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धोखेबाज हैं स्वामी अग्निवेश!

स्वामी अग्निवेश: शांति दूत की जगह चुनावी एजेंट बने : निजी महत्वाकांक्षाओं के लिए शांति-न्याय मार्च के 60 सदस्यों के साथ धोखा किया : छत्तीसगढ़ के चिंतलनार क्षेत्र में माओवादियों और पुलिस के बीच संघर्ष में 6 अप्रैल को अर्धसैनिक बलों के 76 जवान मारे गये थे। माओवादियों के हाथों सरकार के सबसे काबिल और सुसज्जित सुरक्षा बलों का इतनी बड़ी संख्या में मारा जाना जहां राज्य मशीनरी के लिए एक नयी चुनौती बना, वहीं ऐसी स्थिति न चाहने वालों के लिए सरोकार का गंभीर प्रश्न। सरोकार की इसी चाहत से शांति चाहने वालों ने एक समूह बनाकर चिंतलनार वारदात के ठीक एक महीने बाद 5 से 8 मई के बीच रायपुर से दंतेवाड़ा तक एक शांतियात्रा की। यात्रा का असर रहा और सरकार एवं माओवादियों से बातचीत की एक सुगबुगाहट भी शुरू हुई।

स्वामी अग्निवेश

स्वामी अग्निवेश: शांति दूत की जगह चुनावी एजेंट बने : निजी महत्वाकांक्षाओं के लिए शांति-न्याय मार्च के 60 सदस्यों के साथ धोखा किया : छत्तीसगढ़ के चिंतलनार क्षेत्र में माओवादियों और पुलिस के बीच संघर्ष में 6 अप्रैल को अर्धसैनिक बलों के 76 जवान मारे गये थे। माओवादियों के हाथों सरकार के सबसे काबिल और सुसज्जित सुरक्षा बलों का इतनी बड़ी संख्या में मारा जाना जहां राज्य मशीनरी के लिए एक नयी चुनौती बना, वहीं ऐसी स्थिति न चाहने वालों के लिए सरोकार का गंभीर प्रश्न। सरोकार की इसी चाहत से शांति चाहने वालों ने एक समूह बनाकर चिंतलनार वारदात के ठीक एक महीने बाद 5 से 8 मई के बीच रायपुर से दंतेवाड़ा तक एक शांतियात्रा की। यात्रा का असर रहा और सरकार एवं माओवादियों से बातचीत की एक सुगबुगाहट भी शुरू हुई।

लेकिन सुगबुगाहट से उपजी उम्मीदें आंध्र पुलिस द्वारा माओवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता आजाद और उनके साथ पत्रकार हेमचन्द्र पाण्डेय की हत्या किये जाने के बाद हाशिये पर चली गयीं। आजाद की हत्या उस समय हुई थी जब शांति यात्रा करने वालों के समूह के सदस्य स्वामी अग्निवेश सरकार और माओवादियों के बीच वार्ता के मंच को अंतिम रूप देने का दावा कर रहे थे। उसी बीच हुई आजाद ही हत्या ने न सिर्फ शांति को लेकर सरकार की चाहत पर प्रश्नचिन्ह खड़े किये, बल्कि सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश का भी तमाम तीखे सवालों से साबका हुआ। स्वामी अग्निवेश की पहलकदमी पर सवाल तो बहुतेरे उठे, लेकिन शांति यात्रा के सदस्यों ने जो सवाल एक पत्र के माध्यम से खड़े किये हैं वह कुछ नये भटकावों, मौकापरस्ती और नेतृत्व करने की आतुरता को पाठकों के सामने सरेआम कर देते हैं। पत्र इस मायने में महत्वपूर्ण है कि सवाल करने वाले उनके अपने साथी हैं जिसका जवाब स्वामी अग्निवेश को अब उन्हीं सार्वजनिक मंचों पर आकर देना चाहिए जहां वह शांतिवार्ता के नायक के तौर पर अब तक स्थापित होते रहे हैं। शांति और न्याय के लिए एक अभियान में शामिल पदयात्रियों का अग्निवेश के नाम पत्र इस प्रकार है-


प्रिय अग्निवेश जी,

हम लोग यह पत्र मई 2010 में छत्तीसगढ़ शांति और न्याय यात्रा के उन सदस्यों की ओर से लिख रहे हैं जो इस अभियान में शामिल थे। हम लोग इस मसले पर अपना मत सार्वजनिक नहीं करना चाह रहे थे, लेकिन शांतिवार्ता में शामिल सदस्यों का दबाव था कि सच्चाई सामने आनी चाहिए। इसलिए हमें लगता है कि यह सही वक्त है जब बात कह दी जानी चाहिए।

अब हम सीधे मुद्दे पर आते हैं और साफ-साफ कहना चाहते हैं कि आपने पूरे मामले को हथियाने की कोशिश की। विभिन्न क्षेत्रों में महारत प्राप्त वैज्ञानिक, शिक्षाविद, गांधीवादी और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा शुरू की गयी इस पहल को आपने न सिर्फ रास्ते से भटकाया (आजाद और हेमचंद्र पांडे के संदर्भ में) बल्कि अंततः ममता बनर्जी जैसे नेताओं की राजनीतिक झोली में डाल दिया।

इतना ही नहीं, आपने खुद को शांति और न्याय यात्रा का स्वघोषित नेता मान लिया और गृहमंत्री पी. चिदंबरम से सांठगांठ में लगे रहे। हम सभी जानते हैं कि शांति और न्याय यात्रा के बाद 11 मई को गृहमंत्री ने आपको संबोधित एक पत्र में लिखा था- ‘मुझे पता चला हैरायपुर से दंतेवाड़ा तक सामाजिक कार्यकर्ताओं के एक समूह का शांति यात्रा में नेतृत्व करते हुए आप रायपुर से दंतेवाड़ा गये…’

आप नेता कैसे बन सकते हैं जबकि आप शांति यात्रा के ऐसे पहले सदस्य थे जिन्होंने जगदलपुर के एक लॉन में बैठकर 6 मई को बीजेपी और कांग्रेस के गुंडों के प्रदर्शन के बाद कहा था कि ‘हम लोग यहां शहीद होने के लिए नहीं आए हैं. विरोध–प्रदर्शन बंद कर देना चाहिए और कल ही यहां से वापस चले जाना चाहिए.’

हमारे एक सदस्य डॉ. बनवारी लाल शर्मा के फोन करने और चेतावनी देने के बावजूद आप गुपचुप तरीके से कदम उठाते रहे. उदाहरण के तौर पर थॉमस कोचरी ने एक सलाह दी थी कि इस अभियान से जुड़े कुछ सदस्यों को जेल में बंद माओवादी नेताओं से मुलाकात करनी चाहिए. कई दूसरे सदस्यों समेत नारायण देसाई ने इसका समर्थन किया था. डॉ शर्मा ने आपसे अनुरोध किया था कि आपको इस बाबत गृह मंत्रालय से अनुमति लेनी चाहिए क्योंकि आप वहां जा चुके थे.

बजाय इसके कि आप हमारे अभियान के लिए इसकी इजाजत लेते, आपने गुपचुप तरीके से रायपुर की तिहाड़ जेल में जाकर माओवादी नेताओं से मुलाकात कर ली. इसके अलावा आपने राजगोपाल के साथ मिलकर दिल्ली में 9 जुलाई को एक राउंड टेबल आयोजित करने का ऐलान कर दिया, जबकि राजगोपाल हमारे ग्रुप में पहले से नहीं शामिल थे.

जब हमें ये पता चला तब हम लोगों ने इसमें हस्तक्षेप किया. इस मीटिंग में वरिष्ठ गांधीवादी नेता राधा भट्ट और डॉ शर्मा मौजूद थे. इसी मीटिंग में आपने खुलासा किया कि आपके पास आजाद (माओवादी प्रवक्ता) का भेजा गया वो पत्र है जिसे उन्होंने चिदंबरम के पत्र के जवाब में भेजा था. हालांकि आपने ये पत्र हमें दिखाने से इंकार कर दिया था, जबकि ये पत्र पहले ही सार्वजनिक हो चुका था और हमारे पास भी मौजूद था. जब आप पर अभियान के सदस्यों ने ये जानने के लिए दबाव डाला कि ‘आजाद ने बातचीत के लिए क्या शर्तें रखी हैं?’ तब आपने केवल कुछ संकेत दिए.

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हमने तब जोर देकर कहा कि जब तक सरकार माओवादियों की कुछ मांगों को स्वीकार करके गंभीरता का परिचय नहीं देती, तब तक माओवादियों से राउंड टेबल बातचीत का कोई मतलब नहीं. डॉ शर्मा के साथ लंबी बातचीत के दौरान आपने उन्हें विश्वास दिलाने की कोशिश की कि सब कुछ ठीक है, लेकिन ये साफ हो चुका है कि कुछ भी ठीक नहीं था. आपने खुद स्वीकार किया था कि चीजें ठीक दिशा में नहीं जा रही और आप इस प्रक्रिया से बाहर होना चाहते हैं. (हालांकि किसी ने आपसे इस प्रक्रिया में शामिल होने के लिए कहा भी नहीं था). चिदंबरम और कुछ दोस्त जिनके साथ आप माओवादियों के प्रतिनिधि के तौर पर व्यवहार कर रहे थे, से झटका खाने के बाद आपने उनसे 25 जून को फोन पर हुई बातचीत के दौरान ये बात कही थी.

इन साथियों ने आपसे आजाद के पत्र को सार्वजनिक करने का दवाब डाला. जबकि आप चिदंबरम के पत्र को पहले ही सार्वजनिक कर चुके थे. (आपने इस पत्र की स्कैन कॉपी ई-मेल से भेजी थी). आपने 19 जून को दोपहर तीन बजे दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस कर आजाद के खत को सार्वजनिक करने का फैसला लिया था और इसका ऐलान भी कर दिया था, लेकिन चिदंबरम के आदेश पर आपने आखिरी वक्त में प्रेस कांफ्रेंस को स्थगित कर दिया.

बातचीत की प्रक्रिया से अलग होने के बाद भी आपने आजाद को पत्र लिखा और इसका भयानक परिणाम सबके सामने है. केवल आजाद ही नहीं, हेमचंद्र भी मारे गए. और इसी के साथ शांति प्रकिया की भी हत्या हो गई.

आप हमें ये कहने की इजाजत दें कि आप इस देश के स्वतंत्र नागरिक हैं और अपनी मनमर्जी के मुताबिक काम करने के लिए स्वतंत्र हैं. लेकिन हमें अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि सचेत नागरिकों के कठिन प्रयास से निकला एक ‘शांति दूत’ चुनावी एजेंट में बदल चुका है, जिसने 9 अगस्त को लालगढ़ में एक जोरदार चुनावी भाषण दिया है. आपकी उस बहुप्रचारित ‘शांति यात्रा’ का क्या हुआ जिसे 9 से 15 अगस्त के दौरान कोलकाता से लालगढ़ जाना था और जिसमें मेधा पाटकर समेत कई सामाजिक संगठनों को शामिल होना था? जिसके नेता आप और मेधा थे और धारा144 को तोड़ते हुए लालगढ़ में आपको 15 अगस्त के दिन तिरंगा फहराना था?

आपने ‘शांति प्रक्रिया’ को राजनीति की विषयवस्तु बना दिया है. हमें अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि आपने निजी राजनीतिक महत्वाकाक्षांओं के लिए शांति-न्याय मार्च के 60 सदस्यों के साथ धोखा किया है. हम कहना चाहते हैं कि आपकी गलतियों के लिए हम कहीं से भी जिम्मेदार नहीं हैं. आपने शांति प्रकिया का बहुत नुकसान किया है. बावजूद इसके, शांति और न्याय के लिए हमारी मुहिम जारी है. हमारा प्रयास है कि देश में हिंसा की समाप्ति और हिंसा के लिए जिम्मेदार मूलभूत कारणों को समाप्त करने के लिए जनमत बनाया जा सके.

भवदीय

थॉमस कोचरी अमरनाथ भाई,राधा भट्ट, डॉ वी एन शर्मा, गौतम बंदोपाध्याय, जनक लाल ठाकुर, राजीव लोचन शाह, नीरच जैन, विवेकानंद माथने, डॉ बनवारी लाल शर्मा, मनोज त्यागी, डॉ मिथिलेश डांगी

अगस्त 19, 2010


अनुवाद : विश्वदीपक, साभार : जनज्वार

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0 Comments

  1. ashok

    September 7, 2010 at 6:15 am

    It is shocking to know that even big names like Agniwesh can do such mean things.

  2. विनीत कुमार

    September 7, 2010 at 7:21 am

    जनज्वार को हाइपर लिंक तो कर देते,लोग उसे देखना चाहें तो सुविधा हो जाती।.

  3. Chandrabhan Singh

    September 7, 2010 at 7:29 am

    Agniwesh ji kewal prachar ke bhuke hai. Kisi bhi janandolan me tarkib se ghusne ki unme kala hai, unhone aajtak apni mehant se koi andolan khada nahi kiya, bane huae munch ka sadev najayaj phayada uthane ki unki niti rahi hai. Aisa koi moka nahi chhodte prachar pane ka. Janandolan chalanewalon ko unse sawadhan rahna chaiheye.

  4. sachin

    September 7, 2010 at 8:29 am

    agnivesh arya samaj ke bhagwa chole mein ek ghor vaampanthi hain, jo kewal naam ke bhookhe hain. Ye unki is bhookh ka hi nateeja hai ki aaj Arya Samaj mein unka koi Samman nahin bacha hai. Bhagwa ranga ka jamkar durupyog kar rahe hain. unko ye rang utar kar khulkar sabke saamne aana chahiye.

  5. पंकज झा.

    September 7, 2010 at 1:14 pm

    हम्म्म्म आगे-आगे देखिये होता है क्या?

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