कहना चाहिए कि मीडिया का भी ध्यान नहीं जाता। वेश्या के पेशे को तथाकथित सभ्य समाज में कभी भी दूसरे पेशों की तरह ना तो मान्यता मिली और ना ही सम्मान। जबकि, एक ज़माना वह भी था कि जब नवाबों के बेटों के चेहरों पर रेख निकलते ही उन्हें तवायफों के कोठे पर अदब और इल्म की तालीम के लिए भेजा जाता था। इस समाज की अपनी मजबूरियां हैं तो समाज के लिए इनका योगदान भी कमतर नहीं है। ये बात प्रमाणित भी है कि जिन शहरों में रेड लाइट एरिया होते हैं, वहां बलात्कार की घटनाएं नहीं के बराबर होती हैं। यौवन का अतिरेक स्खलित करने के लिए वेश्याओं को साधन माना जाता रहा है लेकिन जीवन के इस प्राकृतिक सहचर्य में इनका योगदान वैसे ही अलिखा रह जाता है, जैसे परिवार नियोजन में कंडोम का।
मंडुवाडीह की दास्तान समाज के एक ऐसे तबके की करुण गाथा है जिसको जवाबों की तलाश मे हाशिए पर किए जाने वाले रफ कार्य की तरह हमेशा से नज़रअंदाज़ किया जाता रहा। रात के अंधेरे में आबाद रहने वाली ऐसी बस्तियों में या फिर इन बस्तियों से लाई गई जवानी से अपने बढ़े हुए रक्तचाप को सामान्य करने की कोशिशें अधिकारी से लेकर नेता और आमतौर पर सफेदपोश कहे जाने वाले लोग बरसों से करते आ रहे हैं। लेकिन, जैसा नजदीकी चित्रण “नगर वधुएं अखबार नहीं पढ़ती” में इस तबके का इंसानी तौर से किया गया है, उसकी मिसाल कम ही देखने को मिलती है।
अनिल! ऐसे ही लिखते रहिए, हम सब पढ़ रहे हैं।
सादर,
पंकज शुक्ल
पत्रकार और फिल्मकार
दस कड़ियों में गुथी अनिल यादव द्वारा लिखी लंबी कहानी को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए शीर्षकों पर एक-एक कर क्लिक कर पढ़ सकते हैं….
Comments on “जहां रेडलाइट एरिया, वहां रेप नहीं!”
NA JANTA SE DARRO , NA SARAM KARO YAARO ,
RAJNEETI KAROBAR HAI , GHAR BHARO YAARO.
अनिल बस अनिल हैं। उनके ढेर सारे मुरीद हैं..मुझे एक बार लड़की मिली जो उनकी राइटिंग की तारीफ कर रही थी। लेकिन इस बयान में और भी बहुत कुछ था, जो अनकहा रह गया….