पत्रकारों और गैर-पत्रकारों को अंतरिम राहत दिलाने की जो लड़ाई बनारस में चल रही है, उसके संबंध में एक सूचना है। बनारस के ज्यादातर अखबारों ने अपर श्रमायुक्त कार्यालय में वह सूची दाखिल कर दी है जिसमें अंतरिम राहत पाने वाले कर्मचारियों के नाम व अंतरिम राहत दिए जाने के अन्य डिटेल दर्ज हैं। ज्यादातर अखबारों ने तोड़मरोड़ कर और कागजी खानापूरी के मकसद से सूची दाखिल की है। सूत्रों के अनुसार हिंदुस्तान प्रबंधन ने बनारस में केवल आठ कर्मचारियों को स्थायी बताया और इनको अंतरिम राहत दे दिए जाने की बात कही है। हिंदुस्तान की तरफ से कहा गया है कि शेष स्टाफ कांट्रैक्ट पर काम कर रहे हैं इसलिए वे अंतरिम राहत के दायर में नहीं आते। अमर उजाला ने 50 लोगों की लिस्ट जारी की है जिन्हें अंतरिम राहत दिया गया है। अखबार ने कहा है कि उसने अपने कर्मियों को 15 प्रतिशत अंतरिम राहत दे दी है और शेष राशि आगे दे दिया जाएगा। दैनिक जागरण ने करीब 100 कर्मचारियों की सूची जारी की है।
अंतरिम राहत के बारे में जागरण का कहना है कि वह पहले से ही वेज बोर्ड की अनुशंसा से ज्यादा भुगतान कर रहा है। सूत्रों के मुताबिक जागरण प्रबंधन बेसिक का 30 फीसदी अंतरिम राहत देने की जगह तोड़-मरोड़कर जवाब देकर श्रम विभाग को संतुष्ट करने में लगा है। आज अखबार ने बताया है कि उसके 28 कर्मचारियों को 700 रुपये ज्यादा दिए जा रहे हैं तो 21 प्रतिशत अंतरिम राहत के बराबर है। एक मात्र न्यूज एजेंसी पीटीआई ही ऐसा संस्थान है जो जनवरी 2008 से अभी तक का एरियर अपने कर्मियों को दे चुका है। समाचार पत्र पत्रकार गैर-पत्रकार कर्मचारी यूनियन के महासचिव एडवोकेट अजय मुखर्जी उर्फ दादा का कहना है कि वे अखबारों द्वारा पेश की गई सूची से संतुष्ट नहीं है। इसमें काफी कुछ गड़बड़झाला है। वे लोग जल्द ही इन सूचियों की असलियम अपर श्रमायुक्त कार्यालय को बताएंगे।
ज्ञात हो कि पिछले दिनों बनारस के सभी अखबारों के मालिकों के प्रतिनिधि और यूनियन व संघ के प्रतिनिधि अपर श्रमायुक्त कार्यालय में बैठक हुई थी। अपर श्रमायुक्त डीके कंचन ने बेहद सख्त रुख अपनाते हुए अखबार मालिकों के प्रतिनिधियों-प्रबंधकों को आदेश दिया कि वे अंतरिम राहत पाने वाले सभी कर्मचारियों की लिस्ट, अंतरिम राहत दिए जाने के पहले व आखिरी महीने के भुगतान का विवरण 24 अगस्त तक हर दशा में जमा करा दें। इसी क्रम में अखबारों ने यह सूची पेश की है। उस बैठक में अपर श्रमायुक्त ने धमकी दे दी थी कि अगर अखबार के सेवायोजक / प्रबंधक उच्च न्यायालय की भावना के अनुरूप कर्मचारियों को अंतरिम राहत नहीं प्रदान करते हैं तो वे हाईकोर्ट के आदेश से बंधे होने के कारण इन अखबारों पर कार्रवाई करने को मजबूर होते हुए ताला डलवा देंगे, भले ही इसके जो परिणाम हों।