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63वें जन्म दिन पर उदयन शर्मा को याद करेंगे आज के बड़े पत्रकार
वरिष्ठ पत्रकार दिवंगत उदय शर्मा के 63वें जन्मदिन पर उदयन शर्मा फाउण्डेशन ट्रस्ट की ओर से 11 जुलाई को एक सेमिनार का आयोजन किया गया है. नई दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब के स्पीकर हाल में 3 बजे से आयोजित ‘भष्टाचार का मुद्दा और मीडिया की भूमिका’ संवाद 2011 की मुख्य अतिथि केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अम्बिका सोनी तथा विशिष्ट अतिथि स्टार इंडिया के सीईओ उदय शंकर होंगे.
‘विधवा विलाप’ न करें : राहुल देव
: पसीना पोछता समाजवादी पत्रकार और एसी में जाते कारपोरेट जर्नलिस्ट : परिचर्चा ने बताया- फिलहाल बदलाव की गुंजाइश नहीं : जैसा चल रहा है, वैसा ही चलता रहेगा : कॉरपोरेट जगत अपनी मर्जी से मीडिया की दशा और दिशा तय करता रहेगा :
उदयन के जन्मदिन पर आप निमंत्रित हैं
अगले रविवार को उदयन शर्मा के जन्म के 62 साल पूरे हो जांएगे. अस्सी के दशक में उनकी वही पहचान थी जो आज के ज़माने में राजदीप सरदेसाई और अरनब गोस्वामी की है. उदयन जी रविवार के संवाददाता और संपादक रहे. आगरा के उदयन एक बेहतरीन इंसान थे. छात्र जीवन में समाजवादी रहे और टाइम्स ऑफ़ इण्डिया का “ट्रेनी जर्नलिस्ट” इम्तिहान पास करके धर्मयुग से जुड़े. डॉ धर्मवीर भारती से पत्रकारिता का ककहरा सीखा और बहुत बड़े पत्रकार बने. फिर एक दिन अचानक और असमय इस दुनिया से चले गए.
उदयन शर्मा : पत्रकार भी, एक्टिविस्ट भी
उदयन शर्मा की पुण्य तिथि 23 अप्रैल पर उनको याद करना 1977 में शुरू हुई उस हिन्दी पत्रकारिता को भी याद करना है, जब उदयन, एमजे अकबर व एसपी ने ‘रविवार’ के माध्यम से हिन्दी पत्रकारिता को नए तेवर प्रदान किए थे। 11 जुलाई 1949 को जन्मे उदयन पत्रकार ही नहीं, एक्टिविस्ट भी थे।
उदयन को आज क्यों याद करें?
[caption id="attachment_17320" align="alignleft" width="85"]संतोष भारतीय[/caption]उदयन शर्मा को आज (पुण्यतिथि 23 अप्रैल पर) क्यों याद करें? लेकिन एक पत्रकार चाहता है कि उदयन को न केवल याद किया जाए बल्कि जाना भी जाए. मैने उन पत्रकार संपादक से कहा कि कोई याद नहीं करता तो आप क्यों करते हैं. उनका उत्तर है कि हमें तो याद करना ही चाहिए क्योंकि उदयन जी सही पत्रकारिता की परिभाषा थे.
मीडिया को अपने आपसे खतरा
[caption id="attachment_15378" align="alignleft"]कुलदीप नैय्यर[/caption]चंद रोज पहले दिल्ली में एक सेमिनार में आरोप लगाया गया कि पिछले चुनावों में कई मीडिया हाउसों ने उम्मीदवारों से पैसे लेकर उनके माफिक खबरों का प्रकाशन किया। सेमिनार का उदघाटन करने वाले मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि उन्हें मालूम है, खबरों का गोरखधंधा कैसे हुआ। कई पत्रकारों ने स्वीकारा कि पैसों का लेन-देन हुआ। सेमिनार का कोई नतीजा नहीं निकला पर एक वरिष्ठ नेता ने मुझे बताया कि अगर मीडिया के इस भ्रष्टाचार की जांच के लिए कोई कमीशन बना तो वे उसमें गवाही देने जाएंगे। मुझे बहुत ताज्जुब हुआ जब मैंने इस सेमिनार और कपिल सिब्बल के आरोपों के बारे में अखबारों या टीवी चैनलों में कोई चर्चा नहीं देखी। इस खबर को ब्लैक आउट कर दिया गया था। हम जैसे कुछ लोगों ने प्रेस कौंसिल से निवेदन किया है कि चुनाव प्रचार के दौरान इस्तेमाल हुई नंबर दो की रकम की जांच की जाय।
मीडिया-राजनीति-नौकरशाही का काकटेल
मीडिया को अपने होने पर संदेह है। उसकी मौजूदगी डराती है। उसका कहा-लिखा किसी भी कहे लिखे से आगे जाता नहीं। कोई भी मीडिया से उसी तरह डर जाता है जैसे नेता….गुंडे या बलवा करने वाले से कोई डरता हो। लेकिन राजनीति और मीडिया आमने-सामने हो तो मुश्किल हो जाता है कि किसे मान्यता दें या किसे खारिज करें। रोना-हंसना, दुत्काराना-पुचकारना, सहलाना-चिकोटी काटना ही मीडिया-राजनीति का नया सच है। मीडिया के भीतर राजनीति के चश्मे से या राजनीति के भीतर मीडिया के चश्मे से झांक कर देखने पर कोई अलग राग दोनों में नजर नहीं आयेगा। लेकिन दोनों प्रोडेक्ट का मिजाज अलग है, इसलिये बाजार में दोनों एक दूसरे की जरुरत बनाये रखने के लिये एक दूसरे को बेहतरीन प्रोडक्ट बताने से भी नहीं चूकते। यह यारी लोकतंत्र की धज्जिया उड़ाकर लोकतंत्र के कसीदे भी गढ़ती है और भष्ट्राचार में गोते लगाकर भष्ट्राचार को संस्थान में बदलने से भी नही हिचकती।
धर्मनिरपेक्षता के शहंशाह उदयन शर्मा
[caption id="attachment_15225" align="alignleft"]शेष नारायण सिंह[/caption]उदयन शर्मा होते तो आज 61 वर्ष और एक दिन के हो गए होते। कई साल पहले वे यह दुनिया छोड़कर चले गए थे। जल्दी चले गए। होते तो खुश होते, देखते कि सांप्रदायिक ताकतें चौतरफा मुंह की खा रही हैं। इनके खिलाफ उदयन ने हर मोर्चे पर लड़ाइयां लड़ी थीं, और हर बार जीत हासिल की थी। उनको भरोसा था कि हिटलर हो या फ्रांका हो या कोई तानाशाह, हारता जरूर है। लेकिन क्या संयोग कि जब पंडित जी ने यह दुनिया छोड़ी तो इस देश में सांप्रदायिक ताकतों की हैसियत बहुत बढ़ी हुई थी, दिल्ली के फैसले नागपुर से हो रहे थे। यह उदयन के दम की ही बात थी कि पूरे विश्वास के साथ बताते थे कि यह टेंपरेरी दौर है, खत्म हो जायेगा। खत्म हो गयी सांप्रदायिक ताकतों के फैसला लेने की सियाह रात लेकिन वह आदमी जिंदा नहीं है जिसने इसकी भविष्यवाणी की थी। उदयन शर्मा बेजोड़ इंसान थे, उनकी तरह का दूसरा कोई नहीं। आज कई साल बाद उनकी याद में कलम उठी है इस गरीब की। अब तक हिम्मत नहीं पड़ती थी। पंडितजी के बारे में उनके जाने के बाद बहुत कुछ पढ़ता और सुनता रहा हूं। इतने चाहने वाले हैं उस आदमी के। सोचकर अच्छा लगता है। आलोक तोमर हैं और सलीम अख्तर सिद्धीकी, उदयन शंकर हैं तो ननकऊ मल्लाह भी। बड़े से बड़ा आदमी और मामूली से मामूली आदमी, हर वर्ग में उदयन के चाहने वाले हैं।
हे पत्रकार महोदय, तय करो, इस या उस ओर
दिल्ली में पिछले दो दिनों में मीडिया से जुड़े दो बड़े आयोजन हुए। अखबार मालिकों के संगठन इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी (आईएनएस) की ओर से होटल ताज में इंडियन न्यूजपेपर कांग्रेस का आयोजन किया गया तो इसके ठीक एक दिन बाद 11 जुलाई को उदयन शर्मा के जन्मदिन पर दिल्ली स्थित कांस्टीट्यूशन क्लब के डिप्टी स्पीकर हाल में संवाद-2009 में लोकसभा चुनाव और मीडिया को सबक विषय पर परिचर्चा आयोजित हुई।
‘पंडित जी’ संग काम करने का मुझे भी मौका मिला था
[caption id="attachment_14780" align="alignleft"]राजेश त्रिपाठी[/caption]भड़ास4मीडिया पर उदयन शर्मा के बारे में जनाब सलीम अख्तर सिद्दीकी साहब का आर्टिकल पढ़कर तहेदिल से शुक्रिया कहना चाहता हूं। उन्होंने हमारे ‘पंडित जी’ (स्वर्गीय उदयन शर्मा जी) के बारे में अच्छा आर्टिकल लिखा। वाकई, पंडित जी को जानने वाले हर शख्स ने इसे पढ़ कर प्रीतिकर महसूस किया और उस महान इनसान की यादों में खो गया। ‘रविवार’ पत्रिका के वे संपादक थे और उप संपादक के रूप में मैं भी इस पत्रिका से जुड़ा था, इस लिहाज से चार-पांच साल तक उनके साथ काम करने का मौका मिला। उन्हें जैसा पहचाना-जाना, वे स्मृतियां अमिट हैं और रहेंगी। यहां मैं उनसे जुड़ी कुछ अपनी यादें लिख रहा हूं। संभव है, इससे पाठकों को उनके नये रूप का पता चले। सिद्दीकी साहब की इस बात से मैं सौ फीसदी इत्तिफाक रखता हूं कि पंडित जी सदी के सुपर स्टार पत्रकार थे।
प्रस्तुत है उदयन शर्मा जी पर मेरा आर्टिकल।