अब केंद्र सरकार और कांग्रेस पार्टी चाहे जितनी सफाई दे दे, योग गुरू बाबा रामदेव को कपटी, ढोंगी निरुपित कर विश्वासघाती के रूप में पेश कर ले, 4-5 जून की मध्यरात्रि दिल्ली के रामलीला मैदान पर पुलिसिया कार्रवाई को सही बता ले, वहां की जमीं, वहां की हवा, वहां के पेड़-पौधे चीख-चीख कर गवाही दे रहे हैं कि जो कुछ घटित हुआ वह बर्बर था, दमनकारी था।
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पत्रकारिता और दलाली को बराबर का आसन!
विचलित हूँ! ग्लानि से भरा है मन-मस्तिष्क! शर्म भी आ रही है, गुस्सा भी। पिछले दिनों मेरे तीन सच्चे हितैषी इस बात को लेकर विचारमग्न थे कि ‘विनोदजी ने अखबार निकालने का जोखिम भरा तनाव क्यों मोल ले लिया? … अखबार निकालना तो अब दलाली का काम हो गया है।’ क्या सचमुच! क्या अखबार निकालने वाले दलाल हैं,.. दलाली कर रहे हैं?
जेपी अवतार अन्ना हजारे! (दो)
बिल्कुल, दीवार पर लिखा हर शब्द सहमति सूचक है। मैं अन्ना हजारे की तुलना महात्मा गांधी या जयप्रकाश नारायण से व्यक्तित्व के स्तर पर नहीं कर रहा। मैं यह चिह्नित करने की कोशिश कर रहा हूं कि हजारे महात्मा गांधी की ‘अहिंसा’ और जयप्रकाश नारायण की ‘क्रांति’ के मंत्र के साथ एक भ्रष्टाचार मुक्त भारत के लिए सर्वस्व त्याग को तैयार हैं- नि:स्वार्थ, निष्काम भाव से। शासन में भ्रष्टाचार का आलम ऐसा है कि योग्य-सुपात्र जहां अंधकूप में सिसकियां भरने को विवश हैं, वहीं अयोग्य-कुपात्र दोनों हाथों से देश को लूट अपना घर भर रहे हैं।
जेपी अवतार अन्ना हजारे! (एक)
तो क्या देश को एक ‘जेपी’ मिल गए? वर्षों से भ्रष्टाचार के महासागर के हिलोरें मारती लहरों को देखने को मजबूर देशवासी सिसकारी भरते आ रहे हैं-काश! आज कोई जेपी होता.. अगर जेपी होते तो वर्तमान महाभ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ पूरे देश को एक मंच पर खड़ा कर देते। और तब भ्रष्ट-व्यवस्था, सड़ांध पैदा कर रही भ्रष्ट-व्यवस्था, और इसे उर्जा देनेवाले, इससे लाभान्वित होने वाले नेता, अफसर, व्यवसायी पलायन को मजबूर हो जाते।
किसकी ‘छवि’ की चिंता करे मीडिया?
पढऩे-सुनने में यह कड़वा तो लगेगा, किंतु सच यही है कि इंडिया और भारत नाम के हमारे देश में एक ओर जहां सामर्थ्यवानों को हजारों-लाखों करोड़ लुटने की छूट मिली हुई है, वहीं दूसरी ओर आम आदमी झूठ, फरेब और धूर्तता की विशाल शासकीय चट्टान के नीचे दब छटपटा रहा है। इसकी सुननेवाला, सुध लेनेवाला कोई नहीं। दुखी मन से निकली इस टिप्पणी के लिए क्षमा करेंगे कि न्यायपालिका का आचरण (अपवादस्वरूप ही सही) भी सामर्थ्यवानों का पक्षधर दिखने लगा है।
‘वॉच डॉग’ की भूमिका खतरनाक कैसे?
‘वॉच डॉग’ की भूमिका का निर्वाह करने वाला मीडिया भला ‘खतरनाक’ कैसे हो सकता है? निष्ठापूर्वक अपने इन कर्तव्य का पालन-अनुसरण करने वाले मीडिया को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने खतरनाक प्रवृत्ति निरूपित कर वस्तुत: लोकतंत्र के इस चौथे पाये की भूमिका और कर्तव्य निष्ठा को कटघरे में खड़ा किया है। वैसे बिरादरी से त्वरित प्रतिक्रिया यह आई है कि चव्हाण की टिप्पणी ही वस्तुत: लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। यह मुद्दा राष्ट्रीय बहस का आग्रही है। मुख्यमंत्री चव्हाण ने मुंबई के आदर्श सोसाइटी घोटाले के संदर्भ में ऐसी विवादास्पद टिप्पणी की।
कदम न रुकेंगे, सांसें भले रुक जाएं : एसएन विनोद
: दैनिक 1857 के एक साल पूरा होने पर प्रधान संपादक की विशेष टिप्पणी : स्वामी विवेकानंद ने एक अवसर पर कहा था, ”विष और शस्त्र से केवल एक की हत्या होती है, कुविचार से बहुतों का नाश होता है।” आज जब आपका ‘दैनिक 1857’ अपने प्रकाशन का प्रथम वर्ष पूरा कर रहा है तो, मैं शपथपूर्वक यह कहने की स्थिति में हूं कि आपके इस अखबार ने कुविचारों को कभी स्थान नहीं दिया। हां, सच और साहस को प्रतिपादित करते हुये हमने निडरता, निष्पक्षतापूर्वक कुछ कड़वे सच अवश्य उकेरे। हमने पिछले एक वर्ष की यात्रा कांटों भरी ही नहीं, अवरोधक के रूप में खड़ी विशाल चट्टानों का सामना करते पूरी की है। क्या नहीं झेलना पड़ा हमें?
खबरों का पीछा करता एक संपादक
खबर को जब हाशिये पर ढकेलने की जद्दोजहद हो रही हो… खबरों को लेकर सौदेबाजी का माहौल जब संपादकों के कैबिन का हिस्सा बन रहा हो तब कोई संपादक खबर मिलते ही कुर्सी से उछल जाये और ट्रेनी से लेकर ब्यूरो चीफ तक को खबर से जोडऩे का न सिर्फ प्रयास करें बल्कि फोटोग्राफर से लेकर मशीनमैन और चपरासी तक को खबर को चाव से बताकर शानदार ले-आउट के साथ बेहतरीन हैडिंग तक की चर्चा करें तो कहा जा सकता है कि वह संपादक, संपादक नहीं जुनून पाल कर खबरों को जीने का आदी है। और यह जुनुन सरकारी रिटायमेंट की उम्र पार करने के बाद भी हो तब आप क्या कहेंगें. जी, एसएन विनोद ऐसे ही संपादक हैं।
अगला पड़ाव- बनारस का मणिकर्णिका घाट!
कवि मित्र राजेन्द्र पटोरिया और पत्रकार मित्र चंद्रभूषण की जिज्ञासा ने आज दिल में अवस्थित अंत:पुर को भेद डाला। उनका संयुक्त सवाल था- ”… आपकी पांच दशक की संघर्षपूर्ण यात्रा का अगला पड़ाव कौन सा होगा?” मुख से त्वरित उत्तर निकला- ”बनारस का मणिकर्णिका घाट!” प्रसंग था दो दिन बाद इस अखबार ‘दैनिक 1857’ के प्रकाशन को एक वर्ष पूरा होने का। वे स्तब्ध हुए। किंतु मुझमें एक नवशक्ति का संचार हुआ। मुझे अनायास पुण्यप्रसून वाजपेयी के ये शब्द याद आ गये- ”शिव ने विष पीया तो क्या पीया, विनोदजी तो हर रोज पिये जाते हैं, कमाल है कि फिर भी जिये जाते हैं।” मेरी पत्रकारिता यात्रा का शायद यही सच है। ‘शायद’ इसलिए कि अनेक कड़वे-मीठे सच को मैंने अपने दिल के भीतर स्थायी कैद दे डाला है। इनका वजूद मेरे वजूद के साथ ही खत्म होगा।
विभूति अपनी लेखिका पत्नी को ‘सही जगह’ बिठाएं
: छिनाल शब्द दिमागी दिवालियेपन की उपज : रवींद्र कालिया भी इस्तीफा दें : यह तो हद हो गई! अगर सीमा पार कर उद्दंड-अश्लील बन जाने का भय न होता तब मैं यहां श्लीलता की सीमापार वाले शब्दों का इस्तेमाल करता! वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के उप-कुलपति विभूतिनारायण राय ऐसे दुस्साहस के लिए उकसा रहे हैं।
हेडलाइंस टुडे और राहुल कंवल का उद्धार
: निंदनीय है पत्रकारिता पर हमला, किन्तु…! : खबरिया चैनल ‘आज तक’ कार्यालय पर संघ कार्यकर्ताओं के हमले को जब पत्रकारिता पर हमला निरूपित किया जा रहा है तो बिल्कुल ठीक। पत्रकारों की आवाज को दबाने, गला घोंटने की हर कार्रवाई की सिर्फ भत्र्सना भर न हो, षडय़ंत्रकारियों के खिलाफ दंडात्मक कदम भी उठाए जाएं। दंड कठोरतम हो।
‘लॉबिंग’ के लिए खूब है पत्रकारों की मांग
: पत्रकारिता नहीं, पत्रकार बिक रहे- अंतिम : लाइसेंस निरस्तीकरण की व्यवस्था हो : बावजूद इन व्याधियों के, पेशे को कलंकित करनेवाले कथित ‘पेशेवर’ की मौजूदगी के, पूंजी-बाजार के आगे नतमस्तक हो रेंगने की कवायद के, चर्चा में रामबहादुर राय जैसे कलमची भी मौजूद थे.
विस्मयकारी है आलोक मेहता का कथन
: पत्रकारिता नहीं, पत्रकार बिक रहे-3 : नई दुनिया के आलोक मेहता की आशावादिता और दैनिक भास्कर के श्रवण गर्ग का सवाल चिन्हित किया जाना आवश्यक है। आलोक मेहता का यह कथन कि ”पेड न्यूज कोई नई बात नहीं है, लेकिन इससे दुनिया नष्ट नहीं हो जाएगी”, युवा पत्रकारों के लिए शोध का विषय है। निराशाजनक है। उन्हें तो यह बताया गया है और वे देख भी रहे हैं कि ‘पेड न्यूज’ की शुरुआत नई है।
सत्य वचन नहीं है राहुल देव का कथन
: पत्रकारिता नहीं, पत्रकार बिक रहे-2 : यह ठीक है कि आज सच बोलने और सच लिखने वाले उंगलियों पर गिने जाने योग्य की संख्या में उपलब्ध हैं। सच पढ़-सुन, मनन करने वालों की संख्या भी उत्साहवर्धक नहीं रह गई है। समय के साथ समझौते का यह एक स्याह काल है। किन्तु यह मीडिया में मौजूद साहसी ही थे जिन्होंने सत्यम् घोटाले का पर्दाफाश कर उसके संचालक बी. रामलिंगा राजू को जेल भिजवाया।
प्रसून, अपने शब्दों में संशोधन करें!
: पत्रकारिता नहीं, पत्रकार बिक रहे-1 : नहीं! ऐसा बिल्कुल नहीं! पत्रकारिता नहीं बिक रही, बिक रहे हैं पत्रकार। ठीक उसी तरह जैसे कतिपय भ्रष्ट शासक-प्रशासक, जयचंद-मीर जाफर देश को बेचने की कोशिश करते रहे हैं, गद्दारी करते रहे हैं। किन्तु देश अपनी जगह कायम रहा।
नागपुर पुलिस का डंडा और पत्रकारिता
: सच के पक्ष में आएं पुलिस आयुक्त : प्रेस, पुलिस, पब्लिक के बीच परस्पर सामंजस्य को कानून-व्यवस्था के लिए आवश्यक मानने वाले आज निराश हैं। दुखी हैं कि इस अवधारणा की बखिया उधेड़ी गई कानून-व्यवस्था लागू करने की जिम्मेदार पुलिस के द्वारा! ऐसा नहीं होना चाहिए था। मैं मजबूर हूं अपने इस मंतव्य के लिए कि सोमवार 5 जुलाई को भारत बंद के दौरान नागपुर पुलिस ने अमर्यादा का जो नंगा नाच दिखाया उससे पूरा पुलिस महकमा विवेकहीन, अनुशासनहीन दिखने लगा है। दो दशक बाद नागपुर पुलिस का डंडा कर्तव्यनिर्वाह कर रहे पत्रकारों पर पड़ा।
राम जेठमलानी ने दीपक चौरसिया को भगाया!
: जेठमलानी अपनी सनकमिजाजी के लिये कुख्यात हैं : आश्चर्यजनक है कि पूरी घटना पर चौरसिया ने भी मौन साध रखा है : ”…तुम मीडिया वालों को कांग्रेस ने खरीद रखा है… तुम अनएज्युकेटेड हो… अंग्रेजी नहीं जानते… बदतमीज हो… गेट आउट… निकल जाओ यहाँ से!” ये अशिष्ट, आक्रामक शब्द हैं भाजपा के नवनिर्वाचित राज्यसभा सदस्य, जाने-माने ज्येष्ठ वकील राम जेठमलानी के। जेठमलानी ने मीडिया को कांग्रेस का जरखरीद गुलाम व अशिक्षित बताया।
झूठ बोला था, झूठ बोल रहे हैं
आईपीएल नीलामी और शरद पवार से जुड़े सनसनीखेज नए खुलासे के बाद भी पवार का अपने पुराने कथन पर अडिग रहना चोरी और सीनाजोरी का शर्मनाक मंचन ही तो है! वैसे अब कोई किसी राजनीतिक (पालिटिशियन) से सच्चाई, ईमानदारी, नैतिकता की अपेक्षा भी नहीं करता। लेकिन जब देश के शासक बने बैठे ये लोग हर दिन बेशर्मी के साथ झूठ, बेइमानी, छल-फरेब के पाले में दिखें तब इन पर अंकुश तो लगाना ही होगा। अन्यथा एक दिन ये पूरे देश को ही नीलाम कर डालेंगे। अगर इन्हें बेलगाम छोड़ दिया गया तो ये देश के अस्तित्व के लिए ही खतरा बन जाएंगे।
कुलदीप से गोयनका ने इस्तीफा लिया था!
[caption id="attachment_17494" align="alignleft" width="99"]एसएन विनोद[/caption]क्या जेपी की संपूर्ण क्रांति बेमानी थी! : हां! जेपी ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। अपनों द्वारा किए गए विश्वासघात को वे झेल नहीं पाए। गांधी और जेपी की मौत में सिर्फ एक फर्क था। गांधी के सीने में गोली मारी गई जबकि जेपी के सीने के अंदर दिल ने आहत हो काम करना बंद कर दिया। अपनों द्वारा दी गई असहनीय चोट मौत में तब्दील तो होती ही है। लेकिन कुर्बानियां कुछ औरों की भी ली गईं।
पांच लाख का विज्ञापन और पांच जूता
नीतीश का बिहार, नीतीश के पत्रकार! : अब इस विडंबना पर हंसूं या रोऊं? एक समय था जब पत्रकार राजनेताओं अर्थात्ï पॉलिटिशियन्स को भ्रष्ट, चोर, दलाल निरूपित किया करते थे। वैसे करते तो आज भी हैं, किंतु अब राजनेता पत्रकारों को भ्रष्ट, चोर, दलाल, निरूपित करने लगे हैं। क्यों और कैसे पैदा हुई ऐसी स्थिति? तथ्य बतात हैं कि स्वयं पत्रकार ऐसे अवसर उपलब्ध करवा रहे हैं। इस संदर्भ में बिहार से कुछ विस्फोटक जानकारियां प्राप्त हुईं। प्रचार तंत्रों को दागदार-कलंकित-पिछड़े बिहार की जगह स्वच्छ, समृद्ध और विकासशील बिहार दिख रहा है!
तो अखबार मालिक कफन बेच देंगे…
‘कली बेच देंगे, चमन बेच देंगे, जमीं बेच देंगे, गगन बेच देंगे, अखबार मालिक में लालच जो होगी, तो श्मशान से ये कफन बेच देंगे’… जरा इन शब्दों पर गौर करें। इनमें निहित पीड़ा और संदेश को आप समझ लेंगे। ये शब्द शब्बीर अहमद विद्रोही नाम के एक समाजसेवी के हैं। महाराष्ट्र के आसन्न विधानसभा चुनाव में मध्य नागपुर क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं। विद्रोही के अनुसार चूंकि सभी दलों के उम्मीदवार शोषक वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, जनता के सच्चे हितैषी के रूप में वे प्रतीकात्मक चुनाव लड़ रहे हैं। शब्बीर वर्षों से इस क्षेत्र में गरीब, शोषित वर्ग के लिए संघर्ष करते रहे हैं। स्थानीय अखबार इनकी गतिविधियों की खबरों को निरंतर स्थान देते थे। अब जबकि ये चुनाव मैदान में हैं, इनकी पीड़ा इनकी ही जुबानी सुन लें। शब्बीर ने हमें पत्र लिखकर अपनी व्यथा व्यक्त की है। वे लिखते हैं, ‘मैं समाचार आपको दे रहा हूं। इसलिए कि 1857 देश की आजादी की बुनियाद है। आज अखबार भी पूंजीपतियों के गुलाम हो गए हैं।
प्रभात खबर के अनुरोध को एसएन विनोद ने स्वीकारा
प्रभात खबर की शुरुआती कहानी एसएन विनोद ने अपने ब्लाग के जरिए प्रभात खबर के कर्मियों को सुनाई : रांची (झारखंड) से दैनिक प्रभात खबर का एक आग्रह पत्र मिला था : ”सेवा में, श्री. एस.एन. विनोद, संस्थापक संपादक, प्रभात खबर, सर, आपका लगाया पौधा यानी प्रभात खबर अब 25 साल का हो रहा है. मै खुद आपकी खुशी को महसूस कर रहा हूं. 25 साल पूरा होने पर रांची में समारोह का आयोजन किया जा रहा है. 15 अगस्त को रांची क्लब में प्रभात खबर परिवार के तमाम सदस्य इस मौके पर उपस्थित रहेंगे. प्रयास किया जा हा है कि प्रभात खबर के पुराने सदस्य भी इस मौके पर मौजूद रहें. आपकी मौजूदगी के बगैर यह कार्यक्रम अधूरा रहेगा. आपसे विनम्र आग्रह है कि अपने व्यस्त कार्यक्रम से समय निकालकर 15 अगस्त 2009 को रांची मेन रोड स्थित रांची क्लब में शाम में आने का कष्ट करें. प्रभात खबर परिवार के सदस्य आपकी जुबान से उस कहानी को सुनना चाहते हैं कैसे आपने रांची से प्रभात खबर प्रकाशित करने की योजना बनाई थी, फिर बाद में कैसे मूर्त रूप दिया. हम आपके आने तक प्रतीक्षा करेंगे. सादर.
आपका विश्वासी,
अनुज कुमार सिन्हा,
वरिष्ठ संपादक (झारखंड),
प्रभात खबर, रांची”
हां, यह सच है कि दिल्ली मुझे रास नहीं आई
हमारा हीरो – एसएन विनोद
पार्ट- (3)
”दिल्ली पहुंचने पर यहां की कार्यप्रणाली के बारे में एक मित्र ने बताया. दिल्ली का मूल-मंत्र है- ‘काम कम, बखान ज्यादा’! और दिल्ली ‘ईटिंग, मीटिंग और चीटिंग’ के लिए कुख्यात है! मुझे यह बड़ा अटपटा लगा. जब मैंने बताया कि मैंने तो हमेशा काम को प्रधानता दी है, तब उन्होंने भविष्यवाणी कर दी कि मैं दिल्ली में ज्यादा दिन नहीं टिक पाऊंगा!”
”विनोद जी, ‘गंगा’ इज योर बेबी”
हमारा हीरो – एसएन विनोद
पार्ट (2)
”आरुषि के कथित एमएमएस के प्रसारण के लिए किसी को दंडित करना चाहिए था तो सीईओ को दंडित किया जाना चाहिए था. बल्कि नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए सीईओ को स्वयं इस्तीफा देना चाहिए था. पर वे कौशिक को बलि चढ़ते देखते रहे. ‘इंडिया न्यूज’ में ऐसी अनेक घटनाएं हो रही थीं, जिसमें सिर्फ राजनीति काम कर रही थी.”
‘प्रभात खबर’ चौथा बेटा, जिससे अलग किया गया
हमारा हीरो – एसएन विनोद
पार्ट (1)
पिछले पांच दशक से पत्रकारिता में शीर्ष पर जगमगा रहे एसएन विनोद हमारे बीच ऐसे दिग्गज संपादक हैं जो खुद में न सिर्फ पत्रकारिता संस्थान हैं बल्कि एक कंप्लीट माडिया हाउस भी हैं। प्रभात खबर की परिकल्पना करने से लेकर उसे लांच करने वाले एसएन विनोद इस अखबार के निदेशक होने के साथ-साथ प्रधान संपादक भी रहे। विनोद जी के नाम देश के सबसे कम उम्र संपादक होने का भी रिकार्ड है।