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हिंदुस्तान, आगरा में रिपीट हुआ एडिट पेज

हिंदुस्तान के आगरा आफिस में कोहराम-सा मचा हुआ है. कल जो संपादकीय पेज पब्लिश हुआ था, उसी पेज को आज भी प्रिंट कर सरकुलेट कर दिया गया है. आगरा वासियों ने सुबह अखबार हाथ में आने के बाद से ही सोये हुए हिंदुस्तानियों को जगाना शुरू कर दिया. संपादक, रिपोर्ट, सब एडिटर तक के मोबाइल बजने लगे. आफिस के लैंडलाइन फोन की घंटी बंद होने का नाम नहीं ले रही थी. शुरुआती जांच पड़ताल में पता चला है कि मशीन विभाग और संपादकीय विभाग, दोनों की मिलीजुली गलती का नतीजा है पेज रिपीट होना.

<p align="justify">हिंदुस्तान के आगरा आफिस में कोहराम-सा मचा हुआ है. कल जो संपादकीय पेज पब्लिश हुआ था, उसी पेज को आज भी प्रिंट कर सरकुलेट कर दिया गया है. आगरा वासियों ने सुबह अखबार हाथ में आने के बाद से ही सोये हुए हिंदुस्तानियों को जगाना शुरू कर दिया. संपादक, रिपोर्ट, सब एडिटर तक के मोबाइल बजने लगे. आफिस के लैंडलाइन फोन की घंटी बंद होने का नाम नहीं ले रही थी. शुरुआती जांच पड़ताल में पता चला है कि मशीन विभाग और संपादकीय विभाग, दोनों की मिलीजुली गलती का नतीजा है पेज रिपीट होना. </p>

हिंदुस्तान के आगरा आफिस में कोहराम-सा मचा हुआ है. कल जो संपादकीय पेज पब्लिश हुआ था, उसी पेज को आज भी प्रिंट कर सरकुलेट कर दिया गया है. आगरा वासियों ने सुबह अखबार हाथ में आने के बाद से ही सोये हुए हिंदुस्तानियों को जगाना शुरू कर दिया. संपादक, रिपोर्ट, सब एडिटर तक के मोबाइल बजने लगे. आफिस के लैंडलाइन फोन की घंटी बंद होने का नाम नहीं ले रही थी. शुरुआती जांच पड़ताल में पता चला है कि मशीन विभाग और संपादकीय विभाग, दोनों की मिलीजुली गलती का नतीजा है पेज रिपीट होना.

सूत्रों का कहना है कि एडिट पेज दिल्ली से बनाकर लखनऊ भेजा जाता है. फिर लखनऊ से आगरा आता है. आगरा में स्थानीय स्तर पर लेटर टू एडिटर वगैरह लगाने के बाद उसे जांच के लिए लखनऊ भेजा जाता है. लखनऊ से ओके होकर वह पेज फिर आगरा आता है. कल भी यह हुआ लेकिन फाइनल पेज जो छपने गए, उसे संपादकीय वालों ने चेक नहीं किया कि यह वही पेज है जो आज आया है या पुराना पेज है. मशीन वालों ने जो पेज सामने दिखा, उसे मशीन पर चिपका कर छापने वाले बटन को दबा दिया.

आगरा में अभी हाल में ही हिंदुस्तान को री-लांच किया गया है. सरकुलेशन भी बढ़ा हुआ है. सो, इस गलती को अखबार प्रबंधन काफी गंभीरता से ले रहा है. सूत्रों के मुताबिक नए नए आए स्थानीय संपादक नासिरुद्दीन आज सुबह से शाम तक लखनऊ से लेकर दिल्ली तक के अपने अधिकारियों को मौखिक व मेल के जरिए सफाई देने में लगे रहे. हालांकि इस पूरे प्रकरण पर बातचीत के लिए नासिरुद्दीन को फोन किया गया पर उन्होंने फोन नहीं उठाया.

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0 Comments

  1. Amit k

    February 19, 2010 at 10:57 am

    priya yashwant ji
    aap bhala kaise keh sakte hain ki galti kiski hai. aapne to edit page publish karne ki jo prakriya likhi hai wahi galat hai.
    khabar post karne se pehle poori jaankari jutaya kariye janab

  2. bavita jha

    February 19, 2010 at 11:15 am

    yashwant ji
    shukriya ki aapne hame hamari galati batayi. lakin afsos apne is khabar ko nikalne ke liye jis dalal ki madad li vo thoda kam padha likha hai. use sampadkiya system aur machine department ki responsibilities me differences pata hi nahi. agar apko samachar dene wala samvaddata sorry dalal hindustan ka hai to vah wakai kam padha likha hai. ho sakta hai aise hi kam padhe likho ki wajah se ye galati hui ho. by the reader of hinidustan are more aware than you like people.
    aapne der se khabar nikali………..

  3. ganesh upadhyay, reporter

    February 19, 2010 at 1:54 pm

    yeshwant bhai par kyun lal peela ho reho yaaro………..galti to galti hi hai na…..????? hindustan m sab chalta hai……:)

  4. anil pande

    February 19, 2010 at 3:18 pm

    बबिता जी

    “Readers of Hindustan are more aware than people like you.”

    शायद आप यह लिखना चाहती थी.

    आपने अपना नाम भी सही नही लिखा है.

  5. bishwajit

    February 19, 2010 at 3:59 pm

    Hindustan me page usi template me lagaye jaate hain, jise ad vibhag online jaari karta hai. isi page par matter lagakar usey image setter me bheja jaata hai. desk agar purane template par page bheje to image setter me bhejne se pahle usey pakda ja sakta hai, kyonki page ko is machine me bhejne wala uski date wagaira check karta hai. aise me desk ne agar galti ki thi to woh vyakti kya kar raha tha, jo image setter me page bhejta hai ?

  6. anil pande

    February 19, 2010 at 6:37 pm

    वैसे अब मान लेना चाहिए कि जिस दिन हिन्दुस्तान मे गलती न हो, तब ख़बर है.
    शुक्रवार 19 फ़रवरी के संपादकीय पेज पर अपने लीड लेख मे एन के सिंह शुरुआत करते हैं- “वर्ल्ड इकॉनामिक फोरम की सालाना बैठक में भाग लेकर अभी-अभी दावोस से लौटा हूं। ”

    जबकि इस बैठक को समाप्त हुए 20 दिन हो चुके हैं.
    पता नही हम पढ़ने वाले पागल हैं, या कूड़ा-कचरा कुछ भी पढ़ने को विवश हैं.
    – अनिल पांडे

  7. chandrasen verma

    February 19, 2010 at 7:33 pm

    कबीरा निंदक न मिलो, पापी मिले हजार एक निंदक के माथ पर ,लाख पापिन को भर

    ye kalyug hai bhai sab chalta hai. yaha ninda karne पर ही पैसे मिलते हैं. वर्ना मीडिया वर्ल्ड के अन्दर की खबरें निकाल कर वेब पे लोड करके भला कैसे चलेगी दुकान. शायद अब यही तरीका रह गया है कॉरपोरेट वर्ल्ड को मीडिया में अपनी पहुँच दिखाने का. वर्ना आप ही सोचिये जिस इन्सान को एक पेपर से निकाल दिया गया हो वो भला करे तो क्या करे. इसी तरह मीडिया में काम कर रहे कुछ विभीषण के सहारे आप अपनी लंका आबाद करते रहिये.
    लेकिन ऐसे लोग भूल जाते हैं की उनकी लंका सोने की नहीं लाख की है जो कभी भी एक चिंगारी से तबाह हो जाएगी कभी भी.
    फिर क्या होगा उन लोगो का जो आपका साथ दे रहे हैं. चोर जब पकड़ा जायेगा तब क्या होगा. क्या भड़ास उन्हें नौकरी देगा. हहहः वो क्या देगा जिसे खुद मीडिया ने निकाल दिया था.

  8. media ka madhav

    February 20, 2010 at 6:05 am

    improvement hai.mrinaljee ke jamane me to hindustan kafi mota nikalata tha kyonki kai-kai page mamulee herfer ke sath repeate hue kai baar .par ve gandhari banee baiyhi rahin..editorial ka theekra machine par footna tab aam bat thee.

  9. Anand Sati

    February 20, 2010 at 11:34 am

    agar sampadkiya prabhari koi Pant, Negi, Joshi, Rawat, Thapliyal vagairah hota to unki chutti ho gai hoti. Yadi Shekhar ka koi khas, to sau khoon maaf.

  10. anil pande

    February 20, 2010 at 6:27 pm

    बिल्कुल ठीक कहा बचवा.
    सुकरात की तरह् सारे निंदकों को ज़हर दे देना चाहिए.
    बस तारीफ करते रहो.
    एक कहावत है- “गधे को गधा ही खुजाता है.”

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