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कुलदीप से गोयनका ने इस्तीफा लिया था!

[caption id="attachment_17494" align="alignleft" width="99"]एसएन विनोदएसएन विनोद[/caption]क्या जेपी की संपूर्ण क्रांति बेमानी थी! : हां! जेपी ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। अपनों द्वारा किए गए विश्वासघात को वे झेल नहीं पाए। गांधी और जेपी की मौत में सिर्फ एक फर्क था। गांधी के सीने में गोली मारी गई जबकि जेपी के सीने के अंदर दिल ने आहत हो काम करना बंद कर दिया। अपनों द्वारा दी गई असहनीय चोट मौत में तब्दील तो होती ही है। लेकिन कुर्बानियां कुछ औरों की भी ली गईं।

एसएन विनोद

एसएन विनोद

एसएन विनोद

क्या जेपी की संपूर्ण क्रांति बेमानी थी! : हां! जेपी ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। अपनों द्वारा किए गए विश्वासघात को वे झेल नहीं पाए। गांधी और जेपी की मौत में सिर्फ एक फर्क था। गांधी के सीने में गोली मारी गई जबकि जेपी के सीने के अंदर दिल ने आहत हो काम करना बंद कर दिया। अपनों द्वारा दी गई असहनीय चोट मौत में तब्दील तो होती ही है। लेकिन कुर्बानियां कुछ औरों की भी ली गईं।

प्रख्यात पत्रकार और अंग्रेजी दैनिक इंडियन एक्सपे्रस के तत्कालीन संपादक कुलदीप नैयर की बलि भी ली गई। कुलदीप नैयर आपातकाल के दौरान 19 महीने जेल में बंद रहे थे। निर्भीक, निष्पक्ष, तथ्यपरक पत्रकारिता के प्रतीक कुलदीप नैयर ने कभी सत्ता से नापाक समझौता नहीं किया। इंडियन एक्सप्रेस के मालिक (स्व.) रामनाथ गोयनका भी अपनी निडरता और (कु) व्यवस्था के खिलाफ एक प्रखर योद्धा के रूप में जाने जाते थे। लेकिन एक समय ऐसा आया जब वे दबाव के सामने झुक गए। क्या यह बताने की जरूरत है कि दबाव तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ओर से आया था?

जयप्रकाश आंदोलन और पूरे आपातकाल के दौरान सरकार के विरुद्ध लडऩे वाले इंडियन एक्सप्रेस के मालिक रामनाथ गोयनका आपातकाल की समाप्ति के बाद झुकने को क्यों मजबूर हुए? क्या आर्थिक नुकसान के कारण उनकी सहनशक्ति ने जवाब दे दिया था? गोयनका ने अपने संपादक कुलदीप नैयर को बुलाकर जब इस्तीफा देने को कहा तब नैयर स्तब्ध रह गए थे। उन्हें विश्वास नहीं हुआ। पहले तो उन्होंने सोचा शायद गोयनका उनके साथ मजाक कर रहे हैं। लेकिन नहीं। गोयनका गंभीर थे- परेशान थे। उन्होंने सपाट शब्दों में नैयर से कहा कि ”तुम रिजाइन कर दो…. मैं अब और बर्दाश्त नहीं कर सकता….. बहुत नुकसान हो चुका है।”

भौंचक कुलदीप नैयर तब परेशान गोयनका के चेहरे को निहारते रह गए थे। गोयनका की पेरशानी को समझ नैयर ने इस्तीफा दे दिया। हां, इंडियन एक्सप्रेस में लिखते रहने की बात गोयनका ने अवश्य स्वीकार कर ली। लेखन व पत्रकारीय आजादी के पुरोधा के रूप में स्थापित रामनाथ गोयनका की ऐसी स्थिति की जानकारी शायद युवा पत्रकारों को क्या, वरिष्ठ पत्रकारों को भी नहीं होगी। लेकिन यह सच है और कड़वा सच यह कि पूरे जयप्रकाश आंदोलन और आपातकाल के दौरान सत्ता के प्रलोभन और दबाव के सामने नहीं झुकने वाले रामनाथ गोयनका को भी अंतत: ‘दबाब’ के सामने झुकना पड़ा, व्यवस्था के मकडज़ाल के शिकार बनने को मजबूर होना पड़ा। कुलदीप नैयर से संबंधित इस घटना का उदाहरण मैं एक खास मकसद से दे रहा हूं।

चूंकि आज समय का आगाज है, कि युवा वर्ग ‘क्रांति’ अर्थात् परिवर्तन के लिए सामने आए, उसे क्रांति के दुर्गम पथ की जानकारी मिलनी चाहिए। कुलदीप नैयर ने संपादक के पद से इस्तीफा अवश्य दिया। किन्तु कलम को गिरवी नहीं रखा। कुशासन और भ्रष्टाचार के विरुद्ध उनकी कलम आज भी आग उगलती है। संपूर्ण क्रांति के अंतिम हश्र पर जेपी निराश नहीं हुए थे। चारों ओर से सत्तालोलुपों, खुशामदियों, अवसरवादियों की लंबी पंक्ति को देख जेपी ने टिप्पणी की थी कि ‘रात चाहे कितनी ही अंधेरी हो, प्रभात तो फूटकर ही रहता है।’ हां, यह एक शाश्वत सत्य है।

किन्तु समाज व देश में नव प्रभात स्वत: नहीं फूटता। तटस्थ रह उसकी प्रतीक्षा नहीं की जानी चाहिए। सामाजिक क्रांति नैसर्गिक क्रांति का अनुसरण नहीं करती। ऐसा होने पर तो मानव के पुरुषार्थ के लिए, समाज की प्रगति के लिए और परिवर्तन के लिए कोई स्थान ही नहीं रह जाएगा। ऐसी अवस्था पर जेपी ने पुन: बलिदान का आह्वान किया था। आज का भारत हर क्षेत्र में जिस तेजी से प्रगति की ओर गतिमान है, खेद है कि उससे भी अधिक गति से भ्रष्टाचार, कुशासन और अनैतिकता पैर पसार रहे हैं। इन पर अंकुश जरूरी है। आज जेपी नहीं हैं तो क्या हुआ? देश के हर गली-कूचों में युवाओं की फौज मौजूद है। अनुभवी-अधेड़ बुजुर्ग मौजूद हैं उनके मार्गदर्शन के लिए। दोनों मिलकर पहल करें। भ्रष्टाचारमुक्त शासन और भयमुक्त समाज की स्थापना की दिशा में कदमताल करें। निर्भीकता से, ईमानदारी से लक्ष्य प्राप्त होगा। अवश्य प्राप्त होगा।

इतिहास गवाह है कि जब-जब ऐसी अवस्था आई, देश के युवाओं ने करिश्मा कर दिखाया है। भारत देश किसी व्यक्ति, दल या संगठन की बपौती नहीं। भारतीयों से बने भारत पर अधिकार सभी का है। इसे लूटने वाले हाथों को बेदम कर देना होगा। इतना कि भारत के चेहरे पर कालिख पोतने की ताकत उन हाथों में शेष न रह जाए। तब सारा संसार देखेगा संपूर्ण क्रांति के ओजस्व को। विश्व समुदाय भी सलाम करेगा इस क्रांति को।

लेखक एसएन विनोद वरिष्ठ पत्रकार हैं.

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0 Comments

  1. Dhananjay

    May 25, 2010 at 9:52 am

    Vinod sir..aaj kai yuva mai wo baat nahi rahi, isska pramaan hai, aapka yeh lekh, do din ho gaye, ek bhi comment nahi aaya hai, isskai liye. doosari baat,aaj ka yuva disha heen hai, saath ki naitrituwat ki kaami bhi hai, ab wo leadship kanha hai, jis banner kai tale sab yuva ek maanch par aa jaye

  2. Bijay Singh.Jamshedpur

    October 5, 2010 at 3:54 am

    Kuldeep naiyar ji is always respectable for us.
    He told me this story during a by car journey from Ranchi airport to Jamshedpur in 1994,.
    AB jahan business ki baat ho to patrakaron ki bali to hamesha lee jati rahi hai.
    issiliye aajkal patrakar,vishesh kar SAMPADAK malikon ke PRO ho gaye hain.

  3. nayan mishra

    October 6, 2010 at 4:12 am

    bilkul sach kaha bijay bhai ne.

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