आपने जो अपनी न्यूज़ के माध्यम से बताया है कि टीवी टुडे ग्रुप ने शराब पीकर आने वाले कर्मचारियों पर नकेल कसने की शुरुआत की है और ब्रेथ एनालाइजर के जरिए टेस्ट शुरू किया है, तो मैं इस कदम से सहमत हूं. इस कदम से कंपनी को तो फायेदा होगा ही, कर्मचारियों को भी फायेदा होगा. उनकी सेहत ठीक रहेगी. रही बात आपके द्वारा पूछे गए सवालों की तो पांचों सवालों के जवाब इस प्रकार हैं-
- मदिरा का सेवन पत्रकार के लिए अच्छा नहीं है क्योंकि पत्रकार की ड्यूटी सरकारी अधिकारी की तरह ख़त्म नहीं होती और उसे कभी भी कहीं भी जाना पड़ सकता है और आगे न मालूम कितने बड़े अधिकारी या नेता से मिलाना पड़ सकता है. पी कर ड्यूटी करने वाले पत्रकार के प्रति बाकी सभी की धारणा खराब हो जाती है .
मदिरा पीने वाले कोई ज्यादा क्रिएटिव नहीं होता. क्रिएटिव होना मदिरा से जुड़ा नहीं है क्योंकि हर किसी की कुशलता उसके अनुभव और काम करने के तरीके आदि से जुड़े होते हैं. इसमें मदिरा का कोई रोल नहीं.
नहीं, निजता का कोई उल्लंघन नहीं है. टेस्ट होना कोई निजी बात नहीं है. जिस काम और कंपनी से आप जुड़े हैं, उसकी प्रतिष्ठा और उसके नियमों का पालन करना हमारा फर्ज बनता है.
मीडिया से मदिरा को ख़त्म करना शायद ही संभव होगा क्योंकि जीतने न पीने वाले हैं, उतने ही पीने वाले हैं. पीना या न पीना हर एक की अपनी सोच है. कई लोग इसे ठीक भी कहते हैं. इसलिए इसे ख़त्म करना मुश्किल है.
अच्छी खबर लिखने का मदिरा से कोई संबंध नहीं है. मदिरा न पीने वाले भी अच्छे पत्रकार हैं. जो काम हम होश में रहकर करते हैं, वह मेरे हिसाब से ज्यदा ठीक होता है.
- चोली-दामन का रिश्ता नहीं रहा है. यह बात केवल प्रचारित की गई है. सच्चाई यह नहीं है.
हो सकता है कि कुछ मीडियाकर्मियों को मेरा सुझाव ठीक न लगे तो मुझे माफ़ करे.
करणवीर सिंह जोशी
जनरल सेक्रेटरी, सिटी प्रेस क्लब, संगरूर, पंजाब
मदिरा पीने वाले कलम के सच्चे सिपाही नहीं
मीडिया में मदिरा की अहमियत को बढ़ाने वाले कलम के सच्चे सिपाही हो नहीं सकते। ये अलग बात है कि जमाना उन्हें सम्मान देता है। आज के बदलते समय में किसी बड़े मीडिया ग्रुप में मदिरा को वर्कप्लेस में रोकने के लिए उठाए गए कठोर कदम खासकर नए पत्रकारों के लिए अच्छा संकेत है। जब हिंदुस्तान बदल रहा है तो इंडिया टुडे कैसे पीछे रह सकता है। बहरहाल मेरा साफ मत है कि पत्रकार वही है जो पूरे होश में कलम का उपयोग करे। बहरुपिये भी कला के माध्यम से कमाई करते हैं। नए दौर के पत्रकारों, समाज की दिशा को बखूबी परखो फिर आगे बढ़ो।
संदीप श्रीवास्तव
जर्नलिस्ट (प्रिंट-टीवी)
दुर्ग, रायपुर
निजता का उल्लंघन है यह
यशवंत जी, यह टेस्ट वाला फंडा अपने को थोड़ा गलत लगा. हो सकता है कि कुछ लोग पी कर माहौल ख़राब करते हों, जैसा कुछ पत्रकार भाइयों का आरोप है लेकिन इस कारण सभी को एक ही रस्सी से बांधना मैं उचित नही समझता. पी कर माहौल ख़राब करने वालों की पहचान कर उन्हें चेतावनी देने का काम करना चाहिए. और हो सकता है कि आज तक प्रबंधन ने ऐसा किया भी हो, लेकिन फिर भी यह टेस्ट वाला फंडा थोड़ा गलत है….हालांकि मैं खुद नहीं पीता लेकिन फिर भी मुझे लगता है की सभी पीने वाले एक जैसे नहीं होते..आज तक प्रबंधन के इस कदम को मैं किसी हद तक निजता के उलंघन की कैटेगरी में ही रखूँगा..
नरेश अरोड़ा
जालंधर