प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान द्वारा प्रकाशित साहित्य की त्रैमासिकी ‘पाण्डुलिपि’ का दूसरा अंक ज़ल्द ही अब आपके हाथों में होगा, जिसका विमोचन आगामी 17 दिसंबर को विश्वकवि मुक्तिबोध स्मृति रचना शिविर, राजनांदगाँव में होगा। जिसमें विजय बहादुर सिंह, डॉ. गंगाप्रसाद विमल, नंद भारद्वाज, प्रफुल्ल कोलख्यान, श्रीभगवान सिंह, डॉ. प्रताप सहगल, डॉ. तरुण कुमार, डॉ. ज्योतिष जोशी, जीतेन्द्र श्रीवास्तव, डॉ. मोहनदास नैमिशराय, श्रीप्रकाश मिश्र, डॉ. रघुवंशमणि, डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र, जानकी वल्लभ शर्मा, श्रीमती उर्मिला शिरीष, ओम भारती, डॉ. रोहिताश्व, डॉ. श्रीराम परिहार, डॉ. श्याम सुंदर दुबे, रति सक्सेना, डॉ. सुधीर सक्सेना आदि महत्वपूर्ण रचनाकार मौजूद रहेंगे।
पत्रिका और संस्थान के औचित्य पर बात की है कार्यकारी संपादक जयप्रकाश मानस ने और संपादीय लिखा है अशोक सिंघई ने। इसमें आप पढ़ पायेंगे – साहित्य की भारतीय परम्परा-डॉ. श्रीभगवान सिंह, मनुष्य ही साहित्य का लक्ष्य नहीं है-विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, प्रतिबद्धता, संशय और विवेक- रघुवंश मणि, समकालीन कविता का समाजशास्त्र– ए.अरविंदाक्षन, समकालीन कविता में बाजार– डॉ. बृजबाला सिंह, इतिहास और साहित्य का अंतरावलंबन– डॉ. श्रीराम परिहार, होना उनकी सहचरी प्राण-अनामिका को और नंद किशोर आचार्य, प्रभात त्रिपाठी, रमेशदत्त दुबे, लाल्टू, कृष्ण बिहारी सहल, आर.चेतनक्रांति, शिरोमणि मेहतो, रजत कृष्ण, रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति, अरुण शीतांश, कचन शर्मा, रश्मि भाटिया, सच्चिदानंद विशाख, संतोष श्रेयांस की कविताएँ। इस अंक में हस्ताक्षर के रूप में सुरेश सेन ‘निशांत’ को ख़ास तौर पर प्रस्तुत किया गया है। जन्मशताब्दी पर विशेष आलेखों में शमशेर : क्लासिक परम्परा का काव्य– रोहिताश्व, ‘शेखर : एक जीवनी’ की भाषा– डॉ. हरदयाल, आधुनिक साहित्य में मुक्ति और अज्ञेय- ज्योतिष जोशी को समादृत किया गया है।
मुक्तिबोध का काव्य-नायक- नंद भरद्वाज, कुहरे में आदमी के धब्बे के अन्दर वह आदमी था (विनोद कुमार शुक्ल) –प्रेम शशांक, रचना का नेपथ्य – मधुरेश कनुप्रिया– डॉ. बलेदव का मूल्याँकनपरक आलेख हैं। अंक में 8 कहानियाँ प्रकाशित हैं – खो जाते हैं घर – सूरज प्रकाश, चेहरे – उर्मिला शिरीष, वो – शमोएल अहमद, डॉली -अनवर सुहैल, समय ठीक नहीं है– अलका सिन्हा, कंट्रोलरूम यानी कमरा नंबर 471- विभा रानी, कच्छा घर– रूपसिंह चंदेल, नेपथ्य- देवांशु पाल और प्रवासी कहानीकार तेजेन्द्र शर्मा का प्यार !…. क्या यही है? सम्मिलत है। असहमति की आवाजें- शंभुनाथ का उकसानेवाला आलेख है। कृष्ण कुमार त्रिवेदी का ललित निबंध, उर्मिला जैन का संस्मरण, नरेन्द्र मोहन की डायरी। मनमोहन सरल की आत्मकथा अन्य महत्वपूर्ण रचनाएं हैं। अंक 2 में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. कुमार विमल से संजय कुमार की ख़ास बातचीत है। विरासत कॉलम में प्रमोद वर्मा का तलस्पर्शी विमर्श जो श्रीकांत वर्मा के बहाने हमें सोचने को मजबूर करता है। रामयतन यादव और अंजू दुआ जैमिनी की लघुकथाएं भी पठनीय हैं ।
अंक में सदी की विशेष कृति ‘हिन्द स्वराज’ पर चर्चा कर रहे हैं डॉ. सरोज कुमार वर्मा। बलदेवप्रसाद मिश्र के नाम महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखे गये पत्रों से पता चलता है कि उन्हें छत्तीसगढ़-रायगढ़ के कथक सम्राट और साहित्यकार चक्रधर महाराज प्रतिमाह 100 रुपये का वजीफ़ा ताउम्र भिजवाते रहे। भाषांतर में सुनील गंगोपाध्याय की बंगला कहानी को प्रस्तुत किया है ननी शूर ने और तेलुगु की समकालीन कविताओं को आर. शांता सुंदरी ने। सुधा ओम धींगरा के संयोजन में ‘प्रवासी साहित्य और मूल्याँकन की मुख्य धारा जैसे ज्वलंत प्रश्न पर चर्चा कर रहे हैं – कमल किशोर गोयनका के साथ उषा राजे सक्सेना, पूर्णिमा वर्मन इला प्रसाद, प्राण शर्मा, सुदर्शन प्रियदर्शनी पुष्पा सक्सेना, दीपक मशाल, शशि पाधा, देवी नागरानी, लावण्या शाह आदि प्रवासी रचनाकार ।
काला ही सब रंगों की माँ है नामक लेख के माध्यम से हेमंत शेष ने प्रख्यात कलाकार उपाध्याय जी से परिचित कराया है। हिंदी पत्रकारिता के छह दशक पर अरविंद कुमार का आलेख रोचकता और जानकारियों से परिपूर्ण है। साहित्य के नोबेल पुरस्कार विजेता मारियो वर्गास लोसा पर डॉ. दुर्गा प्रसाद अग्रवाल बता रहे हैं और प्रख्यात कथाकार मिथिलेश्वर की षष्ठिपूर्ति मना रहे हैं संजय कृष्ण एवं रंजना श्रीवास्तव। कन्हैला लाल नंदन को श्रद्धांजलि दी है प्रेम जनमेजय ने। प्रभाकर श्रोत्रिय की किताब पर डॉ. राजेश चन्द्र पाण्डेय, दिविक रमेश की किताब पर उमाशंकर चौधरी, पंकज राग की किताब पर शशिकला राय, अनिता गोपेश की कृति पर श्रीप्रकाश मिश्र, संजय द्विवेदी की किताब पर डॉ. शाहिद अली और शरद सिंह के उपन्यास पर डॉ. सुरेश आचार्य की समीक्षा भी पठनीय है। इधर-उधर की पत्रिकाओं की हलचल का ब्यौरा तैयार किया है अखिलेश शुक्ल ने। और भी बहुत कुछ। पृष्ठ 400 से अधिक किन्तु मूल्य वही 25 रुपये। आप हमें अपनी प्रति के लिए लिख सकते हैं – संपादक, पाण्डुलिपि, एफ-3, छगमाशिम, आवासीय परिसर, पेंशनवाड़ा, रायपुर, छत्तीसगढ़-492001 या मो. 98271-79294।
रायपुर से राम पटवा की रिपोर्ट.