हिंदुस्तान के पश्चिमोत्तर सीमान्त से शुरू हो कर समूचे देश में अपनी पहचान बनाने वाला लोकमत अब उत्तर प्रदेश में आपके बीच है. लोकमत के प्रकाशन का इतिहास आजाद भारत के इतिहास के बरक्स है. स्वाधीनता आंदोलन के संदेशवाहक के रूप में लोकमत का प्रकाशन अघोषित अनियतकालीन पत्र के रूप 1936 में मुंबई में पहली बार आरंभ किया। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. अम्बालाल माथुर ने जिस जनसरोकारी पत्रकारिता की शुरुआत की वह आज तक बदस्तूर जारी है.
स्वाधीनता आंदोलन के संदेशवाहक के रूप में लोकमत का प्रकाशन अघोषित अनियतकालीन पत्र के रूप में 1936 में मुंबई से पहली बार आरंभ किया। 1940 तक महाराष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों में स्वाधीनता आंदोलन की आवश्यकता के अनुसार यह प्रकाशित होता रहा। राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन जैसे जैसे तेज हो रहा था, लोकमत से जुड़े लोगों को भी तितर-बितर होना पड़ता रहा। 1941 में लोकमत के कुछ अंक सिंध, कराँची में भी प्रकाशित हुए। 1942 में स्वतंत्रता सेनानी स्व. अंबालाल माथुर को अजमेर में ब्रिटिश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया गया। उनके पास रूस की क्रान्ति का साहित्य तथा उनके द्वारा लिखित ‘रूस पर रोशनी’, ‘मीरा’ का शहीद अँक व हरिजन अँक इत्यादि क्रान्तिकारी प्रकाशन पकड़ा गया। अजमेर में नई नई स्थापित अमर प्रेस को ब्रिटिश पुलिस ने जब्त कर लिया। लोकमत कभी छोटा तो कभी बड़ा, कभी साइक्लोस्टाइल पर मुद्रित होकर वितरित होता। कलकत्ता में लोकमत के कुछ अंक छप कर नेपाल भी गए। राजस्थान से संबंधित प्रवासी लोगों के बीच में लोकमत संदेशवाहक का कार्य करता रहा।
कानपुर और आगरा जब आंदालनकारियों के केन्द्र बने, तो लोकमत ने कुछ हलचल वहाँ भी की। स्वाधीनता आंदोलन ही लोकमत का एकमात्र उद्देश्य था। ब्रिटिश तंत्र की विदाई ने समाचार पत्रों को भी खुली हवा में साँस लेने का एक अवसर दिया। राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्र बीकानेर में लोकमत को विधिवत प्रकाशित करने के लिए कार्यवाही आरंभ की गई। कलकत्ता के व्यवसाई भँवर लाल रामपुरिया तथा मुंबई के व्यवसाई खुशाल चंद डागा ने इस काम को आगे बढ़ाया। दोनों ही बीकानेर के निवासी थे। स्वाधीनता सेनानी स्व. अंबालाल माथुर भी बीकानेर पहुँचे और लोकमत का विधिवत प्रकाशन आरंभ होने लगा। यह वो वक्त था जब प्रजा परिषदें बन रहीं थीं और राजस्थान के निर्माण की कार्यवाही भी चल रही थी। देशी रियासतों का भारत में विलय और लोकतंत्र की स्थापना लोकमत के लिए एक नई विषय-वस्तु थी। इस पर चलते हुए लोकमत ने वैधानिक साप्ताहिक समाचार पत्र की शक्ल ले ली थी। बीकानेर रियासत का भारत में विलय हो जाने के बाद लोकमत ने आबू अंक निकाल कर राजस्थान में आबू पर्वत को शामिल करने की माँग उठा डाली। लोकमत के दस्तावेजों के आधार पर आबू को राजस्थान का अंग माना गया। तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल ने लोकमत की सशक्त वकालात को स्वीकारा।
स्वाधीनता के नए माहौल में महात्मा गाँधी के ग्राम स्वराज्य की अवधारणा पर लोकमत ने कार्य आरंभ किया। 1969 में लोकमत दैनिक के रूप में प्रकाशित होने लगा। भूमिहीन गरीब किसानों को नहरी क्षेत्र में सस्ती कृषि भूमि देने की माँग को ले कर लोकमत एक बड़े किसान आंदोलन का प्रवक्ता बन गया। यही वह दौर था जब लोकमत जयपुर से भी प्रकाशित होने लगा। लोकमत ने अपने 71 वर्ष की लंबी यात्रा में किसी सरमायदार तथा औद्योगिक घरानों की दासता नहीं स्वीकारी। इसी दिशा में एक और कदम लोकमत का लखनऊ संस्करण है। हमारी कोशिश रहेगी कि लोकतंत्र में जो दोष रह गए हैं, उन्हें लोकमत साफ करने का बीड़ा उठाए।
आज के कठिन दौर में जब अखबार बाजार के दबाव में या तो आ चुके है या फिर उससे जूझने की कवायद में जुटे है उस समय जन पक्षीय पत्रकारिता को लोकमत ने पिछले इकहत्तर वर्षों से सहेज कर रखा है. हम ये दावा कतई नहीं करते की पत्रकारिता की परिभाषा बदलने वाले हैं पर यह भी सही है की हम खांटी पत्रकारीय मूल्यों से समझौता नहीं करेंगे. हमारी प्राथमिकता आम आदमी है और हमारी खबरों के केंद्र में भी वही होगा. शहरों और गांवों के बीच तेजी से बंटते जा रहे हिंदुस्तान में यह अखबार सामंजस्य बैठने की कोशिश हमेशा से करता रहा है और उत्तर प्रदेश के पाठकों का स्नेह हमारी इस कोशिश की ताकीद करेगा यह हमारा विश्वास है.
पाठक क्या पढ़ना चाहता है? यह सवाल हमेशा उठाया जाता है और इसी आधार पर तमाम अखबार अपनी नीतियां बनाते हैं. हमारी दृष्टि इस मामले में बिलकुल साफ है. हम आम पाठक को गंभीर मानते है और अखबार हमारे लिए महज व्यवसाय मात्र नहीं है. इसलिए हम सामाजिक सरोकारों पर हर रोज एक विशेष सम्पादकीय आयोजन करेंगे. खबरों पर आपकी प्रतिक्रिया हमें लगातार सचेत करेगी और इस पृष्ठ के लिए विषयों का चयन हमारे पाठकों के सुझाव पर किया जायेगा. सम्पादकीय पृष्ठ के लिए आलेखों का चयन करते समय हमारी दृष्टि दूर कस्बों और जिले में बैठे चिंतकों और लेखकों को हमेशा ढूंढती रहेगी. उत्तर प्रदेश के सुधि पाठकों का स्नेह और साथ ‘लोकमत’ के सफर को खुशनुमा बनाएगा और हम अपनी गंभीर पहचान बनाने में कामयाब होंगे. आपकी शुभकामनायें अपेक्षित हैं ..
लेखक उत्कर्ष सिन्हा लोकमत, लखनऊ के स्थानीय संपादक हैं.
Comments on “लोकमत : उद्देश्यपूर्ण पत्रकारिता के 71 वर्ष”
bahut khub editor ji
10 june 2011
Sri Utkarsh Sinhaji
respected sir
many thanks to you and Lokmat.
Sir,in your guidence Lokmat will complete the gaping of jurnalism in U.P.
I also want to join Lokmat as reporter from Deoria (U.P.)
I have sufficient experience in reporting. At present time I am working for PTI.
My Contact No. is 9454918198
चुनौतीपूर्ण नए सफर पर बधाइयां।
रजनीश राज, डीएनए लखनऊ।
Lokmat ke prakashan par samast lokmat pariwar ko bahut bahut badhai.
Lok mat hindustan ke vibhinn ilako me apni dhoom machane ke bad hindustan aur patrakarita ke heart u.p. me kadam rakhne ke liye koti-koti badhayi .utkarsh ji ko dher sari subhkamnaye . sudhir singh reporter –P.T.I.-BHASHA AZAMGARH (U.P.) 09454337444
व्यावसायिक बाध्यताओं के बीच पत्रकारीय प्रतिबद्धताओं को संजोये रखना सचमुच काबिल- ए- तारीफ है, हमारी शुभकामनायें स्वीकार करें.
NAI CHUNAUTI KE LIYE BADHAI
MAHENDRA PRATAP SINGH