हिंदुस्तान के पश्चिमोत्तर सीमान्त से शुरू हो कर समूचे देश में अपनी पहचान बनाने वाला लोकमत अब उत्तर प्रदेश में आपके बीच है. लोकमत के प्रकाशन का इतिहास आजाद भारत के इतिहास के बरक्स है. स्वाधीनता आंदोलन के संदेशवाहक के रूप में लोकमत का प्रकाशन अघोषित अनियतकालीन पत्र के रूप 1936 में मुंबई में पहली बार आरंभ किया। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. अम्बालाल माथुर ने जिस जनसरोकारी पत्रकारिता की शुरुआत की वह आज तक बदस्तूर जारी है.
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प्रणय आज लखनऊ आ रहा है, मगर सिर्फ याद बनकर
प्रणय मोहन का जिंदादिल मिजाज़ ही उसके बिछड़ने का सबसे बड़ा दुःख है… बेलौस बातें करने वाला प्यारा इंसान… ज़िन्दगी को अपनी शर्तों पर चलाने की जिद मगर इमोशनल ब्लैकमेल होने के लिए सबसे उपयुक्त किरदार… और बहुतों ने उसके साथ यही किया. जिन साथियों को आगे बढ़ाने के लिए प्रणय ने अपने संबंधों को दांव पर लगाने में देरी नहीं की, उन्होंने काम होने के बाद प्रणय को किनारे करने में बिलकुल देरी नहीं की.
‘लोकमत’ हिंदी दैनिक अब यूपी में, उत्कर्ष सिन्हा आरई बने, कई अन्य लोग भी जुड़े
१९४७ से भारत के पश्चिमोत्तर सीमांत से प्रकाशित होने वाला हिंदी दैनिक “लोकमत” अब उत्तर प्रदेश में अपनी उपस्थिति दर्ज कराएगा. लखनऊ संस्करण के प्रकाशन का संभावित समय मई माह होगा. पहले चरण में अखबार कानपुर से गोरखपुर तक १८ शहरों में जायेगा. लंबे समय से पत्रकारिता और सामाजिक आंदोलनों में सक्रिय रहे उत्कर्ष सिन्हा इसके स्थानीय संपादक होगे. लोकमत के डीएनई पद पर शबाहत हसन विजेता और डीएनई (फीचर) पद पर रेखा तनवीर में ज्वाइन कर लिया है.
रोहित पाण्डेय चले गये
[caption id="attachment_19728" align="alignleft" width="85"]रोहित पांडेय[/caption]बीती रात को दिल्ली के राममनोहर लोहिया अस्पताल में पूर्वांचल के प्रखर युवा पत्रकार रोहित पाण्डेय की मृत्यु हो गयी. उनके जीवन में चालीसवां बसंत आने वाला था. रोहित के दोनों गुर्दे पिछले दो वर्षों से ख़राब हो गए थे. बीमारी में जाने से पहले रोहित गोरखपुर में हिंदुस्तान अखबार से जुड़े थे पर बाद में प्रबंधन ने उनकी सेवाएं लेना बंद कर दिया था.
सूटेड-बूटेड गणतंत्र की पीठ पर कुबराडीह का कूबड़
: कुबराडीह की चिट्ठी गणतंत्र के नाम : हां, प्यारे गणतंत्र, तुम्हारे समृद्धि के ये वाहक विश्वनाथ, सिंगारी और गंगिया पिछले कुछ सालों में बेकारी और भूख से मर गये : मेरे प्यारे गणतंत्र, एक बात जरूर याद रखना… गांवों से अगर तुमने रिश्ता तोड़ा है तो सूट तुम भले ही जितने अच्छे पहन लो लेकिन तुम्हारी पीठ पर कुबराडीह का कूबड़ हमेशा दिखाई देता रहेगागा, वैसे, सालगिरह की फिर बधाई… :
डिजाल्व होती तस्वीरों के बीच बाल वेश्यावृत्ति
“मां सुनाओ मुझे वो कहानी, जिसमें राजा न हो ना हो रानी… जो हमारी तुम्हारी कथा हो, जो सभी के दिलों की व्यथा हो… गंध जिसमें भरी हो धरा की, बात जिसमें न हो अप्सरा की… हो न परियां जहां आसमानी, मां सुनाओ मुझे वो कहानी।”…सिर्फ यही लाइने गूंज रही है। तबसे जबसे कि उन्होंने मुझे बाल वेश्यावृत्ति पर लिखने को कहा। एक ऐसी कहानी सुनाना जिसमें कहानी जैसा तो कुछ है भी नहीं। भला सूनी आंखों में सितारे झिलमिलाते दिखाई देंगे? अगर यही कन्ट्रास्ट नहीं बन पायेगा तो कहानी कैसे बनेगी? खैर..। विरोधाभास, उलझन, हताशा के बीच से शुरुआत ऐसे ही हो सकती है।
मौत का तांडव और सरकारी उदासीनता
मई-जून में मानसून की दस्तक के साथ ही उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में बसे गावों की हर मां के चेहरे पर एक अनजाना खौफ पसर जाता है। सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहली से परेशान इन गांवों के लोग स्थानीय देवी-देवाताओं की मनौतियां मानने लगते हैं। सिर्फ एक आपदा से बचने के लिए, गौर कीजिए ये आपदा बाढ़ नही, सूखा नही, भूकम्प नहीं सिर्फ जापानी बुखार की बीमारी है। मानसून की दस्तक होने के साथ ही इस क्षेत्र के इकलौते मेडिकल कालेज- जो गोरखपुर में स्थित है- के बाल रोग विभाग में रोजाना बच्चों के मरने की गणनाएं शुरू हो जाती है और उसमें साथ ही शुरू होती हैं जापानी इन्सेफलाइटिस की चर्चाएं।
हरित क्रान्ति का टूटता इन्द्रजाल
कुछ दिन पहले किसान यात्रा के दौरान पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हरे-भरे खेतों को देखते हुए साथी किसान से क्षेत्र की समृद्धि की चर्चा की तो जो उत्तर मिला उसने हरित क्रान्ति के इन्द्रजाल को एक झटके से तोड़ दिया। किसान ने कहा था यह खेत हरे-भरे जरूर हैं लेकिन हकीकतन ये सभी फसल गिरवी पड़ी है। इस छोटे से जवाब ने बहुत सारे सवालों को जन्म दे दिया। आईये इसी सन्दर्भ में कृषक भारत के इतिहास की सबसे बड़ी घटना हरित क्रान्ति की पड़ताल करते हैं ।
एक नदी की अकाल मौत
पहचानना मुहाल है शोलों की शक्ल का… हम आग से बचे थे और पानी से जल गए…शायर ने जब ये चंद लाइनें कोरे कागज पर उकेरी होंगी तो उसके जेहन में शायद आमी नदी के प्रदूषण की पीड़ा का अहसास भी न रहा हो, लेकिन मैली हो चुकी गांव की गंगा से सटे गांव के लोगों की आंखों में बेबसी को पढ़े तो ये लाइनें सटीक बैठती हैं। यहां के लोगों के लिए जीवनदायनी जल आग के शोलों से कम नहीं है। प्रदूषण से कराह रही आमी के दर्द का अहसास ही है कि नदी के किनारे के गांव जरलही निवासी रामदास को अंदर तक ऐसा झकझोरा की उन्होंने वर्ष 1995 में अन्न छोड़ने का प्रण ले लिया।
किसानी बचाने के लिए एक कदम
: 2 अक्टूबर से शुरू किसान स्वराज यात्रा 20 राज्यों से होते हुए 11 दिसंबर को राजघाट, दिल्ली पहुंचेगी : नफस-नफस कदम कदम, बस एक फिक्र दम ब दम… घिरे हैं हम सवालों से हमें जवाब चाहिए…….. जवाब दर सवाल हैं के इन्कलाब चाहिए……… यह दौर खेती करने और अन्न उपजाने वालों के लिए बेहद खतरनाक दौर है। देश में कृषि योग्य भूमि किसानों से छीनी जा रही हैं। बीज खाद का राक्षस किसानों को लूट रहा हैं। सरकार की कृषि नीति के जरिए गॉव और किसानों के बजाय शहर और व्यापार को बढत दी जा रही हैं। खेती और किसान दोनो चौतरफा संकट से घिरे हैं, सरकार द्वारा खेती की उपजाऊ जमींन मनमाने ढ़ग से अधिग्रहित किया जाना, बीज उर्वरक एवं कीटनाशकों पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के आधिपत्य स्वीकार कर किसानों की आत्मनिर्भरता खत्म करना, कृषि क्षेत्र को बाजार के हवाले कर ऐसे हालात पैदा करना जिसमें किसान लूटे, पीटे और कर्जदार बनें। ये कुछ स्थितियां है जो बताती है कि देश में किसान और किसानी बुरी तरह संकटग्रस्त हैं और केन्द्र सरकार की नीतियों से यह संकट लगातार गहराता जा रहा है।
एक बीहड़ जीव और उसका जीवन दर्शन
[caption id="attachment_18501" align="alignleft" width="151"]आशीष बाबू[/caption]: सीएमएस और चुटिया : लगता है कुछ लोग नौकरी के लिए बने ही नहीं होते हैं, ये लोग तो राजा होते हैं, अपने मन के राजा, अपनी दुनिया के बादशाह, अपनी मर्जी के मालिक. खुदा ने सामान्य लोगों को बनाया है सामान्य से कार्य करने के लिए, घर-दुआर देखने के लिए, लोगों के आगे-पीछे घूम कर अपने छोटे-बड़े काम निकलवाने के लिए और इन्ही बातों के उधेड़-बुन में अपने आप को रमाये रखने के लिए.