबार हो या उस अखबार का कोई हित उससे जुड़ा हो तभी मामला छापेगा और मुद्दा बनेगा | आज के दौर मे भारत में मीडिया को ठीक उसी तरह संवेदनशीलता से लिया जाना चाहिए इतना आतंकवाद को लेकर देश और सरकारें खुद सजग हैं और जनता को भी सजग कर रही हैं. यह एक नै बहस का मुद्दा है ओ आज नहीं तो कल उठेगा और मीडिया को जनता के सवालों का जवाब देना ही होगा नहीं दिया तो मीडिया का रही सही परतिष्ठा भी नहीं बचेगी.

  7. Aashish Agarwaal,Editor Side Story,Dehradoon

    January 16, 2010 at 3:02 pm

    पत्रकारों के उत्पीडन चाहे वोह सरकारी हो या मालिकों की और से इस तरह के सारे मामलों को एक नज़र से देखा जाए| आज के दौर में पत्रकारिता जितनी सशक्त हुई है उतना ही तेज रफ़्तार से पत्रकारों का उत्पीडन| तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाये तो उत्पीडन के सरकारी मामले कम हैं और मालिकों के द्वारा उत्पीडन के ज्यादा | पत्रकार उत्पीडन को साबित करने और उसको एक मुद्दा बनाने का हमारे मुल्क में नायब तरीका है ,वह यह की जब तक किसी अखबार में छप न जाए तब तक उत्पीडन साबित नहीं होगा |अब उत्पीडन की खबर वही छापेगा जिसका अपना अखबार हो या उस अखबार का कोई हित उससे जुड़ा हो तभी मामला छापेगा और मुद्दा बनेगा | आज के दौर मे भारत में मीडिया को ठीक उसी तरह संवेदनशीलता से लिया जाना चाहिए इतना आतंकवाद को लेकर देश और सरकारें खुद सजग हैं और जनता को भी सजग कर रही हैं. यह एक नै बहस का मुद्दा है ओ आज नहीं तो कल उठेगा और मीडिया को जनता के सवालों का जवाब देना ही होगा नहीं दिया तो मीडिया का रही सही परतिष्ठा भी नहीं बचेगी.

  8. महाबीर सेठ, जालंधर

    January 16, 2010 at 4:31 pm

    एक तरफ़ा रिपोर्टिंग का नतीजा कुछ ऐसा होता है . अख़बार पर कांग्रेस पार्टी की तरफदारी करने का आरोप लगता आया है . यह किसी एक अख़बार की बात नहीं है . सभी एक ही लाइन में हैं . एक ही भाषा है. पैसा ….. इसके सिवा कुछ नहीं है … यह किसी अखबार की नहीं बल्कि मीडिया अब व्यापार बन गया है,….

  9. satish bhutani

    January 17, 2010 at 12:36 am

    ptrakaron ka upidan ab koi nai baat nahi rahe gayee hai.aajadi se phle aur aajadi ke itne saal baad bhi patrakaro par utpidan badastoor jari hai.sarkar chahe koi bhi ho.jab koi akhbar athwa patrakar sarkar ke khilaf kuch likta hai to uske utpidan ki ghadi ki suiyan bhi ghumni shuru ho jati hain.

  10. satish bhutani

    January 17, 2010 at 1:27 am

    patrakaron ka utpidan to ajadi se phahale aur ab itne saal beet jane ke bavajood utpidan barkarar hai, sarkar chahe koi bhi ho use alochna bilkul bardast nahi hai. halanki yeh sawasth loktantr ke virudh hai.vaise media aaj mission nahi balki vyapar ban gaya hai.yeh bhi press ki vishvasniyta ko khatm kar rahi hai

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