एसपी के इन चिरकुट चेलों का दोगलापन

: कब तक एसपी का नाम ले-लेकर दोगले लोग अपने दाग को उजले कहते रहेंगे : सुरेंद्र प्रताप सिंह उर्फ एस.पी. सिंह को यह देश जानता है। उन जैसा शानदार पत्रकार सौ-दो-सौ सालों में एक बार ही पैदा होता है। विलक्षण प्रतिभा के धनी एसपी ने रविवार को रविवार बनाया, आज तक को आज तक। इसके अलावा बहुत कुछ किया, जिस पर बाद में जिक्र। यहां जिक्र उनके चेलों का, जो आज की तारीख में विभिन्न मीडिया हाउसों में काम कर रहे हैं।

नेता खुश हुआ क्योंकि उसकी खींची लकीर पर मीडिया चल पड़ा

पुण्य प्रसून वाजपेयीमीडिया न हो, तो अन्ना का आंदोलन क्या फ़ुस्स हो जायेगा. मीडिया न होता, तो क्या रामदेव की रामलीला पर सरकारी कहर सामने आ नही पाता. और, सरकार जो खेल महंगाई, भ्रष्टाचार या कालेधन को लेकर खेल रही है, वह खेल बिना मीडिया के सामने आ नहीं पाता. पर जो कुछ इस दौर में न्यूज चैनलों ने दिखाया और जिस तरह सरकार ने एक मोड़ पर आकर यह कह दिया कि अन्ना की टीम संसद के समानांतर सत्ता बनाना चाहती है…

एसपी सिंह पर विशेष : मगर खबरें अभी और भी हैं…!

SP Singhवह शुक्रवार था। काला शुक्रवार। इतना काला कि वह काल बनकर आया। और हमारे एसपी को लील गया। 27 जून 1997 को भारतीय मीडिया के इतिहास में सबसे दारुण और दर्दनाक दिन कहा जा सकता है। उस दिन से आज तक पूरे चौदह साल हो गए। एसपी सिंह हमारे बीच में नहीं है। ऐसा बहुत लोग मानते हैं। लेकिन अपन नहीं मानते।

मीडिया में प्रच्छन्न सवर्ण जातिवादी वर्चस्व है : एसपी सिंह

: एक पुराना इंटरव्यू : 27 जून को महान पत्रकार एसपी सिंह की 14वीं पुण्यतिथि है. कुछ ही दिनों में 27 जून आ जाएगा. एसपी की याद में हम यहां उनसे लिया गया आखिरी इंटरव्यू प्रकाशित कर रहे हैं. यह इंटरव्यू अजीत राय ने लिया. इसका प्रकाशन 15 जून 1997 को जनसत्ता में हुआ था.

कम हो गई है कलम की धार

राष्‍ट्रीय पत्रकारिता दिवस के अवसर पर जिला सूचना अधिकारी कार्यालय, गाजीपुर में एक गोष्‍ठी का आयोजन किया गया. जिसमें ‘मीडिया तथा कारपोरेट वर्ल्‍ड की चुनौतियां और अवसर’ विषय पर चर्चा आयोजित की गई. गोष्‍ठी में जनपद भर से जुटे दर्जनों पत्रकारों ने अपने-अपने विचार रखे.  भारतीय प्रेस परिषद एवं निदेशक, सूचना व जनसम्‍पर्क विभाग उत्‍तर प्रदेश के आदेश पर इस कार्यक्रम को जिला सूचना विभाग ने आयोजित किया.

एसपी सिंह की मां का निधन

स्वर्गीय सुरेंद्र प्रताप सिंह की मां का आज निधन होने की सूचना मिली है. हिंदी के जाने-माने पत्रकार एसपी सिंह मात्र 49 वर्ष की उम्र में ही 27 जून 1997 को चल बसे थे. एसपी सिंह के निधन से करीब 11 महीने पहले उनके पिता जगन्नाथ सिंह का देहांत हुआ था. एसपी सिंह की मां का निधन आज 92 वर्ष की उम्र में पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के गारुलिया नामक स्थान पर हुआ.

दिल्ली के बड़े पत्रकार और एसपी की याद

[caption id="attachment_15121" align="alignnone"]सवाल-जवाबसवाल पूछने वाली लड़की (बिलकुल बाएं, मंच की ओर मुंह किए) को जवाब देकर समझाते मशहूर पत्रकार राम बहादुर राय. साथ में मंचासीन हैं ‘चौथी दुनिया’ के प्रधान संपादक संतोष भारतीय.[/caption]

सुरेंद्र प्रताप उर्फ एसपी को याद करने दिल्ली में 27 जून दिन शनिवार, दोपहर 3 बजे, पत्रकारों की जो जुटान हुई, उसके बिखरने का वक्त था। ऐलान भी कर दिया गया। तभी एक लड़की मंच की तरफ आती है। कुछ कहने की इजाजत मांगती है। संचालक ने सभी से अनुरोध किया- प्लीज रुक जाइए, इनकी भी सुन जाइए। और वह लड़की बोली। जो जहां जिस मुद्रा में था, रुका। कुछ ने उसके सवाल करने के जज्बे को सराहा। कुछ ने जवाब देने की कोशिश की। लेकिन बिखरती सभा को कितनी देर संभाला जा सकता था, सो, सब लोग चले गए। लड़की भी सवाल को दिमाग में चकरघिन्नी की तरह घुमाते सवाल की तरह चली गई। उसे जवाब न मिला। मिलना भी न था।

सचमुच ही मीडिया के महानायक थे एसपी सिंह

राजेश त्रिपाठीमुझ जैसे कई पत्रकारों को हिंदी साप्ताहिक ‘रविवार’ में 10 साल तक एसपी के साथ काम करने और सार्थक पत्रकारिता से जुड़ने का अवसर मिला। हमने उस व्यक्तित्व को समीप से जाना-पहचाना जो साहसी व सुलझा हुआ था और जिसे खबरों की सटीक और अच्छी पहचान थी। सामाजिक सरोकार की पत्रकारिता की उन्होंने जो शुरुआत इस साप्ताहिक से की, वह पूरे देश में प्रशंसित-स्वीकृत हुई। यह उनकी सशक्त पत्रकारिता का ही परिणाम था कि ‘रविवार’ ने सत्ता के उच्च शिखरों तक से टकराने में हिचकिचाहट न दिखायी।