हरिवंश की कलम से- ‘कहां गइल मोर गांव रे’

पर इस बार 11 अक्तूबर को जेपी के जन्मदिन पर गांववालों ने अनुभव सुनाये. कहा मीडियावाले तो ऐसे-ऐसे सवाल पूछ रहे थे, मानो यूपी-बिहार के गांव ‘भारत-पाक’ जैसे दो देश हों. जेपी का जन्म कहां, घर कहां? वगैरह-वगैरह. गांववालों ने कहा, हमने तो इसके पहले जाना ही नहीं कि हमारा गांव, दो राज्यों और तीन जिलों में है. हम तो एक बस्ती हैं. एक शरीर जैसे. उसे आप बांट रहे हैं, ऊपर से बता या एहसास करा रहे हैं.

हम पत्रकार भी एक अदभुत अहं ग्रंथि से पीड़ित रहते हैं

हरिवंश: सपने, संघर्ष और चुनौतियां (अंतिम) : प्रभात खबर आकर हमने बृजकिशोर झंवर (लाली बाबू) से मैनेजमेंट की बारीकियां सीखीं, तत्कालीन चेयरमैन बसंत कुमार झंवर के विजन-प्रोत्साहन ने प्रभात खबर को हमेशा नयी ताकत दी, युवा चेयरमैन प्रशांत झंवर और युवा एम.डी राजीव झंवर का पग-पग पर सुझाव, सहयोग और विजन ‘प्रभात खबर‘ समूह की सबसे बड़ी ताकत है, प्रभात खबर के निदेशक समीर लोहिया के प्रैक्टि‍कल सुझाव हमारी ताकत हैं :

तब मैं, केके गोयनका और आरके दत्ता ड्राइविंग सीट पर थे

हरिवंश: सपने, संघर्ष और चुनौतियां (1) : प्रभात खबर को नया इंस्टीट्यूशनल रूप देने के लिए शुरुआत हमने ऊपर से की. पहल कर मैं हटा. केके गोयनका एमडी बने. आरके दत्ता एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर. ये दोनों वे लोग हैं, जिन्होंने जीवन के सर्वश्रेष्ठ वर्ष चुपचाप प्रभात खबर को बनाने में दिये हैं. यह बदलाव यहीं नहीं रुका. पूरे झारखंड को संभालने के लिए दूसरी पंक्ति की एक निर्णायक टीम खड़ी की गयी… :

खतरनाक खेल खेल रहे अखबार : हरिवंश

[caption id="attachment_15266" align="alignleft"]हरिवंशहरिवंश[/caption]हमारा हीरो : हरिवंश (प्रधान संपादक, प्रभात खबर) : भाग-2 : मीडिया ने लोगों का विश्वास अब खो दिया है : मीडिया में गैर-जिम्मेदारी बहुत बढ़ गई है :  लोग समझ गए हैं कि खबरे खरीदी-बेची जाती हैं : ताकतवर हो चुके मीडिया पर नियंत्रण की कोई बॉडी नहीं हैं : ऐसा पोलिटिकल सिस्टम कमजोर होने से हुआ : मीडिया से ज्यादा ब्लैकमेलर पालिटिक्स हो गई है : जिस दिन राजनीति में विचार अहम होंगे, मीडिया भी रास्ते पर आ जाएगा : प्रभात खबर टिका हुआ है तो सिर्फ अपनी साख के दम पर : आज जब आस-पास देखते हैं तो हम सोच नहीं पाते कि किससे प्रेरणा लें : मैं वह व्यवस्था अवश्य देखना चाहता हूं, जिसमें इक्वल डिस्ट्रीब्यूशन हो : हम मशीन की तरह चल रहे हैं और मशीन की तरह खत्म हो रहे हैं

पत्रकार बस तिकड़मी बनकर रह गए हैं : हरिवंश

चौथी दुनिया में हरिवंश का इंटरव्यूचौथी दुनिया के सद्यः प्रकाशित विशेषांक में प्रभात खबर के प्रधान संपादक हरिवंश का इंटरव्यू छपा है। इसमें पत्रकारिता की दशा-दिशा पर काफी कुछ बातें हैं। समकालीन विचारवान और सरोकार वाले संपादकों में हरिवंश का नाम जाना-पहचाना है। रांची में रहकर बिहार-झारखंड के प्रमुख वैचारिक हिंदी अखबार प्रभात खबर को नेतृत्व प्रदान करने वाले हरिवंश ने बाजार के मजबूत दबाव के बावजूद विचार से समझौता नहीं किया। चौथी दुनिया में प्रकाशित यह इंटरव्यू यहां साभार दिया जा रहा है।