हरियाणवी फिल्‍मों की भावी चुनौतियां और बाजार

: भोजपुरी सिनेमा की तरह भटकाव नहीं चाहते फिल्‍मकार : हरियाणा अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में हर बार एक सवाल जरूर उठता है…कि जब भोजपुरी जैसी क्षेत्रीय भाषा की फिल्मों का करोड़ों का बाजार हो सकता है तो हरियाणवी भाषा की फिल्मों का बाजार क्यों नहीं बनाया जा सकता है।

यह पुरस्कार शायद ही अमरकांत की जिंदगी को आर्थिक तौर पर सुरक्षित बना पाए

तीन साल पहले की बात है… दिल्ली के प्रेस क्लब में एक हस्ताक्षर अभियान चलाया जा रहा था… इलाहाबाद में रह रहे एक साहित्यकार के बेटे उन्हें मानव संसाधन विकास मंत्रालय से आर्थिक मदद दिलाने के लिए इस अभियान में जुड़े हुए थे। उन्होंने इन पंक्तियों के लेखक के सामने भी वह चिट्ठी रखी, यह कहते हुए कि अगर उचित लगे तो इस पर हस्ताक्षर कर दो।

वरिष्‍ठ पत्रकार उमेश चतुर्वेदी न्‍यूज एक्‍सप्रेस में सीनियर प्रोड्यूसर बने

सीवीबी न्‍यूज के हिंदी प्रकोष्‍ठ में कार्यरत रहे वरिष्‍ठ पत्रकार उमेश चतुर्वेदी को न्‍यूज एक्‍सप्रेस से जुड़ गए हैं. उन्‍हें यहां सीनियर प्रोड्यूसर बनाया गया है. वे यहां कापी डेस्‍क की जिम्‍मेदारी संभालेंगे. उल्‍लेखनीय है कि पिछले सोलह वर्षों में दैनिक भास्‍कर, अमर उजाला, इंडिया टीवी, जी न्‍यूज समेत कई संस्‍थानों में काम कर चुके …

‘हंस’ जिंदा है तो सिर्फ राजेंद्र यादव की जिजीविषा से

उमेश चतुर्वेदी: पच्चीस साल का हंस और जीवट के राजेंद्र यादव : हिंदी में जब सांस्कृतिक पत्रिकाओं की मौत हो रही थी, धर्मयुग और साप्ताहिक हिंदुस्तान जैसी पत्रिकाओं के दिन लदने लगे थे, हिंदीभाषी इलाके की बौद्धिक और राजनीतिक धड़कन रह चुकी पत्रिका दिनमान के दम भी उखड़ने लगे थे, उन्हीं दिनों हंस को पुनर्जीवित करने का माद्दा दिखाना ही अपने आप में बड़ी बात थी।

उमेश, शेखर, हिमांशु की नई पारी : रमेश रिटायर, ऋषि का ट्रांसफर

अमर उजाला से तीन सूचनाएं हैं. एक तो ये कि देहरादून में सीनियर एनई के रूप में कार्यरत रमेश पुरी रिटायर हो गए. वे फर्स्ट पेज इंचार्ज के रूप में काम देख रहे थे. वे मेरठ में भी अमर उजाला में अपनी सेवाएं दे चुके हैं. करीब दो दशक तक उनका साथ अमर उजाला संग रहा. दूसरी सूचना जम्मू से है. वहां हिमांशु त्रिपाठी ने सब एडिटर के रूप में ज्वाइन किया है. हिमांशु दैनिक भास्कर, लुधियाना छोड़कर पहुंचे हैं. इलाहाबाद से सूचना है कि चीफ सब एडिटर ऋषि दीक्षित का तबादला कानपुर कर दिया गया है.

रामजी बाबू की शालीनता दिल को छू गई

[caption id="attachment_19492" align="alignleft" width="63"]उमेशजीउमेश चतुर्वेदी[/caption]: श्रद्धांजलि : नियति ने लेखन और पत्रकारिता की दुनिया में ढकेलने का निश्चय कर लिया था, शायद यही वजह है कि पाठ्यक्रम से इतर किताबें और पत्रिकाओं के पढ़ने का चस्का कम ही उम्र में लग गया था। पूर्वी उत्तर प्रदेश के आखिरी छोर पर स्थित बलिया में राजेंद्र प्रसाद के प्रतिभा प्रकाशन की वजह से देश-विदेश की अहम पत्रिकाएं मिलती रही थीं। इसी बुक स्टाल पर पहली बार हिंदी की स्थिति को लेकर शायद हिंदुस्तान में एक लेख पढ़ा था और उसके लेखक की भाषा ने जैसे मोह ही लिया था।

फैसले को सांप्रदायिक ठहराने का खेल शुरू

[caption id="attachment_18346" align="alignleft" width="63"]उमेश चतुर्वेदीउमेश चतुर्वेदी[/caption]: शांत अयोध्या और परेशान नेता के बीच मीडिया : अयोध्या पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के फैसले को सांप्रदायिक ठहराने का खेल शुरू हो गया है। फैसले के अगले दिन एक अक्टूबर को छपी खबरों के शीर्षकों में भी सांप्रदायिकता के सूत्र तलाशे जाने लगे हैं। सुप्रीम कोर्ट से तरह-तरह की अपील की जाने लगी है। इसके लिए कई हवाले दिए जा रहे हैं।

इंटरनेट से मिल रही सूचनाओं पर भरोसा कम!

इंटरनेट-मोबाइल पर सूचनाएं मुफ्त में मिले तो ठीक अन्यथा पैसे देकर प्रिंटेड पढ़ना मुफीद : सर्वे सच है तो कह सकते हैं कि बची रहेगी प्रिंट मीडिया की परंपरा की पूंजी : वैश्विक मंदी और लगातार घटती विज्ञापन की कमाई के कारण अमेरिका-यूरोप के अखबारों से कर्मचारियों की छंटनी और खर्चे में कटौती वाली खबरों की बाढ़ ने भारतीय मीडिया उद्योग और उसमें कैरियर चाहने वालों की निराशा ही बढ़ाने में मदद दी है। रही-सही कसर भारतीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के विकास का कथित गुब्बारा फूटने की घटना ने पूरी कर दी है। ऐसे में विकसित देशों में ये सवाल सामने है कि अखबारों का दम क्या आखिरी बार फूल रहा है, जिसके बाद जिंदगी नहीं, अंतिम सांस ही होती है। इसका जवाब हां में है तो निश्चित तौर पर मीडिया क्षेत्र के लिए भयावह स्थिति होगी। पर निराशा के गर्त में डूबे पत्रकारों और मीडिया हाउसों को अंतरराष्ट्रीय एजेंसी प्राइसवाटर हाउसकूपर कंपनी की ताजा रिपोर्ट राहत दे सकती है। वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ न्यूजपेपर्स यानी वैन की पहल पर किए गए एक सर्वे की रिपोर्ट अक्टूबर 2009 में प्रिंट उद्योग के लिए उम्मीदों का नया झोंका बनकर आई है। 4900 अखबारी उपभोक्ताओं, तीस मीडिया हाउसों और दस बड़े विज्ञापनदाताओं पर किए इस सर्वे की रिपोर्ट परेशान हाल अखबारी संस्थानों को राहत देने के लिए काफी है। पश्चिमी दुनिया में अखबारों के लगातार घटते सर्कुलेशन के लिए इंटरनेट को ही जिम्मेदार माना जा रहा है।

उमेश को मदन मोहन मालवीय महामना पत्रकारिता पुरस्कार

[caption id="attachment_16660" align="alignleft"]उमेश चतुर्वेदीउमेश चतुर्वेदी[/caption]वरिष्ठ पत्रकार उमेश चतुर्वेदी को महामना मदन मोहन मालवीय पत्रकारिता पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। महामना की जयंती पर विगत 24 दिसंबर को मेवाड़ इंस्टीट्यूट के सभागार में तमिलनाडु और असम के पूर्व राज्यपाल भीष्म नारायण सिंह ने अंगवस्त्रम ओढ़ाकर सम्मानित किया। पुरस्कार स्वरूप उन्हें 5100 रूपए की राशि और सम्मान पत्र भी दिया गया।

अंधेरे खोह में भटकती पत्रकारिता शिक्षा

उमेश चतुर्वेदीतकनीकी शिक्षण का अपना एक अनुशासन होता है, उसकी अपनी जरूरतें होती हैं। यही कारण है कि इंजीनियरिंग और मेडिकल की ना सिर्फ शिक्षा हासिल करना, बल्कि उनकी शिक्षा देना बेहद चुनौतीभरा काम माना जाता रहा है। अब प्रबंधन की शिक्षा के साथ भी वैसा ही हो रहा है क्योंकि प्रबंधन भी एक तरह से तकनीक ही है, सिर्फ अकादमिक शिक्षण या पढ़ाई भर नहीं है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि पत्रकारिता की पढ़ाई और उसका शिक्षण तकनीकी शिक्षण-प्रशिक्षण के दायरे में आता है या नहीं। जाहिर है ज्यादातर लोग इसका जवाब हां में ही देंगे। पत्रकारिता की पढ़ाई करने आ रहे छात्र और उनके अभिभावक कम से कम इसे तकनीकी शिक्षण और प्रशिक्षण के दायरे में मान रहे हैं।