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सहाराश्री की राष्ट्रभक्ति पर संदेह करें या ना करें?

सुब्रत राय उर्फ सहाराश्री आजकल चर्चा में हैं. सड़क से शिखर (आर्थिक मामलों में) तक की यात्रा करने वाला यह आदमी अपना अच्छा खासा मीडिया हाउस होते हुए भी अपनी बात दूसरे मीडिया हाउसों के अखबारों-चैनलों में विज्ञापन देकर प्रकाशित प्रसारित कराता है. पिछले दिनों सहाराश्री का ऐसा ही एक विचारनुमा विज्ञापन विभिन्न अखबारों में प्रकट हुआ. इसमें उन्होंने कई इफ बट किंतु परंतु लेकिन अगर मगर करते हुए संक्षेप में जो कुछ कहा वह यह कि… अभी कामनवेल्थ के घपलों-घोटालों पर बात न करो, ऐसा राष्ट्रहित का तकाजा है, अभी कामनवेल्थ की जय जय कर खेलों को सफल बनाओ ताकि दुनिया में अपने देश की इज्जत बढ़ाने वाली बातें फैले, बदनामी फैलाने वाली हरकतें बंद करो. सुब्रत राय उर्फ सहाराश्री ने मुंह खोला है तो कौन उनकी बात काटे. ज्यादातर ने चुप्पी साध रखी है. अपने देश में रिवाज रहा है राजाओं-महाराजाओं की बात न काटने का और उनकी हां में हां करने का. आजकल के राजा-महाराजा ये बिजनेसमैन ही तो हैं.

<p style="text-align: justify;">सुब्रत राय उर्फ सहाराश्री आजकल चर्चा में हैं. सड़क से शिखर (आर्थिक मामलों में) तक की यात्रा करने वाला यह आदमी अपना अच्छा खासा मीडिया हाउस होते हुए भी अपनी बात दूसरे मीडिया हाउसों के अखबारों-चैनलों में विज्ञापन देकर प्रकाशित प्रसारित कराता है. पिछले दिनों सहाराश्री का ऐसा ही एक विचारनुमा विज्ञापन विभिन्न अखबारों में प्रकट हुआ. इसमें उन्होंने कई इफ बट किंतु परंतु लेकिन अगर मगर करते हुए संक्षेप में जो कुछ कहा वह यह कि... अभी कामनवेल्थ के घपलों-घोटालों पर बात न करो, ऐसा राष्ट्रहित का तकाजा है, अभी कामनवेल्थ की जय जय कर खेलों को सफल बनाओ ताकि दुनिया में अपने देश की इज्जत बढ़ाने वाली बातें फैले, बदनामी फैलाने वाली हरकतें बंद करो. सुब्रत राय उर्फ सहाराश्री ने मुंह खोला है तो कौन उनकी बात काटे. ज्यादातर ने चुप्पी साध रखी है. अपने देश में रिवाज रहा है राजाओं-महाराजाओं की बात न काटने का और उनकी हां में हां करने का. आजकल के राजा-महाराजा ये बिजनेसमैन ही तो हैं.</p>

सुब्रत राय उर्फ सहाराश्री आजकल चर्चा में हैं. सड़क से शिखर (आर्थिक मामलों में) तक की यात्रा करने वाला यह आदमी अपना अच्छा खासा मीडिया हाउस होते हुए भी अपनी बात दूसरे मीडिया हाउसों के अखबारों-चैनलों में विज्ञापन देकर प्रकाशित प्रसारित कराता है. पिछले दिनों सहाराश्री का ऐसा ही एक विचारनुमा विज्ञापन विभिन्न अखबारों में प्रकट हुआ. इसमें उन्होंने कई इफ बट किंतु परंतु लेकिन अगर मगर करते हुए संक्षेप में जो कुछ कहा वह यह कि… अभी कामनवेल्थ के घपलों-घोटालों पर बात न करो, ऐसा राष्ट्रहित का तकाजा है, अभी कामनवेल्थ की जय जय कर खेलों को सफल बनाओ ताकि दुनिया में अपने देश की इज्जत बढ़ाने वाली बातें फैले, बदनामी फैलाने वाली हरकतें बंद करो. सुब्रत राय उर्फ सहाराश्री ने मुंह खोला है तो कौन उनकी बात काटे. ज्यादातर ने चुप्पी साध रखी है. अपने देश में रिवाज रहा है राजाओं-महाराजाओं की बात न काटने का और उनकी हां में हां करने का. आजकल के राजा-महाराजा ये बिजनेसमैन ही तो हैं.

सहाराश्री बहुत बड़े आदमी हैं. अखबार, न्यूज चैनल, मनोरंजन चैनल, मैग्जीन… ढेर सारे हथियार उनके हाथ में हैं. जाने किस पत्रकार को उनके यहां नौकरी करनी पड़ जाए, सो, सभी चुप रहना बेहतर समझते हैं. बिना किसी बात एक दूसरे की पैंट उतारने पर आमादा रहने वाले पत्रकार सहाराश्री के विज्ञापनी भाषण पर चुप हैं. अन्य अखबार-चैनल वाले इसलिए नहीं बोल रहे क्योंकि उनके अखबारों-चैनलों में सहाराश्री के विचार को विज्ञापन की शक्ल में परोसा जा चुका है. मतलब, मुंह बंद करने में समर्थ यथोचित मुद्रा का जाल पहले ही फेका जा चुका है. वैसे भी सहारा वाले दूसरे अखबारों चैनलों को साल में कुछ एक बार विज्ञापन जरूर दे देते हैं, कई पन्नों के, ताकि, जरूरत पड़ने पर सहारा समूह के खिलाफ किसी जेनुइन खबर को ड्राप कराया जा सके, चिटफंड बैंकिंग के धंधे के गड़बड़ घोटाले से जुड़ी खबरें प्रकाशित होने से रोकी जा सकें. इस बार सहाराश्री ने एक दाम में दो काम कर दिया है. विज्ञापन देकर मीडिया मालिकों को खुश कर दिया, साथ में अपने विचार की थोक मात्रा में सप्लाई भी कर दी. विज्ञापन का पैसा गया मीडिया मालिकों की जेब में, विचार की खुराक का प्रवाह हो गया देश की जनता के कपार में.

विचारों की अधकपारी से पीड़ित ढेर सारे लोग बड़े असमंजस में हैं. वे राष्ट्रभक्ति की परिभाषा फिर से जानने की कोशिश कर रहे हैं. उन्हें अपने ज्ञान पर संदेह होने लगा है. वैसे भी, बाजारीकरण में डुबकी लगाकर कई शब्दों की परिभाषाएं नई-नवेली हो गई हैं. पुरानी परिभाषाओं को आर्काइव कर दिया गया है, म्यूजियम में. जिन्होंने जनता के बीच रहकर समाज, देश और राष्ट्र की परिभाषा समझी है, उनके मन भी शंकालु हो उठे हैं. ऐसे लोग मन ही मन सवाल उठा रहे हैं- ये कैसी राष्ट्रभक्ति है जो भ्रष्टाचार पर बाद में बात करने की बात कहती है. कहीं ये भरे पेट वालों की तो राष्ट्रभक्ति नहीं. लूट-खसोट जारी रहे, लुटेरे कायम रहें, लुटेराराज कायम रहे, जनता की दौलत पर अंधेरगर्दी मची रहे, सहाराश्री मार्का राष्ट्रभक्ति का तो यही कहना है. सहाराश्री यहीं नहीं रुकते. वे मीडिया वालों से भी अपील कर डालते हैं कि मत दिखाओ बदनाम करने वाली खबरें. अंडरप्ले करो भ्रष्टाचार की खबरें. खेल खत्म हो जाएगा तो खेल के नाम पर हुए खेल की खोल में घुसा जाएगा.

फेसबुक पर एनडीटीवी वाले रवीश कुमार अपने स्टेटस को व्यंग्यात्मक अंदाज में अपडेट करते हैं, बिना किसी का नाम लिए हुए- ”राष्ट्रहित में भ्रष्टाचार इतना न उजागर कर दें कि कॉमनवेल्थ को लेकर बनने वाली भारतीयों की शान ही खत्म हो जाए। संकट में राष्ट्रवाद अक्सर भावुकता से खुराक पाता है। मात्र तीन चार सौ साल पुराने इस राष्ट्रवाद की ऐसी दुर्गति की उम्मीद तो थी लेकिन इतनी जल्दी ये नहीं सोचा था। पत्रकारों को देशहित में लुटेरे ठेकेदारों से हाथ मिला लेना चाहिए।”

सहाराश्री की राष्ट्रभक्ति की परिभाषा से असहमत कई लोग अब लिखने-मुंह खोलने को तैयार होने लगे हैं. एक चिट्ठी लखनऊ से आई है, हरेराम मिश्रा की तरफ से. उन्होंने सहाराश्री की मार्मिक अपील पर उनको एक जवाबी पत्र लिखा है. क्या लिखा है, आप भी पढ़ें. फिर बताइए, क्या सहाराश्री की राष्ट्रभक्ति पर संदेह करें या ना करें? क्या राष्ट्रभक्ति भी वर्गीय चरित्र लिए हुए है? गरीब की राष्ट्रभक्ति अलग. धनपशु की राष्ट्रभक्ति अलग. एक की राष्ट्रभक्ति कहती है कि भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई करो, तुरंत. दूसरे की राष्ट्रभक्ति भ्रष्टाचार पर बात फिलहाल रोकने की वकालत करती है.

-यशवंत, एडिटर, भड़ास4मीडिया


सुब्रत राय सहारा की मार्मिक अपील पर उन्हें एक खुला खत

प्रिय सुब्रत राय साहब,

सप्रेम नमस्कार

आपके द्वारा समाचार पत्रों मे कामन वेल्थ गेम 2010 के लिए आम जनता के नाम की गयी मार्मिक अपील हमने पढी है। आपकी यह मार्मिक अपील उस समय समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई है जब चारों ओर से कामन वेल्थ गेम आयोजन समिति पर भ्रष्टाष्टाचार और बेइमानी के सीधे आरोप लगे हैं। आपको और हमको यह नहीं भूलना चाहिए कि भ्रष्टाचार के आरोप प्रथम दृष्टया ही ऐसे हैं कि जिसे कोई नजरंदाज नहीं कर सकता। कृपया ध्यान दें कामन वेल्थ गेम के नाम पर आम आदमी के पैसे की बंदरबांट 2006 से ही आरंभ हो गयी थी। यह बात अलग है कि उस समय कई सामाजिक कार्यकर्ताओं की बात नजरंदाज करते हुए कलमाडी एण्ड कंपनी ने लगातार मनमानी की। आपने अपनी मार्मिक अपील में लिखा है कि इस खेल का आयोजन इस देश के लिए गर्व की बात है। आप यह बताएं कि इस खेल आयोजन से भारत की कौन सी समस्या हल होती देख रहे है। जिस समय आम जनता भारी महंगाई में पिस रही हो और जिस 76 प्रतिशत जनता के लिए दोनों जून रोटी का भरोसा तक ना हो, वह देश पर और उसके इस आयोजन पर कैसे गर्व कर सकती है।

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अपनी मार्मिक अपील में आपने यह लिखा है कि हजारों आयोजक और 23000 स्वयंसेवी चौतरफा आलोचना से गहरी निराशा में जा रहे हैं। आप यह बताएं कि आम आदमी का पैसा मनमानी खर्च करके वे हिसाब देने की जिम्मेदारियों से क्यों बच रहे हैं। अगर आयोजन समिति इतनी ही पाक साफ है तो वह यह सिद्ध क्यों नही करती कि कहीं किसी किस्म का कोई घपला नहीं हुआ है। इसमें निराशा में जाने जैसा क्या है। अगर वो पाक साफ है तो आम जनता को खर्च का पूरा हिसाब तत्काल दे।

आपकी अपील में लिखा है कि अगर किसी तरह की अनियमितता हुई हो तो इस खेल के आयोजन के बाद हर कार्यवाही अवश्य हो। क्या आपको अभी भी अनियमितता होने के बारे मे संदेह है। जबकि जांच एजेंसियां इस आयोजन में प्रथम दृष्टया ही भारी अनियमितता मान चुकी हैं। दरअसल कई सामान्य बातें ही आयोजन समिति को गंभीर सवालों के कटघरे में खड़ा कर देती है। जिस समय कलमाडी चौतरफा घिर गये हैं और जिस तरह से आप की मार्मिक अपील कलमाडी की काली करतूतों के साथ खड़ी है, उसे हम बखूबी समझ सकते हैं।

दरअसल आपकी इस मार्मिक अपील में भी आपकी मुनाफे की गंध छुपी है। आप भी इस खेल के खेल में भागीदार होकर प्रसारण अधिकार लेकर मलाई खाना चाह रहे हैं। और यह काम केवल हां जी हुजूरी से ही हो सकता है। क्योंकि अभी तक सारे टेंडर केवल उसके परिचितों को ही मिले थे। आपको लगता है कि इस तरह उसके साथ खडे़ होने से आप भी कुछ लाभ कमा सकते हैं। जहां तक खेल होने के बाद कार्यवाही की बात है, ठीक नहीं है। तब तक मामला ही ठंडा हो जाएगा। कार्यवाही तत्काल हो। उन्हें आयोजन समिति से बाहर करके तत्काल उन पर एफआइआर दर्ज हो।

जहां तक मीडिया की अति का सवाल है यह एक अलग और गंभीर विचार का विषय है। और मीडिया ने इस खेल को उजागर कर कुछ भी गलत नही किया है। उसने तो वही कहा है जो उसने देखा है। और इसमें बदनामी जैसा क्या है।

मैं आपको एक सलाह दूंगा। अगर आप भी किसी किस्म का टेंडर चाहते हैं तो आप भी कलमाडी साहब को घूस दीजिए, व्यक्तिगत रिश्ते कायम कीजिए, लेकिन देश को बरगलाने की घटिया कोशिश न कीजिए क्योंकि गुलामी के इस प्रतीक का आयोजन देश को विश्वास में लेकर नहीं किया जा रहा है।

आपका

हरेराम मिश्र

लखनऊ

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0 Comments

  1. Ratn Prakash

    August 10, 2010 at 2:07 pm

    CWG ki Mashal nahi milne par patrakar utpidan ke naam par bhed bakari ki tarah lucknow me patrakaro ka jamawada karne wale saharasri kya bolenge. Unki saari chinta apne parabanking bussiness ko bachane ki kawayad hai aur centre me congress ki sarkar hai jisse nikatata jaruri hai. CWG me nahi unka paisa laga hai nahi kalmadi ka balki jantaka laga hai.

  2. surendranath sinha

    August 11, 2010 at 5:57 am

    are janab,ye pili badbu wale deshbhakta hain.ye jo kahate hain matlab thik ulta hota hai.tab bhi to rani ka danda (are bhai queens beton,aur kya!) ye apne ghar le gaye the lko me,desh ka naam uthane k liye hi to.doosre k maal pe malai khane wale ye dalle hi to hain-rajniti k bhi,aursaamrajiyon k bhi.ye media me kyon ghuse hain kaun nahi janta.

  3. Chandrabhan Singh

    August 11, 2010 at 7:43 am

    Saharasri ko bhrast logo ke bhrastachar ujagar nahi karne ki chinta hai. Hakikat me rastramandal khel gulami ki yad banaye rakhne ke liye hi to hai. Jis desh me 28 % logo ko bharpet bhojan nahi milta ho us des me aise aayojan karne me sharam kyon nahi aati. Bhagwan hamare netaon ko sadbudhhi de bhavisya me aise bhrast aayojan nahi hone chahiye jinse bhrast logo ko or loot karne ka avsar mile.

  4. दीपक डुडेजा

    August 11, 2010 at 2:52 pm

    मिश्र जी, लाशों का बाज़ार लगा है और सभी चील कौवे – एक्कते हो रहे हैं – मांस खाने को. इस समय सभी लोग अपनी अपनी सिफारिश ले कर कल्मांदी साहेब के चक्कर काट रहे है – और जिनको कुछ नहीं मिल रहा वो गरिया रहे है. बाकि रही मीडिया तो पिछले कुछ वर्षों में बताइए की मीडिया का क्या योगदान रहा है. जो अब भार्स्ताचार में उम्मीद करें

  5. Nitin, UP AB TAK

    August 12, 2010 at 3:26 am

    juthi hai sahara sri ki ye apil. apne lah ke tiye sahara sree ye natak kar rahe hai.. we is game me apne liye kuch fayada dekh rahe hai………… is liye hi tel ka khel kar rahe hai…

  6. Mr Vivek

    August 12, 2010 at 11:50 am

    कामन वेल्त गेम्स पर सहारा श्री का ये बयान तो देश भक्ति को दर्शाता है परंतु कहीं वित्तिय अनियमितताओं में फँसे सहारा श्री ऐसा कह कर कॉंग्रेस से कुछ नज़दीकियाँ तो नही बढ़ाना चाहते हैं..? क्योंकि उनपर हो रहे जाँच कर रही कमिटी और उस कमिटी के जाँच के चाबी तो कॉंग्रेस के ही पास है. खैर सहारा श्री इसकी तैयारी पहले ही कर चुके हैं. उन्होने श्री उपेन्द्रा राय जो की स्तर न्यूज़ में वरिस्ता वित्तिया करेस्पॉंडेंट थे और जो की अपनी वित्ता मंत्रलया के सभी आई ए एस अधिकारियों से निकटता के लिए जाने जाते हैं को सहर समय का सी. ई. ओ. बना कर करलिया है. आब देखना हैकि सहारा श्री इस कदम से क्या अपनी कुछ परेशानियोंसे नीज़ात पा पाते हैं की नही..?

  7. Adarsh

    August 13, 2010 at 10:18 am

    सहारा श्री पर इस तरह का बयान देना सर्वथा अनुचित है. वास्त्व में ये हमारा दुर्भाग्य ही है की कामन वेल्त गेम्स सिर पर है और हम सभी मीडीया की इस गंदी बयानबाज़ी को समर्थन दे रहे हैं.. जिन्हे मौका मिला है वो कामन वेल्त गेम्स में काम पाकर खुश है और जिन्हे काम ना मिला वो खिसियानी बिल्ली की तरह खंभा नोच रहे हैं.

    -आदर्श, सिटी न्यूज़ सूरत

  8. pushpesh sharma

    August 13, 2010 at 12:54 pm

    aapne theek kaha. in sab ke hit parspar milte hain. commonwealth ka tamasha to shuru me hi samajh aa gaya tha. hum abhi itne sampanna nahi hain hue. roti or mahangai ke sawal par ye khud ko bebas batate hain. inki makkari to dekhiye. commonweath ka rona rokar janta ki pasine ki kamai luta rahe hai or loot rahe hain. khiladiyo ki or inka zara bhi dhyan nahi hain. inko maf nahi kiya jana chahiye.

  9. S.P. Chauhan

    August 13, 2010 at 6:11 pm

    sahara shree ne apni bhavna CWG ko lekar vyakt ki hea. hamen unki bhavna ko dekhna aur samajhna chahie.unpar apni bhadas nikalna kahan ki insaniyat aur yaha kesi patrakarita hea.kiya dhani hona buiri bat hea,kya gariv hi emandar hota hea.mae unki bhawna aur desh bhakti ko naman karta hun.kyokl kel to hokar rahenge.pahile khel ka mahol banayen,bad men doshi ko mile bari se bari saja.-S.P.-Chauhan

  10. RAJESH VAJPAYEE JANSANDESH UNNAO

    August 14, 2010 at 9:38 am

    yashwant bhai ap kin saharasri baat kar rahey hai ab sahara may na jaaney kitney saharasri janam lay chukey hai. ek saharasri ko mai bhi janta hoo jo kabhi apnay vachno va vicharo par kabhi kisi bhi moolyo par samjhauta nahi karnay kay liye india may jaanay jaatay they.ab tou saharasri swam apnay vicharo va sidhantou ko todatey marornay lagay hai. ab sahara ka matlab sirf paisa aur buisness.jai ho maujooda saharasri ki.
    RAJESH VAJPAYEE UNNAO

  11. kuldeepdev

    August 15, 2010 at 4:35 am

    s.p. chauhan sahab aap ye bataiye ki kya niji aur arthik majbooriyan haa ji aap sahara sri ka rashtragan ga rahe hai… aap ko yad hona chahiye ki betan ka apharan karne wale ek matra sahara sri hi hai….. aur ab ye khelo me apna bada hissa bhi fansa chuke hai.. aur jabardast ghata ki chhanti huyi khabre aa rahi hai….. ki koi bhi ayojak ab apna paisa khelo me nahi lagana chahta aise me agar ghotala walo ko chhut nahi di jayegi ti sahara to barbad ho jayega. aur aap ne jo khushamad bhari tareef ki hai yo bhi bekar ho jayegi salah yahi hai ki jiski nav me chhed hai usme baitane ki koshish ne kariye akhir doobane me jyada wakt nahi hai…… aur ye sahara wale to apne bap ke nahi hai… inse aap kya ummid karte hai…..

  12. HARIOM PANDEY

    August 17, 2010 at 9:33 am

    Dear Sir,

    Hello

    Common Wealth Games 2010 in your newspaper’s name added poignant appeal to the general public we have read. The poignant appeal to you when the time was published in newspapers around the Common Wealth Games Organizing Committee Hrashtashtachar and direct allegations of dishonesty. And you must not forget that the corruption charges against us are like that that a prima facie can not ignore. Please note the name of Common Wealth Games Bnderbanto common man’s money from 2006 was the start. This is different to that of many social workers and the company consistently ignored while Kalmadi arbitrary. You wrote in your poignant appeal held that the game is a matter of pride for this country. You tell it that the sports event in India which is looking at the problem solves. While the masses are crushed in massive inflation and 76 percent of the public not to trust the two of bread in June, he and his country proud on how this event can.

    Touching you wrote it in his appeal that thousands of volunteer organizers and 23,000 are in deep depression all-round criticism. You tell the common man’s responsibility to pay for discretionary spending accounts, why they are saved. If the organizing committee is equally clear that Pakistan does not prove whether any kind of why there has not been embroiled. It’s like going into depression. If it is clear that common people spent baking immediately give full account.

    Your appeal is written in a kind of irregularity that occurred since then every action must be the sporting event. Do you still have doubts about having irregularity. In the event the investigating agencies have prima facie value of the massive irregularities. In fact, many common things stand in the dock of the organizing committee makes the serious questions. Kalmadi has been thrown round the time and the way you stand with the poignant appeal Kalmadi’s black deeds, it we can have movement.

    Actually you hidden the poignant smell of appeal is also your profits. You also get the rights to the game through playing partner is trying to eat the cream. And the work itself may be only so G Hujuri. Yet because of all the tender only as acquaintances met him. You like that with him being Akdez you can earn some profits. As far as action is concerned after the game, is not well. Until then the case would be cool. Be processed immediately. Them out of the organizing committee and be immediately filed an FIR on them.

    As far as media is concerned over the matter of a separate and serious consideration. And the media to highlight the game is not anything wrong. He then said that what he has seen. And it’s like slander.

    I will give you an advice. If you want any kind of tender give you bribe the law Kalmadi, please maintain personal relationships, but misleading the country because of the poor do not try this symbol of slavery held the land is not being taking into confidence.

    Your
    Hari Om Pandey

  13. avner

    August 19, 2010 at 2:50 pm

    I wish CWG goes for abig flop so that India don’t get a chance for this kind of event becoz if any event like this comes to India there are people ready in congress govt’s assotciation to loot the public money, so we don’t need the games. We want our share of independance.

  14. Ashutosh Mishra

    August 20, 2010 at 8:10 am

    Sahyogiyo aur bandhuo,
    Sahara shri ne apni khel bhavana ki abhivyakti ki hai, na ki usme hui aniymittao ko chupane ki koshish, hame unke iss khel bhavana ka samarthan karna chahiye, aur jaha tak desh ki baat hai to iss ayojan ko lene ki peshkas hi nahi honi chahiye, par yadi aayojan ki jimedari li gayi hai, to usko nibhna hamre desh k liye garv ki baat hai………

  15. टीसी चन्दर

    August 20, 2010 at 2:38 pm

    बेचारे (ज़ुबान होते हुए भी) न बोल सकने वाले बुद्धिबेच जीने वालों की ज़ुबान बनने का शुक्रिया…एक बार यह भी देख लें कि उन विज्ञापनों में कहीं छोटे-बड़े आकार में सरकारी अशोक की लाट तो नहीं छपी। अशोल चक्र से मिलताजुलता इनका चिन्ह तो चल ही पड़ा है, अशोक की लाट का उपयोग भी किया जाता रहा है। आप चाहें तो खोजकार वह विज्ञापन भेज सकता हूं। खैर, अक्सर यह सुनने में आता है कि हमारे अनेक जनप्रतिनिधिश्री इनके साथ हैं सो हाथ मजबूत हैं। जो कहें, जो करें, कर सकते हैं, कर भी रहे हैं, पूरा देश उनका, उनकी मुट्ठी में- पूरी ईमानदारी से!

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