प्रिय भाई यशवंत जी, मुझे नहीं मालूम कि आपको मेरे इस्तीफे की खबर कहां से मिली पर खबर सच है। मैंने ‘महुआ न्यूज’ चैनल से इस्तीफा दे दिया है। भड़ास4मीडिया पर प्रकाशित खबर और भड़ास4मीडिया की मोबाइल एलर्ट सर्विस द्वारा एसएमएस जारी किए जाने के बाद से दिन-रात आने वाले फोनों के जवाब देते-देते मेरी हालत खराब हो गई। ये देख कर खुशी भी हुई कि मेरे भी कुछ शुभचिंतक हैं। सभी एक सवाल कर रहे थे कि अचानक इस्तीफा क्यों दे दिया? मेरा सभी को एक ही जवाब था कि जिस माध्यम से आपको ये खबर मिली है, उसी से आपके प्रश्न का उत्तर भी मिल जाएगा। मेरा आपसे आग्रह है कि मेरी इस बात को बिना कतर-ब्योंत के अविकल रूप से प्रकाशित कर दें। मैंने अपने महुआ के कार्यकाल भर भरपूर आनंद लिया, लुफ्त उठाया। जो अपनापन मुझे वहां मिला, वह अन्यत्र कहीं नहीं मिला। अपने साथियों से मुझे भरपूर साथ मिला।
मुझे अंशू भाई (अंशुमान त्रिपाठी), आउटपुट में अपने सहयोगियों विनोद पांडेय, ओपी सिंह, विशेष रूप से राजेश सिंह और राकेश यादव का पूरा सहयोग और उत्साहवर्धन दोनों मिला। मैंने नवंबर में इंग्लैंड टीम के भारत दौरे से लगायत टीम इंडिया के हालिया वेस्टइंडीज दौरे तक बिना थके काम किया। इस बीच कमर सीधी करने का कोई मौका चैनल ने नहीं दिया। न्यूजीलैंड, आईपीएल, 20-20 वर्ल्ड कप, सभी एक के बाद एक थे। मेरा प्रदर्शन कैसा रहा, यह तो मैं नहीं बता सकता पर भारतीय चैनल्स की दुनिया में अगर टीआरपी ही पैमाना है तो मैं कह सकता हूं कि असफल नहीं रहा। मैंने 30 जून को एक महीने की नोटिस के साथ त्यागपत्र जब दिया तो उसके पीछे यहीं 21 जून से 28 जून की महुआ की खेल बुलेटिन की टीआरपी शाम 6.30 की 3.09 और सुबह की 2.24 थी। यानी महुआ में नंबर वन भी खेल बुलेटिन और नंबर टू भी खेल बुलेटिन ही रही। बिहार और झारखंड की इस टीआरपी में आजतक हो या स्टॉर न्यूज या इंडिया टीवी, अथवा न्यूज 24, सभी मीलों पीछे थे। मैंने टीआरपी रिपोर्ट अलग से प्रेषित कर दी है। बुलेटिन की गुणवत्ता यही क्वालिटी ही हमारी खेल डेस्क की थाती थी। यही कारण है कि महुआ न्यूज चैनल को अगर किसी स्लोट में प्रायोजक मिले तो वह भी सिर्फ और सिर्फ खेल बुलेटिन को ही, और ये जवाब है उन लोगों को भी जो ये कहते हैं कि खेल बुलेटिन की कोई जरूरत नहीं है। सिर्फ क्रिकेट ही बिकता है और वह समाचारों में ही दिया जाना चाहिए, अलग से बुलेटिन की कोई जरूरत नहीं है।
सवाल ये उठता है कि फिर मैंने त्यागपत्र क्यों दिया? मेरा जवाब यही है कि मेरी उड़ान के लिए महुआ का रनवे काफी छोटा पड़ रहा था। मुझे हमेशा आश्वासन मिलता रहा कि खेल डेस्क को मजबूत किया जाएगा। आपको मेन पॉवर हिंदी चैनलों से कंपटीशन करने लायक दिया जाएगा, पर मैनेजमेंट ने ये वादा कभी पूरा नहीं किया। मैं आभारी हूं खेल डेस्क के दो योद्धाओं मनीश शर्मा और अजय राणा का कि जिन्होंने बिना कोई साप्ताहिक अवकाश लिए मेरे साथ रात-दिन एक करके खेल बुलेटिन की ब्रांडिंग की। लेकिन यह व्यवस्था स्थायी नहीं हो सकती थी। आखिर हम भी हाड़-मांस के हैं। हमे भी सुस्ताने का हक है। लेकिन चैनल ने वह भी छीन रखा था। सो मैंने देखा कि आगे कोई सिरीज नहीं है सितंबर तक तो चलो अब किसी और ठिकाने की तलाश की जाए। मैं आभारी हूं सीईओ अनुराधा जी का भी कि जिन्होंने ना सिर्फ मेरे कॉन्सेप्ट यानी अवधारणा को सराहा बल्कि उत्साहवर्धन भी किया। मैं आभार प्रकट करता हूं चैनल के स्वामी और पित्र पुरुष श्रद्धेय पी.के. तिवारी का कि उन्होंने मुझे कुछ कर दिखाने का एक मंच, एक प्लेटफार्म दिया। पर एक आग्रह है उनसे कि हिंदी संसार भोजपुरिया से बहुत बड़ा है सो अपनी सोच का दायरा भी बढ़ाएं।
लोग मुझसे ये भी पूछ रहे हैं कि मैं आगे क्या करूंगा तो मैं बता दूं कि तीन-चार ऑफर्स हैं मेरे पास, जिनमें एक विदेशी चैनल भी है पर फिलहाल तो कविवर सुमित्रानंद पंत और गौरा बुआ (गौरापंत शिवानी) के रचना संसार यानी उत्तरांचल के अनुपम प्राकृतिक सौंदर्य को करीब से निहारने, फेफड़ों में शुद्ध हवा भरने और फिर तरोताजा होकर ही काम में जुटने की तमन्ना है।
यशवंत भाई, एक बात भड़ास4मीडिया के लिए भी। यह कोई सामान्य वेबसाइट नहीं है और इसको कोई हलके में लेने की भूल कदापि न करे। भड़ास4मीडिया तो दरअसल मीडिया विशेषकर हिंदी मीडिया की आवाज बन चुका है और इसका एक उदाहरण भड़ास 4मीडिया में ये समाचार प्रकाशित होने के बाद मिली प्रतिक्रियाएं हैं। क्या फोन, क्या मेल, दम मारने की फुर्सत नहीं मिल रही है मुझे। सो भाई यशवंत जी, जो लौ आपने जलाई है, उसे कभी मंद मत पड़ने दीजिएगा। हम मीडिया के लोग दूसरों की आवाज उठाने के लिहाज से भले ही शेर हों पर खुद अपने लिए हमारे गले में आवाज ही नहीं है। आप हम सबकी आवाज का काम जिस तरह से कर रहे हैं, वैसे ही करते रहिए भाई।
आपका
पदमपति शर्मा
दिल्ली