: आज अखबार मैनेजमेंट झुका : 28 कर्मचारियों को परमानेंट करने की घोषणा : गांडीव में 32 लोग कार्यरत मिले जिनका पीएफ नहीं कट रहा था : हिंदुस्तान के स्ट्रिंगरों की लिस्ट निकलवाकर देखा : एक साहसी वकील ने बनारस में कार्यरत बड़े मीडिया हाउसों के अंदर की कड़वी हकीकत को सामने ला दिया और प्रशासन को कार्यवाही करने पर मजबूर कर दिया. काशी पत्रकार संघ के सहयोग से समाचार पत्र कर्मचारी यूनियन के सचिव दादा अजय मुखर्जी ने वाराणसी में स्थित कई बड़े मीडिया हाउसों में कार्यरत मीडियाकर्मियों की खराब हालत से संबंधित तथ्यवार शिकायत कई सरकारी महकमों में की थी.
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मीडिया हाउसों को चैन से न रहने दूंगा
इंटरव्यू : एडवोकेट अजय मुखर्जी ‘दादा’ : एक ही जगह पर तीन तीन तरह की वेतन व्यवस्था : अखबारों की तरफ से मुझे धमकियां मिलीं और प्रलोभन भी : मालिक करोड़ों में खेल रहे पर पत्रकारों को उनका हक नहीं देते : पूंजीपतियों के दबाव में कांट्रैक्ट सिस्टम को बढ़ावा दिया जा रहा है : जागरण ने अपने पत्रकारों का काशी पत्रकार संघ से जबरिया इस्तीफा दिलवा दिया :
अखबारों को आदेश- भुगतान अब कर दो वरना होगी वसूली
बनारस में पत्रकारों और गैर-पत्रकारों को उनका हक दिलाने की लड़ाई लड़ रहे समाचार पत्र कर्मचारी यूनियन और काशी पत्रकार संघ को एक बड़ी सफलता मिली है। बनारस के अखबारों और यूनियन व संघ द्वारा दाखिल आपत्तियों, सूचियों व तथ्यों का विश्लेषण करने के बाद श्रम विभाग के वाराणसी परिक्षेत्र के अपर श्रमायुक्त डीके कंचन ने 18 दिसंबर को तीन पन्नों का आदेश जारी किया है। शुरुआती दो पेजों में अखबारों और संघ व यूनियन की तरफ से दाखिल कागजात, तथ्यों व सूचियों का जिक्र है। आखिरी तीसरे पन्ने के आदेश में कहा गया है-
मीडियाकर्मियों के मुद्दों पर बनारस में प्रांतीय सम्मेलन
काशी पत्रकार संघ और समाचार पत्र कर्मचारी यूनियन (वर्किंग जर्नलिस्ट एंड नान वर्किंग जर्नलिस्ट) मीडियाकर्मियों की समस्याओं पर अगले महीने वाराणसी में एक प्रांतीय सम्मेलन कराने के मूड में है। इसके लिए तैयारियां शुरू हो गई हैं। सिर्फ तारीख तय होने का काम बाकी है। काशी पत्रकार संघ और समाचार पत्र कर्मचारी यूनियन की तरफ से एक अपील मीडिया संगठनों और मीडिया कर्मियों के नाम जारी किया गया है। यह अपील इस प्रकार है-
अखबारों से श्रम विभाग वसूलेगा अंतरिम राहत
बनारस में अखबारों के कर्मियों को अंतरिम राहत दिलाने की लड़ाई ने दिलचस्प मोड़ ले लिया है। अखबारों के प्रबंधन की ओर से अंतरिम राहत पाने वाले कर्मियों की जो सूची पेश की गई है, उसके समानांतर काशी पत्रकार संघ के नेता योगेश गुप्त और समाचार पत्र कर्मचारी यूनियन के नेता एडवोकेट अजय मुखर्जी ने भी अपनी एक अलग लिस्ट श्रम कार्यालय के पास पहुंचा दिया है।
अंतरिम राहत : तोड़-मरोड़ कर पेश की सूची
पत्रकारों और गैर-पत्रकारों को अंतरिम राहत दिलाने की जो लड़ाई बनारस में चल रही है, उसके संबंध में एक सूचना है। बनारस के ज्यादातर अखबारों ने अपर श्रमायुक्त कार्यालय में वह सूची दाखिल कर दी है जिसमें अंतरिम राहत पाने वाले कर्मचारियों के नाम व अंतरिम राहत दिए जाने के अन्य डिटेल दर्ज हैं। ज्यादातर अखबारों ने तोड़मरोड़ कर और कागजी खानापूरी के मकसद से सूची दाखिल की है। सूत्रों के अनुसार हिंदुस्तान प्रबंधन ने बनारस में केवल आठ कर्मचारियों को स्थायी बताया और इनको अंतरिम राहत दे दिए जाने की बात कही है। हिंदुस्तान की तरफ से कहा गया है कि शेष स्टाफ कांट्रैक्ट पर काम कर रहे हैं इसलिए वे अंतरिम राहत के दायर में नहीं आते। अमर उजाला ने 50 लोगों की लिस्ट जारी की है जिन्हें अंतरिम राहत दिया गया है। अखबार ने कहा है कि उसने अपने कर्मियों को 15 प्रतिशत अंतरिम राहत दे दी है और शेष राशि आगे दे दिया जाएगा। दैनिक जागरण ने करीब 100 कर्मचारियों की सूची जारी की है।
अंतरिम राहत दो वरना ताला डलवा दूंगा
वाराणसी के अपर श्रमायुक्त डीके कंचन ने अखबार मालिकों / प्रबंधकों को दी चेतावनी : अमर उजाला की तरफ से कहा गया- उनके यहां अंतरिम राहत दे दिया गया : श्रम विभाग ने सभी अखबारों से अंतरिम राहत भुगतान के प्रमाण और अंतरिम राहत पाने वालों कर्मचारियों की सूची 24 अगस्त तक हर हाल में पेश करने के लिए कहा :
अंतरिम राशि देने में अखबारों की टालमटोल
हाईकोर्ट के फैसले पर अभी तक अमल नहीं : इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद वाराणसी अंचल के पत्रकारों, गैर-पत्रकारों को तीस प्रतिशत बेसिक अंतरिम राहत देने में ग्यारहों प्रमुख अखबार टालमटोल कर रहे हैं। हाईकोर्ट के फैसले के बाद नोटिस जारी होने के बावजूद डीएलसी (डिप्टी लेबर कमिश्नर) के यहां हुई मीटिंगों में अब तक समस्या का कोई हल निकला है। इससे पत्रकार संगठनों का रोष बढ़ता जा रहा है। अब 11 अगस्त को अगली मीटिंग मोकर्रर की गई है, जिसमें अखबार मालिकानों को उन कर्मचारियों की सूची प्रस्तुत करनी है, जिन्हें भुगतान कर दिया गया है अथवा नहीं किया गया है। चेतावनी दी गई है कि फैसले के तीन माह के भीतर छह सितंबर 09 तक भुगतान सुनिश्चित नहीं हो जाता है तो पत्रकार संगठन फिर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे। समाचार पत्र कर्मचारी यूनियन के जनरल सेक्रेट्री अजय मुखर्जी ने भड़ास4मीडिया को बताया कि जब केंद्र सरकार ने 8 जनवरी 2008 को पूरे देश के अखबारों के लिए गजट जारी कर दिया कि पत्रकारों, गैरपत्रकारों को तीस प्रतिशत बेसिक अंतरिम राहत राशि दी जाए, फिर भी आज तक उस पर अमल क्यों नहीं हो सका है? श्रम विभाग की उदासीनता के कारण हमें हाईकोर्ट की शरण लेनी पड़ी। हाईकोर्ट ने भी हमारे पक्ष में फैसला सुना दिया कि वाराणसी के एडिशनल लेबर कमिश्नर डी.के.कंचन देय सुनिश्चित कराएं, फिर भी पिछले दो महीने से सिर्फ मीटिंगें हो रही हैं। मामले का कोई हल नहीं निकल रहा है। अभी तक पूरे देश में सिर्फ पीटीआई ने अपने कर्मचारियों को यह राहत राशि उपलब्ध कराई है।
आज अखबार पर मीडियाकर्मियों ने किया मुकदमा
एक जमाने के नामी-गिरामी अखबार ‘आज’ को कर्मचारी विरोधी नीतियों के कारण बनारस के पत्रकारों/गैर-पत्रकारों के संगठन समाचार पत्र कर्मचारी यूनियन ने न्यायालय में घसीटा है। वरिष्ठ पत्रकार गोपेश पांडेय और कार्टूनिस्ट जगत शर्मा की तरफ से यूनियन के मंत्री और वरिष्ठ वकील अजय मुखर्जी ने श्रम विभाग में मुकदमा दायर किया है। इस मुकदमें में कहा गया है कि आज अखबार का प्रबंधन दो दशक से भी ज्यादा समय से अपने यहां कार्यरत मीडियाकर्मियों को 55 साल में ही रिटायर कर देता है जबकि कानूनन 60 साल में रिटायर किया जाना चाहिए।
अंतरिम राहत 90 दिनों के भीतर दें : हाईकोर्ट
पत्रकारों और गैर-पत्रकार मीडियाकर्मियों के लिए बनारस से एक अच्छी खबर। समाचार पत्र पत्रकार गैर-पत्रकार कर्मचारी यूनियन और काशी पत्रकार संघ की तरफ से संयुक्त रूप से जो याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल की गई थी, उस पर फैसला आ चुका है। यह याचिका अखबारों में काम करने वाले पत्रकारों और गैर-पत्रकारों को कुरुप वेजबोर्ड की अनुशंसा और सरकारी गजट के अनुरूप मूल वेतन (बेसिक) का 30 प्रतिशत अंतरिम राहत 1 जनवरी 2008 से दिलाने को लेकर दायर की गई थी। समाचार पत्र पत्रकार गैर-पत्रकार कर्मचारी यूनियन और काशी पत्रकार संघ की तरफ से याचिका दायर किया था एडवोकेट अजय मुखर्जी उर्फ दादा ने। सिविल मिसलिनियस कैटगरी में दायर रिट नंबर 27339/2009 पर हाईकोर्ट ने 25 मई 2009 को फैसला सुनाया।
जब पत्रकारों को मालिक रुलाएं तो दादा बचाएं
[caption id="attachment_14833" align="alignright"]एडवोकेट अजय मुखर्जी ”दादा”[/caption]मीडिया और मुकदमा : बड़े-बड़े मीडिया हाउस जब अपने कर्मियों को जायज हक न दें तो उनसे कौन लड़े? यह सवाल अगर बनारस में कोई किसी पत्रकार से पूछे तो वो तुरंत बताएगा- अपने ‘दादा’ लड़ेंगे। ये ‘दादा’ नाम है एडवोकेट अजय मुखर्जी का। इन्हें सभी लोग प्यार से दादा कहते हैं। आपको यकीन नहीं होगा लेकिन यह सच है कि दादा ने पत्रकारों के 100 से ज्यादा मुकदमें न सिर्फ लड़े हैं बल्कि जीते भी हैं। बड़े-बड़े अखबारों के प्रबंधन को पीड़ित पत्रकारों का हक देने के लिए मजबूर किया है। पत्रकारों के बारे में वैसे भी कहा जाता है कि वह आमजन की लड़ाई तो लड़ता है लेकिन जब बात अपने अधिकारों की होती है तो वह अक्सर चुप रह जाता है। नौकरी जाने के डर से वह अपने जायज हक की मांग भी नहीं उठा पाता। मालिकों द्वारा शोषित होता हुआ वो लगातार अपने फर्ज को अंजाम देने में जुटा रहता है।