Connect with us

Hi, what are you looking for?

कहिन

‘भड़ास पर भड़ास निकालें पर मर्यादा में रहकर’

प्रिय यशवंतजी नमस्कार, भडास4मीडिया साइट को अक्सर पढ़ता-रहता हूं लेकिन वक़्त की कमी के कारण कभी चाहकर भी कुछ लिख नहीं पाता. इस पोर्टल की क्रांतिकारी शुरुआत के लिए आपको ढेर सारी शुभकामनाएं. यहां बड़े-बड़े पत्रकारों के बड़े विचार भी पढ़ने को मिलते हैं और कभी-कभी काफी घटिया भी. इस साइट को अक्सर इसलिए देखता हूं कि मीडिया मे कहां क्या उठक-पटक हो रही है और सबकी खबरें छपने वाले पत्रकारों और अखबारों की खबरें क्या है. वैसे आपकी साइट के नाम से और इसके बाद यहां छपने वाले पोस्टों से पता चलता है कि यह मीडिया और इससे जुड़े लोगो के प्रति भडा़स निकालने का एक अच्छा प्लेटफोर्म बन गया है.

प्रिय यशवंतजी नमस्कार, भडास4मीडिया साइट को अक्सर पढ़ता-रहता हूं लेकिन वक़्त की कमी के कारण कभी चाहकर भी कुछ लिख नहीं पाता. इस पोर्टल की क्रांतिकारी शुरुआत के लिए आपको ढेर सारी शुभकामनाएं. यहां बड़े-बड़े पत्रकारों के बड़े विचार भी पढ़ने को मिलते हैं और कभी-कभी काफी घटिया भी. इस साइट को अक्सर इसलिए देखता हूं कि मीडिया मे कहां क्या उठक-पटक हो रही है और सबकी खबरें छपने वाले पत्रकारों और अखबारों की खबरें क्या है. वैसे आपकी साइट के नाम से और इसके बाद यहां छपने वाले पोस्टों से पता चलता है कि यह मीडिया और इससे जुड़े लोगो के प्रति भडा़स निकालने का एक अच्छा प्लेटफोर्म बन गया है.

एक के ऊपर दूसरे की भड़ास … और “भड़ास पर भड़ास”… का सिलसिला भी यहां काफी दिलचस्प बनता जा रहा है, लेकिन सच कहूं तो कई लोगों की पोस्ट यहां बहुत गन्दी भी होती जा रही है. लगता है जैसे उन लोगों में पत्रकारिता जैसे पेशे के प्रति न कोई मर्यादा रही, न भाषा और शब्दों के चयन का शिष्टाचार. काफी लोगों मे अपने ज्ञान को दूसरे के ज्ञान से बड़ा साबित करने की होड़ भी यहां मची हुई है और इस होड़ में वे बहुत कुछ ऐसा लिख देते हैं, शायद जिसे नहीं लिखा जाना चाहिए. स्व. नरेन्द्र मोहन जी के बारे मे यहां एक भाई ने उनके प्रति खूब भड़ास निकाली है. यद्यपि मेरा जागरण परिवार से कभी कोई लम्बा और गहन रिश्ता नहीं रहा, मुंबई ब्यूरो में आज से करीब दस ग्यारह वर्ष पहले लगभग दो साल तक ओमप्रकाश तिवारी जी के साथ जागरण के लिए काम करने का मौका जरूर मिला. उसी दौरान महाभारत में कृष्ण की भूमिका निभाने वाले नीतिश भारद्वाज जी से मुलाक़ात हुई, जो उस समय गीता रहस्य बना रहे थे. पहली बार नीतिश जी के मुंह से नरेन्द्र मोहन जी की खूब तारीफें सुनीं. ऐसा नहीं कि  नीतिश जी से सुनने के बाद मैं नरेन्द्र मोहन जी का बड़ा प्रशंशक हो गया. दरसल मैं आज भी नरेन्द्र मोहन जी के बारे मे ज्यादा नहीं जानता. सिर्फ इतना जानता हूं कि वो आज दुनिया में नहीं हैं और स्वर्गीय हो चुके लोगों के बारे में अच्छी-बुरी बातें करने और लिखने का सलीका कुछ ज्यादा अनुशासित होना चाहिए, खासकर पत्रकारिता से जुड़ें हुए लोगों पर यह बात ज्यादा लागू होती है. हम किसी की बुराई को दूसरे शब्दों मे भी लिख सकते हैं और यदि शब्दों के चयन का काम हमें नहीं आता है तो फिर हम कोई पत्रकार कैसे हो सकते है.

‘खबरें बेचने की शुरुआत नरेंद्र मोहन ने की थी’ शीर्षक से प्रकाशित किसी महोदय ने अपने पोस्ट मे कुछ वाक्य लिखे हैं जिन्हें मैं सभी के सन्दर्भ हेतु यहाँ उन्हीं की भाषा में या यूँ कहें की कॉपी करके पेस्ट कर रहा हूँ ….. “नरेंद्र मोहन अगुवा थे लेकिन पत्रकारों को दलाल बनाने में।  ……….नरेंद्र मोहन जैसे लोग पत्रकारिता के बाप बन गए और अपनी तमाम अवैध संतानों को छोड़ गए हैं हिंदी पत्रकारिता की मां-बहन करने के लिए। ……सारा तंत्र, सारा सिस्टम इन्हीं और इनके कुत्तों, भंड़ुओं और दलालों के हाथ है। अखबारों और चैनलों में संपादक की हैसियत अब बैलगाड़ी के नीचे चलने वाले उस पिल्ले की तरह हो गई है जैसे …….. ”

इसमें  कोई दो राय नहीं कि जिस महोदय ने उक्त पोस्ट लिखी, वो नरेन्द्र जी को काफी करीब से जानते होंगे और लगता है कि उन्होंने मीडिया खासकर जागरण में अच्छा लम्बा समय बिताया होगा लेकिन मैं यह कहना चाहता हूँ कि गुजर चुके या अतीत बन चुके किसी गलत आदमी को गलत कहने में कोई बुराई नहीं है पर हमें अच्छे मानुष या पत्रकार बनकर ही आलोचना करनी चाहिए. हम यदि गाली या गलत अल्फाजों के प्रयोग से नहीं बचेंगे तो उस गलत आदमी और हममे क्या फर्क रह जायेगा. हमें पत्रकारिता में अपनी ‘भड़ास’ निकालने का अधिकार है पर अपनी मर्यादाओं में रहकर.

यशवंत जी, आपकी ही साइट पर कुछ दिनों पहले एक “लाचार मीडिया कर्मी ने आपसे एक शिकायत की थी, ‘गंदी-गंदी गाली और मारने की धमकी देते हैं वो’ शीर्षक से. उसने अपनी भड़ास निकाली थी या कहें कि अपनी “मजबूरी” बयां की थी. इसका जबाब आपने भी दिया और कहा था कि जुल्म सहने से अच्छा ठेला लगा लो, जो बिलकुल प्रासंगिक है लेकिन इस लाचार मीडिया कर्मी को ‘गाली खाने वाला इंसान पत्रकार नहीं हो सकता’ शीर्षक से एक सज्जन ने अपनी सलाह उसको इस तरह दी “…. मेरी सलाह है कि वो लोग साड़ी पहनकर ट्रेनों में पैसा वसूली का काम शुरू कर दें”. इस सलाह से न जाने क्यों थोड़ी असहजता महसूस होती है. अच्छा होता कि उसे वहां व्याप्त बुराई के खिलाफ लड़ने को प्रेरित किया जाता या मैदान छोड़कर कहीं और जाने की सलाह दी जाती.

आपका

शुभाकांक्षी

सुभाष रतूड़ी

पत्रकार

09810292185

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अपने मोबाइल पर भड़ास की खबरें पाएं. इसके लिए Telegram एप्प इंस्टाल कर यहां क्लिक करें : https://t.me/BhadasMedia

Advertisement

You May Also Like

Uncategorized

भड़ास4मीडिया डॉट कॉम तक अगर मीडिया जगत की कोई हलचल, सूचना, जानकारी पहुंचाना चाहते हैं तो आपका स्वागत है. इस पोर्टल के लिए भेजी...

Uncategorized

भड़ास4मीडिया का मकसद किसी भी मीडियाकर्मी या मीडिया संस्थान को नुकसान पहुंचाना कतई नहीं है। हम मीडिया के अंदर की गतिविधियों और हलचल-हालचाल को...

टीवी

विनोद कापड़ी-साक्षी जोशी की निजी तस्वीरें व निजी मेल इनकी मेल आईडी हैक करके पब्लिक डोमेन में डालने व प्रकाशित करने के प्रकरण में...

हलचल

[caption id="attachment_15260" align="alignleft"]बी4एम की मोबाइल सेवा की शुरुआत करते पत्रकार जरनैल सिंह.[/caption]मीडिया की खबरों का पर्याय बन चुका भड़ास4मीडिया (बी4एम) अब नए चरण में...

Advertisement