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डरावनी फिल्मों का विरोध क्यों नहीं होता?

विनय बिहारी सिंहजब बात अंधविश्वास की चल रही है तो डरावनी फिल्मों की बात क्यों नहीं होती?  कोई घर भयानक और भूतहा दिखा कर उसमें तरह- तरह की घटनाएं दिखाई जाती हैं। असली जीवन में क्या किसी ने ऐसा कोई घर देखा है? मेरा जवाब है- बिल्कुल नहीं। मैं ऐसे घर के बगल में वर्षों रात को सोया हूं जिसमें एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई थी। मुझे कभी कोई भूत या प्रेत नहीं दिखा। मेरे बचपन में मेरी मां की जब मृत्यु हुई थी तो इस ललक में उन जगहों पर भी गया था जहां भूत-प्रेत होने की बात प्रसिद्ध थी। इस उम्मीद में कि मां शायद मर कर भूत ही बन गई हो। शायद उससे वहां भेंट हो जाए। 

विनय बिहारी सिंह

विनय बिहारी सिंहजब बात अंधविश्वास की चल रही है तो डरावनी फिल्मों की बात क्यों नहीं होती?  कोई घर भयानक और भूतहा दिखा कर उसमें तरह- तरह की घटनाएं दिखाई जाती हैं। असली जीवन में क्या किसी ने ऐसा कोई घर देखा है? मेरा जवाब है- बिल्कुल नहीं। मैं ऐसे घर के बगल में वर्षों रात को सोया हूं जिसमें एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई थी। मुझे कभी कोई भूत या प्रेत नहीं दिखा। मेरे बचपन में मेरी मां की जब मृत्यु हुई थी तो इस ललक में उन जगहों पर भी गया था जहां भूत-प्रेत होने की बात प्रसिद्ध थी। इस उम्मीद में कि मां शायद मर कर भूत ही बन गई हो। शायद उससे वहां भेंट हो जाए। 

हर आदमी बचपन में अपनी मां को खोकर छटपटाता है। लेकिन मुझे कहीं कुछ नहीं दिखा। बल्कि लोगों को हैरानी हुई कि यह बच्चा ऐसी खतरनाक औऱ भूतहा जगह पर चला कैसे गया?  यह मेरी बहादुरी नहीं थी, मां को खोजने का पागलपन था। जिसकी मृत्यु हो जाती है, वह लौट कर नहीं आता। सब जानते हैं। लेकिन जब मन पागल हो गया हो तो आप कुछ भी कर देते हैं। धीरे- धीरे सच्चाई स्वीकार की।

तो करोड़ो या अरबों रुपए खर्च कर जो भुतहा फिल्में बनती हैं और विदेश में ले जाकर स्पेशल इफेक्ट्स से लैस कराई जाती हैं, उनके खिलाफ तो कोई नहीं बोलता। ये फिल्में करोड़ों की कमाई करती हैं और लोग खूब देखते हैं। यह भी तो अंधविश्वास फैलाना ही है। कायदे से तो जनचेतना जगाने वाले लोगों को ऐसी फिल्मों का विरोध करना चाहिए।  टीवी तो मान लीजिए जहां बिजली है, वहां दिखती है। गांवों औऱ छोटे शहरों में तो बिजली बहुत कम रहती है। वहां लोग फिल्में देख कर ही मनोरंजन करते हैं। और ये भूतहा फिल्में वहां खूब देखी जाती हैं। दरअसल डरना भी एक तरह का मनोरंजन है। वरना लोग डरने वाली फिल्में क्यों देखते? डर पैदा कर पैसा कमाने का धंधा इतना क्यों चलता? हां, जो ज्योतिषी डर फैला रहे हैं, उनका विरोध होना चाहिए। अंधविश्वास का विरोध होना चाहिए। लेकिन इन डरावनी फिल्मों के बारे में न कभी लेख लिखा जाता है और न कोई बहस की जाती है।

लेकिन एक बात यहां कहना जरूरी है। जिनकी पूजा- पाठ में आस्था है, वे अंधविश्वासी नहीं हैं। आजकल जो पूजा-पाठ करता है, ईश्वर में विश्वास करता है, उसे भी अंधविश्वासी कहने का फैशन चल पड़ा है। जो पूजा- पाठ का मजाक उड़ाते हैं, उन्हें प्रगतिशील कहा जाता है। मेरी विनम्र सम्मति है कि जो ईश्वर को मानते हैं हमें उनका भी सम्मान करना चाहिए औऱ जो ईश्वर को नहीं मानते उनका भी सम्मान करना चाहिए। अपना- अपना विश्वास है।


लेखक विनय बिहारी सिंह कोलकाता के वरिष्ठ पत्रकार हैं और हिंदी ब्लाग दिव्य प्रकाश के माडरेटर भी। उनसे संपर्क करने के लिए [email protected] का सहारा ले सकते हैं। विनय बिहारी ज्योतिषी भी हैं।

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