लफंगों की आखिरी शरणस्थली होती है देशभक्ति

आनंद प्रधानदेश में पत्रकारिता छात्रों को तैयार करने वाले प्रीमियर इंस्टीट्यूशन इंडियन इंस्टीट्यूट आफ मास कम्युनिकेशन (आईआईएमसी) के प्रोफेसर आनंद प्रधान की हिम्मत की दाद देनी चाहिए. शिक्षण जैसे पेशे में और खासकर पत्रकारिता जैसे पेशे के लिए नौनिहाल तैयार करने वाले काम में वर्तमान में इस कदर खरी-खरी बोलने और लिखने वाले अध्यापक बेहद कम हैं.

दिलीप मंडल का दोगला चरित्र उजागर

जब से आईआईएमसी सवालों के घेरे में आया है तभी से वहाँ के हिन्दी पत्रकारिता के निदेशक प्राध्यापक आनन्द प्रधान चुप हैं. सूत्रों के अनुसार कुछ कहते भी हैं तो बस इतना ही कि जो हुआ वो कागजी या तकनीकी गलती के कारण हुआ. चलिए एक बार को ये मान भी लें तो कोई बात नहीं, जब कभी ऐसे मामले उजागर होने शुरू होते हैं तो आम तौर पर ऐसे ही नन्हे-मुन्ने बयान रटी-रटाई अवस्था में सामने आते हैं.

आईआईएमसी में आनंद प्रधान को लेकर इतना बवाल क्यों है?

इन दिनों आईआईएमसी गरमाया हुआ है. नए छात्रों के साथ नए सत्र की शुरुआत भले हो गई हो, पर पुराने कई छात्र बेहद नाराज हैं. आईआईएमसी प्रशासन की हिप्पोक्रेसी का खुलासा करके इन छात्रों ने रख दिया है क्योंकि आईआईएमसी प्रशासन व शिक्षण से जुड़े कुछ लोगों ने कई छात्रों के साथ सौतेला व्यवहार करते हुए अपनी निजी खुन्नस निकालने में लगे थे. तो क्या आईआईएमसी में भी यह सिस्टम हो गया है कि जो मुझे सूट नहीं करेगा, उसे शूट कर दिया जाएगा….??

”आनंद प्रधान के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को बल मिल रहा है”

: आईआईएमसी ने सभी शिकायतकर्ताओं का फेसबुक अकाउंट ब्लाक किया : पिछले दिनों आईआईएमसी में दाखिले में हुई धांधली को लेकर हुए पर्दाफाश के बाद जिस कम्युनिटी पर छात्रों का जुटान शुरू हुआ था और कई चौंकाने वाले सुबूत धीरे धीरे सामने आ रहे थे, उस कम्युनिटी को कुछ लोगों के लिए ब्लॉक कर दिया गया है. बेशक, आईआईएमसी प्रशासन ने डर कर ही यह कायरतापूर्ण कार्रवाई की है.

दो दिन, दो आयोजन और मेरी भागदौड़… राजेंद्र यादव से बीएचयू वालों तक…

: राजेंद्र यादव की पीसी और बीएचयू के पूर्व छात्रों की बैठक की नागरिक रिपोर्टिंग :

”आज विश्व टेलीकाम दिवस है, मन कर रहा है मोबाइल उठाकर जंगल में फेंक दूं”

Anand Pradhan : आज विश्व टेलीकाम दिवस है और मन कर रहा है कि आज अपने मोबाइल को उठाकर जंगल में फेंक दूँ… तंग आ गया हूँ…दिन भर बिल्डरों के मेसेजेज पढकर और फ़ालतू के फोन सुनकर…ये भी कोई जिंदगी है..

इन लेखों को पढ़कर कुछ सोचिए, कुछ कहिए

पुण्य प्रसून बाजपेयी और रवीश कुमार. ये दो ऐसे पत्रकार हैं जो मुद्दों के तह में जाकर सच को तलाशने की कोशिश करते हैं. इनके टीवी प्रोग्राम्स, लेखों के जरिए किसी मुद्दे के कई पक्ष जानने-समझने को मिलते हैं. आनंद प्रधान अपने लेखों के जरिए अपने समय के सबसे परेशानहाल लोगों की तरफ से आवाज उठाते हैं, सोचते हैं, लिखते हैं. तीनों का नाता मीडिया से है. पुण्य और रवीश टीवी जर्नलिज्म में सक्रिय हैं तो आनंद मीडिया शिक्षण में. इनके एक-एक लेख को उनके ब्लागों से साभार लेकर यहां प्रकाशित किया जा रहा है. -एडिटर

बरखा गैंग अब आईआईएमसी के हाथों योगेश शीतल को निपटाने में जुटा

: आनंद प्रधान को एनडीटीवी की महिला पत्रकार ने निजी पत्र लिखा तो आनंद प्रधान ने शीतल को संस्थान की तरफ से सो-काज नोटिस थमा दिया : अन्ना हजारे के आंदोलन को सपोर्ट करने और भ्रष्टाचारियों को खेदड़ने का साहस रखने वाले इंडियन इंस्टीट्यूट आफ मास कम्युनिकेशन (आईआईएमसी) के छात्र योगेश कुमार शीतल की मुश्किलें दिन ब दिन बढ़ती जा रही हैं.

मजाक बन गई है भाजपा की तिरंगा यात्रा

: इतिहास को दोहराने की कोशिश का हश्र यही होता है : “देशभक्ति, दुष्टों-लफंगों की आखिरी शरणस्थली होती है” – सैमुएल जॉन्सन : सैमुएल जॉन्सन की यह पंक्ति भारतीय जनता पार्टी और उसके युवा संगठन भारतीय जनता युवा मोर्चा की तिरंगा यात्रा पर बिल्कुल फिट बैठती है. ऐसे राजनीतिक तमाशे करने में भाजपा का कोई जवाब नहीं है. वैसे भी भाजपा के लिए ‘देशभक्ति’ हमेशा से आखिरी शरणस्थली रही है.

प्रसारण नियमन पर सरकार और प्रसारकों का खेल

आनंद पिछले दिनों सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने काफी शिकायतों के बाद दो मनोरंजन चैनलों- कलर्स और इमैजिन टीवी को उनके कार्यक्रमों क्रमशः ‘बिग बॉस’ और ‘राखी का इंसाफ’ को नोटिस जारी करते हुए उन्हें रात में 11 बजे के बाद दिखाने का आदेश जारी किया. यही नहीं, न्यूज चैनलों को भी समाचार और अन्य कार्यक्रमों में इन दोनों टीवी शो की क्लिपिंग्स न दिखाने की हिदायत दी. जैसी कि आशंका थी कि इस फैसले को चैनलों ने तुरंत मुंबई हाई कोर्ट में चुनौती दी जिसपर कोर्ट ने स्थगनादेश जारी कर दिया.

यह रहा बिनायक को उम्र कैद देनेवाला ‘बनाना रिपब्लिक’

: लोकतंत्र, न्याय और मानवाधिकारों का इससे बड़ा मजाक और क्या हो सकता है : जैसी कि आशंका थी, मानवाधिकार कार्यकर्ता और बाल रोग विशेषज्ञ डा. बिनायक सेन को रायपुर की स्थानीय अदालत ने देशद्रोह और राज्य के खिलाफ हिंसक तख्ता पलट के लिए षड्यंत्र करने जैसे आरोपों में उम्र कैद की सजा सुना दी. अरुंधती राय ने सही कहा कि क्या विडम्बना है कि भोपाल गैस कांड में हजारों बेकसूरों के नरसंहार के दोषियों को दो साल की सजा और डा. बिनायक सेन को उम्र कैद? आश्चर्य नहीं कि इस फैसले ने पूरे देश की अंतरात्मा को झकझोर दिया है. न्याय, लोकतंत्र और मानवाधिकारों में यकीन रखनेवाले लोग सदमे में हैं.

मीडिया का अंडरवर्ल्ड : लाबीइंग, दलाली, ब्लैकमेलिंग

आनंद प्रधाननीरा राडिया टेप्स ने न्यूज मीडिया के अंडरवर्ल्ड से पर्दा उठा दिया है. अभी तक यह अंडरवर्ल्ड अख़बारों और चैनलों के समाचार कक्षों और प्रेस क्लबों में व्यक्तिगत बातचीत, कानाफूसियों और गासिप तक सीमित था. कई वेबसाइटों पत्रिकाओं को धन्यवाद देना जरूरी है जिनकी हिम्मत के कारण न्यूज मीडिया के अंडरवर्ल्ड के एक हिस्से की कारगुजारियां सार्वजनिक चर्चा का मुद्दा बन गई हैं. इन टेप्स से समाचार माध्यमों और उनके उंचे पदों पर बैठे पत्रकारों के सत्ता और कारपोरेट समूहों के दलालों के साथ निरंतर घनिष्ठ होते संबंधों और उनके लेखन और रिपोर्टिंग पर पीआर और लाबीइंग के बढ़ते प्रभावों की निर्णायक रूप से पुष्टि होती है.

न्यूज चैनलों के लिए पगली घंटी बज गई है

न्यूज चैनलों के लिए खतरे की घंटी तो काफी समय से बज रही है लेकिन अब लगता है कि पगली घंटी भी बज गई है. चैनल न सिर्फ सार्वजनिक मजाक और आलोचना के विषय बन गए हैं बल्कि उनकी कारगुजारियों को लेकर भी लोगों में गुस्सा बढ़ता जा रहा है. यह आलोचना, उपहास और आक्रोश कई रूपों में सामने आ रहा है. चैनलों के कर्ताधर्ता अपने शीशे के चैम्बरों से बाहर झांकें और अपनी ही बनाई ‘मेक बिलीव’ दुनिया से बाहर देखें कि अब यह सिर्फ कुछ ‘कुंठित, असफल और अज्ञानी’ मीडिया आलोचकों की राय नहीं है बल्कि आलोचकों का दायरा और उनकी तादाद लगातार बढ़ती जा रही है.

मीडिया के नियमन से डर क्यों?

आनेद प्रधानमीडिया के नियमन (रेग्यूलेशन) का मुद्दा एक बार फिर गर्म हो गया है। ’सच का सामना’ को लेकर संसद में हुई तीखी बहस के बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने वायदा किया है कि यूपीए सरकार अगले सात सप्ताहों में मीडिया के नियमन को लेकर एक मसौदा प्रस्ताव देश के सामने बहस के लिए पेश करेगी। लेकिन दूसरी ओर, दिल्ली उच्च न्यायालय ने ‘सच का सामना’ पर प्रतिबंध लगाने की मांग करनेवाली जनहित याचिका को खारिज करते हुए कहा है कि जिन्हें ऐसे कार्यक्रम पसंद नही हैं, वे रिमोट का इस्तेमाल करके ऐसे चैनल और कार्यक्रम बदल दें। इसके साथ ही, मीडिया के नियमन के मसले पर एक बार फिर बहस शुरू हो गयी है। जाहिर है कि मीडिया खासकर उसकी अंतर्वस्तु (कंटेंट) के नियमन की यह बहस नयी नही है। पिछले कई वर्षों से यह बहस चल रही है। यह भी सच है कि इस मुद्दे पर देश में एक राय नहीं है। इसमें भी कोई शक नहीं है कि मीडिया खासकर उसके कंटेंट के नियमन और वह भी सरकारी नियमन को लेकर बिलकुल सहमति नही है।