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मैं भी जेल जाते-जाते बचा था

राजीव पत्थरियावकीलों की नासमझी से फंस जाते हैं पत्रकार : अदालत ने कभी भी मीडियाकर्मियों की (मेरा आशय केवल कलमघसीटों से है) मजबूरियां नहीं जानी हैं। संपादक, प्रकाशक और मुद्रक जो कि अकसर सभी अखबारों में मालिक होते हैं, वह खबरों से संबंधित हरेक मानहानि के केस पर लंबे अरसे तक बीमारी की पर्चियां लगाकर बच जाते हैं और बाद में एग्जम्पशन ले लेते हैं। फंसते हैं तो केवल पत्रकार। दिनेश जी से मेरा नाता बड़े और छोटे भाई जैसा रहा है। जब दैनिक भास्कर को चण्डीगढ़ से लांच किया गया था तो वह भास्कर की कोर टीम में थे और मैं भी इस टीम के प्रादेशिक प्रभाग का सदस्य था। मैंने पहले हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में बतौर ब्यूरो चीफ ज्वाइन किया। तब खुद श्री गिरीश अग्रवाल जी को लगा था कि धर्मशाला में एक वरिष्ठ सहयोगी को तैनात किया जाना चाहिए क्योंकि वहां पर महामहिम दलाई लामा और करमापा सहित तिब्बत की निर्वासित सरकार का मुख्यालय मैकलोडगंज में है। मैंने कार्यभार सम्भाला। काम भी किया।

राजीव पत्थरिया

राजीव पत्थरियावकीलों की नासमझी से फंस जाते हैं पत्रकार : अदालत ने कभी भी मीडियाकर्मियों की (मेरा आशय केवल कलमघसीटों से है) मजबूरियां नहीं जानी हैं। संपादक, प्रकाशक और मुद्रक जो कि अकसर सभी अखबारों में मालिक होते हैं, वह खबरों से संबंधित हरेक मानहानि के केस पर लंबे अरसे तक बीमारी की पर्चियां लगाकर बच जाते हैं और बाद में एग्जम्पशन ले लेते हैं। फंसते हैं तो केवल पत्रकार। दिनेश जी से मेरा नाता बड़े और छोटे भाई जैसा रहा है। जब दैनिक भास्कर को चण्डीगढ़ से लांच किया गया था तो वह भास्कर की कोर टीम में थे और मैं भी इस टीम के प्रादेशिक प्रभाग का सदस्य था। मैंने पहले हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में बतौर ब्यूरो चीफ ज्वाइन किया। तब खुद श्री गिरीश अग्रवाल जी को लगा था कि धर्मशाला में एक वरिष्ठ सहयोगी को तैनात किया जाना चाहिए क्योंकि वहां पर महामहिम दलाई लामा और करमापा सहित तिब्बत की निर्वासित सरकार का मुख्यालय मैकलोडगंज में है। मैंने कार्यभार सम्भाला। काम भी किया।

बाद में प्रबंधन के आदेश आए कि वहां पर स्ट्रिंगर से काम चला लिया जाएगा, आप मण्डी क्षेत्रीय ब्यूरो का कार्यभार सम्भालें। हमने प्रबंधन का हुक्म बजाया। दिनेश जी से अक्सर चण्डीगढ़ में बैठकों में मुलाकात होती और जब वह पटियाला सैटेलाईट संस्करण के प्रभारी बन कर गए तो मैं दो बार उनके पास पटियाला भी गया। हालांकि उनका परिवार चण्डीगढ़ में था और वह रोजाना चण्डीगढ़ से पटियाला आते-जाते थे। इस दौरान उन्होंने पंजाबियत से भरी पड़ी पटियाला की पत्रकारिता को सही मायने में नए तेवर दिए। रोज स्टोरी ब्लास्ट होते थे। श्रेय जाता था भास्कर को और उसके पत्रकार को, जबकि इसके पीछे की कड़ी मेहनत दिनेश मिश्रा जी की थी। यह जो केस हुआ है उसके पीछे वकीलों की अनभिज्ञता ज्यादा है। ठीक इसी प्रकार का एक केस मेरे दैनिक भास्कर के कार्यकाल के दौरान मण्डी में हुआ है।

इसे मैंने करीब 7 साल तक भुगता है। मानहानि के मामलों में वकीलों की जानकारी बहुत कम है। वह बिना कानून को पढ़े अपने क्लाईंट के कहने पर पत्रकारों के नाम लिख देते हैं। दिनेश जी का नाम भी बतौर ब्यूरो चीफ लिखवा दिया गया और मेरा नाम भी एक 8 लाईन के समाचार में वकील ने लिख दिया जबकि इसमें संपादक, प्रकाशक और मुद्रक के नामों का जिक्र तक नहीं किया गया। मैं जब वर्ष 2006 में पदोन्नत होकर चण्डीगढ़ में हिमाचल संस्करण का संपादकीय प्रभारी बना तो मैं भी व्यस्तता के कारण कोर्ट में हाजिर नहीं हो सका। उसके बाद पंजाब केसरी समूह ने मुझे हिमाचल संस्करण का समाचार संपादक बनाकर भेजा और कुछ विशेष दायित्व सौंपे। इनमें मैं व्यस्त हो गया क्योंकि मुझे ढाई माह तक लगातार हिमाचल के दौरों पर रहना पड़ा। इस दौरान मेरे लिए भी गिरफ्तारी वारंट निकल गया। मैं जैसे-तैसे मण्डी कोर्ट पहुंचा और अपनी जमानत करवाने में सफल रहा। जज ने तो मुझे जेल भेजने के लिए कह दिया था, मगर मेरा भाग्य मुझे बचा गया। उसके बाद केस चला और बाद में मेरी इसमें कोई भी संलिप्तता न पाए जाने पर केस डिसमिस हो गया। 7 साल बाद मैं निर्दोष होकर नहीं बल्कि इसलिए केस के बाहर हुआ क्योंकि मेरा इसमें न तो कोई दोष था और न ही इसमें मैं शामिल था।

मेरा कहने का अभिप्राय यह है कि अगर वकील अपने कलाईंट से सुने-सुनाए नामों पर केस चलाने की बजाय नियमानुसार संपादक, प्रकाशक और मुद्रक पर केस दर्ज करवाता तो न मैं फंसता और न ही बतौर ब्यूरो चीफ पटियाला दिनेश मिश्रा को बिना कारण जेल जाना पड़ता। इस विषय में वकीलों के लिए भी मानहानि सम्बंधित मामलों को लेकर जानकारी से अवगत करवाना मैं जरूरी समझता हूं। वकीलों की अनभिज्ञता के कारण समाचार से किसी भी प्रकार का वास्ता न होने पर 7 साल मैंने केस भुगता है और दिनेश जी को जेल जाना पड़ा है।

लेखक राजीव पत्थरिया वर्तमान में पंजाब केसरी समूह के विशेष संवाददाता एवं रिपोर्टिंग हेड हैं.

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0 Comments

  1. sanjay

    January 21, 2010 at 9:25 am

    it is nessasary to know of law. lot of people punised without any fault

  2. UPDESH AWASTHEE

    January 21, 2010 at 9:44 am

    राजीव जी,
    आप बिल्कुल सही बोल रहे हैं। आप अकेले नहीं हैं, सैंकड़ों मामले ऐसे ही हैं। एक नासमझ वकील के कारण आपको 7 साल तक परेशान होना पड़ा। सचमुच ये काले कोट वाले कई बार कानून को खिलौना बनाकर खेलते हैं और परेशान होते हैं सय आम नागरिक जो कानून में विEास रखते हैं।
    आप बिल्कुल सही बोल रहे हैं। इन्हें आईपीसी की धारा 499,501,502 की जानकारी ही नहीं है। इनमें से कई ने पीआरबी एक्ट का नाम तक नहीं पढ़ा लेकिन कागज तैयार कर पेश कर दिया जाता है और चलने लगता है एक और मुकदमा।
    न्यायालयों में वकीलों की व्यवस्था इसीलिए की गई है ताकि एक ऐसा व्यक्ति जो कानून का ज्ञाता हो, मध्यस्थता करे और झूठे एवं फर्जी मामले न्यायालयों में दर्ज न हों एवं न्यायालयों का समय बचे, आम अच्छे नागरिक भी परेशान होने से बचें।
    लेकिन वकील सनद लेने के बाद अपनी यह जिमेदारी भूल जाते हैं। एक उदाहरण प्रस्तुत करना अनिवार्य है। आप बार एसोसिएशन में इस प्रकरण की प्रतिलिपि भेजकर उस वकील की सनद रद्द कराने का आवेदन कीजिए जिसने बिना किसी उपयुक्त कारण के केवल किसी एक व्यक्ति के कहने पर आपके खिलाफ प्रकरण प्रस्तुत किया। वकील के उस क्लाइंट के खिलाफ भी हर्जा खर्चा इत्यादि के लिए प्रकरण दर्ज कराइए जिसने आपको 7 साल तक दुभाüवनापूर्वक कोर्ट में घसीटा।
    अपना कानून आपको यह अधिकार देता है। कृपया उपयोग कीजिए एवं यदि हो सके तो मानहानि के प्रकरण एवं फैसले की सत्यप्रतिलिपि स्केन करके मुझे मेल कर दीजिए। मैं देश भर में चले तमाम मानहानि के मामलों एवं न्यायालयों के निर्णयों का संग्रह कर रहा हूं। ताकि छोटे-छोटे शहरों में कार्यरत अपने साथियों का सहयोग किया जा सके।
    यदि अन्य पत्रकार साथियों के पास भी ऐसे कुछ निर्णय हों तो कृपया मुझे मेल करें।
    [email protected]

  3. Vikshipt.Pathak

    January 21, 2010 at 9:50 am

    sadhuwaad, sahi facts saamne laane ke liye… adhikaansh vakil aapko badi badi deenge haankte mil jaayenge ki unki setting falana judge se hai kaam karwa doonga. aise bhi kai kisse hain jab faisla khilaaf hone ke baad log judges ke ghar pahunch kar paisa wapas maangte hain tab asliyat khulti hai ki Judge saahab ko pata bhi nahi aur vakil saahaban ne paise kha liye…..

  4. Vikas Ojha

    January 21, 2010 at 12:55 pm

    Rajiv Ji , Kai Patrakaaro Ka Yahi Haal Hai Bina Kashur Ke Ghasite Jate Hai … ek Mamle Me Mai Bhi Ghasita Gya Tha … Par Kya Kare Acchhe Patrakaaro Ke Kismat Me Yhai Aata Hai … Maine 8 Saal Ki Patrakaarita Me Yahi Dekha Hai … ki Jo Puri Lagan Aur Imandari se Apna Kaam Kare Hai Unhe Kisi Na Kisi Mamle Me Uljha Kar … Pareshan Karne Ki ek Aadat Si Ban Gayi Hai Hamare Samaaj Ki …

  5. alim sheikh E.T.V.REPORTER SULTANPUR U.P.

    January 21, 2010 at 1:58 pm

    bilkul sach hai.jyadatar vakeelon ko i.p.c. ke section 499,501 ki bilkul hi jankaari nahi ve mahaj ek gutke me likhi dharaon ke hisab se case file kar dete hai. yeh bina samjhe ki jinko aropit kiya ja raha hai voh kaisi personality hai.Defamation karne wale ke khilaf mai bhi hu lekin usne sach me hi deliberetly defame kiya ho otherwise yu hi mukadma karne se na kewal ve adalat ka waqt jaya karte hai balki samaj ko dusit bhi karte hai.

  6. jagdish pawar

    January 21, 2010 at 2:20 pm

    rajeev sir
    can you give me mr. dinesh mishra contact number

  7. amit Sharma

    January 21, 2010 at 3:19 pm

    Sir, Aap Agar summaning order ko lekar appele kar Dete to 7 saal na lagte. lagta Hai aapne pehle mamle ko halke main le liya hoga. Advocate to jisse fee legaa ussi ke liye case fight karegaa.

  8. sapan yagyawalkya

    January 23, 2010 at 3:57 pm

    media se jude logon ko samvandhit kanoon ka gyan hona chahiye.behtar ho apna daman bachakar kam karen,

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