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शीला ने मीडिया को दुत्कारा, फिर पुचकारा

संदीप ठाकुरगत 18 मई को एक तुगलकी फरमान जारी कर मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने प्लेयर बिल्डिंग (दिल्ली सचिवालय) के तीसरी मंजिल पर प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया की एंट्री पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन इस घटना के एक हफ्ते बाद उसी शीला दीक्षित को मीडिया से माफी मांगनी पड़ी। मुख्यमंत्री ने बुधवार 26 मई को मीडिया वालों को संवाद के लिए अपने दफ्तर में आमंत्रित किया और उनसे माफी मांगी।

संदीप ठाकुर

संदीप ठाकुरगत 18 मई को एक तुगलकी फरमान जारी कर मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने प्लेयर बिल्डिंग (दिल्ली सचिवालय) के तीसरी मंजिल पर प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया की एंट्री पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन इस घटना के एक हफ्ते बाद उसी शीला दीक्षित को मीडिया से माफी मांगनी पड़ी। मुख्यमंत्री ने बुधवार 26 मई को मीडिया वालों को संवाद के लिए अपने दफ्तर में आमंत्रित किया और उनसे माफी मांगी।

इस मौके पर दिल्ली के सारे मंत्री, मुख्यमंत्री के प्रिंसीपल सेक्रेटरी पी.के. त्रिपाठी, एडिशनल सेक्रेटरी अलका दीवान आदि मौजूद थे। अपने पूरे कुनबे के सामने मुख्यमंत्री को माफी मांगनी पड़ी, आखिर क्यों? इस गणित को समझने के लिए आपको एक सप्ताह पीछे लिए चलते हैं। घटना गत 18 मई की है। मुख्यमंत्री कार्यालय से एक तुगलकी फरमान जारी हुआ था। इस फरमान में कहा गया था कि कोई भी मीडिया वाला दिल्ली सचिवालय के तीसरी मंजिल स्थित मुख्यमंत्री के कार्यालय में नहीं आ सकता है। अचानक आए ऐसे फरमान का औचित्य और तर्क मीडिया कर्मियों को समझ में नहीं आया। मामला थोड़ा आगे बढ़ा तो मुख्यमंत्री के करीबी माने-जाने वाले कुछ वरिष्ठ पत्रकार गत 21 मई को मुख्यमंत्री से मिले और उन्होंने इस मामले को खत्म करने को कहा। बताया जाता है कि मुख्यमंत्री ने प्रतिबंध हटाने से यह कहते हुए इंकार कर दिया था कि उनके दफ्तर के बाहर रोज-रोज लगने वाले पत्रकारों के जमावड़े से वे आजिज आ चुकी हैं।

मामले में दिलचस्प मोड़ गत 24 मई को उपराज्यपाल निवास पर घटी एक घटना के बाद आया। इस दिन दिल्ली उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा का शपथ ग्रहण समारोह था। उपराज्यपाल तजेन्द्र खन्ना ने न्यायाधीश महोदय को शपथ दिलवाई और उसके बाद चैनल वाले एक-एक कर बाईट लेने लगे। चैनल वालों ने उपराज्यपाल की बाईट ली और जब नंबर मुयमंत्री शीला दीक्षित का आया तो चैनल वालों ने अपने-अपने माइक हटा लिए। इस घटना के बाद शीला दीक्षित मामले की गंभीरता को भांप गई और उन्हें लगा कि मामला दूसरा रूप ले सकता है। चैनलों और अखबारों में छाई रहने वाली मुख्यमंत्री महोदया को लगा कि यदि वाकई मीडिया ने उनका बहिष्कार कर दिया तो क्या होगा। उन्होंने आनन-फानन में 26 मई को अपने दफ्तर में मीडिया वालों को संवाद के लिए आमंत्रित किया। बुधवार को संपन्न संवाद समारोह में उन्होंने अपने तुगलकी फरमान के लिए न सिर्फ पत्रकारों से माफी मांगी, बल्कि अचानक उन्हें पत्रकारों के सुख-दुख का भी खयाल आ गया।

सवाल यह है कि भारत जैसे प्रजातांत्रिक देश में प्रजातांत्रिक तरीके से चुने गए जनप्रतिनिधि को यह अधिकार है कि वह देश का चौथा स्तंभ माने जाने वाले मीडिया के प्रतिनिधियों को किसी सरकारी दफ्तर में आने से रोक दे। प्लेयर बिल्डिंग दिल्ली का नया सचिवालय है। श्रीमती दीक्षित ने जो तुगलकी फरमान जारी किया था वह कहीं से भी तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता। सचिवालय मुख्यमंत्री का निजी बेडरूम या ड्राईंग रूम नहीं है, जिसमें जिसको चाहें वो आने की इजाजत दें और जिसको चाहें न दें। वैसे भी मुख्यमंत्री का रवैया पत्रकारों के प्रति बहुत अधिक दोस्ताना नहीं दिखता है। उनसे किसी भी ऐसे मुद्दे पर जो सीधे-सीधे जनता से जुड़ा है, मसलन बिजली, पानी, ट्रैफिक और कानून व्यवस्था आदि पर जब भी राय मांगी जाती है तो वे बहुत ही रूखेपन से मीडिया के साथ पेश आती हैं। दिल्ली राज्य के किसी मुख्यमंत्री को क्या यह शोभा देता है?

लेखक संदीप ठाकुर ‘हमारा महानगर’ अखबार के दिल्ली संस्करण के मैट्रो एडिटर हैं.

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0 Comments

  1. Rajender Swami

    May 31, 2010 at 2:34 pm

    सचिवालय मुख्मंत्री का निजी रूम या बेड नहीं है जिसमें वे जिसे चाहे उसे आने दें और जिसे न चाहे उसे न आने दें लेखक की इस बात से असहमत होने का कोइ कारन नहीं है..मुझे नहीं पता की मुख्यमंत्री के माफ़ी मांगने पर पत्रकारों ने उसे माफ़ किया या नहीं..लेकिन मुख्यमंत्री ने ऐसा फरमान जारी कर प्रेस के प्रति प्रतिष्ठा और प्रेम को ही सामने नहीं रखा बल्कि उनका यह फरमान जनता और जनप्रतिनिधियों के बीच सेतु का काम करने वाले संवाददाताओं के काम में बाधा पहुचने वाला काम भी है..और उनका अपमान भी है..बावजूद इसके पत्रकार अपना काम करेंगे..वे तो मान अपमान के सीमा से ऊपर होकर काम करतें है…उन्हें कोइ दुत्कारे तो भी उनके पास जाते है…यह उनकी व्यावसायिक विवशता है…अपने आत्मसम्मान को साइड कर काम करना सचमुच सहस का काम है..जिसके लिए पत्रकारों को सलाम किया जाना चाहिए…
    राजेन्द्र स्वामी

  2. ashwani

    May 30, 2010 at 5:24 am

    chaploosi karoge to hasrh yahi hona hai khaber se kilwad mat karo ye to pani mangege

  3. Vikram jadon

    May 29, 2010 at 2:54 pm

    aaj ki duniya mai sab bikata hai. mediyawalon ko chahiye ki wo is beijjati ka badla sahi tarike se len. kya cheef ministar sahiba ko apne chamcho [patrakar] ke kehne par hi is galati ka ehsas hua.

  4. raj

    May 27, 2010 at 4:34 pm

    meadia jara aaine mai apna chehra bhi dekh le. chotha stmbha bharose ke layak hai kya ya nalayk ho gya hai. neta ……

  5. aabid

    May 27, 2010 at 4:39 pm

    सवाल यह है कि भारत जैसे प्रजातांत्रिक देश में प्रजातांत्रिक तरीके से चुने गए जनप्रतिनिधि को यह अधिकार है कि वह देश का चौथा स्तंभ माने जाने वाले मीडिया के प्रतिनिधियों को किसी सरकारी दफ्तर में आने से रोक दे। संदीप ठाकुर socho jara meadia kitna mhaan hai. kise bhadas par barkha singhavi

  6. rajiv

    May 27, 2010 at 12:35 pm

    shila dixit of mediaphobia ho gaya. chaplus type ka patrakaro ki pareshani jarur badh gayi hogi.

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