: बीजेपी और कांग्रेस वालों को नाथ कर रखा अरनब ने : टाइम्स नाउ कॉर्पोरेट चैनल है, संभव है उसे राजनीतिक ताक़त से समझौता करना पड़ सकता है : बाकी मीडिया संगठन भी चौकन्ना रहें तो राजनीतिक भ्रष्टाचार का लगाम संभव : कर्नाटक में खनिज सम्पदा की लूट जारी है. यह लूट कई वर्षों से चल रही है. इस बार मामला थोडा अलग है.
राष्ट्रीय संपत्ति के लूटने वाले कर्नाटक सरकार में मंत्री हैं. ऐसे दो मंत्री हैं और दोनों सगे भाई हैं. दोनों ही बीजेपी के ख़ास आदमी हैं. इन्हें बेल्लारी रेड्डी कहा जाता है. इन रेड्डी बंधुओं का लूट का कारोबार आन्ध्र प्रदेश में भी है. यह लोग खनिज सम्पदा, खासकर आयरन ओर की गैरकानूनी खुदाई का काम करते हैं. बी जे पी के ख़ास बन्दे होने के बावजूद यह लोग आन्ध्र प्रदेश में भी वही काम कर रहे हैं जो कर्नाटक में करते हैं. लेकिन आंध्र प्रदेश की कांग्रेस सरकार इनको पूरा सहयोग कर रही है.
बेल्लारी के रेड्डी बंधुओं के मामले में कांग्रेस और बीजेपी का भेद ख़त्म हो जाता है. कर्नाटक के राज्यपाल हंसराज भारद्वाज ने नयी दिल्ली में एक सार्वजनिक बयान दे दिया कि करीब साठ हज़ार करोड़ रूपये के सार्वजनिक धन की हेराफेरी वाले इस मामले में उनकी सरकार के दो मंत्री शामिल हैं और मुख्यमंत्री को चाहिए कि उन मंत्रियों को हटा दें. हंसराज भारद्वाज दिल्ली दरबार के पुराने खिलाड़ी हैं. जुगाड़ तंत्र के आचार्य हैं और जिस काम के लिए वे कर्नाटक सरकार को राजनीतिक रूप से घेर रहे हैं, वैसे सैकड़ों मामलों में वे अपनी पार्टी के लोगों की मदद कर चुके हैं. उनके इसी रिकार्ड को सामने रख कर बीजेपी वाले यह साबित करना चाहते हैं कि हंसराज भारद्वाज की नीयत साफ़ नहीं है और उनकी किसी बात को गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए.
बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कह दिया कि राज्यपाल की मर्यादा को सम्मान न देकर भारद्वाज ने गलती की है, जबकि कांगेसी कह रहे हैं कि बीजेपी वाले राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद की गरिमा नहीं निभा रहे हैं. दोनों ही पार्टियां इस बात पर कोई ध्यान नहीं दे रही हैं कि राष्ट्रीय सम्पदा की खुलेआम लूट हो रही है और उसकी रक्षा की जानी चाहिए. इसके विपरीत दोनों की पार्टियां इस बात पर जुटी हैं कि राजनीतिक नेताओं के आचरण को बहस का मुद्दा बना कर घूस, लूट और भ्रष्टाचार के गंभीर मुद्दों से जनता का ध्यान हटाया जाए. यानी लूट से उन दोनों राजनीतिक दलों को कोई एतराज़ नहीं है.
ऐसा भी नहीं है कि ऐसा पहली बार हो रहा है कि राजनीतिक बेईमानी का कोई बड़ा मसला सार्वजनिक बहस के दायरे में आया हो और देश की राजनीतिक पार्टियां उस केस से नेताओं को बचाने में न जुट गयी हों. बेल्लारी रेड्डी बंधुओं की लूट का ऐसा ही मामला है. दोनों ही दल मुख्य मुद्दे से बहस को हटाने के काम में लग गए हैं. ऐसी स्थिति में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या मीडिया इस मामले में राजनेताओं को उनका एजेंडा चलाने की अनुमति देगा कि नहीं. कोई मुगालता नहीं होना चाहिए, इस मामले में भी नेताओं का एजेंडा वही है जो हर बार होता है और वह यह कि नेता किसी भी पार्टी का हो उसके ऊपर आंच नहीं आनी चाहिए. इनको यह समझाने की ज़रूरत है कि हो सकता है कि राज्यपाल ने अपने पद की गरिमा न निभाई हो लेकिन जो लूट का मामला सामने आया है, उससे क्यों भाग रहे हैं आप?
इनसे यह पूछे जाने की ज़रूरत है कि हो सकता है कि क्या इस सारी जानकारी के बाद आप लोग एक दूसरे को गाली देते रहेगें और मूल मुद्दे से जनता और देश का ध्यान हटा देगें. इस मुहिम में मीडिया की भूमिका अहम हो सकती है. इस दिशा में मंगलवार को हुई बहस में टाइम्स नाउ नाम के अंग्रेज़ी चैनल की पहल ज़ोरदार थी. 9 बजे रात की ख़बरों के एंकर अरनब गोस्वामी ने बीजेपी और कांग्रेस के प्रतिनिधि को मुद्दे से नाथ कर रखने की पूरी कोशिश की.
यह अलग बात है कि दोनों पार्टियों के वे प्रवक्ता बहस में शामिल थे जो इस बात के लिए प्रसिद्ध हैं कि वे चिल्ला चिला कर अपनी बात कहते रहते हैं, कोई सुने या न सुने. वे कहते रहे कि बीजेपी वाले राज्यपाल के पद का अपमान कर रहे हैं जबकि दूसरे चिल्लाहट मास्टर कह रहे थे हंसराज भारद्वाज जोड़तोड़ की अपनी कांग्रेसी राजनीति को भूले नहीं है और वही कर रहे हैं. अरनब गोस्वामी ने उनके एजेंडे को नहीं चलने दिया और डाइरेक्ट सवाल पूछे कि सार्वजनिक सम्पदा की इस तरह की लूट को कैसे सही ठहराया जा सकता है. मीडिया का यह सक्रिय रुख अच्छा लगा. अगर बाकी समाचार संगठन भी इसी तरह से भ्रष्टाचार के खिलाफ सोंटा ले कर पिल पड़ेंगे तो देश का बहुत उद्धार होगा. इन नेताओं की क्षमता को कम करके भी नहीं आंकना चाहिये.
करीब 20 साल पहले राजनीतिक भ्रष्टाचार का एक बहुत बड़ा मामला पकड़ा गया था. जैन हवाला काण्ड के नाम से कुख्यात वह मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ था. जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के शहाबुद्दीन गोरी ने देश के नेताओं को किसी जैन की मार्फ़त पैसे दिए थे. जिन लोगों के नाम आये थे वह हैरतअंगेज़ था. उसमें कम्युनिस्ट पार्टी का कोई नेता नहीं था लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी, बीजेपी के लाल कृष्ण आडवाणी, शरद यादव, आरिफ मुहम्मद खां, सतीश शर्मा आदि बड़े बड़े नाम थे.
स्वर्गीय मधुलिमये ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में केस तक कर दिया था लेकिन कहीं कुछ नहीं हुआ क्योंकि सभी पार्टियों के नेता एक हो गए और सरकार चाहे जिसकी बनी सब लोग इकठ्ठा हो कर मामले को रफा दफा करवाने में सफल हो गए. इस बार भी वही हो सकता है. टाइम्स नाउ ने पहल तो कर दी है लेकिन वह एक कॉर्पोरेट चैनल है, उसे राजनीतिक ताक़त से समझौता करना पड़ सकता है. बाकी मीडिया संगठन अगर चौकन्ना रहें तो धीरे धीरे अपने मुल्क में भी वह परंपरा शुरू हो सकती है कि राजनीतिक भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा निगहबान मीडिया ही रहे.
लेखक शेष नारायण सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं.