टीवी की दुनिया में खूब अजब-गजब होता है। कुछ वैसे ही जैसे खबरिया चैनलों पर चौबीसों घंटे अजब-गजब की खबरें दिखती रहती हैं। कभी नोएडा को बंदर खा जाता है तो कभी तेल लगाने के मुद्दे पर तेलंगाना राष्ट्र समिति नेता चंद्रशेखर राव यूपीए से कुट्टी कर लेते हैं। गजब तो तब हो गया जब जब हीथ्रो हवाई अड्डे पर जहाज ने पायलट को ही कुचल दिया। खूब माथा-पच्ची करने पर भी समझ न आया कि पायलट ने खुदकुशी की या फिर रनवे पर दौड़ लगाते जहाज से ही कूद गया।
पत्रकार मन बेचैन हो रहा था। जिस चैनल पर खबर देखी, वो भी विस्तार से कुछ नहीं बता रहा था। बस हर पांच मिनट के अंतराल पर टीवी स्क्रीन पर नीचे एक पट्टी नजर आ जाती थी- हीथ्रो हवाई अड्डे पर विमान से कुचलकर एक पायलट की मौत। खाना खाने बैठा तो भी सत्तू पराठा गले के नीचे नहीं उतर रहा था। उतरता भी कैसे। मन में कुलबुली मची थी कि आखिर पायलट पर पूरा जहाज कैसे चढ़ गया, वो भी सबके सामने। क्या हीथ्रो हवाई अड्डे पर हमारे रांची हवाई अड्डे जैसी सुविधाएं भी नहीं है। रांची में दिन में एक-दो जहाज उतरते हैं। उतरने के पहले हवाई अड्डे का एक कर्मचारी लाल जीप पर सवार होकर रनवे के आसपास चरती गाय-भैंसों को हांकता है ताकि कोई हवाई जहाज के नीचे ना आ जाये या फिर हवाई जहाज में बैठे लोगों को ऊपर ना भेज दे।
जब मन शांत नहीं हुआ तो उस चैनल में काम कर रहे एक पत्रकार मित्र को फोन खड़का दिया। सोचा, आखिर दोस्ती किस काम की। पहले उसका हाल पूछा फिर पायलट की चाल का। बात उसे भी कुछ समझ नहीं आई जबकि वो खुद टीवी न्यूजरूम में मौजूद था। उसने मुझे भरोसा दिलाया कि जल्द ही वो खबर की तफ्तीश कर मेरे अशांत मन को शांत करेगा। उसने दोस्ती निभाई भी। तफ्तीश के बाद उसने जो जानकारी दी, उसे सुनकर मैंने माथा पकड़ लिया। इस बीच पायलट वाली खबर टिकर (नीचे की घूमंतू पट्टी) से हटा ली गई थी। इसलिए नहीं कि खबर बासी हो गई थी बल्कि इसलिए कि खबर का अनुवाद गलत हो गया था। दरअसल पायलट की मौत हीथ्रो हवाई अड्डे से बाहर निकलते समय कार से कुचलकर हुई थी। अंग्रेजी में कहीं से कोई छोटी-सी खबर आई थी और जल्दी में किसी ने गजब ढा दिया।
टीवी चैनलों में काम करनेवालों के पास अपनी गलतियों को ढंकने का एक ही बहाना है– टीवी न्यूजरुम में बहुत प्रेशर रहता है भाई। शिफ्ट खत्म होने के बाद दफ्तर से निकलता हूं तो लगता है कि स्कूल की छुट्टी हुई है।
ठीक है, भाई। प्रेशर तो मुझे भी लगता है, सुबह-सुबह। अब इसका मतलब यह तो नहीं कि बिस्तर हीं गंदा कर दूं।
अब जरा सोचिये, आपको टीवी पर यह पट्टी दौड़ती दिख जाये– नोएडा को बंदर खा गया। इसे देखकर कौन नहीं चौंकेगा। एक पूरे शहर को भला एक बंदर कैसे खा सकता है? लेकिन इस खबर ने मन बेचैन नहीं किया। दिमाग दौड़ाया तो समझ आ गया कि मामला क्या है।
दरअसल नोएडा को बुलंदशहर से जोड़ने के मुलायम सिंह सरकार के फैसले के खिलाफ उस दिन नोएडा बंद रखा गया था। लेकिन बंद शब्द के साथ रखा का र जोड़ दिया गया और खा को अलग कर दिया गया। नतीजा टीवी के पर्दे पर जो वाक्य विन्य़ास दिखा वो यही था- नोएडा को बंदर खा गया। माना कि हड़बड़ी में गलती हो गई लेकिन पूरे दो मिनट तक बंदर नोएडा को खाता रहा लेकिन न्यूजरूम में किसी टीवी पत्रकार की नजर उस गलती पर नहीं पड़ी।
हद तो तब हो गई जब एक चैनल पर एक न्यूज रीडर ने हंसते-हंसते हमें यह खबर सुनाई- तेल लगाने के मुद्दे पर टीआरएस नेता चंद्रशेखर राव ने यूपीए से अलग होने की धमकी दे डाली। माथा घूम गया लेकिन बात समझ नहीं आई, आखिर चंद्रशेखर राव को तेल लगाने का इतना शौक कब से हो गया कि वो इसके लिए इतना बड़ा राजनैतिक फैसला लेने जा रहे हैं। खैर, पड़ताल करने पर पता चला कि एक बिंदी ने चिंदी कर दी। डेस्क पर बैठे पत्रकारों ने हेडलाइन लिखते समय तेलंगाना में ल शब्द पर की बिंदी तो छोड़ी ही, कंप्यूटर के की-बोर्ड ने भी धोखा दिया। तेलगाना शब्द दो हिस्सों में बंट गया- तेल और गाना। ऐन मौके पर न्यूजरीडर ने टेली प्राम्पटर देख कर खबरें पढ़नी शुरु की तो उसे कुछ समझ नहीं आया, लेकिन उसने अपने बुद्धि बल का प्रयोग करते हुए आनन-फानन में वाक्य को अपने मन से संपादित करते हुए पढ़ा- तेल लगाने के मुददे पर टीआरएस नेता चंद्रशेखर राव ने यूपीए से अलग होने की धमकी दी।
वाह, रे टीवी पत्रकारिता।
लेखक उदय चंद्र सिंह लाइव इंडिया में एक्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर (आउटपुट) हैं। उनसे [email protected] के जरिए संपर्क किया जा सकता है।