वरिष्ठ खेल पत्रकार पद्मपति शर्मा के इन्फोटेंमेन्ट न्यूज चैनल आर-7 का रविवार को वाराणसी से भव्य शुभारंभ हुआ. ‘सच ही मुकाम है’ स्लोगन से अवतरित हुए इस चैनल पर न्यूज एवं व्यूज के अलावा सप्ताह में आठ कार्यक्रमों का प्रसारण भी होगा. पराड़कर स्मृति भवन में आयोजित कार्यक्रम में वक्ताओं ने पद्मपति शर्मा के कार्य की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। यह चैनल ‘आर-7’ इंफोटेंमेंट प्राइवेट लिमिटेड का अंग है।
Tag: padampati sharma
पद्मपति शर्मा करेंगे लोकल चैनल आर-7 को हेड
कई अखबारों और चैनलों को अपनी सेवाएं दे चुके वरिष्ठ पत्रकार पद्मपति शर्मा आर-7 नामक एक स्थानीय चैनल ला रहे हैं. वाराणसी से 3 जुलाई को लांच होने वाले इस चैनल को हेड करेंगे. आर-7 इंफोटमेंट प्राइवेट लिमिटेड के बैनर तले आ रहा यह चैनल मनोरंजन, समाचार और विश्लेषण के कार्यक्रमों पर केंद्रित होगा. इसको लाने की तैयारी काफी पहले से की जा रही थी.
तब बाघ की खाल ओढ़े गदहे कतई बर्दाश्त नहीं होंगे
: अचम्भा-करिश्मा रोज-रोज नहीं होता : बचपन के कुछ दिन मैंने कोलकाता में गुजारे थे. खेलों के प्रति इस दीवाने महानगर का ही शायद यह असर रहा होगा कि मेरा रुझान खेलों में बढ़ा और कालांतर में यह रोजी-रोटी का जरिया भी बना. आम कलकतिया खेल प्रेमी की तरह मैं भी मोहन बागान – ईस्ट बंगाल की फुटबाल भिडंत देखने कूदता-फांदता जाया करता था और तब जो भी टीम हारती थी, वो एक ही गाना गाती थी, ‘हमारे ग्यारह खिलाड़ी उनके 14 खिलाडियों के खिलाफ खेल रहे थे. मानो रेफरी और दोनों लाइन्स मैन विजेता टीम के अतिरिक्त खिलाड़ी हों.
कमलेश महज खेल रिपोर्टर ही नहीं थे
कुछ अन्यान्य कारणों से इधर लगभग दो महीनों से लेखन पर विराम सा लगा हुआ था पर 13 दिसंबर को वरिष्ठ पत्रकार साथी कमलेश थपलियाल के निधन की सूचना ने मुझे हिला कर रख दिया और स्वाभाविक `श्मशान दर्शन’ दीवार पर नजर आने लगा. सचमुच, मृत्यु अंत नहीं है बल्कि मृत्यु जीवन समीकरण का अंतिम कोष्ठक है.
वो पगलाए महान संपादक अब दुहाई दे रहे
: ये पन्ने मैं नहीं पलटता अगर एक राष्ट्रीय हिंदी दैनिक के समूह संपादक ने अयोध्या कांड के फैसले को लेकर आदर्श पत्रकारिता की दुहाई न दी होती : ये वही महान शख्स हैं जिन्होंने अयोध्या कांड के समय आगरा के पागलखाने के किसी बदतर पागल की तरह आचरण किया था और शर्म आ गयी थी पत्रकारिता की मूल भावनाओं और उसके आदर्शों को : तब ‘आज’ अखबार के आगरा संस्करण ने वो-वो कुकर्म किये थे कि मत पूछिए : तब अखबारों की उपासना के मानक स्थल भी टूटे थे : सच कहूं तो हम सभी लोग मौका-परस्त कमीने हो गए हैं :
वो सलीब पर भी क्रिकेट का पारायण करता था
राजन बाला के निधन से क्रिकेट समालोचना के महान युग का अंत : शनिवार की सुबह यशवंत भाई ने जब राजन बाला के निधन का हृदयविदारक समाचार बताया तो एकदम से हिल गया मैं. ये मौत अचानक नहीं हुई. इसका अंदेशा तो उनके करीबियों को था पर हर कोई चमत्कार की उम्मीद पाले हुए था कि शायद कोई मैच करने वाली किडनी मिल जाए. पर वो नहीं मिली और एक महान क्रिकेट समीक्षक अपने असंख्य चाहने वालों को रोता कलपता छोड़ कर इस दुनिया से कूच कर गया. इसके साथ क्रिकेट समालोचना के महान युग का अंत हो गया. महान इसलिए कि एनएस रामास्वामी, केएन प्रभु और राजन बाला त्रयी की आखिरी कड़ी भी कल टूट गई. इन तीनों ने क्रिकेट राइटिंग को जो आयाम दिए वो अतुलनीय है. क्रिकेट में गहरे डूबे रहने वाले एनएस रामास्वामी की खेल से संपृक्तता बेजोड़ थी. प्रभु ने लयात्मक संगीतमय लेखन किया. प्रभु के लेखन में बिथोवन की सिंफनी बजती थी. रविशंकर के सितार की मधुरता थी.
‘युवाओं के लिए मिसाल हैं शशि शेखर’
[caption id="attachment_15689" align="alignleft"]आशीष बागची[/caption]पदमपति शर्मा का मृणालजी, शशिशेखर और एचटी प्रबंधन विषयक विचार पढ़ा। यहां आपको बता दूं कि मैं जितना पदमपति शर्मा से जुड़ा हूं, उतना ही शशिशेखर के साथ भी जुड़ा हूं और मृणालजी का एक शिकार रहा हूं। इसके साथ ही मैं शशिशेखर के शुरुआती पत्रकारिता जीवन और उनकी विकास यात्रा का निकट साक्षी रहा हूं। उनसे मेरा संपर्क तीन दशक से भी अधिक पुराना है। कहने में संकोच नहीं कि उनके बारे में जितना मैं जानता हूं, उतना शायद ही कोई जानता होगा। मैं मृणालजी के बारे में कुछ नहीं कहना चाहता और न उनसे शशि की कोई तुलना करना चाहता। दोनों की अलग-अलग शख्सियत है। शशि उन लोगों, खासकर युवाओं के लिए एक मिसाल हैं जो जीवन की कठिन डगर में बिना आपा खोए निरंतर आगे बढ़ने में विश्वास रखते हैं और हर नये अनुभव से सीख लेते हैं। शशि ने पत्रकारिता की शुरुआत बनारस के ‘आज’ से की। पहले सिटी रिपोर्टिंग की फिर बाबू विश्वनाथ सिंह, बाबू दूधनाथ सिंह व शिवप्रसाद श्रीवास्तव के सानिध्य में अनुवाद को निखारा।
मृणालजी, शशिशेखर और एचटी प्रबंधन
टिप्पणी (1) : मृणालजी की हिंदुस्तान से दुर्भाग्यपूर्ण विदाई का समाचार भड़ास4मीडिया से पता चला। उनके जाने पर मिश्रित प्रतिक्रिया भी आपके ही माध्यम से जानी। मृणालजी का मैं भी एक शिकार रहा हूं और मेरा इस्तीफानामा भी भड़ास4मीडिया पर प्रकाशित हो चुका है। एक निजी पत्र को भड़ास4मीडिया ने सार्वजनिक कर दिया था, फलतः जिसने भी वो पढ़ा होगा, वो यही सोच रहा होगा कि मैं उनके खिलाफ बयान दूंगा। जबकि सच्चाई इसके सर्वथा उलट है। सच तो ये है कि मृणालजी का जाना हिंदुस्तान के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है ही, उससे भी ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण है उनके घोषित उत्तारधिकारी का नाम। समझ में नहीं आता है कि आखिर एचटी मैनेजमेंट के संपादक चयन का पैमाना क्या है?
मैंने इसलिए इस्तीफा दिया : पदमपति
[caption id="attachment_15494" align="alignleft"]पदमपति शर्मा[/caption]प्रिय भाई यशवंत जी, मुझे नहीं मालूम कि आपको मेरे इस्तीफे की खबर कहां से मिली पर खबर सच है। मैंने ‘महुआ न्यूज’ चैनल से इस्तीफा दे दिया है। भड़ास4मीडिया पर प्रकाशित खबर और भड़ास4मीडिया की मोबाइल एलर्ट सर्विस द्वारा एसएमएस जारी किए जाने के बाद से दिन-रात आने वाले फोनों के जवाब देते-देते मेरी हालत खराब हो गई। ये देख कर खुशी भी हुई कि मेरे भी कुछ शुभचिंतक हैं। सभी एक सवाल कर रहे थे कि अचानक इस्तीफा क्यों दे दिया? मेरा सभी को एक ही जवाब था कि जिस माध्यम से आपको ये खबर मिली है, उसी से आपके प्रश्न का उत्तर भी मिल जाएगा। मेरा आपसे आग्रह है कि मेरी इस बात को बिना कतर-ब्योंत के अविकल रूप से प्रकाशित कर दें। मैंने अपने महुआ के कार्यकाल भर भरपूर आनंद लिया, लुफ्त उठाया। जो अपनापन मुझे वहां मिला, वह अन्यत्र कहीं नहीं मिला। अपने साथियों से मुझे भरपूर साथ मिला।
पदमपति और मनोज भावुक का इस्तीफा
[caption id="attachment_15464" align="alignleft"]पदमपति शर्मा और मनोज भावुक[/caption]भोजपुरी के दो चैनलों ‘महुआ न्यूज’ और ‘हमार टीवी’ में कार्यरत एक-एक पत्रकारों ने इस्तीफा दे दिया है। महुआ न्यूज के स्पोर्ट्स हेड और वरिष्ठ पत्रकार पदमपति शर्मा के बारे में खबर है कि उन्होंने इस चैनल से नाता तोड़ लिया है। 30 वर्षों से हिंदी खेल पत्रकारिता में नेतृत्वकारी भूमिका में सक्रिय पदमपति आज, दैनिक जागरण, अमर उजाला और हिंदुस्तान जैसे अखबारों में खेल के सर्वोच्च पदों पर रहे हैं। महुआ न्यूज ज्वाइन करने से पहले वे दिल्ली से प्रकाशित डैश मैग्जीन में एसोसिएट एडिटर के रूप में कार्यरत थे। महुआ न्यूज से उन्होंने इस्तीफा क्यों दिया, यह पता नहीं चल पाया है। वे कहां जा रहे हैं, इसकी भी सूचना नहीं मिल पाई है।