जनसंदेश टाइम्‍स, बनारस में आतंरिक गुटबाजी चरम पर, राजनाथ तिवारी ने ऑफिस आना बंद किया

: भदोही एडिशन में ही नहीं छपी जिले की खबर : जनसंदेश टाइम्‍स, बनारस में कुछ भी अच्‍छा नहीं चल रहा है. संपादकीय से हटाकर एचआर में किनारे लगाए गए विजय विनीत के फिर से संपादकीय में हस्‍तक्षेप के बाद अखबार में आंतरिक कलह शुरू हो गया है. खबर है कि संपादक आशीष बागची के किसी भी मामले में स्‍टैंड न लेने के चलते अखबार की हालत दिनों दिन खराब होती जा रही है. अखबार की स्थिति भी लगातार हास्‍यास्‍पद होती जा रही है. पहली खबर यह है कि भदोही में तीन-चार दिन पहले पशु लदे ट्रक के चालक ने एक पुलिस जीप को टक्‍कर मार दिया, जिसमें एक सिपाही की मौत हो गई.

देखिए, जनसंदेश टाइम्‍स, बनारस की एक और गलती

बनारस-इलाहाबाद के कई अखबारों के पीडि़तों एवं प्रताडि़तों से तैयार जनसंदेश टाइम्‍स की टीम की गलतियां पाठकों के लिए मुश्किल का सबब बन रही हैं. टीम ही ऐसी है कि अपनी पूरी ताकत लगाने के बाद भी ढंग से त्रुटिहीन अखबार नहीं निकाल पा रही है. न्‍यूज सेंस की बात अगर छोड़ भी दें तो एक दिन भी ढंग का अखबार पाठकों को नहीं मिल रहा है. आशीष बागची के संपादकत्‍व में चल रहा यह अखबार रोज कुछ ना कुछ नया कर रहा है, जिससे अखबार की किरकिरी हो रही है. ताजा मामला इसी यूनिट से जुड़े इलाहाबाद का है.

बनारस में पत्रकारिता की हंसी उड़वा रहा है ‘जनसंदेश टाइम्‍स’

एक कहावत है 'बदनाम हुए तो क्या नाम ना होगा'। इसी कहावत पर 'जनसंदेश टाइम्स' चलते हुए मान चुका है कि कंटेंट में वो खूबी तो अब तक आ ना पायी कि लोग खुद से अख़बार को खोजकर पढ़ें। सो इसने भी ठान लिया है कि खबरों में ऐसा टाइटिल लगाओ कि लोग पढ़कर पत्रकारिता की हँसी उड़ाएं।

जनसंदेश टाइम्‍स के पत्रकार को खोज रही है पुलिस

जनसंदेश टाइम्‍स, भदोही के पत्रकार सुरेश गांधी पर अब रंगदारी मांगने का मुकदमा दर्ज करते हुए पुलिस ने तलाश तेज कर दी है। तीन दिन पहले ही सुरेश गांधी के खिलाफ गुंडा एक्ट में कार्रवाई की गई थी। मजेदार बात तो यह है कि सुरेश गांधी को इलाकाई लोग पत्रकार कम दलाल ज्यादा कहते हैं। यही कारण है कि गुंडा एक्ट में कार्रवाई के बाद अमर उजाला, दैनिक जागरण और हिन्दुस्तान तीनों अखबारों के पत्रकारों ने एसपी से मिलकर सुरेश गांधी को गिरफ्तार करने की मांग की थी। तीनों ही अखबारों में लगातार सुरेश गांधी पर हो रही कार्रवाई की खबरें भी छप रही हैं।

जनसंदेश टाइम्‍स, लखनऊ में भी सैलरी नहीं मिलने से कर्मचारी परेशान

जनसंदेश टाइम्स, लखनऊ से भी खबर है‍ कि यहां कर्मचारियों को सैलरी के लाने पड़े हुए हैं. पिछले लगभग दो महीने से एडिटोरियल छोड़कर अन्‍य विभागों के लोगों को सैलरी नहीं मिली है. कर्मचारी परेशान हैं क्‍योंकि होली सिर पर है और पैसों का कोई अता-पता नहीं है. सूत्रों का कहना है कि प्रबंधन कुछ स्‍पष्‍ट नहीं बता रहा है कि कब वो कर्मचारियों का बकाया सैलरी उपलब्‍ध कराएगा. एडिटोरियल को छोड़कर सभी विभागों के कर्मचारी मुश्किल में हैं.

जनसंदेश टाइम्‍स, गोरखपुर में सैलरी के लाले, मुश्किल में पत्रकार

जनसंदेश टाइम्स, गोरखपुर में पिछले दो महीने से कई वरिष्‍ठों को तनख्वाह नहीं मिली है। लगभग तीन चौथाई कर्मचारी सैलरी न मिलने से परेशान हैं तथा सैलरी मिलते ही अखबार को अलविदा कहने की तैयारी कर रहे हैं। शैलेन्द्र मणि त्रिपाठी के नेतृत्व मे गोरखपुर से शुरू यह अख़बार अपने प्रारंभ से ही चर्चा में है। दरअसल प्रबंधन शैलेन्द्र मणि के बड़ी-बड़ी बातों को उनकी प्रबंधन क्षमता मान बैठा और शुरुआत से यह अख़बार बिना किसी ठोस योजना के जैसे तैसे चलता रहा।

जनसंदेश टाइम्‍स के संवाददाता को चार साल की कैद

जनसंदेश टाइम्‍स, बनारस में ऐसे लोगों के हाथों में हैं. जिससे इस अखबार और पत्रकारिता दोनों का भला होना मुश्किल है. बनारस यूनिट से जुड़े चंदौली जिले से खबर है कि जनसंदेश टाइम्‍स ने एक ऐसे व्‍यक्ति को अखबार प्रतिनिधि बना रखा था, जिस जान लेवा हमला करने का आरोप था. इस मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने जनसंदेश टाइम्‍स के इस संवाददाता को चार साल कैद की सजा सुनाई है. इसके बाद यह बहस फिर तेज हो गया है कि जनसंदेश टाइम्‍स जैसे अखबार अपराध करने वालों को पाल पोस कर पत्रकारिता कर रहे हैं. 

जनसंदेश टाइम्‍स में सैलरी लेट, कर्मचारी परेशान

: अपडेट : जनसंदेश टाइम्‍स की हालत फिर खराब है. खबर है कि कर्मचारियों को जनवरी माह का वेतन अब तक नहीं मिल पाया है. पिछले काफी समय से इस अखबार में कर्मचारियों की सैलरी लेट लतीफ आ रही है. जनवरी की सैलरी अब तक कर्मचारियों को नहीं मिली जबकि फरवरी महीना भी खतम होने जा रहा है. सैलरी की अनियमितता के चलते लोग इस अखबार के भविष्‍य को लेकर कयास लगा रहे हैं. इस अखबार के लखनऊ, गोरखपुर, कानपुर, बनारस तथा इलाहाबाद के कर्मचारियों को जनवरी का वेतन नहीं मिला है.

जनसंदेश टाइम्‍स छोड़कर भारत सिंह वायस आफ मूवमेंट पहुंचे, अमर का तबादला

लखनऊ से खबर है कि दैनिक जनसंदेश टाइम्स में कई महत्वपूर्ण बीट कवर कर रहे भारत सिंह अखबार से इस्‍तीफा दे दिय है. वे अब लखनऊ से ही प्रकाशित हिन्दीं दैनिक वायस आफ मूवमेंट से जुड़़ गये हैं. भारत सिंह को इस अखबार के राज्य ब्यूरो में वरिष्ठ संवाददाता का पद सौंपा गया है. भारत सिंह उपजा से सम्बद्ध लखनऊ जर्नलिस्ट एसोसियेशन के महामंत्री भी हैं. भारत सिंह का वायस आफ मूवमेंट अखबार में ज्वाइन करना जनसंदेश टाइम्स के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है.

जनसंदेश टाइम्‍स के कर्मियों को पुलिस ने घंटों बैठाया थाने में

जनसंदेश टाइम्‍स, बनारस से खबर है कि एक व्‍यक्ति को बिना वजह पीट दिए जाने के चलते पुलिस अखबार को दो कर्मचारियों को पकड़कर थाने ले गई तथा घंटों बैठाए रखा. बाद में समझौता हो गया, जिसके बाद पुलिस ने दोनों को छोड़ दिया. खबर के अनुसार जनसंदेश टाइम्‍स, बनारस के कार्यालय में एक बैंक भी शाखा भी खुली है. इसी बैंक में पास में रहने वाले डा. दुर्गाचरण के भाई, जो पैरों से कमजोर हैं, अपने स्‍कूटर से आए तथा पास में ही उसे खड़ी करके बैंक जाने लगे.

जनसंदेश टाइम्‍स, बनारस ने ‘पत्र’ का फर्जीवाड़ा बंद किया

जनसंदेश टाइम्‍स, बनारस ने संपादकीय पेज पर 'पत्र' कॉलम में किया जाने वाला फर्जीवाड़ा बंद कर दिया है. अब यहां से कुछ नए पत्र तथा दूसरे जगह से आने वाले पत्रों को उसी नाम पते से प्रकाशन कर रहा है. इसके साथ ही अखबार ने स्‍थानीय स्‍तर पर पाठकों से पत्र भेजने के लिए सूचना प्रकाशित की है. यह सारे बदलाव भड़ास पर खबर आने के बाद किए गए हैं. इस बदलाव से कम से कम अब पाठक गलत सूचना नहीं पा सकेंगे. 

भव्‍य तरीके से जनसंदेश टाइम्‍स ने बनारस में मनाया पहला वर्षगांठ

: कई कर्मचारी हुए सम्‍मानित : जनसंदेश टाइम्‍स, बनारस के एक वर्ष 6 फरवरी को पूरे हुए. इसके उपलक्ष्‍य में शनिवार को बनारस के आइडियल टॉवर में रंगारंग कार्यक्रम के साथ भव्‍य आयोजन किया गया. कार्यक्रम के मुख्‍य अतिथि एनसीईआरटी के पूर्व चेयरमैन जगमोहन सिंह राजपूत थे. स्‍थापना दिवस परक 2013 के नाम से आयोजित इस कार्यक्रम में एक गोष्‍ठी का भी आयोजन किया गया, जिसका विषय था- काशी के विकास में मीडिया की भूमिका. इस मौके पर बनारस यूनिट में बेहतर काम करने वाले लोगों को सम्‍मानित भी किया गया. 

जनसंदेश टाइम्‍स, बनारस अपने पाठकों से कर रहा धोखा

जनसंदेश टाइम्‍स, बनारस अपने सारे यूनिटों से अलग चल रहा है. यहां खुलेआम पाठकों को गलत सूचनाएं दी जा रही हैं. जबकि इंटरनेट के जमाने में अब गलत सूचनाओं को छुपा पाना उतना आसान नहीं रहा है, फिर भी पुरातन दौर की संपादकीय टीम पाठकों को मूर्ख बनाने से चूक नहीं रही है. पढ़ने वालों को धोखा भी दे रही है. मामला एडिट पेज पर जाने वाली पाठकों की चिट्ठियों की है. जनसंदेश टाइम्‍स का एडिट पेज लखनऊ में तैयार होता है तथा जनसंदेश टाइम्‍स के गोरखपुर, बनारस, कानपुर, इलाहाबाद को भेजा जाता है. 

जनसंदेश टाइम्‍स ने मायावती को बताया सपा सुप्रीमो

क्‍या न्‍यूज एजेंसी भाषा द्वारा जारी की गई खबरों को आंख बंद करके लगा दिया जाना चाहिए. खास कर उन खबरों को जो किसी अखबार की लीड स्‍टोरी और एंकर बनाए जा रहे हों. पर कभी बसपा के नजदीकी माने जाने वाले अखबार जनसंदेश टाइम्‍स में ऐसा होता है. जनसंदेश टाइम्‍स ने भाषा की एक खबर को ज्‍यों का त्‍यों पोस्‍ट कर दिया है. पर यहां यह भी पुख्‍ता नहीं है कि यह भाषा की गलती है या जनसंदेश टाइम्‍स की तरफ से ही यह गलती की गई है. 

6 फरवरी को जनसंदेश टाइम्‍स, बनारस के एक साल पूरे, होगा रंगारंग कार्यक्रम

जनसंदेश टाइम्‍स, बनारस से खबर है कि 6 फरवरी को इस अखबार के लांचिंग के एक साल पूरे होने जा रहे हैं. इस मौके पर जनसंदेश टाइम्‍स अपना स्‍थापना दिवस मनाएगा. इसके लिए बनारस के एक होटल में रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है. यह कार्यक्रम 9 फरवरी को आयोजित किया जाएगा. अखबार के …

क्‍या वित्‍तीय वर्ष के बाद भी बनारस-इलाहाबाद में चलेगा जनसंदेश टाइम्‍स?

जनसंदेश टाइम्‍स, बनारस को लांच हुए 6 फरवरी को एक साल हो जाएंगे. इस एक साल में ही इस अखबार में अपनी जिंदगी के कई रंग देख लिए हैं. अब इस तरह के संकेत मिलने लगे हैं कि मैनेजमेंट इस अखबार को और ज्‍यादा दिन चलाने में दिलचस्‍पी नहीं ले रहा है. मालिकान की तरफ से लगातार नुकसान झेल रहे इलाहाबाद यूनिट को 31 मार्च तक बंद करने का अल्‍टीमेटम मौखिक रूप से दिया जा चुका है. बनारस में भी आसार ऐसे ही दिखने लगे हैं.