21 मार्च की बजाय 19 को ही मनाया यूएनआई स्थापना दिवस : न्यूज एजेंसी यूएनआई उर्फ संवाद समिति यूनाइटेड न्यूज आफ इंडिया. 21 मार्च को यह ऐतिहासिक न्यूज एजेंसी अपनी स्थापना के पचास बरस में प्रवेश कर गई. किसी संस्थान के लिए 50 साल का सफर तय करना महत्वपूर्ण होता है मगर रिटायरमेंट के बाद जनरल मैनेजर की कुर्सी पर काबिज अरूण कुमार भंडारी के लिए शायद स्थापना दिवस के कोई मायने नहीं.
तभी तो 21 मार्च को कंपनी के दिल्ली स्थित मुख्यालय में होने वाले स्थापना दिवस कार्यक्रम को 19 मार्च को निबटा दिया गया. ऐसा इसलिए क्योंकि भंडारी को अपने बेटे की शादी के लिए भोपाल जाने की जल्दी थी. कुछ कर्मचारियों का कहना है कि अच्छा हुआ भंडारी जी प्रधानमंत्री नहीं बने वरना 15 अगस्त को वे दस अगस्त के दिन ही मनवा देते.
पांच महीने से वेतन, तीन साल से एलटीए और कई भत्ते नहीं मिलने से कर्मचारी दाने-दाने के लिए मोहताज हैं. जी समूह को मुकदमेबाजी के जरिए यूएनआई से बाहर का रास्ता दिखाने वाले कंपनी के सबसे बड़े शेयरधारक कोलकाता के आनंद बाजार पत्रिका समूह की भी यूएनआई पर अपना वर्चस्व बनाये रखने से ज्यादा कोई दिलचस्पी नहीं नजर आती. एबीपी की कारगुजारियों से खिन्न दस में से आठ डायरेक्टर कंपनी के बोर्ड से पिछले दो ढाई बरस में अलग हो चुके हैं. बोर्ड में अब बस तीन डायरेक्टर हैं जिनमें से एक की अभी दो-तीन महीने पहले ही एन्ट्री हुई है. एबीपी के उपाध्यक्ष दीपांकर दास पुरकायस्थ बोर्ड के चैयरमैन हैं जबकि एके भंडारी के खासमखास नवभारत, भोपाल के प्रफुल्ल माहेश्वरी डायरेक्टर हैं.
जानकारों के अनुसार भंडारी ने इस बार अपना टीए पक्का करने के लिए 21 मार्च को भोपाल में जिला संवाददाताओं की एक बैठक भी की जिसमें यूएनआई टीवी के बारे में बड़ी-बड़ी बातें की गईं. पिछले साल संस्था की वर्षगांठ के नाम पर प्रकाशित की गई स्मारिका में बीस प्रतिशत कमीशन देने का लिखित आश्वासन देकर जुटाये गये करीब एक करोड़ रुपये के विज्ञापन के बदले में ज्यादातर कर्मचारियों को तो अब तक भी कुछ नहीं मिला है जबकि भंडारी अपनी पत्नी सुमन भंडारी के नाम पर 70 हजार रुपये भी खाते से निकाल चुका है.
डेढ साल के अपने कार्यकाल में सिर्फ झूठ-फरेब के सहारे कुर्सी पर टिके भंडारी करीब एक साल पहले विरोध के स्वर तेज होने पर ‘आप लोग नहीं चाहेगे तो मैं कंपनी छोड दूंगा’ कहता था लेकिन अब चौतरफा ‘भंडारी इस्तीफा दो’ और ‘भंडारी वापस जाओ’ की मांग उठने व कर्मचारियों द्वारा कई बार आमने-सामने बैठकर उनसे कंपनी छोड़ देने का अनुरोध करने पर भी भंडारी गद्दी नहीं छोड़ रहा. फिलहाल नया शिगूफा रशियन टीवी से समझौता कर कंपनी की ‘भलाई’ करने का है.
कंपनी मैनेजमेन्ट को यह बात समझ लेनी चाहिए कि अगर हर महीने में 12 से 15 दिन कंपनी के खर्च पर भोपाल में अपने परिवार के साथ समय व्यताती करने वाले भंडारी को अब भी बर्दाश्त किया जाता रहा तो बहुत देर हो जायेगी. भंडारी द्वारा पिछले डेढ़ साल में टीए तथा अन्य मदों में कंपनी से निकाले गये करीब 50 लाख रुपयों की वसूली भी होनी चाहिए तथा इस बात की जांच होनी चाहिए कि जब कंपनी के कर्मचारी भुखमरी के कगार पर पहुंच चुके हैं तो किसके इशारे पर कुछ लोग एडवांस के रूप में मार्च तक का वेतन प्राप्त कर चुके हैं?
यूएनआई के एक वरिष्ठ कर्मचारी के पत्र पर आधारित