बर्लिन। खबरों की इंटरनेट पर मुफ्त और आसान उपलब्धता का अन्य पश्चिमी देशों की ही तरह जर्मनी के अखबार उद्योग पर भी असर पड़ा है और प्रतिबद्ध पाठकों की गिरती संख्या से चिंतित वहां के अखबार बदलाव के दौर से गुजर रहे हैं। जर्मन फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट से उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, जर्मनी में फिलवक्त 350 अखबार और तीन हजार पत्रिकाएं निकलती हैं। इनमें से अधिकतर का प्रकाशन जर्मन भाषा में ही होता है, लेकिन हाल ही के वर्षों में अंग्रेजी अखबारों और पत्रिकाओं के प्रकाशन में भी इजाफा देखा गया है।
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सुशील की ओर देखा तो आंखें निकाल ली जाएंगी
सुशील कुमार सिंह हिंदी पत्रकारिता में संतों की श्रेणी में आते हैं। वे ऐसे गजब आदमी हैं कि अपने धर्म गुरु, पारिवारिक सदस्य और अपना नया पंथ चलाने वाले एक बाबा जी के नाम पर बहुत सारे दोस्तों को विदेश यात्रा करवा चुके हैं लेकिन आज तक खुद विदेश नहीं गए। एक बड़े अखबार के चीफ रिपोर्टर के नाते बहुतों का भला किया लेकिन दिवाली, दशहरे और नए साल पर उपहार देने वालों को बहुत विनम्रतापूर्वक वे उपहार सहित घर से लौटा दिया करते थे। बाद में एनडीटीवी और सहारा में भी बड़े पदों पर रहे।
आलोक तोमर ने शोभना भरतिया को लिखा पत्र
वेब जर्नलिस्ट सुशील कुमार सिंह को फर्जी मुकदमों में फंसाने की एचटी मीडिया के कुछ मठाधीशों की कुत्सित चाल के खिलाफ पूरे देश के पत्रकारों की एकजुटता का असर अब दिखने लगा है। सुशील को गिरफ्तार करने के लिए दिल्ली में कई दिनों से डेरा डाले लखनऊ पुलिस अब वापस लौट चुकी है। लखनऊ पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों को इस मामले की सत्यता के बारे में पता चल चुका है, इसलिए वो अब एचटी मीडिया के कुछ मठाधीशों की चाल और जाल में आने से इनकार कर चुके हैं। लखनऊ पुलिस देश भर के मीडिया कर्मियों के उठ खड़े होने से भी सकते में है। वह अब ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहती जिससे यूपी पुलिस की छवि पर खराब असर पड़े। उधर, रायपुर प्रेस क्लब ने आज आपात बैठक कर सुशील कुमार सिंह को फंसाए जाने की निंदा की।
सुशील प्रकरण : संघर्ष समिति को देश भर में समर्थन
दिल्ली में बनाई गई वेब पत्रकार संघर्ष समिति का देश भर के पत्रकार संगठनों ने स्वागत किया है। जनसत्ता, द इंडियन एक्सप्रेस, दैनिक जगरण, दैनिक भास्कर, अमर उजला, नवभारत, नई दुनिया, फाइनेन्शियल एक्सप्रेस, हिन्दुस्तान, दी पायनियर, मेल टुडे, प्रभात खबर, डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट व बिजनेस स्टैन्डर्ड जैसे तमाम अखबारों के पत्रकारों ने वेब पत्रकार संघर्ष समिति के गठन का स्वागत किया। हिन्दुस्तान के दिल्ली और लखनऊ के आधा दजर्न से ज्यादा पत्रकारों ने इस मुहिम का स्वागत करते हुए अपना नाम न देने की मजबूरी भी बता दी। आईएफडब्ल्यूजे, इंडियन एक्सप्रेस इम्प्लाइज वर्कर्स यूनियन, जर्नलिस्ट फार डेमोक्रेसी, चंडीगढ़ प्रेस क्लब और रायपुर प्रेस क्लब ने इस पहल का समर्थन किया है और सुशील को फर्जी आपराधिक मामले में फंसाने की आलोचना की है।
सुशील प्रकरण : वेब पत्रकार संघर्ष समिति का गठन
एचटी मीडिया में शीर्ष पदों पर बैठे कुछ मठाधीशों के इशारे पर वेब पत्रकार सुशील कुमार सिंह को फर्जी मुकदमें में फंसाने और पुलिस द्वारा परेशान किए जाने के खिलाफ वेब मीडिया से जुड़े लोगों ने दिल्ली में एक आपात बैठक की। इस बैठक में हिंदी के कई वेब संपादक-संचालक, वेब पत्रकार, ब्लाग माडरेटर और सोशल-पोलिटिकिल एक्टीविस्ट मौजूद थे। अध्यक्षता मशहूर पत्रकार और डेटलाइन इंडिया के संपादक आलोक तोमर ने की। संचालन विस्फोट डाट काम के संपादक संजय तिवारी ने किया। बैठक के अंत में सर्वसम्मति से तीन सूत्रीय प्रस्ताव पारित किया गया। पहले प्रस्ताव में एचटी मीडिया के कुछ लोगों और पुलिस की मिलीभगत से वरिष्ठ पत्रकार सुशील को इरादतन परेशान करने के खिलाफ आंदोलन के लिए वेब पत्रकार संघर्ष समिति का गठन किया गया।
गासिप अड्डा में खबर पर सुशील के घर पुलिस पहुंची
राजनीति से लेकर धर्म-अध्यात्म और मीडिया से जुड़ी सत्य और कहीं न प्रकाशित होने वाली घटनाओं को विश्लेषणात्मक अंदाज में अपनी वेबसाइट गासिप अड्डा डाट काम पर पब्लिश करने वाले पत्रकार सुशील कुमार सिंह पुलिस के शिकंजे में आते दिख रहे हैं। बताया जा रहा है कि गासिप अड्डा डाट काम के मीडिया गासिप कालम में दैनिक हिंदुस्तान, लखनऊ से जुड़ी एक खबर प्रकाशित करने पर उनके खिलाफ लखनऊ में मुकदमा दर्ज करा दिया गया है। मीडिया से जुड़े लोगों द्वारा मुकदमा दर्ज कराने पर पुलिस ने आनन-फानन में एक टीम सुशील कुमार सिंह के दिल्ली स्थित उनके आवास पर भेज दिया। भड़ास4मीडिया प्रतिनिधि ने सुशील कुमार सिंह से मोबाइल पर संपर्क किया और उनसे पूरे मामले की जानकारी ली। उन्होंने स्वीकार किया कि पुलिस उनके घर के बाहर खड़ी है।