: पत्रकारिता की दुनिया में व्याप्त विसंगतियों को उजागर करती एक कहानी : वह अदना सा अंशकालिक पत्रकार था। एक बड़े अख़बार का छोटा सा स्ट्रिंगर। उसका ख़बरों की क़ीमत शब्दों के विस्तार पर तय होती थी, ख़बरों की गहराई और महत्त्व पर नहीं। जिस ख़बर के जुगाड़ में कई बार उसका पूरा दिन लग जाता उसकी लम्बाई कई बार तीन-चार कालम सेंटीमीटर होती।
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विजय और मुनव्वर को कौमी एकता सम्मान
कोलकाता : आल इंडिया कौमी एकता मंच की ओर से विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य करने वालों को कौमी एकता सम्मान प्रदान किया गया। हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए आलोचक व भारतीय भाषा परिषद के निदेशक डॉ.विजय बहादुर सिंह एवं उर्दू साहित्य में योगदान के लिए शायर मुनव्वर राना को सम्मानित किया गया।
साहित्य कूड़ेदान नहीं है : संजीव
[caption id="attachment_17273" align="alignnone" width="505"]अभिज्ञात के कहानी संग्रह ‘तीसरी बीवी’ का लोकार्पण अवसर पर बाएं से आलोचक अरुण माहेश्वरी, भारतीय भाषा परिषद के निदेशक और आलोचक डा.विजय बहादुर सिंह, पत्रकार व कथाकार अभिज्ञात, कथाकार और हंस के कार्यकारी सम्पादक संजीव, बंगला कवि अर्धेन्दु चक्रवर्ती और उपन्यासकार-आलोचक हितेन्द्र पटेल[/caption]
: लेखन में अगर उदात्तता नहीं है तो समझिए साहित्य की शर्त पूरी नहीं होती :
डॉ. अभिज्ञात की कहानी पर बनेगी फिल्म?
डॉ. अभिज्ञात की कहानी ‘मनुष्य और मत्स्यकन्या’ पर युवा फिल्मकार संजय झा फिल्म बनाने की कवायद शुरू कर रहे हैं. विज्ञान की नयी चुनौतियां और उसे लेकर उठे नये प्रश्नों के कारण यह कहानी चर्चित हुई. इसकी पटकथा पर काम शुरू करने के लिए उन्होंने डा. अभिज्ञात से इजाजत मांगी है. उल्लेखनीय है कि डा. अभिज्ञात का कहानी संग्रह ‘तीसरी बीवी’ हाल ही में प्रकाशित हुआ है.
‘अवस्थी जी कर्तव्यनिष्ठ हैं, वैसा ही चाहते हैं’
[caption id="attachment_15875" align="alignleft"]अभिज्ञात[/caption]‘संपादक की सनक के शिकार हुए विशु प्रसाद‘ टिप्पणी पढ़कर दुख हुआ कि आज के दौर में अनुशासन और पेशे के प्रति ईमानदारी और समर्पण चाहने वाले श्री संत शरण अवस्थी जैसे सम्पादकों की सख़्ती के आगे न टिक पाने वाले पत्रकार किस हद तक नीचे उतर पर चर्चा कर सकते हैं. यह तो सच है कि अवस्थी जी जैसे खरे प्रभारी के आगे ब्लफ मास्टर और शेखचिल्ली किस्म के पत्रकारों की दाल नहीं गल सकती और ना ही काम निकालने की गरज़ से उनके क़रीब पहुंचने वाला अपने उद्देश्य में क़ामयाब हो सकता है. वे स्वयं पाबंद और चुस्त-दुरुस्त व्यक्ति हैं और अपने सहयोगियों से भी काम में परफेक्शन और लगन चाहते हैं. इस टिप्पणी में जिन लोगों के नाम लिये गये हैं, संभव है कि उनके ज़माने में उनकी छुट्टी हुई हो. और यदि ऐसा हुआ है तो भी उसकी वज़हें वही होंगी जो उन्हें बतायी गयी होंगी. अवस्थी जी के समक्ष चलताऊ काम करने वालों की खैर नहीं रहती है और होनी भी नहीं चाहिए, जो पत्रकार उनके हाथों अपनी दुर्गति करा चुके हैं वह उसी योग्य होंगे. यह किसी से छिपा नहीं है कि पत्रकारिता में तिकड़बाजों की बटालियनें सक्रिय हैं.