किसी भी चैनल ने यहां न तो दर्शकों की मानसिकता समझने का प्रयास किया और न विज्ञापनदाताओं की नब्ज टटोली. जो भी यहां आया, मीडिया की धौंस दिखा कर अपना उल्लू साधने में लग गया और फिर सदा-दा के लिए यहां से रुखसत हो गया. यहां शुरू हुए उन्नीस क्षेत्रीय चैनलों में से 16 बंद हो चुके हैं और कुछ जल्द बंद होने की कगार पर हैं. काफी लंबे अरसे तक संघर्ष करने के उपरांत पंजाब से खदेड़े गए चैनल पंजाब टुडे की हाल ही में हिमाचल से भी सदा-सदा के लिए विदाई हो गई. यह चैनल लंबे अर्से तक जैसे-तैसे समय गुजारने के उपरांत अंततः दुर्गति को प्राप्त हुआ. कुछ दिन न्यूज़ टुडे व फिर न्यूज़ टाईम के नाम से चल रहे चैनल भी अंततः इस क्षेत्र से सदा-सदा के लिए गायब हो गए.
इसी भांति उत्तराखंड से संबंधित एक चैनल टीवी100 ने भी कुछ दिन इस क्षेत्र में पांव पसारने की कोशिश की किंतु दो-तीन महीने चलने के उपरांत यह चैनल भी इन राज्यों से नदारद हो गया. फिर टाईम टीवी का दौर चला. पत्रकारों से मोटी-मोटी कमिटमेंट की गई किंतु फिर वही ढाक के तीन पात वाली कहावत सच साबित हुई. अब टाईम टीवी हालांकि डीटीएच प्लेटफॉर्म पर दिख तो जाता है किंतु वह समाचार और मनोरंजन की बजाय एक धर्म विशेष का धार्मिक चैनल बन कर रह गया है. ऐसा ही कुछ एनआरआई के साथ भी हुआ. इस चैलन ने पांव पसारे किंतु उसके पांव भी वहीं ठिठक गए और धीरे-धीरे चैनल सिर्फ पीसीआर यानि प्रॉडक्शन कंट्रोल रूम तक सिमट कर रह गया.
ढालीवाल ग्रुप का चैनल डीटीवी भी बुरी तरह पिटने के उपरांत अंततः बिका और दिशा टीवी बन गया. पंजाब से संचालित हो रहे एक और चैनल नंबर1 का भी कुछ ऐसा ही हश्र हुआ. यह चैनल भी बिका और अब पंजाब से रुखसत की तैयारी पर है. इसके अतिरिक्त एमएच1 न्यूज़ के हालात भी कुछ अच्छे नहीं हैं. यह चैनल हिमाचल से तो अपना बोरिया-बिस्तर समेट चुका है किंतु पंजाब में कहीं-कहीं अभी भी नज़र आ रहा है. किंतु लचर प्रबंधन के चलते इसका भविष्य भी अधर में नज़र आता है. इसी श्रृंखला में ऐरा टीवी कभी बंद तो कभी शुरू होता रहा है. यह चैनल तीन बार बंद हो चुका है तथा इन दिनों ऑन एयर बताए जाने के बावजूद बंद के बराबर है. चैनल पंजाब का भव्य कार्यालय लगभग दो साल तक मोहाली में भारी तामझाम के साथ चला किंतु ऑन एयर होने से पहले ही इसके प्रबंधन ने भी हाथ खींच लिए और इनके एनआरआई मालिक उल्टे पांव विदेश लौट गए. एक अन्य चैनल पंजाब टीवी भी कुछ दिन तक जोरशोर से चला. खूब होर्डिंग लगे पंजाब में. कई केबल माध्यमों से इसका प्रसारण भी हुआ. हिमाचल में चैनल नज़र आने लगा किंतु अंततः कुछ ही महीने बाद यह चैनल भी दर्शकों के बीच से नदारद हो गया.
उक्त तीन चार राज्यों में एक एस वन चैनल की भी कुछ समय तक आहट सुनाई दी किंतु यह आहट भी आहट ही रही. इसके अतिरिक्त ए2जैड, रफ्तार, वॉयस ऑफ नेशन व वॉयस ऑफ इंडिया भी लुका छिपी के खेल में शामिल चैनल कहे जा सकते हैं. इन चैनलों में फोकस न्यूज़ नाम का एक चैनल भी आने की तैयारी में था जिसने मोहाली में भव्य इनडोर व आउटडोर स्टूडियो भी तैयार करवाए किंतु यह चैनल भी शुरू होने से पहले ही बंद हो गया. हां पंजाब सरकार के बूते पीटीसी यहां निर्विवाद रूप से अब तक तो चल ही रहा है. सरकार बदलने के बाद इस चैनल का क्या होता है. यह वक्त ही बताएगा.
इन राज्यों में अब डे एण्ड नाईट चैनल ने दस्तक दी है. यद्यपि यह चैनल बड़े बजट के साथ शुरू किया गया है किंतु तीन भाषाओं में होने के कारण चैनल किसी भी भाषा के साथ न्याय करता नहीं दिखाई दे रहा है. संपादकीय टीम के लोगों का प्रिंट मीडिया की पृष्ठभूमि से होना जहां एक ओर भाषाई शुद्धता के मामले में चैनल को बेहतर बना रहा है वहीं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की समझ न होने के कारण चैनल टीआरपी की दौड़ में पिछड़ता प्रतीत हो रहा है. चैनल के कार्यक्रम आदर्शवादी पत्रकारिता की नुमाइंदगी तो करते हैं किंतु इन कार्यक्रमों से टीआरपी नामक बाजारू सफलता कितनी हासिल होगी, यह कहा नहीं जा सकता. चैनल का भारी भरकम खर्च प्रबंधन कितने वर्षों तक उठा पाएगा, यह वक्त ही बताएगा. आर्थिक समीकरण चाहे जिस ओर इशारा करें, इस बात से दर्शकों को क्या लेना. उनकी उम्मीद इस चैनल से बंधी है.
साधना न्यूज़ ने हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड में दस्तक दी. अपनी पहचान बनाने के लिए इस चैनल ने सरकार, परियोजनाओं व अन्य लोगों की खूब खिंचाई की. इससे चैनल का नाम होता दिखा. पता चला है कि इस चैनल को अब केबल ऑपरेटरों को चैनल चलाने के लिए मंथली अदा करने में दिक्कतें पेश आ रही हैं. साथ ही यह चैनल पत्रकारों को पगार देने में भी आनाकानी करने लगा है.
दरअसल इन चैनलों में अधिकांश चैनल पत्रकारों की उपेक्षा कर रहे हैं जिससे इन्हें स्तरीय कंटेंट नहीं मिल पा रहा है. परिणामस्वरूप चैनलों की विश्वसनीयता नहीं बन पा रही है और दर्शकों द्वारा नकारे जाने के कारण चैनल फ्लाप हो रहे हैं. मुफ्त में नियुक्त किए गए पत्रकार अपने दैनिक खर्चे निकालने के लिए ब्लैकमेलिंग करते हैं जिससे चैनल की छवि मिट्टी में मिल जाती है और लोग चैनल से नफरत करने लगते हैं. केबल ऑपरेटर ऐसे चैनलों से मनमाना पैसा वसूल करते हैं जिससे चैनल का वितरण बजट बढ़ जाता है और चैनल प्रबंधन का आर्थिक संतुलन गड़बड़ा जाता है परिणामस्वरूप चैनल बंद हो जाते हैं.
चैनलों के लिए विज्ञापन लेना भी कोई आसान काम नहीं है. जब तक संपादकीय टीम टीआरपी की बारीकियां नहीं समझती तब तक इन चैनलों के लिए विज्ञापन जुटाना टेड़ी खीर है. आदर्शवादी पत्रकारिता को विज्ञापन बाजार अपना दुश्मन समझता है. आज सनसनी बिक रही है. कल दर्शकों की मांग कुछ और होगी. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का दर्शक हर पल कुछ नया चाहता है, कुछ दमदार चाहता है. हां, यहां आकर्षक पैकिंग में झूठ भी महंगा बिकने लगा है जो कि पत्रकारिता के लिए शुभ संकेत नहीं है किंतु समय के साथ कदमताल आज अपना अस्तित्व बचाने के लिए पहली शर्त है. संपादकीय विभाग के हाथों विज्ञापन की कमान के प्रयोग हालांकि पथभ्रष्ट होती पत्रकारिता के संकेत हैं किंतु वजूद बचाने के लिए कुछ बड़े चैनलों द्वारा किए गए ये प्रयोग बेहद कारगर रहे हैं. अब प्रिंट मीडिया के एक बड़े तबके ने भी आदर्शों का चोला उतार पीत पत्रकारिता का यह चोला सहज धारण कर लिया है.
उत्तर भारत के इन राज्यों में विज्ञापन का बाजार सीमित है. विज्ञापनदाताओं को जिला से बाहर विज्ञापन देकर कोई लाभ नहीं हो पाता लिहाजा वे केबल पर 1000 रुपए में एक महीना विज्ञापन सहजता से चला लेते हैं. किसी भी सैटेलाइट चैनल को दर्शकों तक पहुंचने के लिए केबल का ही सहारा लेना पड़ता है. इससे एक और समस्या यह भी खड़ी हो जाती है कि जब भी कोई सैटेलाईट चैनल साम, दाम, दंड, भेद की युक्ति अपना कर कोई विज्ञापन हासिल कर भी लेता है तो केबल आपरेटर उस पर अपना हक समझता है तथा विज्ञापनदाता को अपनी ताकत दिखाने के लिए चैनल का प्रसारण ही बंद कर देता है. लिहाजा विज्ञापन टीम के तमाम प्रयासों पर पानी फिर जाता है.
प्रिंट के मुकाबले इलेक्ट्रॉनिक विज्ञापन की निर्माण प्रक्रिया महंगी होने के कारण छोटे विज्ञापनदाता अपने विज्ञापन नहीं बनवा पाते जिससे इलैक्ट्रॉनिक मीडिया खुद उन्हें कामचलाऊ विज्ञापन बना कर देने की ऑफर देता है. किंतु क्षेत्रीय स्तर के विज्ञापनदाता जब अपने विज्ञापनों की तुलना कॉरपोरेट के बड़े विज्ञापनों से करने लगते हैं तो उन्हें छोटे चैनलों द्वारा मुफ्त में बनाए विज्ञापन संतुष्टि नहीं दे पाते जिससे क्षेत्रीय चैनलों के संभवित विज्ञापनदाताओं का इलैक्ट्रॉनिक माध्यम से मोह भंग हो जाता है और वे विज्ञापन देने से तौबा कर लेते हैं. क्षेत्रीय चैनलों के विज्ञापनदाता अपना विज्ञापन तो नेशनल लेबल का चाहते हैं जिनकी लागत लाखों से शुरू होकर करोड़ों तक पहुंचती है किंतु इस पर खर्च एक फूटी कौड़ी नहीं करना चाहते जिससे असमंजस की स्थिति पैदा हो जाती है.
छोटे विज्ञापनदाताओं के पास अच्छी क्वालिटी के विज्ञापन सॉफ्टवेयर न होने के कारण केबल स्तर के विज्ञापन चैनल पर चलने से चैनल की छवि को बट्टा लगता है जिससे चैनल का ग्राफ गिरने लगता है और चैनल बंद हो जाता है. क्षेत्रीय चैनल कैसे सफल हो सकते हैं, इसको लेकर कई बातें सामने आई हैं. इसे अगले अंक में पेश किया जाएगा.
लेखक गोपाल शर्मा पेन पत्रिका के संपादक हैं. कई चैनलों में मुख्य संपादक व निदेशक रह चुके हैं.
kuldeep
October 25, 2010 at 2:32 pm
JALDI HI RAJASTHAN KA NNAM BHI SHAMIL HONE WALA HAI.. TV99 KI HALAT PATALI HAI… HBC FIRST DAY SE HI FALIUR SABIT HO GAYA HAI… DHHANNA SETHO KE KALE KARNAME CHUPANE… AUR AAPNE KO BADA BATANE KE KARAN CHANNEL SHURU HOTE HAIN.. LEKIN TAXI KA BUSNIESS KARNE WALE YADI CHANNEL CHALAYENGE TO SAMJHO KYA HOGA… SAPNE TO RAJYASABHA ME JANE KE DEKHTE HAI… BLACKMAILING KARTE HAI… IINKI NISTHA HI GALAT HAI… GOVT. KO IIN CHIRKUTO KO BAHAR KA RASTA DIKHANA CHAHIYE…
rajesh
October 25, 2010 at 4:18 pm
aapka kehna bilkul sahi hai….
Anupam Trivedi
October 25, 2010 at 4:54 pm
Very well analysed.
sanjay
October 25, 2010 at 10:19 pm
bhai aap acha likhte ho but aap ne zee punjabi ka kahi jikar nahi kiya , lagta hai aap ko unke bare me jankari cum hai
इमरान
October 25, 2010 at 10:37 pm
[b]उम्दा लेख। काफी कुछ जानने को मिला आपके लेख से।
धन्यवाद[/b]
Rajeev Pathria
October 25, 2010 at 11:18 pm
Gopal, yar media ke har madhyam par distribution crises rehta hi hai. lekin ye electronic media par kuch jyada hi hain. channels ke band hone ka karan distribution sahi na ho pana rehta hai.. kyonki advt. ke bina koi jyada din channel nahin chalayega aur advertiser bhi trp par advt. dega….
JM
October 25, 2010 at 11:53 pm
And biggest reason for channels’ failure in Punjab circuit is the monopoly over the entire cable distribution network.Network not only asks for huge amount but in a way controls the editorial content also.For example u can’t do a story on congress.Your channel will loose audio,video or both the moment u dare show Amrinder Singh’s face on your channel.
You’ll not be allowed to earn unintrupted broadcast even if u toe the editorial line as prescribed by them.They will not allow u to come any where near their own channel’s viewing for the simple reason that they don’t want u to earn ad revenue and compete with them in any manner.
This is the story of even the national channels in Punjab.And not one or two….
nitin mishra
October 26, 2010 at 12:29 am
bahut hi galat kehna hai aapka.
sankush
October 26, 2010 at 1:45 am
janab gopal sharma shaayad unheen chanelon main sampadak nideshak rahe hain jo band ho gaye….ab doosron ko dosh de rahe hain..khud ki fat gayee kam karne main
ashraf
October 26, 2010 at 3:53 am
well said…u have very correctly discussed every issue related to regional journalism and broadcasting.the new baby like day and night is still a confused lot..no one understands its focus.neither the management nor the public..electronic media’s lack of knowledge and professional staff like anchors is marring its chance to grow..slowly it will also see it result….alas..!……….god save it…!
sanjay choudhary
October 26, 2010 at 5:24 am
bastav me state chanal ki dash ur deesha bhut acchi to nai khi ja sakti ?
anil rana
October 26, 2010 at 6:26 pm
kafi kuch sahi he kafi kuch galat bhi. lekh me nagative mansikta ki jhalak aa rahi he. kul milaker ap tareef ke kabil hain. aur media ki bhatkati kalam se bhi chintit nazar rahe hain. mera manna he ki aaj ke is kaliyug me wahi channel chalega jo sach ke sath khabron ko zinda rakhega.
krishna nand
October 26, 2010 at 7:33 pm
गोपाल जी आप ने ठीक लिखा है आपकी हिम्मत की दाद देनी चाहिए. कुछ चाटुकार मीडिया कर्मी यह पसंद नहीं करेंगे. दूसरों के टुकड़ों पर पलने वाले कुते तो भोंकेंगे ही. पर वे भी अन्दर से जानते हैं की इस हमाम में सभी नंगे हैं. आपकी जानकारी व लेख प्रेरणा प्रद है
navneet sharma
October 26, 2010 at 7:38 pm
Lambe anubhav ke baad aapne jo lika acha lika.
ritesh
October 26, 2010 at 8:47 pm
tv42, Zee panjabi, time today, jansandesh ka kahin koi jikr nahi hai. kahin inse dosti to nahi hai yah Log maha cho…aur Thagon me samil hain.
SANJEEV SHARMA
October 27, 2010 at 12:02 am
गोपाल जी हिमाचल प्रदेश की मीडिया के भगवान् माने जाते है …….खास कर उन लोगो के लिए जिन पत्रकारों के इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने बर्तन तक बिकवा दिए गोपाल जी ने खुद जैसे सेकड़ो गोपाल शर्मा को बनाया ……जिन्हें आज के मीडिया ने खून चूस कर छोड़ दिया उन्हें …गोपाल जी ने जीने का सहारा दिया ……उन्हें आत्मनिर्भर बनाया 500 से ज्यादा पत्रकारो का समूह भी इन्होने ही बनाया …… हालात कैसे भी रहो हो इन्होने हमेशा सरोकारी पत्रकारों को अपना धर्म समझा ..मीडिया ही इनका मजहब है और रहेगा भी ….ख़ुशी इस बात की है ….की भड़ास पर देर से ही सहीं गोपाल जी ने लिखना तो शुरू किया ……… उम्मीद है आगे भी गोपाल जी की कलम से पनपे शब्दों को हम bhadas4media में पढ़ पाएंगे ………
www voiceofpress.com
naripjeet
October 27, 2010 at 12:46 am
gopal ji aap ka lekh padha bahut achha laga
bhagat singh
October 27, 2010 at 5:34 pm
you are nobody to decide the future of anyone…and as far as day and night is concerned you are very right….is channel ka to bhagwaan hi maalik hai…people are not from electronic media jiska bhugtaan karna pad raha hai. ye na to infotainment channel hai aur na hi dhang se news bhi dikhata hai
ravi kishan
October 27, 2010 at 6:17 pm
gopal ji punjab mein chalne wale channels mein ek dusre se aagay nikalne ki hod hi nahi hai…apni marzi ke programs chalate hain jaise apne ghar ke liye hi bana rahe hain…day and night par to talk shows ke alaawa kuch aur aata hi nahi hai…
Gagan chawla
October 28, 2010 at 3:24 am
गोपाल भाई आपने चैनलों की मानसिकता को बड़ी बारीकी से जाना है ऐसा आपके द्वारा लिखी गई समीक्षा से लगता है। दरअसल आज से आठ साल पहले इलेक्ट्राॅनिक मीडिया जब अपने ्याबाब पर था तब कुछ काले कारोबारियों की नज़र इस उभरते माध्यम पर पड़ी। अनेक तरह के अपराधों में संलिप्त इन बीमार मानसिकता के लोगों ने जब मीडिया जैसे पावन सेवा कार्य में कदम रखा तो धीरे-धीरे यह कार्य भी बदनाम हो गया। खैर यह लोग जितनी तेजी से मीडिया में आए थे उतनी ही तेजी से इनका सफाया भी हो रहा है। कुछ लोग अभी छटपटा रहे हैं, उनका भी सफाया वाहे गुरू सच्चे बाद्यााह एक दिन जरूर करेंगे। कंस और रावण रूपी इन ठगों का सफाया हर हाल में होगा। आप यकीन रखें।
vivek kumar rai
October 29, 2010 at 4:25 am
aapka kehna bilkul sahi hota hai….
gopal sharma
October 29, 2010 at 6:54 pm
Bhai kuldeep ji,rajesh ji, Anupam Trivedi ji, sanjay ji,imran ji,Rajeev Pathria ji, JM ji,ashraf ji,sanjay choudhary ji, anil rana ji, krishna nand ji, navneet sharma ji, riteshji,SANJEEV SHARMA ji,naripjeet ji,
bhagat singh ji, ravi kishan ji,Gagan chawla ji, vivek kumar rai ji, Aap sabhi ka Dhanyabad ki aapne is lekh ko padne ka samaya nikala.
Gopal Sharma.9216766861, [email protected]
NCR REPORTER
November 13, 2010 at 5:02 am
GOPAL JI BAHUT ACHCHA LIKHA HAI APNI GAHRAI KO HAME BATANE KE LIYE BAHUT BAHUT SHUKRIYA KYUNKI HALAT AB HAR JAGAH BAD SE BADTAR HO GAYE HAI KUKURMUTO KI TARAH SE KHULE CHANNELO NE JO MEDIA KI SAAKH PAR BATTA LAGAYA HAI OR MEDIA PERSON JINKI CHAVI BHI AAJ HILTI NAJAR AA RAHI HAI USSE DEKH KAR YE HI LAG RAHA HAI JO OR STATE HAI UNKI HALAT BHI KUCH AHCHI NAHI VO BHI JALD ISI SEEDI PAR KADAM RAKHENGE OR CHUTBAYA CHANNEL CHAIN KI TARAH KHUL RAHE HAI OR BAND HO RAHE HAI USKE BAAD YE HALAT n c r ME BHI HO JAYE TO JO CHANNEL KHOL KAR PATRKARITA KO TO KHARAB KAR HI RAHE HAI OR SAATH HI APNE CHANNELO ME BHARTI BHI UNKI KARTI HAI JO MEDIA KI ABCD NAHI JANTE OR MEDIA JAGAT KI SAAKH OR JADO KO HILANE ME APNI BHOOMIKA BAKHUBHI NIBHA RAHE HAI UNKE BHI SAFAYE HO JANE KE BAAD SHAYAD MEDIA JAGAT KI HALAT SUDHRE OR SAAKH ME KUCH IJAFA HO ……….SHUKRIYA SIR ……