अपने साथी विनय तरुण को याद करने देश भर से कई पत्रकार 28 अगस्त को उसके पैतृक शहर पूर्णिया पहुंचे. दैनिक हिंदुस्तान, भागलपुर में कार्यरत मेधावी पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता विनय तरुण की मौत इसी साल जून महीने में रेल हादसे से हुई थी. आयोजन की रिपोर्ट आपको प्रेषित कर रहा हूं. कोशिश होगी कि इस मौके पर प्रकाशित स्मारिका उपलब्ध करा सकूं. इस अवसर पर साहित्यकार चंद्रकिशोर जायसवाल ने भी मीडिया की विसंगतियों पर एक आलेख लिखा है वह भी जल्द आपके सामने लाने की कोशिश होगी. -पुष्यमित्र
: दिवंगत विनय की याद में पूर्णिया में पत्रकारों का जमघट : पूर्णिया। कोसी मैया जहां-जहां तबाही के घाव छोड़ती वहां-वहां वह नौजवान मरहम लगाता जाता। वह विनय तरूण था, जिसने संसाधनों का रोना नहीं रोया। किसी सरकारी मदद का इंतजार नहीं किया। अपनी नौकरी की तमाम मजबूरियों के बावजूद वह जुटा रहा अपने मिशन में और आपदा की घड़ी में वह विध्वंस के बीच निर्माण के अवसर तलाशता रहा। यह लफ्ज विनय तरूण के साथी रंजीत प्रसाद सिंह के हैं। पूर्णिया में विनय तरूण की याद में आयोजित एक कार्यक्रम में प्रभात खबर, जमशेदपुर के संपादक रंजीत ने बेहद भावुक क्षणों में अपने मित्र की याद में प्रकाशित स्मारिका में ऐसी ही कई बातें रखीं। स्मारिका का विमोचन बीबीएम हाई स्कूल में पूर्णिया के वरिष्ठ साहित्यकार भोलानाथ आलोक, वरिष्ठ कथाकार चंद्रकिशोर जायसवाल और आकाशवाणी पूर्णिया के पूर्व निदेशक विजय नंदन प्रसाद की मौजूदगी में हुआ। स्मारिका में विनय तरूण के तमाम साथियों ने विनय को भावभीनी श्रद्धांजलि दी। अंतर्राष्ट्रीय मिथिला परिषद के अध्यक्ष धनाकर ठाकुर ने इस अवसर पर घोषणा की कि वे विनय की याद में अपनी संस्था की ओर से हर एक उदयीमान समाजसेवी को पुरस्कृत करेंगे।
दैनिक हिंदुस्तान में कार्यरत रहे विनय तरूण की मौत जून महीने में एक ट्रेन हादसे में हो गई। करीब दो महीने बाद पूर्णिया में साथियों का जमावड़ा लगा तो एक बार फिर आंखें नम हो गई और शब्द ने अपने मायने खो दिये। कार्यक्रम के पहले सत्र में अखलाक अहमद ने माईक पकड़ा ही था कि सिसकियां शुरू हो गई। सत्र के दौरान कई बार आंखें डबडबा आई। धीरज, बासु मित्र, कौशल ने विनय को याद किया। बहन पिंकी ने कहा आज परिवार जहां भी है, जैसा भी है उसमें विनय भैया का बड़ा योगदान है। कुछ मित्रों ने एक वृत्तचित्र के जरिए अपनी भावना का इजहार किया। इस सत्र का संचालन पुष्यमित्र ने किया।
द्वितीय सत्र में आंसुओं की जगह उन विचारों ने ली जिसे विनय तरूण ने अपनी व्यवहारिक जिंद्गी में भोगा, महसूस किया और अपने तरीके से कई बार प्रतिकार भी किया। विषय यूं तो – क्षेत्रीय प्रत्रकार- काम का बोझ, न्यूनतम वेतन और बदनामियां रखा गया था लेकिन इस बहाने पत्रकारिता और समाज के कई अंधेरे कोनों पर बहस हुई। तहलका बिहार के प्रभारी संजय कुमार झा ने जहां एकजुट हो कर इन प्रवृत्तियों का विरोध करने पर जोर दिया वहीं विजय नंदन प्रसाद ने पत्रकारों को आत्मालोचना करने की नसीहत दी। मुख्य वक्ताओं में रंजीत प्रसाद सिंह और शाहीना परवीन ने अपने विचारों से लोगों को उद्वेलित कर दिया। पूर्णिया कॉलेज के प्रोफेसर शंभू कुशाग्र ने एक व्यक्ति के रूप में विकास पर जोर दिया। इस सत्र में वरिष्ठ अधिवक्ता चंद्रानन सीतेश, रांची प्रभात खबर से आए प्रवीण कुमार, दिल्ली न्यूज 24 के साथी पशुपति शर्मा ने भी अपनी बात रखी। दूसरे सत्र का संचालन बच्चा यादव ने संभाला।
तीसरे सत्र में मुजफ्फरपुर से आए लोक कलाकारों ने लोक गायन के माध्यम से युवा पत्रकार विणय तरूण को श्रद्घांजलि दी। इस मौके पर आलोक राय, स्वरूप दास, मोना, राजीव राज, रूपेश, कौशल, पंकज, संजाय, मुकेश ने भी विनय को श्रदंजलि दी।
Comments on “रुलाता तो है लेकिन बल देता है विनय”
Karyakram me to chhutti nahi milne k karan nahi aa paya. ‘bare gaur se sun raha tha jamana,tumhi so gaye dasta kahte kahte…thanks pushya,pashupati..HARENDRA NARAYAN