भाई यशवंत जी, एक खबर ने मन में बहुत बेचैनी पैदा कर रखी है. समझ में नहीं आ रहा, कहां से क्या करूं? तो लगा आप का सहयोग मिल जायेगा तो एक लड़ाई की शुरुआत कर सकते हैं. आज के दैनिक जागरण, लखनऊ में पेज नंबर 11 पर सिंगल कालम में एक खबर छपी हैं कि इनसेफलाइटिस जिसे दिमागी बुखार कहते हैं, से गोरखपुर में पिछले 24 घंटो में 10 साल की स्मिता और 1 साल के माही की मौत हो गई. खबर में है कि पिछले 1 जनबरी से अब तक 944 मरीज गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में भर्ती हो चुके हैं जिसमें से 167 की मौत हो चुकी है. हकीकत यह है कि पिछले 3 सालों में गोरखपुर और उसके आसपास के इलाको में 10 हजार से ज्यादा बच्चे इस बुखार की चपेट में आकर दम तोड़ चुके हैं. फिर भी यह मुद्दा राष्ट्रीय आपदा नहीं बना. 100 से भी कम लोगों की स्वाइन फ्लू की मौत देश भर में हंगामा खड़ा कर देती हैं. कारण सिर्फ इतना कि यह फ्लू जिनको हुआ, उनमें से अधिकांश बड़े घर के लोग थे और पूर्वांचल में मरने बाले बच्चे अधिकतर गरीब घरों के थे.
दुनिया भर के किसी भी देश के एक मंडल में आज तक इतने बच्चे किसी एक बीमारी से नहीं मरे. और हमारा नपुंसक नेतृत्व इन मौतों के प्रति इतना संवेदनहीन बना रहा मानो मरने बाले बच्चे इंसानों के न हों. समझ नहीं आता हम कौन से समाज में जी रहे हैं. मैं इलेक्ट्रोनिक मीडिया की आलोचना नहीं करना चाहता पर क्या सभी चैनल अगर लगातार 1 सप्ताह तक यही खबर दिखाएं और उस पर परिचर्चा करवाएं, तब भी क्या हमारे देश के कर्णधार इन बच्चों को यूं ही मरने देंगे? अगर देश भर के अखबार अपना पहला पेज सिर्फ यह लिख कर खाली छोड़ दें कि लानत है ऐसे नेतृत्व को. तब भी क्या हालात में सुधार नहीं आएगा.
सरकार दावा कर रही है कि पूरे पूर्वांचल में इस बीमारी से बचने को टीके लगवा दिए गए हैं. फिर बच्चे कैसे मर रहे हैं? यूपी की सरकार कह रही है दिल्ली सरकार टीके नहीं दे रही. दिल्ली सरकार कह रही है कि यूपी सरकार टीके लगवा नहीं पा रही. बाद में यूपी सरकार कहती है कि जो टीके आये वो ख़राब थे और इसी सब राजनीति के बीच लगातार बच्चे मर रहे हैं.
गोरखपुर और उसके आसपास के गावों में जाकर देखिये. जरा भी बच्चे का शरीर गरम होता है तो माँ रोना शुरू कर देती है. वो जानती है कि अब उसका बच्चा नहीं बचेगा.
हम करोड़ों, अरबों रुपये खर्च करके राष्ट्रमंडल खेल करा सकते हैं और उसे देश के स्वाभिमान से जोड़ सकते हैं. मगर इस बात का संकल्प नहीं ले सकते कि चाहे कुछ भी हो जाये एक भी बच्चा अब इस बीमारी से मरने नहीं दिया जायेगा. अगर यह बच्चे अमीरों के होते तो अब तक देश में तूफान खड़ा हो चुका होता. संसद एक भी दिन नहीं चल पाती. अब इन हालात के बाद कोई यह पूछे कि नक्सली क्यों बनते हैं तो उसे मूर्ख ही कहा जायेगा.
बच्चों की मौत देश की उतनी ही गंभीर समस्या हैं जितनी कश्मीर या नक्सलवाद की. अफ़सोस यह कि इसे सबने स्वाभाविक मान लिया है. कोई शुरुआत नहीं करना चाहता. हमने लोगो से प्रार्थना की है कि वो राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और यूपी की सीएम को ख़त लिख कर इस बीमारी की रोकथाम को कहें. जब यह खत लाखों में हो जायेंगे तो सरकार पर दवाब बनेगा. सूचना के अधिकार में पूछेंगे कि इन खतों पर क्या हुआ. जबाब संतुष्टि भरा न हुआ तो हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जायेंगे. अपने सभी मीडिया के साथियों से उम्मीद है कि उन माओं की खातिर जो अपने बच्चों को मौत के मुंह में जाते देख रही हैं, अपने अपने स्तर से इस लड़ाई की शुरुआत करेंगे.
यशवंत भाई, यह हजारों बच्चो की जिंदगी से जुड़ा मामला है. बच्चा मेरा और आपका भी हो सकता है. इस लड़ाई में मेरी मदद कीजिए. मैंने लखनऊ से ख़त भिजवाना शुरू कर दिए हैं. 100 से ज्यादा ख़त भेजे जा चुके हैं. आप का साथ मिलेगा तो हम सब मिलकर इन नौनिहालों के लिए कुछ कर सकेंगे.लेखक संजय शर्मा लखनऊ से प्रकाशित वीकेंड टाइम्स के प्रधान संपादक हैं.
khetoolal
August 21, 2010 at 8:37 am
खबर भी अब डाउन मारकेट और अप मारकेट होती है. गरीब के पांच बच्चे कुएं में गिर कर मर जाएं, अखबारों में ये खबर पहले िदन तान कर छपेगी. एक दो दिन फालोअप और फिर ये खबर सीन से गायब हो जाएगी अगर किसी करोड़पति की बीवी या सेलेब सीढ़ियों से भी फिसल जाए तो मय फोटो इसे छापेंगे लोकतंत्र के ये पहरुए. डाउन मारकेट और अप मारकेट की पहले मैं नहीं जानता था.मजे की बात देखिए ये फर्क करते मैंने उस संपादक को देखा जो बुंदेलखंड के डाउन मारकेट किसानों की खबर छापकर केसी कुलिस अवार्ड जीत चुका है. माफ करिएगा. ये लेख पड़ा तो मन लिखने को व्याकुल हो उठा. अपना न इनका नाम नहीं लिख रहा हूं. वजह है कि मीडिया में हर जगह ऐसे संपादकों की भरमार है. हो सकता है नौकरी मांगने की भरमार है. हो सकता है नौकरी मांगने की इनसे जरूरत पड़ जाए.
sandeep sahu
August 21, 2010 at 9:22 am
main is ladai me aapke sath hun.
xyz
August 21, 2010 at 9:50 am
Shaabash Sanjay ! BAHUT ACHCHA LIKHA ! LEKHAN MEIN SAMVEDANA BHI HAI AUR PEEDA BHI, SAATH MEIN FHATKAAR BHI.
jis tarah Delhi mein baitha neta drawing room politics kartaa hai , usi tarah Delhi ke zYAADATAR patrakaar DRAWING ROOM JOURNALISM karte hain . KAARAN bhi saaf hai , jis tarah TV par dikhayee dene waale netaon ka zameen se waasta nahi rahta , usi tarah TV par dikhne waale zyadaatar chehre DELHI se kabhi bahar jaate hi nahi ! yahin DELHI mein baith kar wo bade ANCHOR, PRODUCER, EP, EDITOR sab kuch ban jaate hain . UPAR WAALE SE DUA HAI KI DRAWING ROOM POLITICS AUR DRAWING ROOM JOURNALISM JALDI BAND HO . KYONKI JIS DESH KA BADA NETA AUR BADA PATRAKAAR AAM AADMI KI KHABAR SE KOI SAROKAAR NAHI RAKHTAA, WAHAAN KA MAALIK PHIR UPAR WAALAA HI RAHTA HAI.
Ratn Prakash
August 21, 2010 at 10:57 am
damdaar pahal hogi tabhi apne swarth me dube neta mp dhyan denge. delhi ka dengu bukhar ho ya gkp ka dimagi bukhar, system par questionmark barkaraar hai.
Neeraj Sharma
August 21, 2010 at 12:52 pm
Very good artical, today need such type of artical’s ,so publicate the govt. failure, and aware evry Indian.
Neeraj Sharma
August 21, 2010 at 1:12 pm
आप की लेखनी का जवाब नहीं संजय जी. हम सब इस लड़ाई मैं आप के साथ हैं. इन गरीब बच्चो के माँ बाप की दुआ लगेगी आप को.
prabhat tiwari
August 21, 2010 at 1:47 pm
dalaloo ki is mandi koo gariboo ke liye bhi kuch kar raha hai jaankar accha laga. aap apne mission koo jaari rakhe. auroo ka nahi pataa lekin me aap ke es mission me aap ke saath hu. patharoo ki raajneet karke pathar hoo chuki is sarkar koo jagane ka waqt aagya hai.
ajay golhani
August 21, 2010 at 3:05 pm
हमारे देश में राहुल पोलीथिन उठायें या प्रियंका हेयर स्टाइल बदले वह ब्रेकिंग न्यूज़ बनती है. यहाँ गरीबों की कोई क़द्र नहीं है. इलेक्ट्रोनिक मीडिया इन खबरों से क्यों मुह फेरता है, समझ से परे है. क्या यही है हमारा सपनों का भारत…….
mahesh sharma
August 21, 2010 at 4:18 pm
sanjay ji yahi midea ka sach hai, kaha jata hai ki, in khabron ki readability nahin hoti, kyonki yah class na akhbar kharidata hai aur na hi channel dekhta hai, aapne hrdaysparshi mudda uthaya hai, mai aap ke saath hoon
Sadhvi Chidarpita
August 21, 2010 at 4:47 pm
Kisi ne un pyare bachcho ke bare me socha iski khushi hai aur bohoto ne unke bare me kuchh nai shocha iska dukh. Letter bhejne ke alawa electronic media yadi buland awaz uthaye to uska vyapak asar hoga. Mandir ki murat ko sajane se achchha hoga ki hum Ishwar ke is roop ko sambhal le. Wahi Sawan hoga aur wahi asli Ramzan
Sadhvi Chidarpita
August 21, 2010 at 5:23 pm
khushi hai ki kisi ne un pyare bachcho ke bare me socha aur dukh hai ki bohote ne unke bare me nahi socha. Letters ke alawa yadi electronic media is muheem me shamil ho jaye to uska vyapak asar hoga. Ishwar ke is roop ko bachana hi asli Sawan hai, asli Ramzan hai.
इमरान ज़हीर
August 21, 2010 at 5:56 pm
आजकल अखबार उधोग पतियों के लिये बन चुका है| एक आम जनता के हित के लिये अखबार अपने कर्तव्यों को भूल चुका है| संजय जी आपका प्रयास काफी सराहनीये है, आपने ऐसे समय में खड़े हो कर जिस तरह की जंग छेड़ने का आह्वान किया है वो सच में तारीफ के काबिल है| आपके इस प्रयास में मै आपके साथ हूँ |
[email protected]
NAWEEN KUMAR
August 21, 2010 at 6:20 pm
संजय जी, मैं आपको जानता नही हूं.. पर आपके इस रूह को कंपकंपा देने वाली लेखनी से आपको जान चुका हूं. मेरी नजर में आप उन नौनिहालों की आवाज हैं जो बेबस निगाहों से जिंदगी को घूरता मौत की आगोश में धीरे-धीरे समा रहा है. आप उन मां की बोली हैं जिनके गले से अपने टुकड़ों के जाने का गम ने आवाज छीन लिया है. सच में आपकी इस खबर पढ़कर मैं अंदर से रो पड़ा, लगा सबकुछ छोड़छाड़ चल दूं उन मां का दर्द जानने और उनकी गले का वो आवाज बनू कि लखनऊ से दिल्ली तक हड़कंप मच जाए…संजय जी लगता है वक्त आ गया है कि पत्रकारिता नये स्तंभ के साथ फिर से सामने आये…जहां चीजों को नीचे से उपर देखने का नजरिया विकसित हो न कि वर्तमान के उपर से नीचे देखने के नजरिये का….. क्योंकि चौथे स्तंभ के रूप में जो पत्रकारिता चल रही है वो वाकई नपुंशक हो चुकी है… सर आपके इस सरोकार में हम आपके साथ हैं…..नवीन, पटना
AJIT DWIVEDI
August 21, 2010 at 6:56 pm
Bahut achhi pahal ki hai sanjay ji…Har lambe safar ki shuruaat pahle kadam se hi hoti hai,jo ki aapne utha liya hai…A long war has to be waged with this kind of changing attitude of the people,because it is we people only who constitute this SYSTEM…Merely criticizing the system wont help the cause much..If u feel that something is going wrong you need to raise the issue with utmost vigour,as you have got the medium as well..And people with similar attitude will join the campaign for sure..Even a nation requires a FLAG for assembling the people under one roof..Within this war several battles will be fought,and every victory in the battle shall take us nearer and nearer towards the final victory of the war…You have done a commendable job and i render my full support and cooperation to the issue…
मानस मिश्रा
August 22, 2010 at 7:39 am
कांग्रेस के 45 साल के शासन ने देश की जनता को नंपुसक बना दिया है देश की जनता गांधी परिवार से ज्यादा सोच ही नही पा रही है. रही- सही कसर जातिवादी राजनीति के रथ पर बैठकर सत्ता चलाने वाले औैर बात-बात पर दलाली करने वालों ने पूरी कर दी है.
मित्रों लोकतंत्र के चारों खम्भे तो पहले ही नेस्ताबूद हो चुके थे. अब कॉमनवेल्थ के मौसम ने छत टपका दी है. इस देश की अभिभावक पार्टी देश को बरबाद करने के लिए दोबारा सत्ता में आई है.राहुल गांधी को शायद गोरखपुर में कोई गरीब या दलित नहीं दिख रहा है
aashish kumar
August 22, 2010 at 9:38 am
sanjay ji bahut sach baat kahi aap ne. garib bachho ki or koai dhayan nahi dena chahta. sab bahi khabar chapte or dekhate hain jisse bade aadmio ke hit pure hote hain. aap ko is pahal ke liye dhero badhai,
chinmayanand swami
September 2, 2010 at 3:42 am
Bachcho ke dard ko awaz dekar achchha kia,illaz ke liye bhi to kuchh karo.