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पॉवर-पुलिस

क्योंकि वो मायावती की नहीं, मेरी मां हैं

[caption id="attachment_18303" align="alignleft" width="309"]: गाजीपुर के नंदगंज थाने के भीतर बिना अपराध जबरन बंधक बनाकर रखी गईं महिलाएं : लाल साड़ी में खड़ी मेरी मां, पैर व कूल्हे में दिक्कत के कारण लेटी हुईं चाची, बैठी हुईं दो स्त्रियों में चचेरे भाई की पत्नी हैं. एक अन्य दूसरे आरोपी की मां हैं.: गाजीपुर के नंदगंज थाने के भीतर बिना अपराध जबरन बंधक बनाकर रखी गईं महिलाएं : लाल साड़ी में खड़ी मेरी मां, पैर व कूल्हे में दिक्कत के कारण लेटी हुईं चाची, बैठी हुईं दो स्त्रियों में चचेरे भाई की पत्नी हैं. एक अन्य दूसरे आरोपी की मां हैं.[/caption]वो मायावती की नहीं, मेरी मां हैं. इसीलिए पुलिस वाले बिना अपराध घर से थाने ले गए. बिठाए रखा. बंधक बनाए रखा. पूरे 18 घंटे. शाम 8 से लेकर अगले दिन दोपहर 1 तक. तब तक बंधक बनाए रखा जब तक आरोपी ने सरेंडर नहीं कर दिया. आरोपी से मेरा रिश्ता ये है कि वो मेरा कजन उर्फ चचेरा भाई है. चाचा व पिताजी के चूल्हे व दीवार का अलगाव जाने कबका हो चुका है. खेत बारी सब बंट चुका है. उनका घर अलग, हम लोगों का अलग. उस शाम मां गईं थीं अपनी देवरानी उर्फ मेरी चाची से मिलने-बतियाने. उसी वक्त पुलिस आई. ये कहे जाने के बावजूद कि वो इस घर की नहीं हैं, बगल के घर की हैं, पुलिस उन्हें जीप में बिठाकर साथ ले गई. चाची व चाची की बहू को भी साथ ले गई. चाची के कूल्हे का आपरेशन हो चुका है. पैर व कूल्हे की हड्डियां जवाब दे चुकी हैं. सो, चलने-फिरने में बड़ी मुश्किल होती है. लेकिन हत्यारोपी मेरा चचेरा भाई है, चाची का बेटा है, सो उन्हें तो पुलिस थाने में जाना ही था.

: गाजीपुर के नंदगंज थाने के भीतर बिना अपराध जबरन बंधक बनाकर रखी गईं महिलाएं : लाल साड़ी में खड़ी मेरी मां, पैर व कूल्हे में दिक्कत के कारण लेटी हुईं चाची, बैठी हुईं दो स्त्रियों में चचेरे भाई की पत्नी हैं. एक अन्य दूसरे आरोपी की मां हैं.

: गाजीपुर के नंदगंज थाने के भीतर बिना अपराध जबरन बंधक बनाकर रखी गईं महिलाएं : लाल साड़ी में खड़ी मेरी मां, पैर व कूल्हे में दिक्कत के कारण लेटी हुईं चाची, बैठी हुईं दो स्त्रियों में चचेरे भाई की पत्नी हैं. एक अन्य दूसरे आरोपी की मां हैं.

: गाजीपुर के नंदगंज थाने के भीतर बिना अपराध जबरन बंधक बनाकर रखी गईं महिलाएं : लाल साड़ी में खड़ी मेरी मां, पैर व कूल्हे में दिक्कत के कारण लेटी हुईं चाची, बैठी हुईं दो स्त्रियों में चचेरे भाई की पत्नी हैं. एक अन्य दूसरे आरोपी की मां हैं.

वो मायावती की नहीं, मेरी मां हैं. इसीलिए पुलिस वाले बिना अपराध घर से थाने ले गए. बिठाए रखा. बंधक बनाए रखा. पूरे 18 घंटे. शाम 8 से लेकर अगले दिन दोपहर 1 तक. तब तक बंधक बनाए रखा जब तक आरोपी ने सरेंडर नहीं कर दिया. आरोपी से मेरा रिश्ता ये है कि वो मेरा कजन उर्फ चचेरा भाई है. चाचा व पिताजी के चूल्हे व दीवार का अलगाव जाने कबका हो चुका है. खेत बारी सब बंट चुका है. उनका घर अलग, हम लोगों का अलग. उस शाम मां गईं थीं अपनी देवरानी उर्फ मेरी चाची से मिलने-बतियाने. उसी वक्त पुलिस आई. ये कहे जाने के बावजूद कि वो इस घर की नहीं हैं, बगल के घर की हैं, पुलिस उन्हें जीप में बिठाकर साथ ले गई. चाची व चाची की बहू को भी साथ ले गई. चाची के कूल्हे का आपरेशन हो चुका है. पैर व कूल्हे की हड्डियां जवाब दे चुकी हैं. सो, चलने-फिरने में बड़ी मुश्किल होती है. लेकिन हत्यारोपी मेरा चचेरा भाई है, चाची का बेटा है, सो उन्हें तो पुलिस थाने में जाना ही था.

बेटा पर आरोप लगे और मां थाने पहुंचे, ऐसा कोई लिखित नियम नहीं है लेकिन पुलिस के अपने कई मौखिक व निजी नियम होते हैं, उसमें एक ये भी नियम है. चाची, चाची की बहू व मां को थाने इसलिए ले गए ताकि आरोपी चचेरे भाई को सरेंडर करा सके. मतलब, परिजनों को थाने बिठाकर इमोशनल ब्लैकमेलिंग या इमोशनल टार्चर के जरिए सरेंडर कराने का ये तरीका है यूपी पुलिस का. ताकि पुलिस को खुद हत्यारोपी पकड़ने के लिए मेहनत न करनी पड़े. रणनीति न बनानी पड़े. छापेमारी न करनी पड़े. काम से बचने का ये नायाब तरीका निकाला है यूपी पुलिस ने. खुद काम न करना पड़े, इसके लिए कई निर्दोषों की जिंदगी में दाग लगा दें, यह रणनीति है यूपी पुलिस की. खुद काम न करना पड़े इसलिए दूसरों की जिंदगी के अधिकारों को छीन लें, यह तरीका निकाला है यूपी पुलिस ने.

बिना जुर्म बुजुर्ग महिलाओं, माताओं और युवा शादीशुदा महिलाओं को पुरुष थाने में रात भर – दिन भर बिठाए रखना आईपीसी के किस सेक्शन में लिखा है, संविधान की किस धारा में लिखा है, मुझे नहीं पता. आपको पता हो तो मेरे ज्ञान में वृद्धि करिएगा. लेकिन लखनऊ में बैठे बृजलाल से लेकर गाजीपुर में कप्तानी कर रहे रवि कुमार लोकू तक को खूब पता है कि ऐसा करना, महिलाओं को बिना जुर्म पकड़कर रात में पुरुष थाने में बंधक बनाए रखना जुर्म है, बावजूद इसके, सभी में ये सर्वमान्य सहमति भी है कि आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए ऐसा किया जाना चाहिए. क्या तो पंचायत चुनाव में उपर से बहुत सख्त आदेश हैं कि अपराध हों तो तुरंत आरोपी गिरफ्तार किए जाएं.

अरे भाई, अपराध तो यूपी में बहुत बड़े बड़े हो रहे हैं, खुद मैडम मायावती सिर से लेकर पांव तक ढेर सारे अपराधों में डूबी हैं, कोर्ट-कचहरी में केस चल रहा है, लेकिन उनको तो कोई पुलिस नहीं उठाकर थाने में बिठाती है, मायावती को सरेंडर कराने के लिए उनकी मां को तो कोई पुलिस या अदालत थाने या कोर्ट में नहीं बिठाती है. फिर मेरी मां के साथ ही ऐसा क्यों?  क्या मायावती सीएम हैं, उनके पास सत्ता और पैसा है तो उनके साथ कानून अलग सुलूक करेगा और जिनके पास सत्ता व पैसा नहीं है उनके लिए कानून के नियम अलग होंगे?

ये क्या पाखंड है दोस्त!

समरथ को नहीं दोष गुसाईं, इसी तर्ज पर जितने आधुनिक समर्थ (पैसे, शासन, सत्ता, बाहुबल में दखल के हिसाब से) लोग हैं उनके अपराध अपराध नहीं और जितने असमर्थ लोग हैं (पैसे व पावर से विहीन मुझ जैसे लोग) उनका निर्दोष होने के बावजूद जीना भी मुहाल!!

ये कौन सी पालिटिक्स है पार्टनर??

पूरे 72 घंटे बाद लिख रहा हूं. तात्कालिक आवेशों व उद्वेगों से मुक्त होने के बाद. ताकि लिखने में आक्रोश व गुस्सा ज्यादा न दिखे, मूल मुद्दा व तथ्य ज्यादा उठे. मैं मायावती और उनके चेले पुलिस अधिकारियों से पूछना चाहता हूं कि वो बताएं, मेरी मां को 18 घंटे तक गाजीपुर जिले के नंदगंज थाने में क्यों बंधक बनाए रखा? मेरी मां के खिलाफ कोई एफआईआर नहीं है, मां के बेटों के खिलाफ कोई एफआईआर नहीं है, जो आरोप मेरे चचेरे भाई पर लगा है, वो कितना गलत या सही है, ये अलग मुद्दा है, लेकिन वह तो अलग परिवार का सदस्य है, उस परिवार की खेती, चूल्हा, मकान सब अलग है. कई दशक पहले बंटवारा हो चुका है. तो मेरी मां, जिनका नाम यमुना सिंह हैं, को क्यों थाने ले जाकर बंधक बनाए रखा.

चलिए, अपनी मां की बात नहीं करता. मेरे चचेरे भाई की मां व उसकी पत्नी को थाने क्यों ले जाकर 18 घंटे तक बंधक बनाए रखा. सिर्फ इसलिए कि मेरा आरोपी चचेरा भाई मां व पत्नी के थाने में बिठाए जाने की बात सुनकर इमोशनली टार्चर हो जाएगा और सरेंडर कर देगा. धिक्कार है माया राज पर. धिक्कार है कानून के ऐसे राज पर. थू-थू करता हूं यूपी पुलिस विभाग के आला अफसरों के मुंह पर. दलित और महिला, दो गुणों से संपन्न मायावती के मुख्यमंत्री बनने के बावजूद प्रदेश की आम महिलाओं के साथ ऐसा सुलूक किया जा रहा है? मेरी मां का मुद्दा है, इसलिए मैं लिख पा रहा हूं, अपनी दिल की बात कह पा रहा हूं. जाने कितनी माओं की कहानी कहीं नहीं आती होगी. जाने कितनी माएं थाने में आंसू इसलिए बहाती होंगी क्योंकि वे किसी ऐसे बेटे की मां है जिसके खिलाफ एफआईआर है और वो पुलिस के हाथ नहीं लग रहा, सो, निकम्मी पुलिस और भ्रष्ट पुलिस अधिकारी माताओं-बहनों को थाने में बिठाकर किसी बहेलिये की तरह आरोपी के थाने में आकर सरेंडर करने का इंतजार करते रहते हैं.

कानून की मूल आत्मा क्या है. यही न कि बेगुनाह को गलती से भी कोई सजा न मिले. सौ अपराधी भले छूट जाएं लेकिन कोई निर्दोष न सजा पाए. अपराधी को सुधार, हृदय परिवर्तन का मौका दिया जाए. अपराधी कोई एलियन तो होते नहीं, वे भी इसी धरती के लोग हैं जो हालात व संगति के कारण अपराधी बन जाते हैं, गलत कदम उठा लेते हैं. उनमें सुधार की अपार संभावनाएं होती हैं. लेकिन इन पुलिस वालों का क्या करें, जो अपराधियों का हृदय परिवर्तन कर शराफत की जिंदगी जिलाने की बजाय खुद अपराधी बनते जा रहे हैं और लाखों करोड़ों निर्दोष लोगों को न सिर्फ अवैध तरीके से प्रताड़ित कर रहे हैं बल्कि उन्हें अपराधी बनने को मजबूर कर रहे हैं.

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मैं दिल्ली में हूं, दुनियादारी में हूं, बावजूद इसके, कुछ न कर सका. मां थाने से तभी छूट सकीं, जब चचेरे भाई ने सरेंडर कर दिया. लेकिन जो दूसरा हत्यारोपी है, जिस पर शक है कि उसी ने हत्या को अंजाम दिया, वो अब भी फरार है. क्योंकि पुलिस पर उसका कोई वश नहीं चलता. मेरे गांव के उस लड़के पर पुलिस ने ईनाम घोषित कर रखा है, इस कांड से पहले ही. उसकी भी मां को थाने में बिठा रखा है. पता नहीं वो घर लौटीं या नहीं. चचेरा भाई ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ रहा है. जो शख्स अभी तक प्रधान हैं, राम निवास सिंह उर्फ नेमा भइया, वे मेरे बहुत अच्छे दोस्तों में हैं, इसी कारण मैंने तय किया कि इस बार कोई वोट शोट डालने नहीं जाऊंगा. क्योंकि मेरे लिए दुविधा है. दोनों मेरे प्रिय हैं. किसी एक को वोट देकर दूसरे को दुखी नहीं कर सकता. चचेरे भाई के नाम पर दोस्ती की बलि नहीं चढ़ा सकता. और दोस्ती के नाम पर चचेरे भाई के परिवार को यह कहने का हक नहीं दे सकता कि उनका मैंने साथ नहीं दिया. सो, 20 तारीख के पंचायत चुनाव में मैं अपने गांव वोट देने नहीं जा रहा. लेकिन उसके पहले ही यह सूचना आई कि राम निवास सिंह उर्फ नेमा भइया व उनके समर्थकों पर फायरिंग कर दी गई व एक की मौत हो गई.

जिसकी मौत हुई, शमशेर सिंह की, वो भी हम लोगों के परिवार के पड़ोसी हैं, करीब करीब खानदान के ही हैं, बहुत पहले से वो लोग अलग रहते हैं और उनका लंबा चौड़ा कुनबा हैं. कुछ महीनों पहले गांव गया था तो शमशेर समेत कई जूनियर सीनियर दोस्तों के साथ बैठा था. एक दलित बस्ती वाले दोस्त के घर बैठकर खाए पिए थे. गांव में बहुतों ने हम लोगों को बुरा भला कहा कि जाने ये सब कहां कहां जाकर बैठ जाते हैं और खाने पीने लगते हैं लेकिन हम सभी मानते हैं कि ये सब भेदभाव समाज के मठाधीशों द्वारा खड़ा किया गया है. आदमी आदमी में कोई भेद नहीं होता. न जाति का भेद. न रंग का भेद. न धर्म का भेद.

मेरे गांव में कभी कोई फायरिंग में नहीं मरा. हवाई फायरिंग और फैटाफैटी के किस्से बहुत हुए. मैं भी प्रत्यक्षदर्शी रहा. लेकिन कोई किसी की जान ले लेगा, यह कल्पना कोई नहीं करता. पर ऐसा हो गया. चचेरे भाई और रामनिवास सिंह उर्फ नेमा भइया के बीच एक तनातनी थी, चुनाव को लेकर, प्रतिद्वंद्विता थी, लेकिन मैं दोनों को करीब से जानता हूं, ये कभी एक दूसरे के प्रति हिंसक होने या जान मार देने या हमला करा देने जैसा भाव नहीं रख सकते, गोली चलाने की तो बात दूर की है. जिस एक अन्य शख्स पर आरोप लगा है, वो कई महीनों से पुलिस रिकार्ड में फरार हैं. उससे राम निवास सिंह उर्फ नेमा भइया के झगड़े हो चुके हैं जिस कारण रामनिवास सिंह उर्फ नेमा भइया कई महीनों तक जेल में रहे. नेम्ड एफआईआर में उस फरार युवक का पहला नाम है, दूसरा नाम मेरे चचेरे भाई का डलवा दिया गया, गांव वाली पालिटिक्स के तहत. गोलीबारी में घायल होने के कारण नेमा भइया बनारस स्थित अस्पताल में भर्ती कराए गए और इधर उनके परिजनों ने दो लोगों के खिलाफ नामजद एफआईआर करा दी. एफआईआर होते ही पुलिस ने पहला काम यही किया कि दोनों आरोपियों के घरों की महिलाओं को उठा लिया और थाने में लाकर बिठा दिया. न कप्तान को होश, न सीओ को और न थानेदार को कि महिलाओं को पुरुष थाने में बिठाना अपराध है. शरीफ घर की संकोची महिलाएं हैं, इसलिए कुछ नहीं बोलेंगी, वरना थोड़ी समझदार होतीं तो सुबह पुलिस वालों के खिलाफ ही मुकदमा लिखा देतीं कि इन सालों ने छेड़छाड़ की है. फिर मुंह छुपाते फिरते ये हरामखोर पुलिस वाले.

मेरे परिवार, खानदान के ज्यादातर लोगों का यही कहना था कि महिलाओं को थाने में बिठा दिए जाने से परिवार की इज्जत मिट्टी में मिल गई. अभी तक खानदान की कोई महिला थाने नहीं गई थी लेकिन इस बार थाने पर महिलाओं को बिठाकर पुलिस ने खानदान की नाक को कटवा दिया है. मेरा इसके उलट मानना है. आज अगर मेरी मां थाने पर नहीं बिठाई गई होतीं, बंधक न बनाई गई होतीं तो शायद मैं उन माओं, युवतियों के दर्द को इतनी शिद्दत से महसूस नहीं कर पाता जो सिर्फ इसलिए थाने लाई जाती हैं और तरह तरह की प्रताड़ना की शिकार होती हैं कि उनके भाई या बेटे या पति पर कोई गलत काम करने का आरोप लगा है और वे भाई या बेटे या पति पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं.

एफआईआर होते ही आरोपी को पकड़ने की कोशिश करने की जगह महिलाओं को घर से उठाकर थाने पर बिठा देने जैसा जघन्य अपराध करने वाली यूपी पुलिस के हर अफसर को यह पता है कि ऐसा होता है, लेकिन कोई नहीं सोचता कि यह गैर-कानूनी है, कोई नहीं सोचता कि यह किसी मानव के अधिकारों का हनन है, कोई नहीं सोचता कि यह निर्दोषों को मानसिक रूप से भयग्रस्त और कुंठित करने का तरीका है, कोई नहीं सोचता कि यह आत्महत्या को प्रेरित करने वाला नापाक काम है. क्योंकि, सोचने और संवेदनशील होने जैसा काम तो अफसर अब लखनऊ – दिल्ली में ही गिरवी रखकर जिलों की ओर रवाना होते हैं. वे सत्ता के इशारे पर चलने वाले प्यादे हो गए हैं, मोहरे हो गए हैं, जिनका अपना कोई दिमाग नहीं, अपना कोई विजन नहीं, सच-गलत महसूस करने की अपनी कोई दृष्टि नहीं. कहने को तो ये जनता के नौकर हैं लेकिन इनका जीवन दर्शन जनता को नौकर बनाकर रखने का है. जिनके पास पैसा हो, उनके आगे तो ये पूंछ हिलाते घूमते मिल जाएंगे लेकिन जो पैसा व पावर से विहीन हैं उनके पिछवाड़े ये लोग डंडा लगाने से नहीं चूकते, बिना किसी अपराध के.

लखनऊ और गाजीपुर के कुछ पत्रकार साथियों ने सक्रियता दिखाई. मां को थाने से घर भिजावाने के लिए पहल की. तरह तरह के अफसरों से बात की. मैंने खुद बनारस के आईजी आरपी सिंह या आरके सिंह, से बात की. उन्होंने नाम भी नोट किया. लेकिन कुछ नहीं हुआ. महिलाएं तभी घर जा सकीं जब मेरा चचेरा भाई थाने जाकर हाजिर हो गया, गिरफ्तारी दे दी. मेरे पत्रकार मित्रों ने जिन जिन पुलिस अधिकारियों से बात की, सबने यही उपदेश दिया… ”उपर का दबाव है पंचायत चुनाव को लेकर, अगर हत्या जैसा कांड हो गया है तो गिरफ्तारी जरूरी है. बोलिए कि वो लोग सरेंडर कर दें. फिर महिलाएं घर चली जाएंगी.”

मैं सुनकर भौचक्क. बृजलाल जैसा अधिकारी अगर उपरोक्त बात कह सकता है, जैसा कि मेरे एक पत्रकार मित्र ने बताया, तो क्या होगा मानव अधिकारों का और क्या होगा इस सिस्टम का, मैं नहीं कुछ समझ पा रहा. मुझे बहुत पहले से लगने लगा है कि ईमानदार बनकर जीते रहने के आप्शन बहुत सीमित हो गए हैं. या तो भ्रष्टाचार के खेल में शामिल होकर पैसा वाला हो जाया जाए और पैसे के बल पर न्याय से लेकर पुलिस तक, सबको खरीद लिया जाए. ऐसा करना मंजूर नहीं तो फिर दूसरा रास्ता बचता है माओवादी या नक्सलवादी हो जाने का. ताकि हथियार उठाकर उन उन को ठोंका जा सके जो निर्दोषों को प्रताड़ित करते हैं और मानव अधिकारों के उल्लंघन को अपना कर्तव्य समझते हैं, भले इस प्रक्रिया में खुद की जान चली जाए. क्योंकि अपमानित होकर जीने, मर-मर कर जीने से तो अच्छा है न कि कुछ लोगों को निपटाकर निकल लिया जाए. लेकिन नक्सलवादी या माओवादी बनने का साहस सबमें नहीं होता. मेरे में भी नहीं है. ऐसे में मान लिया जाए कि हम बिना पैसे, बिना पद और बिना ताकत वाले लोग, भ्रष्ट तंत्र से अपमानित होते रहने को अभिशप्त हैं? अपनी माताओं-बहनों-बहुओं को बिना अपराध थाने में बैठा देखते रहने के लिए मजबूर हैं?? कड़वा है लेकिन शायद यही सच है.

मैं दिल्ली में हूं. यूपी के आधा दर्जन से ज्यादा बड़े शहरों में अमर उजाला और दैनिक जागरण जैसे अखबारों में छोटे-बड़े पदों पर रहा. दर्जनों पुलिस अधिकारियों और आईएएस अधिकारियों से परिचय रहा. लेकिन सत्ता व पैसे ने कभी लुभाया नहीं, सो, मैंने बिना वजह वाली बड़े बड़े लोगों से दोस्तियों को कांटीन्यू नहीं किया. बल्कि इसके उलट कहूं तो पंगे ज्यादा लिए, दोस्तियां कम कीं. जो खुब ब खुद जितने दिनों तक साथ चला तो चला, दोस्त बना रहा तो रहा, वरना जय राम जी की. तुम अपने रास्ते. मैं अपने रास्ते. ऊर्जा-उम्मीदों से भरे गरीब लोग, आम जन मुझे अपने ज्यादा करीब लगे. तो, मैं देखता हूं कि मेरे पास सिफारिश करने के लिए भी ऐसे बड़े लोग नहीं हैं जिनसे कह सकूं कि भई, ये काम करवाना है. अपना किसी किस्म का काम किसी से पड़ा नहीं क्योंकि दंद-फंद न होने के कारण अपन के जीवन की जरूरत बहुत सीमित है, और, कोई काम नहीं पड़ता. दूसरों के गलत काम को सुनता नहीं, दूसरों के गलत काम के लिए किसी से कहता नहीं.

ऐसे में जब अपने परिवार के किसी जन पर मुश्किल आती है तो मैं बहुत पसोपेश में पड़ जाता हूं कि किससे कहूं और किससे ना कहूं. मां के थाने में बिठाए जाने की सूचना मिलने के बाद मैंने जितने भी वरिष्ठ पदों पर आसीन दो-चार अपने पत्रकार साथियों को फोन किया, उसमें केवल एक को, लखनऊ वाले कुख्यात पत्रकार कम दलाल ज्यादा, हेमंत तिवारी को जो अपने घर में मायावती के साथ खिंचाई गई अपनी तस्वीरें टांगना प्रदर्शित करना अपनी शान समझता है, को छोड़कर बाकी सभी ने अच्छा रिस्पांस दिया, अपने स्तर से प्रयास किया, बात की, मेरे अनुरोध पर सक्रिय होते हुए लगे लेकिन सबके जोर लगाने के बावजूद मैं अपनी निर्दोष मां को थाने से घर तब तक नहीं भिजवा सका जब तक कि चचेरा भाई थाने में जाकर हाजिर न हो गया. मेरे जैसे दिल्ली में बैठे जर्नलिस्ट का जब ये हाल है कि वह अपनी निर्दोष मां को थाने में अवैध तरीके से बिठाए जाने से नहीं बचा सका, बिठाने जाने के बाद लाख कोशिश करके भी नहीं छुड़वा सका, तो इस देश की 60 फीसदी आबादी, जिनका सत्ता व कारोबार में कोई लिंक नहीं है, वे कृषि व मजदूरी पर ही निर्भर रहते हैं, का क्या हाल होगा. उनकी तो मां-बेटियों को उठाकर ये पुलिस वाले बलात्कार कर डालते होंगे और कोई शर्म के बारे में कुछ बोल न पाती होगी. ऐसी खबरें तभी बाहर आती हैं जब कोई महिला अवसाद में आत्महत्या कर लेती है या फिर किसी तरह से मामला लीक हो जाता हो, या घरवाले भय को भेदकर, साहस करके सामने आ जाते हों.

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आखिर में मैं अपनी मां से मुखातिब होकर कुछ कहना चाहूंगा, जो कि मैं बोलकर उससे नहीं कह सकता, यहां लिखकर अपनी भावना जरूर प्रकट कर सकता हूं….

”आदरणीय मां

चरण स्पर्श

मां, मुझे समझ में आ गया है कि तुम लोग मुझे क्यों पुलिस अधिकारी बनाना चाहती थी. आईएएस अधिकारी बनाना चाहती थी. मैं अपने गांव अपने इलाके में पढ़ने लिखने में सबसे तेज था, सो आप सब सोचते थे कि लड़का इलाहाबाद विश्वविद्यालय पढ़ने गया है, पढ़ लिखकर अधिकारी बन कर लौटेगा और तब घर के दुखों का अंत हो जाएगा. लेकिन मां, मैं भगत सिंह को आदर्श मानते हुए नक्सलवादी संगठन आईपीएफ उर्फ सीपीआईएमएल उर्फ आइसा से जुड़ गया. अपने परिवार का सुख-दुख बनाम पूरे समाज के सुख-दुख, दोनों में मैंने समाज के सुख-दुख के साथ जीना ज्यादा पसंद किया और नौकरशाह बनकर अपनी जनता पर राज करने की जगह जनता के बीच रहकर उन्हें गोलबंद कर सत्ता-शासन से लड़ाई लड़ना उचित माना. पर वो ज्यादा दिन तक न कर सका. मुझे लगने लगा कि जनता के बीच रहकर उन्हें गोलबंद करना बेहद मुश्किल काम है सो मैंने बीच का रास्ता चुना. कलम के जरिए जनता की आवाज उठाने का काम शुरू किया. इलाहाबाद और बीएचयू में छात्र आंदोलन, नुक्कड़ नाटक, गाना-बजाना करते करते जाने कब पत्रकार बन गया.

पर उसी कीड़े ने, जिसने मुझे भगत सिंह को रोल माडल मानने को कहा और परिवार के हित की बजाय समाज व जनता के हित को सर्वोच्च मानने की नसीहत दी, मुझे कहीं भी टिकने नहीं दिया. सिस्टम के, आफिस-आफिस के खेल में रमने नहीं दिया. क्योंकि हर जगह न्यूनतम नैतिकता और न्यूनतम ईमानदारी का निर्वाह करना मेरे लिए भारी पड़ने लगता था. और, ये न्यूनतम नैतिकता व न्यूनतम ईमानदारी कोई आरोपित भाव नहीं है, बल्कि बचपन में गांव के प्राइमरी स्कूल व आदर्श माध्यमिक स्कूल में उच्च विचार युक्त लेख श्लोक कविता कहानी पढ़े होने के कारण है जिसे झूठ मानने के बावजूद अब तक अपने व्यवहार का हिस्सा नहीं बना सका हूं. क्योंकि तुम्हीं लोग कहते थे कि झूठ बोलना गलत है, चोरी करना गलत है, रिश्वत लेना गलत है, सो, वही मानता रहा. हालांकि मुझे अब लगता है कि ये सब बातें फर्जी हैं. दो नैतिकताएं हैं. एक गांव वाली जिसे तुम मैं जीते हैं, दूसरी शहर वाली जिसे कथित सफल व चालाक लोग जीते हैं लेकिन बताते नहीं हैं.

मां, मैं कह रहा था कि लिखने पढ़ने के कामकाज में ठीकठाक होने के कारण मैं लिखने पढ़ने में लगा रहा और मेरे ही सामने बेईमान पत्रकारों और रीढ़विहीन संपादकों ने आफिस की बाहर की दुनिया के चोर-उचक्कों धन्ना सेठों से सांठगांठ कर मिशन मनी का अभियान चलाते रहे, संस्थान को भी बेईमानी की रकम खिलाते रहे तो प्रसन्न प्रबंधन के हाथों तरक्कियां पाते रहे. उनके परिवारों में अचानक समृद्धि आने लगी, फ्लैट व कार खरीदे जाने लगे लेकिन मैं लिखने-पढ़ने को ही आदर्श मानता रहा. अच्छे कामकाज के कारण मेरी सेलरी बढ़ती रही, पद भी बढ़ता रहा लेकिन बढ़ने के बावजूद, 35 हजार रुपये महीने तक तनख्वाह हो जाने के बावजूद महीने के आखिर में पैसे खत्म हो जाया करते थे. उसी कीड़े के चलते मैं आज तक कहीं सेटल नहीं हो पाया, सफल नहीं हो पाया क्योंकि दुनिया जिसे सेटल होना कहती है, सफल होना कहती है, वो मेरे लिए स्खलन सरीका है, आंखें मूंद लेने जैसा है. जो सुख अपनी फकीरी में जी पाता हूं, वो अंबानी बन जाने के बाद मुझे कतई नसीब नहीं हो सकता. लेकिन ऐसी फकीरी का क्या करूं जो तुम्हें थाने जाने से बचा नहीं पाया.

लेकिन मां, चिंता न करना. मेरे लिए तुम मेरी अकेली मां नहीं हो. तुम जैसी लाखों माएं हैं जिनके बेटे मेरे जैसे ही हैं. जो चाहते हैं कि उनकी माओं का उत्पीड़न करने वालों को सजा मिले लेकिन उन्हें तरीका नहीं पता होगा. मैं कोशिश करूंगा मां कि आगे से तुम ही नहीं, तुम जैसी तमाम माओं को ऐसी जिल्लत-जलालत से दो चार न होना पड़े. इसके लिए मुझे सोनिया गांधी से लेकर मायावती जैसी तमाम महिलाओं-माताओं से मिलना होगा तो मिलूंगा, कानून हाथ में लेकर अपनी बात रखने को मजबूर होना पड़ेगा तो उसके बारे में भी सोचूंगा क्योंकि ऐसा भगत सिंह ने सिखाया है हम लोगों को लेकिन तुम्हारे अपमान को मैं भूलूंगा नहीं. मुझे पता है, तुम बहुत जल्दी ही सब भूल जाओगी, सबके आगे खुद को ऐसे पेश करोगी जैसे कुछ हुआ ही न हो. सबसे कहोगी कि पुलिस वालों ने बहुत सम्मान और अच्छे से रखा था. लेकिन मुझे पता है कि तुम्हारा दिल अंदर से कहीं दरक गया होगा, तुम्हारे मन में जो गहरी कचोट लगी होगी उसे मैं समझ रहा हूं. तुम अपने दुख को अभिव्यक्त नहीं कर सकती हो क्योंकि अभिव्यक्ति का अधिकार तो हम पुरुषों और पुलिस वालों के पास है. तुम लोगों को सिर्फ रिसीविंग इंड पर रखा गया है, महसूस करते रहने के लिए.

मैं नहीं जानता मां कि तुम्हे अपमानित करने वाला मैं किसे मानूं, नंदगंज थाने के थानेदार को मानूं, इलाके के सर्किल आफिसर को मानूं, पुलिस कप्तान रवि कुमार लोकू को मानूं, आईजी आरके सिंह या आरबी सिंह को मानूं या बृजलाल को मानूं या डीजीपी को मानूं या सीएम मायावती को मानूं या इस लोकतंत्र को मानूं या खुद को मानूं. मुझे तो सब एक ही लगते हैं. हिंसक पशुओं की पूरी चेन है जो जनता के उपर बिछे पड़े हैं, खून पीते रहने के लिए. इनमें से किस पशु को मैं दोषी मानूं? मैं रियली कनफ्यूज हूं. मुझे लगता है मां दोषी मैं हूं जो इतना पैसा न कमा सका कि पुलिस वालों के तुम तक पहुंच पाने से पहले उन्हें खरीद सकता. इतनी बड़ी नौकरी नहीं खोज पाया कि जिससे पुलिस वाले तुम तक पहुंचने के नाम से ही थर्राने लगते. ऐसे मित्र न बना सका जो इतने प्रभावशाली होते कि एक फोन पर ही गाजीपुर का कप्तान यस सर यस सर कहते हुए आदेश की तामील करने में जुट जाता. इसलिए मां, मैं खुद को अपराधी दोषी मानते हुए वादा करता हूं कि मैं प्रायश्चित करूंगा और तुम जैसी लाखों कराड़ों माओं के सामने आते रहने वाले ऐसे मजबूर दिनों में उनके साथ खड़ा रह पाया, उनके लिए लड़ पाया तो मैं खुद को धन्य समझूंगा.

हो सके तो माफ कर देना, बावजूद इसके कि तुम मुझे दोषी नहीं मानती.

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लेकिन मैं खुद को माफ न कर सकूंगा.”

तुम्हारा

यशवंत

09999330099

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  1. dinesh shakya

    October 16, 2010 at 10:51 pm

    हमेशा ही पुलिस का ऐसा चेहरा नजर आते है खास कर उन लोगो को जो पुलिस के करीब या फिर अपराध की रिर्पोटिंग करने मे लगे रहते है पुलिस को इससे कोई मतलब नही कि जिसे वे पकड कर ला रहे है उससे किसी आरोपी का कोई वास्ता नही है लेकिन फिर भी गांव देहात या फिर जहां की आवाज बडे अफसरो तक नही आ सकती है। जैसा वाक्या आपके साथ हुआ है ऐसे वाक्ये इटावा मे एक दशक से भी अधिक दशक से होते आ रहे है जहां बीहडी थानो की पुलिस बेबजह किसी को भी बिना आरोप के महीनो तक थाने मे कैद किये रहे ओर किसी अफसर ने सुनी भी नही। आपके परिवार का वाक्या बेहद दर्दनाक है इसके लिये जरूर ही कोई ठोस कदम की जरूरत नजर आ रही है।

  2. B.P.Gautam

    October 16, 2010 at 11:16 pm

    Bhai is se bhi jyada bure halat hain…..har roz dekhta-samajhta hoon aur yhi man karta hai ki ab to bas sangthhan banaa kar ek aur aazadi ki jang shuru kar deni chahiye par aakrosh par hamesha ki tarah dayitv havi ho jate hain…….is liye yh sab jhelne k bhi aadee hote ja rhe hain’ lekin ab yh sab jyada din chalne wala bhi nhin hai……….yh aawaj andar se hi aati hai.

  3. Nutan Thakur

    October 16, 2010 at 11:51 pm

    यशवंत जी,

    मैं इन सारी संवेदनाओं में आपके पूरी तरह साथ हूँ. मैं उस दर्द और असहायता को अच्छी तरह अनुभव कर सकती हूँ.
    लेकिन एक बात जरूर कहूँगी. यदि आप जैसा व्यक्ति अपनी माँ के साथ इस प्रकार क़ानून के खिलाफ किये गए काम का न्यायपूर्ण बदला नहीं ले सकता तो दुनिया में कोई भी नहीं ले सकता है. कानून साफ़ साफ़ किसी भी महिला को थाने पर जबरदस्ती लाने से मना करता है.
    मैं तो यहाँ तक मानती हूँ और आप को सीधे-सीधे कहती हूँ कि यदि आप ने इसमें कोई कार्यवाही नहीं की तो मेरी निगाह में आपके आज तक के सारे संघर्ष पर प्रश्न चिन्ह माना जाएगा.
    मैं इस संघर्ष में अपने पुरे दम भर आपके साथ हूँ.

    नूतन ठाकुर,
    लखनऊ
    94155-34525

  4. Sanjay Sharma. Editor Weekand Times

    October 16, 2010 at 11:53 pm

    वेहद दुखद घटना है भाई..तंत्र वास्तव में नपुंसक हो गया है. अफसर वेश्याओं जैसा व्यबहार करने लगे है. किसी नेता का परिजन कुछ भी घटना कर दे उसके सामने पूछ हिलाते नजर आयेगे.किसी भी बेटे को इतना ही दुःख होता जितना आप को हुआ है..मगर इस नाकारा सिस्टम मैं किसी को कुछ सुनाई नहीं पड़ता. अब वो दिन दूर नहीं जब लोग सड़क पर उतर कर इनकी अफसरी खुद ठीक कर देगे.

  5. anita

    October 17, 2010 at 12:38 am

    शर्मनाक, बहुत दुखी हुए इसे पढ़ कर। भगवान आप को इतनी शक्ती दें कि आप अपने परिवार के मान सम्मान की रक्षा कर सकें और सिस्टम में रह कर भी सिस्टम से लड़ सकें। हम आप की माता जी, चाची जी व उनकी बहू पर क्या बीती होगी समझते हैं, मेरी संवेदनाएं उन तक पहुंचें।

  6. joseph

    October 17, 2010 at 1:31 am

    sirf up police nahin desh bhar kee police ka yahi haal hai…..apni bahduri kamjoron par nikal kar tamge haasil karati hai,apnee nazron mein hero banati hai aur kuntha garibon par nikalati hai.bahubali-dhanbali aur netaon ko salaam karati hai,unke talwe chatne kaa kaam karati hai.

  7. Dr.Hari Ram Tripathi

    October 17, 2010 at 4:33 am

    Dear yashwaniji .Please lodge a formal complaint with HUMAN RIGHTS COMMISSION. Plan legal action also against the S.O.and S.P. and execute.We all are with you.–Dr. H.R.Tripathi ,senior journalist ,Lucknow.

  8. कुमार सौवीर, लखनउ

    October 17, 2010 at 5:02 am

    अब मैं क्या कहूं यशवंत भाई !
    हकीकत तो यह है कि हमारे पास कहने को कुछ बचा ही नहीं। इतने जालिम और खूंख्वार सिस्टम में हम जी रहे हैं, कि दूसरों को तो दूर, खुद अपनी ही मां-बहनों की सुरक्षा के लिए हमें लाचार होकर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने की मजबूरी झेलनी पडेगी ? यह तो कभी सोचा भी ना था हमने। मंत्रियों और अफसरों की चापलूसी ना करने की यह सजा भुगतनी पड सकती है ? हमारा यह फैसला इस जानकारी के बावजूद था कि हमारे ही बीच के लोग चापलूसी की चटनी चाट कर बेखौफ और मदमस्त रहते हैं।
    बहरहाल, इस पूरे घटनाक्रम में एक बात तो हुई ही है कि हमारी मां ने यह अपमान झेल कर हमें बिना कुछ कहे ही यह अहसास तो करा ही दिया कि हम कितने घिनौने समाज और गिरोह का हिस्सा हैं, जहां हमारी ही मां-बहनों जैसी महिलाओं की इज्जत पर जब भी कोई पुलिसिया चाहे, बेखौफ अपना हाथ डाल सकता है और हम निरीह बने कुत्तों की तरह अफसरों के सामने गिडगिडाने पर मजबूर होते हैं। लेकिन बदले में हमें नंगे और घिनौने आश्वासनों के सिवाय कुछ नहीं मिलता। यह हाल पुलिस का है और आला अफसर तक खुद को इस नृशंस सिस्टम की वकालत में पैरवी करते नजर आते हैं, बेशर्मी के अपने पूरे खजाने के साथ। और केवल इतना ही नहीं, सोचने की बात तो यह है कि ऐसी हालत में जब पुलिसिया लोग अपनी कमीनगी पर मूंछों के बीच मंद-मंद मुस्काते हुए हमारी मजबूरी की चिंदियां उडाते हैं, अपराधियों के हौसले कितने बुलंद होते होंगे?
    उस मां ने हमारी आंखें भी खोल दीं कि देखो तुम किस सिस्टम में जी रहे हो और वह सिस्टम आम आदमी पर कितना भारी पडता है। हमारी मां ने हमें हमारे दायित्वों के प्रति भी हमें जागरूक कर दिया कि और बता दिया कि हमें अब तो अपने भ्रमों के खोल से बाहर निकल ही आना चाहिए।
    लेकिन मायावती को यह जानने की फुर्सत ही कहां है? लेकिन उनका यही अनजाना मासूमियत भरा अंदाज आने वाले समय में उन्हें पराजय के नाग के फन के सामने किस कदर विवष कर देगा, इसकी कल्पना तक वे या उनके कारिंदे कर लें तो हालात अभी भी सुधर सकते हैं। वैसे सुधरना तो पडेगा ही हर कीमत पर। चाहे वह खुद समझें या वक्त उन्हें समझाने पर मजबूर हो जाए।
    वैसे एक बात बताउं। इस मामले को एक नजीर के तौर पर मैंने कल षुक्रवार को ही राज्य निर्वाचन आयुक्त की संज्ञान में रख दिया था कि उनके निर्देषों की आड लेकर किस तरह प्रदेष में मानवाधिकारों की धज्जियां उडायी गयीं हैं। सोमवार को यह प्रकरण मैं राज्य मानवाधिकार आयोग के समक्ष भी रखूंगा।

  9. ANIL ROYAL

    October 17, 2010 at 6:28 am

    bahut kharab laga bandhu.aapke wo sathi bhi bahut doshi hai jo ek nirdosh maa ko nahi bacha paaye.aur yashwant aap bhi kabhi apne aap ko maaf nahi kar paaoge.ab unko saza jarur dilao hum apke sath hai.

  10. sudhir pandey

    October 17, 2010 at 6:54 am

    padhkar jaana ,kshobh hua .doshiyon ko maaf karna sant ke gun hote hain aur anyaya se ladna hum saadharan manushyon ka .soch lo bhai …..hum to doshiyon ko dand dilane ke pakshdhar hai .janam dene wali ka apmaan ho aur jawan bete ka khun na khaule to wah khoon nahin paani hai .ab aur kiska intezaar hai ……jago ,utho ,badho ,lado aur jeeto.koi saath na de to ekla chalo re …….maan ke saath jo hua wo bahut bura hai …tumhara soch vichar main padkar palayan ka comfortable rashta dhundana usse bhi bura hoga ……..utsuk rahoonga yeh jan ne ke liye ki maa ka laal kya kar raha hai ….bhagat singh ko kewal padha hai ya use ab bhi bhagat singh yaad bhi hain …….al the best mitra .

  11. समशेर

    October 17, 2010 at 9:57 am

    बहुत बढ़ीया, सिटी मारने का दिल कर रहा है। महाशय यशवंत जी अभी कुछ देर पहले आपका एक लेख पढ़ा । जागरण और कुछ पत्रकारों से खुन्नस होने की वजह से आप कानपुर में अखबार के सभी पत्रकारों के खिलाफ पुलिस की हरामी कार्यवाही की तारीफ में कसीदे पढ़ रहे थे। आप हकीकत में एक कमजोर इंसान हैं। 10-15 साल से पत्रकारिता में रहने के बावजूद आपको भारतीय पुलिस की सच्चाई का अहसास नहीं है। आप एक छोटे से बच्चे की तरह शिकायत कर रहे हैं। और सुनीए, आप में कभी भी ना तो I.P.S. बनने की काबिलियत रही होगी। ना ही आप नक्सली बन सके और ना ही आप पत्रकार बन पाओगे।

  12. Indscribe

    October 17, 2010 at 10:53 am

    Very sad Yashwant bhai. Police is the most brutal and anti-people agency in this country. But the ordinary middle-class that generally lives a cushioned life has no experience of dealing with the cops and they remain sympathetic, even supporting encounters. What can we do?

  13. khabri

    October 17, 2010 at 2:12 pm

    एक बेटे के लिए वास्‍तव में टूट जाने वाली घटना है। यशवंत जी, सिस्‍टम खत्‍म हो चुका है। किताबे चाट चाट कर लोकसेवक नहीं लोकशासक तैयार हो गये हैं। शिष्‍ट खींसे निपोरते हैं। शिष्‍टता की आड़ में कानून और समाज के विरोध में काम करते हैं। मंत्रियों की चाटुकारिता में किसी भी हद तक गुजर जाने के लिए तैयार रहते हैं। किसी बूढे को पकड़कर उसे चोरो का सरदार साबित कर देना। वारंट किसी का उसी नाम के दूसरे शख्‍स को जेल भेज देना इनके लिए सहज बात है। भगवान किसी की मां के साथ ऐसा न करें। एक सुझाव है डीआइजी प्रेमप्रकाश को महिमामंडित करती हुई जो खबर लिखी है। आपको सुझाव है कि इसके बारे में जरा सोंचे। अखबारों का विरोध करते करते आप कहां जा रहे हैं। ये सब सरकारी गुर्गे हैं। अखबार के साथ ये व्‍यवहार करने का मौका केवल मायावती ही दे सकतीं है। उनका काम ही यही है कि कभी कार्यकर्ताओं से ओवी वैन जलवाती हैं। कभी सरकारी चमचों से अखबार के दफतर घेरवाती हैं। देखिये जरा सावधान रहियेगा अब कहीं ये आपका ठिकाना ढूढकर आपका घर न घेरवा दें और इनकी चले तो ये भी कर सकती है कि जिस जगह सर्वर पर आपकी साइट लोड है वो जगह ही आग के हवाले करवा दें। इन्‍हें मतलब है तो कुर्सी से , न कि हमारी आपकी मां के अपमान और सम्‍मान से। कुर्सी के लिए ये कितनी ही मांओं बहनों को कई रातों तक पुरूषों के थाने में बैठवा चुकी है और बैठवाती रहेंगी।

  14. om prakash gaur

    October 17, 2010 at 5:58 pm

    यशवंतजी,आपकी माँ हम सब की माँ है. जितना दर्द आपके दिल में है उठाता हम सब के दिल में है. हम सब इस दुःख को आक्रोश में बदल पायेगे तभी बात बनेगी. कानून, पुलिस, अधिकारी और न्याय व्यवस्था हैसियत और मुंह देख कर बात करते हैं, इन सब के दौहरे पैमाने है, यह कोई छिपी बात नहीं है. हमारी अपनी मजबूरी और सीमा है फिर भी ईमानदारी और सच्चाई से की गई लडाई के परिणाम सही मिलते ही है.
    ओम प्रकाश गौड़ मो-०९९२६४५३७००

  15. facebook.com/abhishek.letters

    October 17, 2010 at 11:05 pm

    मैं क्या कहू? मुझे इसे पढ़ के ज़रा भी अफ़सोस नहीं हुआ, मैं अभी बिहार के राजधानी में हूँ पर अपनी आधी से अधिक की जिंदगी सुदूर गाँव में बिताई हैं. हां इस पर ज़रूर थोड़ा सोचा की आप के साथ ऐसा हुआ जिसे आज का बड़ा से बड़ा पत्रकार भी अच्छी तरह जानता होगा. मुझे तो इस दशहरा की छुट्टियों में इस वेबसाईट को अच्छी पढ़ के लग रहा हैं की हमारे जैसे नौशिखिये पत्रकारों को इस वेबसाईट को पढने से बचना चाहिए क्योंकि इससे वे अपने जिन्दगी के बीच मझदार में पहुच जायेंगे…क्या करे वे? एक नई आज़ादी और न जाने क्या क्या उनके दिमाग में घूमता रहेगा…

  16. Yusuf

    October 17, 2010 at 11:32 pm

    It is very shocking and you make a good point that it’s not a question of Yashwant’s mother only. I condemn this act of UP Police. On personal level I am writing to UP CM and will demand to suspend those police-wallahs.

  17. jai kumar jha

    October 17, 2010 at 11:47 pm

    यशवंत जी
    आपका दुःख हमसब का दुःख है ..समस्या सिर्फ आपकी मां का नहीं है बल्कि पुलिस का कानून को ना मानकर अपना एक अलग कानून(पुलिस मेनुअल) बनाकर उस पर चलने के लिए स्वतंत्र होने का है जिसपर न्यायपालिका भी लगाम नहीं लगा पा रही है ..दिल्ली जैसे शहरों में रोज ऐसी घटनाएँ होती है और किसी पुलिस वालों को कोई कुछ कहने की हिम्मत नहीं करता ..पुलिस के उच्च अधिकारी वस्तु स्थिति को जमीनी स्तर पर खुद एक सामाजिक दायित्व के तहत देखना नहीं चाहते क्योकि इस में उनको काफी मगजमारी करनी पर जाती है और समाज में इतनी ताकत नहीं की कोई सामूहिक रूप से इसके लिए आवाज उठाये और दोषी पुलिस वालों को सजा के लिए अदालत में कानूनी व्याख्या कराने का प्रयास करें …पुलिस को कोई हक़ नहीं की किसी अपराधी के मां या चाची को पकड़ कर ले जाय…इसकी अब एक ही कार्यवाही हो सकती है वह है अगर आपके गांव के दस लोग निडरता से पूरी सत्य आधारित शिकायत अदालत में लेकर जाये और उसका आधार किसी बृद्ध महिला को 18 घंटे तक थाने में बंधक बनाना हो तो दोषी पुलिस वालों के व्यवहार व अकल को ठिकाने लगाया जा सकता है | बांकी अन्य कोई विधि नहीं जिससे ऐसे पुलिसिया व्यवहार पर अंकुश लगाया जा सके | आप हो सके तो गांव के समाज को भी इस मामले पर आपसी मतभेद को भूलकर एक बृद्ध महिला के खिलाप अत्याचार के मामले का हवाला देकर साथ चलने को प्रेरित करें | किसी बृद्ध महिला का अपमान पूरे समाज का अपमान है | आपके सामाजिक सहयोग के लिए अगर जरूरत परेगी तो मैं आपके गावं अपने खर्चे पर कभी भी चलने के लिए तैयार होऊंगा …ये समस्या बेहद गंभीर है लेकिन इसका समाधान सामाजिक एकजुटता की ताकत में ही है …

  18. aapkiawaz.com

    October 17, 2010 at 11:54 pm

    यशवंत जी, घटना के बारे में पढ़कर बहुत दुख हुआ। लेकिन मेरा अनुरोध ये है कि इस घटना से हमें सबक़ लेना चाहिये, और ऐसी व्यवस्था को उखाड़ भेकने का प्रण लेना चाहियें।
    हम और हमारे सारे संपर्क आपके साथ है एंव दोषी अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्यवाही कराने का हर संभंव प्रयास कर रहे है। आशा ही नहीं हमें विश्वास है कि आप धैर्य व साहस से काम लेगें।
    संपादक- आपकी आवाज़.कांम

  19. Jagmohan Phutela

    October 18, 2010 at 12:06 am

    [b]बाकी बचा न कोय[/b]
    एक हफ्ते बाद सफ़र से लौटा तो पढ़ा.बता दूं यशवंत भाई कि जो आपकी माँ के साथ हुआ कमोबेश वही भुबनेश्वर में मेरी बहन के साथ हुआ.पूरी कहानी कल तक अपने जर्नलिस्टकम्यूनिटी.कॉम और भड़ास पर दे रहा हूँ.उसमें अपने से मिलती जुलती एक सांसद की व्यथा कथा भी है.पढियेगा तो जानियेगा कि संवेदनहीनता जब चरम पर पंहुचती है तो स्वयं सत्ताधीशों को भी निगलने लगती है.ये पीड़ा की पराकाष्ठा है.दिलासा भी.

  20. facebook.com/abhishek.letters

    October 18, 2010 at 12:12 am

    dear yusuf
    ….I condemn this act of UP Police. On personal level I am writing to UP CM and will demand to suspend those police-wallahs.

    यह समस्या का समाधान नहीं होगा, समाधान यह हैं की मायावती इस्तीफा दे दें. ऐसा नहीं होगा. अगर पुलिसवाला बर्खास्त हो जाये तो ओ महज़ बलि का बकरा बनेगा…थानेदार गुनाहगार नहीं हैं, हैं भी तो मायावती की तुलना में कुछ भी नहीं, कृपया इस पर सोचे

  21. shravan shukla

    October 18, 2010 at 12:17 am

    क्या करे क्या न करे वाली बात हो गई है सर जी..मेरे ऊपर क्या बीत रही है यह सब आप भी जानते है..मई एक आह्वान करूँगा सबसे ..की प्लीज़ सब इकट्ठे हो जाओ….सब लोग एकसाथ बिरोध करो.यशवंत जी के साथ कंधे से कंधे मिलकर खड़े हो जाओ..और दिखा दो की जो हुआ बहुत गलत हुआ….कतइ बर्दास्त नहीं किया जा सकता…सर के ऊपर से पानी बह रहा है सर..मई हर कदम पर अपना सर्वस्त(सबकुछ) लेकर आपके साथ हू..आप आज्ञा दो सर की करना क्या है….

    बस सर जी इतना बताइए हम सब लोग क्या करे? जो भी होगा हम सभी तन-मन-धन से आपके साथ है..

  22. भारतीय़ नागरिक

    October 18, 2010 at 1:09 am

    जो लोग आपकी माताजी के साथ हुये व्यवहार के चलते सीटी मारने की बात कर रहे हैं, मैं उनकी निन्दा करता हूं. कानपुर के पत्रकारों के लिये जो भी आपने लिखा हो वह अलग मामला है. लेकिन आपकी माताजी के साथ और किसी की भी मां-बहन-भाई-बाप-बेटे-बेटी के साथ किये जाने वाले इस पुलिसिया व्यवहार की घोर निन्दा होना चाहिये और ऐसे पुलिस वालों पर सख्त कार्रवाई भी.
    रही बात कानपुर की, तो वहां भी पत्रकारों के साथ की गयी ज्यादती निन्दनीय है. घोर निन्दनीय है. यदि यही सब चलता रहा तो एक दिन यही पुलिस वाले सिस्टम पर हावी हो जायेंगे और इस लोकतन्त्र का गला घोंट देंगे.

  23. ->0$@_ (>0?

    October 18, 2010 at 1:12 am

    जो लोग आपकी माताजी के साथ हुये व्यवहार के चलते सीटी मारने की बात कर रहे हैं, मैं उनकी निन्दा करता हूं. कानपुर के पत्रकारों के लिये जो भी आपने लिखा हो वह अलग मामला है. लेकिन आपकी माताजी के साथ और किसी की भी मां-बहन-भाई-बाप-बेटे-बेटी के साथ किये जाने वाले इस पुलिसिया व्यवहार की घोर निन्दा होना चाहिये और ऐसे पुलिस वालों पर सख्त कार्रवाई भी.
    रही बात कानपुर की, तो वहां भी पत्रकारों के साथ की गयी ज्यादती निन्दनीय है. घोर निन्दनीय है. यदि यही सब चलता रहा तो एक दिन यही पुलिस वाले सिस्टम पर हावी हो जायेंगे और इस लोकतन्त्र का गला घोंट देंगे.

  24. वंदना अवस्थी दुबे

    October 18, 2010 at 1:24 am

    इस पुलिसिया दुष्कृत्य का पुरज़ोर विरोध किया जाना चाहिए, कुछ इस तरह कि वे भविष्य में किसी भी आरोपी के निर्दोष परिजनों को थाने तक लाने के बारे में सोचें तक नहीं.

  25. anshibli

    October 18, 2010 at 1:29 am

    यशवंत जी इस घटना पर जितना भी अफसोस किया जाये कम है मगर यहाँ सिर्फ अफसोस करने से काम नहीं चलेगा.हम सब को मिलकर इस के खिलाफ आवाज़ उठानी होगी। यदि आप इस सिलसिले में कोई प्लान करते है तो मुझे बताएं मैं आपके साथ हूँ।

    ए एन शिबली

    bureau Chief
    Hindustan Epress
    9891088102

  26. गिरीश

    October 18, 2010 at 2:08 am

    दु:खद एवम निंदनीय घटना. अक्सर ऐसा पुलिस क्यों करती है. इस का ज़वाब लेने एक जुट होना चाहिये मुझे बेहद दु:ख है यशवंत जी

  27. cmpershad

    October 18, 2010 at 2:20 am

    मेरा भारत महान 🙁

  28. Abhijeet

    October 18, 2010 at 2:55 am

    यशवंत जी,
    मै दशहरा की छुट्टी पर था वापस आकर मैंने ये खबर पढ़ा………..काफी अफ़सोस हुआ……………मेरा मानना है कि वो सिर्फ आपकी माँ नहीं हैं वो हम सभी की माँ हैं ………यशवंत जी मै आपकी दर्द को समझ रहा हूँ…..और मैं इन सारी संवेदनाओं में आपके पूरी तरह साथ हूँ………..यशवंत जी यू पी पुलिस का ये वो घिनोना चेहरा है जो दिख रहा है…………यू पी पुलिस और मायावती सर्कार सिर्फ झूठ के सहारे चल रही है………….कभी किसी को झ्ह्ठे आरोप में फसती है तो कभी उसको मरवाने का काम भी करती है……………आज ये खबर पढ़कर दिल में एक दर्द सा महसूस कर रहा हूँ…………..कि जिस राज्य कि मुखिया एक महिला है उस राज्य में भी ऐसा हो सकता है…………….मायावती जी कि भी कोई माँ रही होंगी या होंगी…………क्या उनको ये दर्द महसूस नहीं होता…………………..यसवंत भाई मै आपके साथ हूँ ……. और मीडिया के उन सभी लोंगो से भी गुजारिस करता हूँ कि वो भी आपका साथ दें…………[b][/b]

  29. aapkiawaz.com

    October 18, 2010 at 3:28 am

    यशवंत जी, अपने बेटे को अमेरिका अभी भेजकर फौरन आपका लेख आपकी आवाज़.कांम पर डलवाया। ताकी सिर्फ हम जिनसे कुछ करने का आग्रह कर रहे है। उन्हे पूरी बात मालूम हो जाये। ये कार्यवाही न सिर्फ आज रात भर बल्कि तब तक चलती रहेगी जब तक कि आपको संतोष न हो जाये कि रावण मारा गया। बिना किसी संकोच के कुछ भी आदेश कीजियेंगा। ये मामला सिर्फ आपका नहीं, इसे हम लोग अपना मानकर कार्यवाही कर रहे है। कुछ राहत
    मिले तो लिखियेगा। एस.एम.मतलूब- संपादक- आपकी आवाज़.काम

  30. गिरीश

    October 18, 2010 at 4:05 am

    भाई मेरी अपनी माता के साथ हुई है ये घटना. दु:खद

  31. Akhilesh chandra

    October 18, 2010 at 4:21 am

    इस पुलिसिया दुष्कृत्य का पुरज़ोर विरोध किया जाना चाहिए, कुछ इस तरह कि वे भविष्य में किसी भी आरोपी के निर्दोष परिजनों को थाने तक लाने के बारे में सोचें तक नहीं l घोर निन्दनीय है. यदि यही सब चलता रहा तो एक दिन यही पुलिस वाले सिस्टम पर हावी हो जायेंगे और इस लोकतन्त्र का गला घोंट देंगे.
    मैं इस संघर्ष में आपके साथ हूँ.

    Akhilesh chandra
    Lucknow
    9838474911
    Vision24 News
    (Hindi News Paper & News web portal)

  32. Amit Luthra

    October 18, 2010 at 4:47 am

    Respected yashwant ji,
    essa sab achhay loggo key sah hota hai mai samaj sakta hu hindusthan ke rajneti badhi gandhi hai aap deyray rakye kuch nahi hota , 98% log dekhney walay he hotaey hai jo fass jatey hai aur jo kasur karney wala hota hai woh en police wallo sey sari zindagi pakda nahi jata…….aap ke es ladaiye mai hum aap key sath hai abhi esko face book tweeter aur public site mai update karta hu aur taki zadey sey zada logo tak baat phunchay aur sab ekathay ho
    bagwan par barossa rakhey kuch nahi hota

    With Respect
    Amit Luthra
    0016179224662

  33. Amit Luthra

    October 18, 2010 at 4:59 am

    Respected Yashwant ji ,
    Aap ka dard mai samaj sakta hu ,yeh padh key bhout dukh hua, samaj nahi ata essa achay logo key sath kau hota hai ….. hindustan sey kuch aur nahi expect kar saktay , apney ko ensaf delanay key leye khud he ladna pata hai 98 % log hindustan ke zailo mai ban hai jino ney koe kassur nahi key aur kassur karney wall ensey pakda nahi jata .Sir diraj rakheye kuch nahi hota …..abhi mai ess khabar ko face book aur twitter par update karta hu taki zada sey zada logo ko pata chalay aur humay support melay
    aap chita na karay hum sab aap key sath hai .

    With Respect
    Amit Luthra
    +16179224662

  34. ARBAAZ

    October 18, 2010 at 5:38 am

    behad sharmanak,ham aapke saath hai..

  35. अजित वडनेरकर

    October 18, 2010 at 8:46 am

    यशवंत भाई, इस घटना के विरोध में हूं और आपके साथ हूं।
    पुलिसिया ज्यादती की भर्त्सना भी करता हूं।

  36. जयप्रकाश मानस

    October 18, 2010 at 1:40 pm

    माँ के साथ हुई दुर्व्यवाहर निंदनीय है । आप हम सभी समाज से आते हैं । पुलिस भी । तंत्र की अवधारणा भी समाज के चुनिंदे लोगों से तैयार होती है । समाज जैसा होगा वैसे ही लोग सर्वत्र आयेंगे । दरअसल हमारा संपूर्ण समाज में ही सडांध है । उसे दूर किये बिना किसी एक अंग की सर्जरी मुश्किल होगी । बहरहाल आये दिन होने वाले ऐसे कुकृत्यों का पुरज़ोर विरोध आवश्यक है ।

  37. ajay kumar sharma

    October 18, 2010 at 2:22 pm

    jo bhi aap ki ma ke sath hua hai vaisa roj aisi hazaro niapradh maon ke sath hota hoga….
    bari baat hai aap iske khilaph awaz utha rahe hai…
    hum sab aapke saath hai…
    ajay k sharma
    9868228620

  38. sanjay bengani

    October 18, 2010 at 2:48 pm

    पुलिस कहीं की भी हो, उसके कारनामें पढ़े तो अफसोस ही अफसोस से भर जाएं.

    दुख हुआ पढ़ कर.

  39. mohd javed

    October 18, 2010 at 3:30 pm

    shayad police ko treaning ke dauran sikhaya padhaya gaya sab kuch kisi ghatna ke waqt soonya ho jata hai. apna sab kuch acha dene ke liye kis tarah se gair jimmedar ho vipreet disha men gahrai tak chali jati hai up police. ish se bada udaharan aur kya hoga. sayad loktantra men surakh hain bade.

    yaswant ji aap rashtrapati ko bhi avgat karayen.

    m javed shahjahanpur up 09838637495

  40. Shanti

    October 18, 2010 at 4:16 pm

    Well, this is what our system is. It leaves honest men frustrated. And that’s why when met with extreme conditions, some persons take to extreme, anti-social measures. Our system needs a complete overhaul, a complete revolution, then only INDIA can progress harmoniously without any discrimination and taking all strata of society along….. My Best Wishes….

    http://www.facebook.com/#!/yuvarevolution?v=wall

  41. prem sundriyal

    October 18, 2010 at 4:34 pm

    यसवंत जी जो कुछ हुआ बेहद दुखद है हम निंदा करने के अलावा कर भी कुछ नहीं पाते हैं जब भी इस परकार की घटना होती है हम दुखी होते हैं लेकिन रोज सैकड़ो घटनाये होती हैं गरीब और कमजोर के लिए कोई नियम नहीं है हम किताबों में पढ़ते है की कानून सबके लिए बराबर है लेकिन ज़मीनी हकीकत तो यही है कि गरीब और अमीर के लिए अलग अलग कानून है / आखिर ये सब कब तक चलता रहेगा / मानवादिकार आयोग कुछ ठोस कदम क्यों नहीं उठता क्या वह भी पर्भाव्शाली लोगो के लिए ही है / इस संगर्ष में हम आपके साथ है /

  42. prem sundriyal

    October 18, 2010 at 4:44 pm

    यसवंत जी पूरा सिस्टम साद चुका है / आपने तो इस माद्यम से अपने दर्द को साझा किया है / हजारो एसे है जो न कुछ कर पा रहे है न कह पा रहे है / इसके लिये जो भी जरुरी ठोस कदम उठाये हाँ आपके साथ हैं /

  43. Anchal Sinha

    October 18, 2010 at 5:19 pm

    Main Aapse poori sahaanubhooti rakhta hoon, par madad kaise karoon samajh me nahin aata. Apne desh ki police ka yahi charitra hai aur ham lakh koshish karke bhi use badal nahin sakte. Maine 1974 ke Andolan se lekar Aaj tak police ke, khas taur se Nichle system me, koi badlao nahin paata. Kaash unhe sudharne ka koi raasta hamari vyawastha banaati.

  44. ashok mishra

    October 18, 2010 at 6:20 pm

    up police kab jimmadar banigi. jo kuch hua dukhad hai. ya system behad samvadanhin ho gaya hai. hum aapka sath hai.

  45. yogesh jadon

    October 18, 2010 at 6:25 pm

    यशवंत भाई,
    मुझे आपसे सहानुभूति है यह कहकर मैं आपको कमजोर व्यक्ति के तौर पर नहीं आंकना चाहता हूं। मै तो सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि इन हरामजादे पुलिस वालों को जब नक्सली उलटा लटकाकर उनके पिछवाड़े बंदूक घुसेड़ देते हैं तो पूरी मीडिया सहानुभूति और नक्सलियों को दानव बताने मैं ही अपनी इंटेलीजेंसी और गांधीवादी चेहते को सामने लाती हैं। जब हमारी मांओं पर अत्याचार होते हैं तो धन्नासेठों के टुकड़ों पर पलने वाले संपादकों को सांप क्यों सूंघ जाता है। और हमारी मांए ही क्यों आज अत्याचार के शिकार किस आम आदमी की आवाज बन पा रहे हैं हम, सोचने की जरूरत है।
    योगेश जादौन

  46. ravindra.prabhat

    October 18, 2010 at 7:24 pm

    शर्मनाक, बहुत दुखी हुए इसे पढ़ कर।

  47. gwaliornama

    October 18, 2010 at 7:37 pm

    agar patrakar malikon ki chhaploosi karte rahenge to sabhi ke saath esa hi hoga. khud unke saath bhi jo chaaploosi karte hai. ab bhi samay hai ese log jag jayen. anyatha vo din door nahi jab khud unki man ke saath bhi ye hadsa ho. yashawant ji main aapke is abhiyan main, aapke saath hoon.

  48. प्रमोद ताम्बट

    October 18, 2010 at 9:12 pm

    यशवंत जी,
    11 दिसम्बर को भोपाल स्टेशन पर अविनाश वाचस्पति के साथ आपसे भेंट काने का मौका हुआ था परन्तु आप सो रहे थे। आपकी माता के साथ पुलिस अत्याचार की यह जो घटना हुई है इससे पता चलता है कि उत्तरप्रदेश में पुलिस तंत्र कितना निरंकुश हो चुका है । उत्तरप्रदेश ही क्यों पूरे उत्तर भारत में ही ऐसा है। आप एक सक्षम माध्यम के उस्ताद है, कामना करता हूँ कि इसे हथियार बनाकर इस और इस जैसी अन्य समाज विरोधी घटनाओं पर निरन्तर अपनी कलम चलाकर खोखली हो चुकी जड़ों को हिलाते रहेंगे।
    आपकी इस लड़ाई में अपने माध्यम के ज़रिए हम सदैव आपके साथ है।
    प्रमोद ताम्बट
    भोपाल
    http://www.vyangya.blog.co.in
    http://vyangyalok.blogspot.com
    व्यंग्य और व्यंग्यलोक
    On Facebook

  49. Divya

    October 18, 2010 at 9:38 pm

    .

    It’s indeed disgusting. Another shameful act of the series going on. But can we really do anything , other than raising voice which falls on the deaf ears of the insensitive lot in power.

    .

  50. बी एस पाबला

    October 18, 2010 at 9:52 pm

    मै स्तब्ध हूँ….

  51. alok

    October 18, 2010 at 11:30 pm

    शर्मनाक…

  52. Sudhir.Gautam

    October 18, 2010 at 11:39 pm

    Ysahwant I am deeply hurt to hear about this and can understand your mental situation, lets give them a setback for once, but before that you must go through…
    Kutastva kasmalamidam visame samupasthitam|
    Anaryajustamasvargyamakirtikaramarjuna
    कुतस्त्वा कस्मालामिदम विसमे समुपस्थितम |
    अनार्याजुस्तामास्वर्ग्यामाकिर्तिकारामार्जुना
    Arjuna, how has this infatuation overtaken you at this odd hour ? It is shunned by noble souls; neither will it bring heaven, nor fame, to you.
    हे अर्जुन !तुझे इस असमय में यह मोह किस हेतु से प्राप्त हुआ ? क्योंकि न तो यह श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा आचरित है, न स्वर्ग को देने वाला है और न कीर्ति प्रदान करने वाला ही है
    ये समय है जब हम सब अपने भीतर के अर्जुन को बोलें “उठो पार्थ गांडीव संभालो, और दुर्योधन और शिखंडियों की इस फ़ौज इसके अंजाम तक पहुंचाओं, “जननी” से पूज्य कौन है भला? क्या हुआ जो इसमे तुम्हारे सामने कई प्रतिष्ठित आचार्य द्रोण, कुलगुरु कृपाचार्य, और स्वयं न्याय के प्रतीक चिन्ह सरीखे भीष्म पितामह हैं, वास्तव में तो ये शकुनियों की जमात के पीछे खड़े दुर्योधनों के निहित स्वार्थों के लिए लड़ा जा रहा छदम युद्ध भर ही है!!!
    http://medianukkad.blogspot.com/2010/10/blog-post.html

  53. saleem akhter siddiqui

    October 18, 2010 at 11:49 pm

    BEHAD SHARMNAAK HAI YE.

  54. nitin sharma

    October 19, 2010 at 12:26 am

    patrkaar bhaio ye comments likh kar kya darshana…..agar karna hi hai kuch to is nainsafi or badsaluki ke leyen awaaj uthao…..taki up police sapne me bhi kisi patrkaar ya patrkaar ke pariwaar ke sath galat karne ka n sochey

  55. rajesh vajpayee jansandesh unnao

    October 19, 2010 at 3:42 am

    Aisha ghinauna bayhad sharmnaak aur atayadhik kastadai up police ki ochi harkat
    sabd nahi jinsay up police ki ninda tak ki ja sakey
    mar gaya bhartiya savindhaan- mar gai nyaipalica
    itna ganda kaam tab nahi huwa jab 1975 may desh may apaatkaal laga
    mitro yeh yashwant ki MAA KAY AATMSAMMAN SAY KHILWAAD NAHI KIYA GAYA BALKI HUM SABHI KI MAA KI IJJAT LOOTI GAYI HAI.
    Ab chup baithanay ki seema tod do warna muh par swam apnay haatho say khalikh pot kar apnay-apnay office jana aur kahana ki hum hejaday hai.
    rajesh vajpayee unnao

  56. parsuram

    October 19, 2010 at 6:28 am

    sangin ke saye me loktantra

    koi daud ibrahim ki ma ko arrest karke dikha de. kabhi indian police ne virapan ke ghar parivarwale ko giraftar kiya. kabhi indian police ne parbhakaran ki ma ya pariwar wale ko arrest kiya. tab kaha gayi thi napunsak police ki mardangi.dunia ki police me hai koi ma ka lal jo ladan ke ghar parivarwalo ko giraftar kar dikha de. chavani athani per desh ki iman ko bechne wali police ko wah ma dikhi jiska koi kasur nahi. police ke hath aise mao per aage pare uske pahle inke haath katne hoge. desh aur samaj ki raksha me vkfal policia tantra ke khilaf aawaj uthe. sath me un sarkaro ke khilaf bhi jo sarandi police se nirdos logo per atayachar arwati hai. itni mada hai to sabit kare apni bahaduri lekin third class netao ke rahmokarm per palne wali police se iski umid bemani hai. ye sarandi police sirf us ma ko arrest karati hai jise pata nahi hai ki apradh ki paribhasa kya hai. loktantra ke nam per in police walo ko akhir kab tak guda raj chalane ki chut milegi. mayawati ho ya manmohan inse insaf ki umid sirf apne ko dhokho dene hai.

  57. Dr. Kavita Vachaknavee

    October 19, 2010 at 9:06 am

    दु:खद व निंदनीय घटना

  58. सुरेश चिपलूनकर

    October 19, 2010 at 6:16 pm

    यशवन्त भाई,
    पूरी खबर सुनकर मैं न तो स्तब्ध हुआ, न ही मुझे पुलिसिया मानसिकता पर कोई आश्चर्य हुआ…
    मुझे सिर्फ़ गुस्सा आया, तलवे से माथे तक आग की एक लकीर खिंच गई…
    यह बातें हमारे सड़े हुए सिस्टम में रोज हो रही हैं, सोचिये कि आप सक्षम पत्रकार हैं, दिल्ली जैसी जगह पर बैठे हैं, फ़िर भी आपके साथ ऐसा हो गया… दूरदराज बैठे हुए छोटे-छोटे स्वतन्त्र पत्रकार कितने मानसिक दबाव में रहते होंगे…

    लोग कहते हैं सिस्टम बदलना होगा, लेकिन ये नहीं बताते कि कैसे और उनका योगदान क्या होगा…
    यशवन्त भाई, आप अपनी लेखनी से उप्र पुलिस के कारनामों को शिद्दत से उजागर कीजिये… हम आपके साथ हैं…

  59. सुनीता शानू

    October 19, 2010 at 7:32 pm

    यशवन्त भाई, बहुत बुरा लग रहा है यह सब पढ़ कर। जिसपर बीत रही है वही समझ सकता है। इश्वर आपको व आपकी माँ को इस कठिन परिस्थिती से निपतने व उबरने की शक्ति दे यही प्रार्थना करतें हैं।

  60. मनोज वर्मा

    October 19, 2010 at 8:17 pm

    नमस्कार यसवंत जी आप क़ि माँ के साथ जो कुछ भी हुआ है काफी निंदनीय है | माया सरकार कुछ भी कर सकती है ये वो समय समय पर दिखाती भी रहती है | आज जो आप को दुख हुआ मै समझ सकता हु क्योकि में यह सब झेल चुका हु |इस ओर ध्यान आप को देना ही होगा हम लोग आप के साथ है |

  61. Alam Khan Editor

    October 19, 2010 at 8:58 pm

    आँखोँ मेँ आँसू और कलेजा मुँह को आ गया।
    बीस चोर अस्सी बेईमान। फिर भी मेरा देश महान।।
    यशवंत भाई हमारी पूरी सूचना टीम आप के साथ है जैसी रणनीति बने हमेँ जरुर मेल से सूचित करेँ।
    आलम खाँन एडिटर
    email:[email protected]

  62. Manish Mishra

    October 20, 2010 at 2:18 am

    yashwant bhai,

    we are sorry…

  63. Bhupendra Singh

    October 20, 2010 at 2:34 am

    yashwant sir, kahin na kahin janee anjaane me in sarkaari apradhik tattvo ko hum logon ne hi mazboot banaya hai.In wardi wale aparadhiyon ki hamare hi bhai-bandhuon ne hi izzat badhai hai.inke khilaf is abhiyan ko zor-shor se chalane me hum sab aapke saath hain.

  64. Vinod Varshney

    October 20, 2010 at 3:43 am

    असभ्यता पुलिसवालों की आदत का हिस्सा है. वे इसे तब तक नहीं समझ सकते जब तक कि खुद उनकी माँ के साथ ऐसा न हो. समस्या व्यापक है. एक तरह से सांस्कृतिक मामला है. भ्रष्ट राजनीति ने इस समाज को यही दिया है. इस मसले को मानवाधिकार आयोग के समक्ष ले जाना चाहिए. बाकी मैं आपके संकल्प के साथ हूँ. देश के आम आदमी के अधिकारों और सम्मान के लिए आवाज उठाना हम सबका फर्ज है. उम्मीद है कि अपने भावात्मक आवेग से, जो स्वाभाविक है, माँ को परेशान नहीं करोगे.

  65. ajay saxena

    October 20, 2010 at 6:35 am

    यशवंत भाई…अभी-अभी मेल चेक कर रहा था..देखा आपका मेल भी है..खोला तो चौंक गया..पहले सोचा किसी फरियादी की कहानी होगी..पर जब जाना कि और कोई नहीं अपनी मां है..तो खून खौल गया…जो भी इस हरकत के लिए जिम्मेदार लोगों को छोड़ना नहीं..उन मादर….ने अपने घर में हाथ डाला तो दूसरों को क्या छोड़ते होंगे…मैंने सभी को मेल फारवर्ड कर दिया और मौखिक रूप से भी सभी पत्रकार साथियों से चर्चा की …सभी ने इस घटना की निंदा की है…अपने ब्लाग में भी पोस्ट के रूप में डाल रहा हूं…और दुसरे ब्लागर साथियों को भी बोलता हूं….शेष फिर..आपका अजय

  66. madhup vashisth

    October 20, 2010 at 9:06 pm

    i m with u sir..jab chaahe aagyaa kare..

  67. pradeep

    October 20, 2010 at 9:38 pm

    दुखद घटना ,जितनी निंदा की जाय काम है ,हिम्मत न हारें,ऊपर वाला साथ जरुर देगा,
    आप के दर्द को हर व्यक्ति समझ रहा है ,हिम्मत न हारें,हम सब आप के साथ हैं.

  68. dinker srivastava

    October 21, 2010 at 12:34 am

    वास्तव में सिस्टम सड़ गया है लेकिन इसके जिम्मेदार हम पत्रकार भी हैं,दरअसल व्यावसायिकता पत्रकारिता पर हाबी है, किसी का भला हो या बुरा मेरा भला होना चाहिए, यही मानसिकता बन चुकी है लिहाजा जयादातर पत्रकार रीढविहीन हो चुके हैं,हर छोटे से छोटे मामले में खेमेबंदी हो जाती है, राजनीति घर घर पहुच चुकी है माननीय लोग भी किसी एक का दामन थाम लेते हैं फिर चाहे वो गलत हो या सही,आपने भी जिसकी जिसकी बजाई होगी उन सबने अपने अपने ढंग से अपना काम इस मामले में जरूर किया होगा तय मानिए…. घड़ाली आंसू बहाने को सब हैं पर अपनी शक्ल आईने में देखने की हिम्मत नहीं की वो कर क्या रहे हैं……..गुनगुने पानी में डाले हुए लोग हैं सब पानी खौलने के बाद भी इन्हें अहसास नहीं होगा क्योकि तापमान धीरे धीरे बढ़ रहा है…आज आप भोगो कल बाकी भोगेंगे…….सब कुछ लिखना मुमकिन नही अहसास करने की जरुरत है …

  69. अफ़लातून

    October 21, 2010 at 1:01 am

    आई,जी ज़ोन के यहां प्रतिवाद प्रकट कर सकता था। आगे जैसा तय करें,बताइएगा । गाजीपुर में हमारी इकाई नहीं है। आप भले वोट न दें लेकिन गांव पहुंचिए। हिम्मत की आप में कमी नहीं है।

  70. प्रमोद ताम्बट

    October 21, 2010 at 1:23 am

    यशवंत जी
    मेरी प्रतिक्रिया में गलती से 11 दिसम्बर लिख गया है यह 11 अक्टूबर की बात है जब आप वर्धा से लौट रहे थे।
    प्रमोद ताम्बट
    भोपाल
    http://www.vyangya.blog.co.in
    http://vyangyalok.blogspot.com
    व्यंग्य और व्यंग्यलोक
    On Facebook

  71. पंकज झा

    October 21, 2010 at 2:06 am

    ओह ….अभी बाहर होने के कारण नियमित नेट पर नहीं आ पाता हूँ. काफी विलम्ब से यह पता चला. वास्तव में शर्मनाक….ठीक ही थूकने का मन कर रहा है ऐसे सिस्टम पर. सोच कर ताज्जूब होता है की किस तरह का अमानवीय हो गया है पोलिस का तंत्र. ईस सिस्टम को बदलना ही होगा नहीं तो लोग बदला लेने पर उतारू हो गए तो लाख ताकतवर हों मायावती लेकिन दो कौरी की औकात नहीं रह जायेगी उनकी भी जनाक्रोश के आगे. यशवंत जी …वास्तव में वो हम सबकी माँ हाई और पूरी विरादरी आपके साथ खादी है…..लानत है मायावती और उनकी सरकार पर.
    -पंकज झा.

  72. nilay singh

    October 21, 2010 at 4:39 pm

    a samsher saala kaun hia. sabse pahele isi ki sandon ki tarah nasbandi karni hogi. yashwant ji samsher naam ke kutte ka pata to batayen.

  73. Abdul salam Secretory of electronic media chhattisgarh

    October 22, 2010 at 3:00 am

    yaha dekhane wali baat yah hai ki , ham media wale agar tedhe ho jaye aur is bharst prasasan ke khilaph likhane lage to hamara des bhir se sone ki chidiya ho jayegi. per patrakarita to ab wywasay ban chuka hai.

  74. Sudhir.Gautam

    October 22, 2010 at 5:44 pm

    Even when I read the Prem Prakash article first and saw your Mother News following in next few hours,I was stunned by both the news.
    Police in UP is definitely crossing the limit and it will be real difficult for administration to manage the things later on if they wont put a check on it asap.
    Check hastakshep by some or the other way web-media is trying to circulate the word to have an impact ripple in to the deaf ears. We all condemn it and will left no stone unturned to put an end to it.Come what may!!!
    http://hastakshep.com/view_info.php?id=330

  75. ATUL MISHRA

    October 23, 2010 at 6:29 am

    BHARTIYA ….. SORRY..SORRY…… UTTER PRADESH POLICE KI KARYA KSHAMTA KO MERA SADAR PRANAM ! !

    DAKAITO SE SEEKH KAR POLICE NE YE HATHKANDE APNAAYE HAI. YASHVANT JI YE VIDAMBANA HI HAI KI IS AAZAD DESH ME ABHI TAK KOI BHI AISA SAKSHAM VYAKTI NAHI PAIDA HUA HAI JO 1862 KI BANI HUYI ANGREJO KI I.P.C. KO BADAL SAKE, YAHI NAHI “CRPC” KA BHI YAHI HAAL HAI. FIR BECHARI POLICE SE YE KAISE AASHA KI JAA SAKTI HAI KI VO SAMANTWADI PRATHA KO BADAL SAKTI HAI. “BUDDHI” AUR “VIVEK” SE SHOONYA HO CHUKI YE “BECHARI” POLICE AKHIR KARE TO KARE KYA??

    BECHARI POLICE JUB MARUTI CAR KE CHORI CHALE JAANE PER DUPAHIYA WAHANO KI CHEKING KARTI HAI TO BAL SULABH- GAU SAMAN POLICE KISI T.V. SERIAL KI BEHAD SATAYI HUYI BAHU KE SAMAN PRATEET HOTI HAI………. DHIKKAR HAI !!! AISI POLICE PER…. ARE YE KYA KAH DIYA…….SORRY…….SORRY……… POLICE TO BECHARI HAI.

    BAKAUL BADE ADHIKARIYO KI RATI-RATAI JUBAN “MERE PAAS KOI JADU KI DANDI NAHI HAI JISASE CRIME PER CONTROL KIYA JAA SAKE” SE AAZIZ AA KAR AKHIR NIREEH JANTA JAAYE TO JAAYE KAHA??

    US PER MASHA ALLAH !! SUBE KE HUKMARANO KI JINHE RUPAYA BATORNE SE FURSAT NAHI.

    AISE ME EK VARISHTH PATRAKAR KI AAWAJ KO BHALA KAUN SUNEGA?????

    UNKA TO MANANA YAHI HAI KI HAANTHI APNI RAAH CHAL RAHA HAI AUR KUTTE TO BHAUNKTE HI RAHTE HAI………

  76. sandeep paroha

    October 23, 2010 at 4:28 pm

    mitra yashwant
    ek patrakar hone ke naate bhi aur ek insaan hone ke naate bhi mai aapki peeda ko samajh sakta hun. police ki barbarta hum log roz hi dekhte hain. jo kuchh hua behad sharmnak aur kanoon ke khilaf hua hai. maa ki keemat saayad neta aur afsaron ki nazar me kuchh nahi hoti. agar police afsaron aur netaon me zara bhi sharm bachi hai to doshi police afsaron ko tatkal hata kar sakht kaarwai karni chahiye.

  77. dhiraj dhillon

    October 23, 2010 at 7:17 pm

    maa ke sath hui ghatana dukhad hai. yashwant bhai hum aapke saath hain

  78. samarth

    October 24, 2010 at 6:25 am

    यशवंत भाई एक बात कहू , पढने के बाद शब्द नहीं बचे बस युही चुप रहने को जी करता है | लेकिन जनता हूँ की क्या हैसियत और औकात है इस जनता के द्वारा चुनी हुई सरकार भ्रष्ट सरकार की | परिवार मैं दो बेहद ईमानदार आई.ए. एस. और आई.पी.एस अधिकारी है, दोनों वरिष्ठ है, उनको देखता हूँ तो लगता नहीं की ईमानदारी की क़द्र है इस सरकार को | एक ने तो हाल ही मैं भ्रष्टाचार, राजनीति के गंदे खेल से हार मान ली और इस्तीफा दे दिया | क्योकि दो महीने मैं तीन तबादले और मानसिक यातना सह नहीं पाए रहे थे, खैर इतने कमजोर भी नहीं थे की यु हार मान ले लेकिन ये बीस साल से सहते सहते उम्मीद खो चुके थे, एक कारण और भी था की उन्होंने भ्रष्टाचार उजागर कर दिया था, इन्ही के मंत्रियों का जो मैडम को नागवार गुज़रा, खैर खूब हो हल्ला हुआ अखबारों में छपा | और दुसरे पड़े है कहीं पता नहीं जब मन करता है तब कही भी महत्वहीन विभाग में डाल दिया जाता है उनको क्योकि वो भी इनकी मर्ज़ी मुताबिक काम नहीं कर पाते | खैर जो भी हो ईश्वर सब देखता है उसकी लाठी बिना आवाज़ की होती है जब पड़ती है तो करहाने मौका भी नहीं देती है | आपके दुःख का एहसास है आपकी नहीं मेरी भी माँ है वो साथ हूँ जब चाहो तब, अब जब सामने आये है तो मुकाबला करेंगे ही |

  79. SANJAY DWIVEDI

    October 25, 2010 at 12:13 am

    यशवंत, सच मैं स्तब्ध हूं। देश के एक महत्वपूर्ण और सक्रिय पत्रकार के परिवार के साथ ऐसा हो सकता है, मैं सोच भी नहीं सकता। मां के लिए आपकी भावनाएं मैंने पढ़ीं सच में ऐसी स्थितियों में कोई भी क्या कर सकता है। आपका जीवन और उसके उद्देश्य बहुत स्पष्ट रहे हैं। किंतु आंदोलन किस तरह भटकते और अमर्यादित व अलोकतांत्रिक हो जाते हैं मायावती का राज इसका उदाहरण है। मायावती आज भारतीय राजनीति का एक ऐसा चेहरा हैं जिनके खिलाफ कुछ भी कहने से उनके नंबर बढ़ते हैं। एक दलित महिला होकर भी अगर मैं उन्हें संवदेना से रिक्त पाता हूं,तो हम भरोसा किस पर करें। सामान्य परिवारों से आए लोग ही आज सत्ता और प्रशासन में काबिज हैं। चाहे वे बृजलाल हों या मायावती। क्या सत्ता का चरित्र ही ऐसा है कि वह संवेदनाएं सुखा देती है। मेरे तमाम मित्र कहते हैं कि तुमने अपने कर्मक्षेत्र के रूप में छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश को क्यों चुना? मेरे पास इस बात का वाजिब उत्तर नहीं हैं। किंतु अगर यशवंत तुम जैसे आदमी की मां का सम्मान भी उत्तर प्रदेश में सुरक्षित नहीं तो मुझे लगता है कि मेरा फैसला ठीक था। एक महिला मुख्यमंत्री के राज में महिलाओं के साथ ऐसा बर्ताव होता है तो लोग मायावती को यूं ही “लेडी मुलायम” नहीं कहते। मुझे शर्म है कि जिस कुर्सी पर आचार्य संपूर्णानंद, गोविंदबल्लभ पंत, हेमवती नंदन बहुगुणा, सुचेता कृपलानी, चौधरी चरण सिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह जैसे लोग बैठे उस उप्र के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर हमारे पास मायावती और मुलायम सिंह यादव सरीखे विकल्प ही शेष बचे हैं। यह उत्तर प्रदेश का दुर्भाग्य है कि देश को दिशा देने वाली उसकी राजनीति आज निहायत घटिया सवालों की कैद में फंस गयी है। मैं आपके दर्द में साथ हूं, भरोसा कीजिए । पर उजास की कोई किरण मुझे नहीं दीखती। हम सब पढ़ लिखकर ऐसे हो गए हैं कि अन्याय का प्रतिरोध भी करना भूल गए हैं, ऐसे हालात में जब भरोसा, आस्थाएं सब बिखर गयी हों तो हम किसके इंतजार में खामोश हैं। क्या सचमुच कोई देवदूत आएगा जो हमारे दुख हरेगा। मुझे आज की स्थितियों में तो भरोसा नहीं है,आगे के दिनों की कौन जाने। मैं अपने व्यर्थ और नपुंसक गुस्से के साथ तुम्हारे साथ हूं।
    [b]- संजय द्विवेदी, भोपाल [/b]

  80. Jugul Kishore

    October 25, 2010 at 5:58 pm

    Yashwant ji Namaskar, Maine apne ek police adhikari mitra ke jankari dene par aapke ki dardbhari dastan padhi.Yadhyapi lekh ke anusar jimmedar bhi mera hi mahkama hai par fir bhi kahne ka sahas juta raha hoon kyonki kuchh aur na sahi aapke dard me sahbhagi hi bn sakun.
    Is tarah ki ghatnayen isliye hoti hain ki hum sab kuchh sah jate hain,kahne aur shikayat tatha kanooni kadam nahi uthate.
    Aise me kanoon ko tak me rakhne wale log dheeth va nischint ho jate hain. aisa bhi nahi ki aise krityon par inhe saja na milti ho par pratisat kam hai isiliye rok nahi hai.
    Yah prakriti ka niyam hai ki jo apne adhikaron ka durupyog karta hai ya fir unhen prayyog hi nahi karta ve adhikar swatah samapt ho jate hain.
    Aj police ki yah chhabi,human right,suchna adhika aadi niyam nirankushta ko rokane ke hi liye bane hai,
    Par Yashwant ji Aadmi hi hr jagah baitha hai koyi police nam ki jati ya race nahi hai sabhi is bhang bhare kuyen se pani pikar nikale hain ve chahi patrakar hon,Neta,Samajik karykarta,police ya anya koyi, apne sabki khabar bhi li hai.
    Aise me jab tak yah soch nahi paida hogi ki Aaj hm jo bhi samaj me bo rahe hain, hinsa,apradh,naxalwad,corruption,jatiwad,samprakyikata ya fir in burayion ko faicilate kar rahe hai vah bahut jaldi hamare samne muh bayi hme khane ko taiyar hongi,Hamari aane wale generation ko inse do char hona hoga . yah har Am aur Khas pr lagu hai.
    Isi liye Dharm granthon me Atma Pratikulani Paresham na samacharet ki bat kahi gayi hai,
    Samaj ki durgati tatha Brashta logon se sabhi parichit hain so jyada kya kahna.
    Main Apki is byatha ko AAj hi manniya UP HUMAN RIGHTS COMMISSION ki sangyan me lata hun aur ummid karta hun ki kadachit Ayog Samanta,Swatantrata va Vayakti ki Garima ki raksha kar sake,

    Jugul Kishore Addl.SP UP Human Rights Commission Vibhuti Khand Lucknow. Mobile- 9454401152

  81. RAJENDARA HADA, AJMER

    October 26, 2010 at 9:09 pm

    yashwant ji,
    postcard ko writ petition mankar cognizence lene wali nyaypalika aur mahila hiton ke liye bane national women commission ki khamoshi per tajjub hai. main iska print supreme court, allahabad high court, mahila aayog aur manvadhikar aayog ko bhej raha hun kyonki ma ma hoti hai aur ma ka apman hum sahan nahi kar sakte. >:(

  82. Hari Shanker

    October 28, 2010 at 9:14 pm

    वास्तव में सिस्टम नाम का कोई चीज रह ही नही गया है लेकिन इसके जिम्मेदार हम पत्रकार भी हैं,दरअसल व्यावसायिकता पत्रकारिता पर हाबी है, किसी का भला हो या बुरा मेरा भला होना चाहिए, यही मानसिकता बन चुकी है लिहाजा जयादातर पत्रकार रीढविहीन हो चुके हैं,हर छोटे से छोटे मामले में खेमेबंदी हो जाती है, राजनीति घर घर पहुच चुकी है माननीय लोग भी किसी एक का दामन थाम लेते हैं फिर चाहे वो गलत हो या सही,आपने भी जिसकी जिसकी बजाई होगी उन सबने अपने अपने ढंग से अपना काम इस मामले में जरूर किया होगा तय मानिए…. घड़ाली आंसू बहाने को सब हैं पर अपनी शक्ल आईने में देखने की हिम्मत नहीं की वो कर क्या रहे हैं……..गुनगुने पानी में डाले हुए लोग हैं सब पानी खौलने के बाद भी इन्हें अहसास नहीं होगा क्योकि तापमान धीरे धीरे बढ़ रहा है…आज आप भोगो कल बाकी भोगेंगे…….सब कुछ लिखना मुमकिन नही अहसास करने की जरुरत है …

  83. योगराज शर्मा

    October 28, 2010 at 10:00 pm

    सुप्रीम कोर्ट ऐसे मामलों में स्पष्ट गाइड-लाइन दे, जो पालन नहीं कर रहे उन पुलिसवालों को दंडित करे

    आरोप किसी पर हो, और पुलिस किसी और को ले जाए… वो भी महिला को… किसी भी तरीके से जायज नहीं ठहराया जा सकता… इस तरह का ये पहला मामला नहीं है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट चाहे तो इसे उदाहरण मानकर ही स्पष्ट गाइडलाइन दे सकता है… क्या इससे पहले अखबारों, नेट या टीवी पर आने वाली खबरों पर अदालतों ने कभी संज्ञान नहीं लिया… इस बार अदालतों की ये खामोशी क्यों… मायावती या मनमोहन सिंह की सरकार ऐसे मामलों पर चुप बैठ सकती है, आंखें मूंद सकती है… लेकिन अदालत पर तो आज भी देश का भरोसा है…
    यशवंत जी की माता जी के साथ किए पुलिस के दुर्व्यवहार पर सरकारों की चुप्पी बहुत ही शर्मनाक है… पुलिस के उन अधिकारियों की खामोशी भी उन्ही की पोल खोल रही है, जो न्याय दिलाने की कसमें खाकर वर्दी और कुर्सी का रौब झाड़ने में लगे हैं…
    मेरी विनती है माननीय अदालतों से अपना हक दिखाएं… अपनी ताकत का एक बार फिर परिचय दें… अदालत आदेश जारी कर सकती है, उच्च स्तरीय जांच करवा सकती है… लेकिन यूपी पुलिस से नहीं, हम चाहते हैं कि किसी रिटायर्ड जज को जिम्मेदारी सौंपे…
    न्याय पर लोगों का विश्वास बढेगा…

    योगराज शर्मा
    एडिटर इन चीफ
    जर्नलिस्ट टुडे नेटवर्क

  84. Amit Saini

    October 29, 2010 at 10:35 pm

    यशवंतजी,
    आपकी माँ हम सब की माँ है. जितना दर्द आपके दिल में है उठाता हम सब के दिल में है.हकीकत तो यह है कि हमारे पास कहने को कुछ बचा ही नहीं। इतने जालिम और खूंख्वार सिस्टम में हम जी रहे हैं, कि दूसरों को तो दूर, खुद अपनी ही मां-बहनों की सुरक्षा के लिए हमें लाचार होकर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने की मजबूरी झेलनी पडेगी ? यह तो कभी सोचा भी ना था हमने। मंत्रियों और अफसरों की चापलूसी ना करने की यह सजा भुगतनी पड सकती है ? हमारा यह फैसला इस जानकारी के बावजूद था कि हमारे ही बीच के लोग चापलूसी की चटनी चाट कर बेखौफ और मदमस्त रहते हैं। इस घटना पर जितना भी अफसोस किया जाये कम है मगर यहाँ सिर्फ अफसोस करने से काम नहीं चलेगा.हम सब को मिलकर इस के खिलाफ आवाज़ उठानी होगी। इस पुलिसिया दुष्कृत्य का पुरज़ोर विरोध किया जाना चाहिए, कुछ इस तरह कि वे भविष्य में किसी भी आरोपी के निर्दोष परिजनों को थाने तक लाने के बारे में सोचें तक नहीं l घोर निन्दनीय है. यदि यही सब चलता रहा तो एक दिन यही पुलिस वाले सिस्टम पर हावी हो जायेंगे और इस लोकतन्त्र का गला घोंट देंगे. यदि आप इस सिलसिले में कोई प्लान करते है तो मुझे बताएं मैं आपके साथ हूँ।

    Amit Saini
    (Editor-N-Chief)
    *KHABRILAL*
    http://www.khabrilal4u.blogspot.com

  85. amit pandey

    November 9, 2010 at 1:37 pm

    dear yashwant jee, mere mail per aapki ummed aaye the. bhadas per bhi pada tha, kai logo ke comments bhi pade, sabhi log dukhi dikh rahe hai sabdo mai, wakyo mai. yashwant jee yadi sahi maine mai hum sabhi se aap umid karte hai ki hum log kuch bhi sahyog kare, aage bad kar kuch kare tho jarori hai khud ko sankalpit karne ka. aapki mata jee ke saath jo kuch bhi hua wo meri mata jee ke saath na ho, too hum patrakaro ko jameen se juri khabro ko prathmikta dene hogi, chahe usee managment jitna bhi rokee, desk wale ko usee jaror chapna chahiye. hum yadi apna kam imandari se karne lage to kya majal UP Police ka aur kya Majal government ka? jab patrakaro ne angrejoo ko paani pila diya tha to inki dadagiri ko kalam se khatm ki ja sakti hai. Madam Maya ho, Madam Soniya ho ya Madam Meera Kumar, kise phikra hai, in teeno mai se kisi ki matta jee nahi hai aab aur ye jo khud hai, too kya majal police aur sarkar ki jo parinda bhi per mar le. lekin in logo ko es baat ka andaja nahi hai, ki patrakar aur nirih janta bahoot taktwar hote hai. ye abhi tak usi khawat mai viswas karte hai ki saiya bhai kotwal ab dar kahe ka. aur UP Police ke too aise bhi kai kisse sune hai hamne bihar mai bhi. sare police walo ke chere ek jaise hi dikhte hai, jaise sare suar ek jaise rahte hai. unki to……..

  86. yogendra

    March 3, 2011 at 2:24 pm

    The law & order system is rotted in UP. Ministers in Mayawati govt. are corrupt. The petitioners are put behind bars because they could manage to reach CM to put forward their grievances. Police ko manavadhikaron ki na to koi chinta hai aur na koi dar. Court ke aadesh inke liye koi mayane nahi rakhte. this is correct that it happens all over India, Up is also part of this system. But as long as corrupt ministers are elected & selected such incidents will take place

  87. sushil shukla shahjahanpur

    March 7, 2011 at 9:18 am

    yashvant ji aap ki daastan sunkar muzhe bahut dukh hua aur ho bhi kyun na kyunki jis maya k tanashahi ki hum baat kar rahe hain usme maya aur unke naukarshah va police to kam doshi hai jyada dosh to hum jaisi gareeb janta ka hai kyunki hum janta ne hi unko us kursi per baithaya ji per baith kar wo up me nanga naach kar rahi hai.per hum bholi-bhali janta ne maya ko isliye ye kursi nahi di thi ki wo unki hi izzat k saath khilvad karen.hum aur aap kahte hain ki up ki police aur bade padon per baithe adhikari bekaabu hain aisa to hai per sirf 50% hi hai kyunki up me ho rahe roz naye naye kaarnamo ki asli doshi to mayavati hi hain . banki sab to unke kaarinde hai jaisa aadesh maya detin hain baisa hi ye log karte hai aur agar nahi karenge to maya k kop ka bhajan banna padega inko
    .hum aur aap in naukar shahom aur police ko badalne ki baat karte hain to ye galat hai agar kuch badalna hai to sirf ek hi batan davao aur sara ka sara bhrast sistam apne aap hi ud jayega aur wo batan hao maya.maya.maya. bus aur kuch nahi …….ek kahavat hai ki nahoga baans aur na bajegi bansuri.theek baise hi na hogi maya aur na hoga up me bhrastachar,police ka attyachar,naukarshahon ki manmani,daliton ki betiyon ki izzat se khilvad,yashvant ji (hum sabhi media karmiyon aur all india )ki maa ka apmaan,gareeb aur svarno k saath bhed-bhav,mantriyon aur mla ki gundagardi,police ki manmani,kisibhi lachar mahila k saath balatkaar,aur jab maya hi up me nahi hogngi to hamare up ki surat aur seerat hi badal jaaye gi .jab maya up me nahi rahengi to hamara up banjayega gandhi ji k sapno ka bharat or up.mai theek hi bol raha hoon na.? jab up se maya ki maya ka safaya ho jayega to fir kisi bhi bekasoor maa ko thane me nahi bithaya jayega….yashvant ji shahjahanpur k sabhi media karmin aap k saath hain.humsab ek hokar is maya ko up se bhagane ki ladai ladenge.kyunki ekta me bahut shakti hoti hai.aur hum sab ek hain……yashvant ji aap mere aadarsh hain jo aap sochte hain theek bahi hum bhi sochte hain …….aap ka humne poora lekh padha hai jab hum aap ke dwara likhi hu maa k naam ki paati padh rahe the to meri aankh se ek aansoo keyboard per tapak gaya tha aur bacha hua ek aansoo aankh me hi afsos k saath sookh gaya.aur wo sookhne wala aansoo ye bolkar sookhgaya ki abhi hum do aanshoo ek saath aankh se nikle the jo ek dukh ka aansho tha bo to girgaya per ek khushi kaa aansho hai aur wo sookha ja raha hai ye aansoo tab gire ga jab up se maya ki tanashahi ka ant hojayega……………………………………………………………………………………………………..up me maya ki tanashahi sarkar hai aur mai maya ko abhi se hoshiyar karta hoon ki ye maya khabardar wo din door nahi jab tumhari tanashahi khatm ho jayegi aur maya tum ko bhi husne mubarq ki tarha apna raajpath chod kar up se bhagna hoga……mai abhi se ye aakashvani karta hoon maya k liye.isliye aye maya agar tu apni khair chahti hai to sudhar ja nahi to tera vinash nishchit hai//////////////////////////////////////////// Yashvant Ji Aapka ——-Sushil Shukla Shahjahanpur (up) News-24 my cell number-09452095122

  88. heena

    May 19, 2011 at 9:04 am

    yashvant ji agar hum sab apne shahar m ghoome to aisi kai samasyaein hame mil jaaengi lekin log dar ke kaaran kuch keh nahi paate hain.lekin aane waale chunaw m janta ko in bhrasht netaon ko inki karni ka jawab dena hoga.

  89. Shambhu Goel

    July 4, 2011 at 12:21 pm

    आश्चर्यचकित होना या हैरान होने की इसमें क्या बात है |उ.प्र. में ,बिहार,और अब पश्चिम बंगाल में यह सब होगा |इन तीनों प्रदेशों के सरकारी मुलाजिम और पुलिस प्रशासन को तो सरकारी तौर पर ही नंगा नांच करने का लाइसेंस दे दिया गया है |अंग्रेजी में एक बहुचर्चित कहावत है “power corrupts,absolute power corrupts absolutely “| इसको मत भूलिए की जब जब पूर्ण बहुमत की सरकार जहाँ जहाँ बनी है ऐसा ही हुआ है |जैसे पश्चिम बंगाल में होने वाला है |अभी तो वहाँ सरकार बनी ही है |पूर्ण बहुमत्तता का अभी बंगाल के सरकारी पदाधिकारी दानवी रोल का प्रशिक्षण ही ले रहें हैं , बिहार और यु.पी. की हवा से जैसे जैसे वाकिफ होंगे वैसे वैसे यहाँ भी सब कुछ होने लगेगा जो इन दोनों प्रान्तों में आज के दिन बखूबी हो रहा है |बिहार में सरकारी कर्मचारियों का नंगा नांच को नितीश का लाइसेंस प्राप्त है |आपको एक मिशाल पेश कर्ता हूँ जिससे आपको लगेगा की बिहार में लोकतंत्र बिलकुल नहीं है यहाँ पार्टी शाही है |पहले राजद की पार्टी शाही थी या गुंडा शाही थी अब तो नितीश जी के टाइम में सरकारी आफिसर ,इनका चपरासी ,इनके आई.ए. एस. आफिसर तक केवल गूंडा गर्दी पर उतारू हैं और नितीश जी का इनलोगों को मौन समर्थन है |यहाँ एक सच्ची घटना का विवरण देखिये :महाशय ,
    मैं कम से कम दस बार माननीय मुख्य मंत्री जी के grievance cell में अपनी व्यथा के बारे में लिख चूका हूँ!
    हमारी एक औद्योगिक इकाई जिसका नाम हिमालय एग्रो केमिकल्स प्राइवेट लिमिटेड है विगत 30 सालों से कार्यरत थी! दिनांक 18/12/2010 से यह कारखाना कृषि विभाग, बिहार द्वारा बंद करवाया जा चूका है!
    कृषि विभाग में कार्यरत एक पदाधिकारी जिसका नाम संजय सिंह है जिसकी मूल पदस्थापना कृषि विभाग के सांख्यिकी विभाग में है लेकिन इनको कतिपय कारणों से कृषि विभाग के राज्यस्तरीय उर्वरक कोषांग, का प्रभारी 2007 से ही बना दिया गया था जब श्री बी० राजेंद्र कृषि निदेशक थे!
    इनके अत्याचारों की कहानी इस प्रकार है :-
    1.इस कहानी की पहली कड़ी तो इसने 2007 में ही शुरू कर दी थी!

    2.कम शब्दों में कहना यह है की 09/03/2010 को ही हमलोगों ने (within specified time) अपने उर्वरक विनिर्माण और विपणन की अलग अलग अनुज्ञप्तियां के नवीनीकरण के लिए आवेदन कृषि विभाग को समर्पित कर दिया था!

    3.20 मई 2010 को (करीब 70 दिनों पश्चात) कृषि निदेशक महोदय ने हमारे प्रतिष्ठान में स्थापित उर्वरक गुण विश्लेषण प्रयोगशाला की जांच करवाई! इस जांच दल में श्री बैद्यनाथ यादव, तत्कालीन उप कृषि निदेशक (मीठापुर गुण नियंत्रण प्रयोगशाला), श्री अशोक प्रसाद, उप कृषि निदेशक (मुख्यालय) थे!

    4.इन लोगों ने अपने जांचोपरांत प्रतिवेदन में निम्नलिखित बातों को दर्शाया :-

    (क)प्रतिष्ठान में संचालित प्रयोगशाला में यन्त्र एवं उपकरण कार्यशील पाए गए! प्रयोगशाला में अपर्याप्त संख्या में यन्त्र और उपकरण पाया गया! प्रयोगशाला सीमित जांच सुविधा के साथ कार्यशील पाया गया!

    (ख)रसायनज्ञ कार्यरत है एवं उसे विश्लेषण कार्य की जानकारी है!

    (ग)विनिर्माण हेतु आधारभूत संरचना-उपलब्ध है तथा चालू हालत में है!

    (घ)इसके अलावा यह भी कहा गया की प्रतिष्ठान में विनिर्माण इकाई में उत्पादित उर्वरक के प्रयोगशाला में गुणात्मक जांच सम्बन्धी अभिलेख आंकड़ा आदि संधारित नहीं पाया गया!

    (ङ)उर्वरक सम्बन्धी कच्चा माल स्थानीय थोक विक्रेता शिवनारायण चिरंजीलाल से मुख्य रूप से प्राप्त किये जाते हैं एवं उत्पादित उर्वरक का अधिक से अधिक हिस्सा इसी प्रतिष्ठान के माध्यम से बेचे जाते हैं!

    (च)एन०पी०के० मिक्सचर विनिर्माण इकाइयों को कच्चा माल के रूप में उर्वरक आपूर्ति हेतु भारत सरकार से समय समय पर निर्गत निदेश और इससे सम्बंधित अद्यतन निदेश (23011/1/2010-MPR, दिनांक 04/03/2010) जिससे वे अवगत हैं का अनुपालन नहीं किया जा रहा है!

    5.इसी बीच दिनांक 20/07/2010 को कृषि निदेशक महोदय ने अपने आदेश संख्या 798/23/07/2010 के द्वारा हमारा विनिर्माण/विपणन प्रमाण पत्र हेतु समर्पित आवेदनों को अस्वीकृत कर दिया और इस आदेश में यह भी दर्शाया की उनके इस आदेश के विरूद्ध 30 दिनों के अंदर हमलोग कृषि उत्पादन आयुक्त, बिहार पटना के यहाँ अपील दायर कर सकते हैं!

    6.हमलोगों ने विधिवत अपनी अपील कृषि उत्पादन आयुक्त महोदय के यहाँ समर्पित 30/07/2010 को ही कर दी!

    7.कृषि उत्पादन आयुक्त महोदय के यहाँ से 60 दिनों बाद अपील का आदेश प्राप्त हुआ जिसमे प्रमुख बातें इस प्रकार है :-

    (क)”रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय, भारत सरकार के पत्र संख्या 23011 दिनांक 04/03/2010 में यह स्पष्ट है की ‘manufacturers of custimsed fertilizers and mixture fertilizers will be eligible to source subsidised fertilizers from the manufacturers/importers after their receipt in the districts as input for manufacturing customised fertilisers and mixture fertilizers for agriculture purpose .’ इस पत्र से यह स्पष्ट होता है की मिश्रित उर्वरक विनिर्माताओं को अनुदानित उर्वरक उपयोग करने की अनुमति है! राज्य के लिए आवंटित अनुदानित उर्वरक की आपूर्ति manufacturers /importers द्वारा की जाती है, जिसका वितरण थोक विक्रेता के माध्यम से किया जाता है! राज्य को आवंटित अनुदानित उर्वरक के कोटा में से ही मिश्रित उर्वरक विनिर्माताओं को उर्वरक उपलब्ध कराया जाना है! मिश्रित उर्वरक विनिर्माताओं की आवश्यकता की पूर्ति के लिए अगर अतिरिक्त अनुदानित उर्वरक की आवश्यकता हो तो उसकी मांग निदेशक, कृषि रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय, भारत सरकार से कर सकते हैं! सभी पहलू पर विचार करते हुए यह आदेश दिया जाता है की तत्काल जिले के लिए आवंटित उर्वरक के कुछ प्रतिशत जिला कृषि पदाधिकारी मिश्रित उर्वरक विनिर्माताओं को उपलब्ध करायेंगे, इस हेतु निदेशक, कृषि सम्बंधित जिला कृषि पदाधिकारी को आवश्यक निदेश देंगे!

    (ख)कृषि मंत्रालय की अधिसूचना दिनांक 16/04/1991 में यह स्पष्ट किया गया है की सभी एन०पी०के० मिश्रण विनिर्माताओं को अधिसूचना में उल्लेख किये गए न्यूनतम उपकरण को प्रयोगशाला में रखना ही होगा!

    (ग)सभी तथ्यों पर गंभीरता से विचार करते हुए यह आदेश दिया जाता है की अपीलकर्ता प्रयोगशाला में सभी न्यूनतम उपकरणों की व्यवस्था कर निदेशक, कृषि को सूचित करेंगे! निदेशक, कृषि आवश्यक जांच कर संतुष्ट होने पर अपीलकर्ता के विनिर्माण प्रमाणपत्र को नवीकृत करेंगे! निदेशक, कृषि विनिर्माण प्रमाण पत्र निर्गत करते समय विपणन प्राधिकार पत्र के नवीकृत करने पर भी विचार करेंगे!
    (N.B. :- this is verbatim replication of the order of APC, Bihar dated 30/09/2010 bearing no.4964. This order bears the signature of Sri K.C. Saha while he held the charge of APC when Sri A.K. Sinha had gone on a long leave )
    8.30/09/2010 को ही हमलोगों ने अपने प्रयोगशाला में सभी अनावश्यक (जिस उपकरण का आज के परिवेश में कोई मान्यता नहीं रह जाती है जैसे chemical Balance in place of electronic digital balance) आवश्यक उपकरणों की खरीद कर install कर देने सम्बन्धी पत्र निदेशक कृषि को पत्र द्वारा सूचित कर दिया और इसकी एक प्रति कृषि उत्पादन आयुक्त महोदय को भी दे दी!

    9.कृषि उत्पादन आयुक्त महोदय के इस आदेश को कतिपय कारणों से कृषि निदेशक महोदय को प्राप्त होने में काफी विलम्ब हुआ, इसी कारण दिनांक 22/10/2010 को कृषि निदेशक महोदय के यहाँ से एक पत्र द्वारा त्रिसदस्सीय दल की गठन का आदेश निकला जिसको यह कहा गया की प्रतिष्ठान के प्रयोगशाला को पुनः जांच की जाये! स्पष्ट है की कुछ सीढियों के अंतर पर ही ये दोनों कार्यालय नया सचिवालय, पटना में है लेकिन “22” दिनों के बाद ही कृषि निदेशक महोदय प्रतिष्ठान के प्रयोगशाला सम्बन्धी जांच के आदेश दे पाए!

    10.लेकिन यहाँ मात्र एक जांच सम्बन्धी आदेश को निकालने में 22 दिन लगे, फिर 23/11/2010 (यानि इस जांच दल के गठन होने के 1 महीने बाद) को ही इस त्रिसदस्सीय जांच दल ने हमारे प्रतिष्ठान के प्रयोगशाळा की जांच की, यानी एक महीने 1 दिन बाद ही यह संभव हो पाया! स्पष्ट है की कृषि उत्पादन आयुक्त महोदय के आदेश के 53(वें) दिन बाद हमारी प्रयोगशाला की जांच हो पायी!

    11.इस जांच प्रतिवेदन में जांच दल ने निष्कर्ष में प्रतिवेदित किया की :-

    -उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985 की धारा 21(A) के तहत उक्त प्रतिष्ठान के पास न्यूनतम प्रयोगशाला की सुविधा एवं उपरोक्त वर्णित उपकरण उपलब्ध हैं तथा उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985 की धारा 21(A) का पूर्ण-रूपेण पालन किया गया है! अतः उक्त प्रतिष्ठान के विनिर्माण पंजीकरण प्रमाण पत्र को नवीकरण करने हेतु विचार किया जा सकता है|”(this is again an exact replication of the report of findings of the three member inspecting team which is dated 23/11/2010).

    12.हमलोगों ने 02/11/2010 से अपने इकाई का उत्पादन शुरू कर दिया था! इस आशय की सूचना विधिवत कृषि निदेशक महोदय को दे दी गयी थी! उत्पादन शुरू करने के मुख्य तीन कारण थे जो इस प्रकार हैं:-

    (क)कृषि उत्पादन आयुक्त महोदय के आदेश के उपरांत कृषि निदेशालय द्वारा अनावश्यक विलम्ब हो रहा था, फिर भी इस आदेश के 1 महीने दो दिन बाद (यानी 32 दिनों बाद) काफी इंतज़ार करने के बाद रबी सीजन के चालू हो जाने के आलोक में, कृषकों के भी व्यापक हित में तथा मजदूर जो बहुत दिनों से बैठे हुए थे के कारण उत्पादन प्रारम्भ कृषि निदेशक को सूचित करते हुए कर दिया गया!

    (ख)कृषि उत्पादन आयुक्त महोदय के आदेश में यह दर्शाया गया है की “तत्काल जिले के लिए आवंटित उर्वरक के कुछ प्रतिशत जिला कृषि पदाधिकारी मिश्रित उर्वरक विनिर्माताओं को उपलब्ध कराएँगे “इससे यह स्पष्ट हो जाता है की उत्पादन चालु रखने के लिए ही ऐसे आदेश को पारित किया गया है!

    (ग)विनिर्माण और विपणन प्राधिकार पत्रों की नवीकरण का कृषि निदेशक महोदय द्वारा अस्वीकृत कर दिए जाने के उपरान्त कृषि उत्पादन आयुक्त के आदेश से अस्वीकृति का आदेश स्वतः विलोपित हो जाता है और उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985 की धारा 18(4) जो इस प्रकार है:- “where the application for renewal is made within the time specified in sub-clause (1)or sub-clause (3), the applicant shall be deemed to have held a vaid {certificate of manufacture} until such date as the registering authority passes order on application for renewal. “इसी तरह विपणन प्राधिकार पत्र के बारे में धारा 11(4) है! इन धाराओं के तहत हमलोगों ने उत्पादन शुरू किया जो हमारी महीनों से बंद पड़े प्लांट जो उर्वरक के कारण जंग खा रहा था, कृषकों को रबी सीजन में संतुलित दानेदार की उपलब्धता को बनाये रखने के लिए तथा भूखमरी की समस्या से ग्रसित मजदूरों को त्राण दिलवाने की मंशा से ऐसा कदम उठा कर कोई पाप नहीं किया गया था! यह उद्योग विगत 30 वर्षों से स्थापित है और हमारी अनुज्ञप्तियों की नवीनीकरण की प्रक्रिया कम से कम दस बार विभाग द्वारा पूर्व में भी अपनाई गयी है!

    13.दिनांक 18/12/2010 को कृषि निदेशक महोदय ने एक आदेश निकाला की (जो जिला कृषि पदाधिकारी, अररिया के नाम से प्रेषित था) “आपको आदेश दिया जाता है की में० हिमालय एग्रो केमिकल्स प्रा० ली० की फारविसगंज एवं पूर्णिया इकाई को पत्र प्राप्ति के साथ ही जांच कर लें एवं यदि विनिर्माण कार्य चालू रहने एवं उर्वरक विपणन का साक्षय पाया जाता है तो प्रतिष्ठान के प्रोपराइटर एवं प्रबंधन के विरूद्ध उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985 के खंड 7 एवं 12 का उल्लंघन करने के आरोप में आवश्यक वस्तु अधिनियम की धारा 7 के अंतर्गत साक्षय जुटाते हुए स्थानीय थाना में प्राथमिकी दर्ज कर दोनों संयंत्र को सील करने की त्वरित कार्रवाई करें! कृत कार्रवाईका प्रतिवेदन लौटती डाक से उपलब्ध कराया जाये! ” इस सन्दर्भ में कृषि निदेशक का पत्र संख्या 1427 दिनांक 15/12/2010 निर्गत हुआ है!

    14.इसके उपरान्त दिनांक 18/12/2010 को जिला कृषि पदाधिकारी श्री बैद्यनाथ यादव ने परियोजना कार्यपालक पदाधिकारी, फारविसगंज श्री मक्केश्वर पासवान को आदेश देकर 18/12/2010 को ही सील करवा दिया और दिनांक 19/12/2010 को फारविसगंज थाने में प्राथमिकी दर्ज करवा दी गयी! दर्ज प्राथमिकी की भाषा इस प्रकार है:- “उपरोक्त विषय के सम्बन्ध में जिला कृषि पदाधिकारी, अररिया के पत्रांक 1065 दिनांक 18/12/2010 एवं कृषि निदेशक, बिहार, पटना के पत्र संख्या 1427 दिनांक 15/12/2010 के द्वारा दिए गए निदेश के अनुपालन में में० हिमालय एग्रो केमिकल्स प्रा० ली०, रानीगंज रोड, फारविसगंज की जांच की गयी! जांच के समय फेक्ट्री बंद पायी गयी किन्तु भण्डार पंजी एवं वितरण पंजी के अवलोकन से ज्ञात होता है की फेक्ट्री में विनिर्माण कार्य कराया जाता रहा है! दिनांक 01/12/2010 को मेरे द्वारा भण्डार पंजी एवं विक्री पंजी की जांच की गयी थी जिसमे विनिर्मित NPK धनवर्षा हरासोना 18:18:10 भण्डार में कुल 105 of 50 kgs पाया गया था किन्तु दिनांक 18/12/2010 तक विनिर्मित NPK हरासोना 18:18:10 7,415 बोरा 50 के०जी० विक्री दिखाया गया है इस प्रकार दिसम्बर माह में कुल 7,310 बोरा 50 के०जी० का विनिर्माण में० हिमालय एग्रो केमिकल्स, फारविसगंज द्वारा किया गया है जो उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985 के खंड 7 एवं 12 का उल्लंघन किया गया है जो की गैर कानूनी और अवैध है! अतः में० हिमालय एग्रो केमिकल्स, रानीगंज रोड, फारविसगंज के द्वारा बगैर लाइसेंस नवीकरण कराये विनिर्माण इकाई में विनिर्माण एवं बिक्री करने के आरोप में प्रतिष्ठान के प्रबंधक सह प्रबंध निदेशक श्री शम्भू गोयल पिता ओंकार मल अग्रवाल, छुआ पट्टी रोड वार्ड न० 17 नगर परिषद, फारविसगंज के विरूद्ध प्राथिमिकी दर्ज की जाती है”! यह कार्य दिनांक 19/12/2010 को करवाया जाता है!

    15.इसी तरह हमारे पूर्णिया इकाई को भी बंद करवा दिया जाता है और 19/12/2010 को ही प्राथमिकी दर्ज कर दी गयी!

    16.कृषि निदेशालय में अनावश्यक विलम्ब हो रहा था इसका प्रमाण ऊपर अंकित विभिन्न तिथियों से स्वतः ज्ञात हो सकता है! संजय सिंह द्वारा इनकी बदनीयती से सृजित कथा का अंत यहीं नहीं होता है! हमलोगों ने इनलोगों के द्वारा अपनाई गयी प्रताड़ित करने की प्रक्रिया को देखते हुए माननीय उच्च न्यायालय में एक writ petition भी दिया था, संजोग से जिसकी सुनवाई 20/12/2010 को हो गयी और उच्च न्यायलय द्वारा आदेश जो दिया गया वो इस प्रकार है :-

    (क)CWJC NO.20251 of 2010: – “From the facts and circustances of this case, it is quite apprent that the matter for renewal of Certificate of Registration for manufacturing and sale of Mixture of Fertilizers is pending before the Director, Agriculture, Government of Bihar since 30/09/2010 when order passed by the Agriculture Production Commissioner, Bihar in Appeal no. 7 of 2010 was communicated.

    (ख)Let the said matter be considered and disposed of by the Director, Agriculture within a period of three weeks from the date of receipt/production of a copy of this order. It may be noted that violation of this order shall entail serious consequences and will be deemed as contempt of court and this court shall be constrained to take actions against the contemnor.

    (ग)A copyof this order be handed over to Government Advocate IV for proper compliance of this order.

    17.हाई कोर्ट के इस आदेश के विभाग में पहुँचने के बाद महज एक खानापूर्ति करने के लिए दिनांक 29/12/2010 को एक पत्र जिसका पत्रांक 1470 दिनांक 29/12/2010 कृषि निदेशालय से हमारे नाम से स्पष्टीकरण मांगने के लिए प्रेषित किया जाता है जो इस प्रकार है :-

    •उपर्युक्त विषयक कहना है की कृषि उत्पादन आयुक्त के आदेश ज्ञापांक 4964 दिनांक 30/09/2010 के आलोक में आपके प्रतिष्ठान के NPK मिश्रण विनिर्माण प्रमाण पत्र एवं विपणन प्राधिकार पत्र के नवीकरण की कार्रवाई प्रक्रियाधीन थी! इस बीच आपने अपने पत्र संख्या HAC-OUTLET-CMD/10/235/01 दिनांक 22/11/2010 के द्वारा सूचित किया है की आपके द्वारा NPK मिश्रण का विनिर्माण कार्य प्रारम्भ कर दिया गया है! आप अवगत हैं की बिना विनिर्माण प्रमाण पत्र विनिर्माण कार्य करना उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985 के खंड 12 का उल्लंघन है! आपके द्वारा बिना विनिर्माण प्रमाण पत्र प्राप्त किये ही विनिर्माण कार्य प्रारम्भ कर दिया गया है जो उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985 के खंड 12 का उल्लंघन है और आपका कृत उर्वरक नियंत्रण आदेश के विरूद्ध है तथा गैर कानूनी है! अतः आप स्पष्ट करें की उपरोक्त आरोप के आलोक में क्यों नहीं आपके प्रतिष्ठान का विनिर्माण प्रमाण पत्र एवं विपणन प्राधिकार पत्र के नवीकरण हेतु आपसे प्राप्त आवेदन को उर्वरक नियंत्रण आदेश के खंड 18(2) के अंतर्गत अस्वीकृत कर दिया जाए! आप अपना स्पष्टीकरण दिनांक 03/01/2011 तक अवश्य समर्पित करें अन्यथा एकतरफा निर्णय ले लिया जाएगा!

    (N.B.) विभाग द्वारा स्वयं ही यह स्वीकार किया जा रहा है की हमारे मिश्रण विनिर्माण प्रमाण पत्र एवं विपणन प्राधिकार पत्र के “नवीकरण” की कार्रवाई प्रक्रियाधीन थी! तब हमपर क्या नवीकरण की धाराओं के उल्लंघन में आरोप लगाना उचित होगा या की नए अनुज्ञप्ति पंजीकरण की धाराओं के उल्लंघन का आरोप लगाना कहाँ तक उचित होता है! ऐसे भी यह एक गहन चिंता का विषय है की प्राथमिकी दर्ज करवाने के निमित्त पत्र में खंड 12 और 7 के उल्लंघन का उल्लेख है जबकि स्पष्टीकरण में खंड 18(2) के उल्लंघन का आरोप भी लगाया जा रहा है!

    एक सोची समझी हुई बदनीयती की तहत एक साजिश कर के प्राथमिकी के उपरान्त स्पष्टीकरण पूछने का एक ही तात्पर्य है की जिससे उच्च न्यायालय को पुख्ता जवाब दिया जा सके! ऐसे प्राथमिकी हो जाने के बाद ऐसे स्पष्टीकरण को कोई औचित्य ही नहीं रह जाता है!

    संजय सिंह की मंशा तो शुरू से ही थी की रु० 10 लाख मिलने के बाद ही नवीकरण किया जाएगा! यह गैर कानूनी उगाही न होते देख इस व्यक्ति ने अपनी सारी ताकत झोंक कर और एक खास बेईमानी की नियत से न सिर्फ विभाग का समय बर्बाद करवाया है, इसके साथ सैकड़ों मजदूरों को भी बेरोजगार कर दिया है, लाखों रुपैये की खाद को पानी में परिवर्तित होकर बह जाने की खास कोशिश की है! हमारी बर्बादी करना तो इसके जेहन में 2007 से समा गयी थी जब यह व्यक्ति उल्टा सीधा आदेश डा० बी० राजेंद्र जी से करवाना शुरू कर दिया था! पर बिहार में भारतीय प्रशासनिक सेवा के ऐसे पदाधिकारी उल्टा सीधा आदेश देते ही रहते हैं जिससे इनका प्रभुत्व कायम रहे, भले ही जनता का नुकसान होते रहे, कम से कम कोर्ट-कचहरी के चक्कर में समय तो बर्बाद ये पदाधिकारी करवा ही देते हैं और इसी में इनको दीखता है अपना बांकपन/बड़प्पन, अपनी शक्ति! इन लोगों को यह भी शर्म नही है की कोर्ट के आदेश किस कदर इनके मुहं पर तमाचा लगाते है! कोर्ट ने इनके और एक खास कृषि उत्पादन आयुक्त के ऐसे ही आदेश के विरूद्ध एक अन्य मामले में जो हमारे मामले से हूबहू मिलता जुलता है में टिप्पणी की थी वो इस प्रकार है :- CWJC-16645 of 2010 order dated 1/10/2010 – “It is evident from the impugned order that they suffer from non-application of mind to the requirements of the Fertilizer Control Order not only with respect to the facts of the case but also the requirement of law.
    “Once the petitioner had taken the stand that shortage of equipments in the laboratory was rectified, either the respondent authorities ought have accepted the same or they could have made inspection of the Laboratory to verify the statements made and thereafter appropriate orders should have been passed keeping in view the valuable rights of the petitioner involved in the matter.
    On consideration of the entire facts and circumstances the order dated 4/06/2010 of the Director, Agriculture and 13/09/2010 of the Agriculture Production Commissioner are set aside and the matter is remanded to the Director, Agriculture to consider the question of renewal of the registration certificate of the petitioner in accordance with law after considering the documents submitted by the petitioner and, if necessary by getting the inspection of the petitioner’s laboratory done by a team of competent Officers .
    Let the application for renewal of the petioner be considered and disposed of within a period of three weeks from the date of receipt /production of a copy of this order.
    The writ petition is disposed of with the afore said observations and directions.
    Sd/- Ramesh Kumar Dutta ,J.
    लेकिन शर्म तो इन प्रशासनिक पदाधिकारियों ने एक दानवी हैवान के पहलू में गिरवी रख दी है! इसका एक खास कारण यह भी है की ऐसे पदाधिकारिओं का मान बढ़ता है चोर और सिरफिरे राजनीतिज्ञों का प्रश्रय मिलने पर! और कम से कम आज के कृषि विभाग में ऐसा ही हो रहा है!
    18.दिनांक 20/12/2010 के उच्च न्यायालय के आदेश के आलोक में उच्च न्यायालय के निर्देशानुसार हमारे अनुज्ञप्ति नवीकरण को नहीं करके कृषि निदेशक ने आदेश संख्या 25 दिनांक 07/01/2011 को हमारे आवेदन को पुनः अस्वीकृत कर दिया वह भी जब उच्च न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया था की “matter for renewal of certificate of Registration for manufacture and sale of Mixture of fertilizers is pending before the Director, Agriculture, Government of Bihar since 30/09/2010 when order passed by Agriculture Production Commissioner, Bihar in appeal no. 7 of 2010 was communicated.
    कृषि निदेशक ने इस मद में एक आदेश निकाला जो दिनांक 06/01/2011 को दस्तखत किया गया और वह इस प्रकार है :-
    -प्वाइंट नं० 6> “प्रतिष्ठान से प्राप्त स्पस्टीकरण संतोषप्रद एवं स्वीकार्य नहीं है! प्रतिष्ठान की ओर से प्राप्त स्पस्टीकरण से स्पस्ट होता है की उनके द्वारा उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985 के खंड 18(4) एवं 11(4) के अंतर्गत प्रतिष्ठान के विनिर्माण एवं विपणन प्राधिकार पत्र को वैध माना गया है! इस सम्बन्ध में उक्त दोनों खण्डों का उल्लेख करना समीचीन प्रतीत होता है! खंड 18(4) निम्नवत है :-
    “where the application for renewal is made within the time specified in sub-clause (1)or sub-clause (3), the applicant shall be deemed to have held a valid certificate of manufacture until such date as the registering authority passes order on application for renewal”.
    तथा 11(4) निम्नवत है :-
    “where the application for renewal of certificate of registration is made within the time specified in sub-clause (1)or sub-clause (3), the applicant shall be deemed to have held a valid certificate of registration until such date as the controller passes order on application for renewal”.
    उपरोक्त दोनों खण्डों के अवलोकन से स्पष्ट है की नवीकरण हेतु लंबित विनिर्माण प्रमाण पत्र एवं विपणन प्राधिकार पत्र उस अवधि तक वैध है जब तक की पंजीकरण पदाधिकारी के द्वारा आदेश पारित नहीं कर दिया जाय! में० हिमालय एग्रो केमिकल्स प्रा० ली० के मामले में प्रतिष्ठान का नवीकरण हेतु प्राप्त आवेदन अद्योहसताक्षरी के आदेश दिनांक 23/07/2010 के द्वारा अस्वीकृत किया जा चूका है! अतः उर्वरक नियत्रण आदेश 1985 के खंड 18(4) एवं 11(4) के अनुसार दिनांक 23/07/2010 को प्रतिष्ठान के विनिर्माण प्रमाण पत्र एवं विपणन प्राधिकार पत्र की वैधता समाप्त हो चुकी है!
    -प्वाइंट न० 7> कृषि उत्पादन आयुक्त के द्वारा अपील 07/2010 में पारित आदेश में कृषि निदेशक को निदेश दिया गया था की अपीलकर्ता के प्रयोगशाला में सभी न्यूनतम उपकरणों की जांच कर संतुष्ट होने पर अपीलकर्ता के विनिर्माण प्रमाण पत्र को नवीकृत करेंगे एवं इसे निर्गत करते समत विपणन प्राधिकार पत्र को नवीकृत करने पर विचार करेंगे! अपिलवाद के दिए गये आदेश के आलोक में प्रयोगशाला की सुविधा की जांच कर अग्रेतर कार्रवाही की जा रही थी! परन्तु इसी बीच में० हिमालय एग्रो केमिकल्स प्रा० ली० के द्वारा अनाधिकृत रूप से विनिर्माण एवं विपणन कार्य प्रारम्भ कर दिया गया जबकि अध्योहस्ताक्षरी के द्वारा कृषि निदेशालय के ज्ञापांक 898 दिनांक 23/07/2010 को संशोधन करने सम्बन्धी कोई भी आदेश निर्गत नहीं किया गया! इस परिस्थति में में० हिमालय एग्रो केमिकल्स प्रा० ली० के द्वारा किया गया विनिर्माण एवं विपणन कार्य बिना विनिर्माण प्रमाण पत्र एवं विपणन प्राधिकार पत्र प्राप्त किये किया गया है जो उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985 के खंड 12 एवं 7 का उल्लंघन है एवं जिसके लिए प्रतिष्ठान के विरूद्ध के० हाट थाना, पूर्णिया एवं फारबिसगंज थाना, अररिया में प्राथमिकी दर्ज की जा चुकी है!

    -प्वाइंट न० 8> उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है की में० हिमालय एग्रो केमिकल्स प्रा० ली० के द्वारा विनिर्माण प्रमाण पत्र एवं विपणन प्राधिकार पत्र के बिना उर्वरक मिश्रण का विनिर्माण एवं विपणन कार्य कर उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985 के खंड 12 एवं 7 का उल्लंघन किया गया है! प्रतिष्ठान के द्वारा उर्वरक नियंत्रण आदेश के उपरोक्त खंड को उल्लंघन करने के आरोप में दिनांक 30/09/2010 को में० हिमालय एग्रो केमिकल्स प्रा० ली० के द्वारा समर्पित विनिर्माण एवं विपणन प्राधिकार पत्र के नवीकरण हेतु आवेदन को अस्वीकृत किया जाता है!
    N.B. कृषि निदेशक के इस आदेश से निम्न बातें साफ़-साफ़ स्पष्ट हो जाती हैं:-
    (क) हिमालय एग्रो केमिकल्स के इस मामले में उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985 के तहत खंड 12 एवं खंड 7 ही लागू होगा न की खंड 18(4) एवं 11(4)!
    (ख) कृषि निदेशालय के उपर्वर्नित पत्राचार से यह भी साफ़ हो जाता है की यह मामला नवीकरण का न होकर नए अनुज्ञप्ति पंजीकरण का ही होगा! जबकि यह भी सत्य है की यह फेक्ट्री विगत 30 वर्षों से कार्यरत है और 10 बार इसकी अनुज्ञप्तियों का नवीकरण हो चूका है! इसका मतलब सीधा है की कृषि निदेशालय के अनुसार इन अनुज्ञप्तियों का स्वतः deregistration हो चुका है! भविष्य में हमारा पंजीकरण नए रूप में हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है! होगा तभी जब इन लोगों को हम विधाता माने और इनकी पूजा अर्चना करें!
    (ग) यह भी साफ़ हो जाता है की कृषि निदेशालय में कृषि निदेशक श्री अरविंदर सिंह और संजय सिंह के मन में जो आएगा वो ये करेंगे और न उच्च न्यायालय का कोई आदेश इन लोगों पर लागू होता और न ही कृषि उत्पादन आयुक्त का, क्योंकि कृषि उत्पादन आयुक्त महोदय के आदेश के बाद हमारी प्रयोगशाला में निर्धारित उपकरणों की व्यवस्था कर ली गयी है जिसकी सूचना हमलोगों ने 30/09/2010 को ही दे दी थी, इनलोगों ने इस आदेश के 53(वें) दिन बाद ही हमारे प्रयोगशाला को जांच करवाया!
    (घ) इतना ही नहीं प्रयोगशाला के जांचोपरांत दिनांक 23/11/2010 को जो विभाग द्वारा सम्भव हो पाया, इस जांच प्रतिवेदन में साफ़ –साफ़ यह प्रतिवेदित है की उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985 की धारा 21(A) का प्रतिष्ठान द्वारा पूर्णरूपेण पालन कर लिया गया है, के बाद भी 23 दिन बीत जाने के बाद यानि 18/12/2010 तक भी नवीकरण करने की कोई प्रक्रिया सिर्फ विचाराधीन थी या यह कहा जाए की हमलोगों पर प्राथमिकी दर्ज और संयंत्र को सील करवाने की प्रक्रिया करने की जुगत में इन 23 दिनों में ये दोनों महानुभाव लगे हुए थे और अंततः इनलोगों ने एक हैवानियत का उदहारण देते हुए हमलोगों पर प्राथमिकी और संयंत्र को सील करवाने की प्रक्रिया को अंजाम दे ही दिया! यह है सुशासन!
    (ङ) यह भी स्पष्ट हो जाता है की इनलोगों पर कोई अंकुश नहीं है, ये लोग अपने आप में एक सरकार है, क्योंकि हमारी तरफ से दसियों बार कृषि उत्पादन आयुक्त महोदय को इनके इतने असाधारण विलम्ब की सारी कारगुजारियों से अवगत करवाया जा चूका था तथा कृषि मंत्री महोदय को भी मैं स्वयं मिल कर इन कारनामों के बारे में कहा था! यह बतला देना यहाँ आवश्यक है की कृषि मंत्री महोदय से जब हमलोग मिलने गए तो कृषि मंत्री श्री नरेन्द्र सिंह जी द्वारा यह कहा गया की “ये लोग (हमलोगों के बारे में) दो नंबर के आदमी हैं और विभाग ने कोई गलती नहीं की है! यह तो समय बताएगा की दो नंबर के लोग कौन हैं, सिर्फ अपने NUISANCE VALUE के कारण कोई मंत्री पद प्राप्त कर लेता है तो वह आदमी स्वत एक नंबर का सदाचारी इंसान नहीं हो जाता, न ही ऐसे व्यक्ति को मंत्री पद प्राप्त होने के बाद यह कहने का हक मिल जाता है की वह किसी भी उद्यमी को दो नंबर का आदमी कहें! यह भी अत्यावश्यक है की अभी तक माननीय स्वर्गीय श्री अभय सिंह, दिवंगत सदस्य, बिहार विधान सभा, के रहस्मयी मौत के बारे में अभी पर्दा उठाना बाकी है, और सुशासन की पुरजोर कोशिश भी यही है की इस रहस्य को रहस्य बने रहने देना और जनता की स्मृति से जब यह बात विलुप्त हो जायेगी तब इस रहस्य को दफना देना है, खास बात तो यह है की मंत्री महोदय के अपने चरित्र से ही नहीं अपनी सारी सांसारिक काया से दो नंबर की बू आती है और श्री अभय सिंह इन्ही के ज्येष्ठ पुत्र भी हैं! चना, मसूर और खास कर ढैंचा बीज के खरीद में घोटाले का रहस्योदघाटन होना बाकी है! इन बीजों की खरीद में करोड़ों रूपैयों का घोटाला हुआ है जिसमे शीर्ष स्तर के राजनीतिग्य और पदाधिकारियों की संलिप्तता से इनकार नहीं किया जा सकता है!
    (च) कृषि निदेशालय के संजय सिंह के हैवानियत, निरंकुशता और बेशर्मियत का एक खास कारण यह भी है की कृषि उत्पादन आयुक्त महोदय के पद पर जिन्होनें रह कर हमारी सुनवाई की थी उनका नाम श्री के० सी० साहा है जो मात्र 15 से 20 दिनों के लिए कृषि उत्पादन आयुक्त के रूप में इस कार्यभार को देख रहे थे! लेकिन श्री ए० के० सिन्हा जी के 15 से 20 दिनों के अवकाश के बाद पुनः इन्होनें कृषि उत्पादन आयुक्त का प्रभार ग्रहण कर लिया! यह भी यहाँ बता देना आवश्यक है की श्री ए० के० सिन्हा जी ने हमारे अपील को दो महीने तक टाला और कम से कम इन दो महीनों में 4 बार सुनवाई की तारीख को adjournment for next date करते रहे! इन्होनें स्वयं अवकाश पर जाने के पहले अंतिम तारीख 29/09/2010 दी थी लेकिन ये 23/09/2010 से ही अवकाश पर चले गए थे! चूँकि श्री के० सी० साहा साहब कृषि उत्पादन आयुक्त के पदभार से मुक्त हो गए, तब संजय सिंह को congenial atmosphere मिल गया अपनी हैवानियत को मूर्त रूप देने में! इस बारे में की congenial atmosphere कैसे और क्यों बन गया, मेरे से ज्यादा आप समझ सकते हैं, मुझे बताने की आवश्यकता नहीं है! हमारे विरूद्ध यह चक्रव्यूह की संरचना में संजय सिंह जो अत्यंत दम्भी व्यक्ति है का हाथ है और सब से ज्यादा हैरानी की बात तो यह है की कुछ भा०प्र०से० के पदाधिकारी अपने आप में जब अपने आप को एक सरकार मान लेते हैं तो उनके आचरण और कार्यशैली से आम जनता पर क्या प्रभाव पड़ेगा, वो जान बुझ कर अनभिग्य बने रहते हैं ऐसे निरंकुश कारनामों से वही आम जन दर दर की ठोकर, कोर्ट से विभाग, विभाग से कोर्ट फिरता रहता है, और इसी से जन्म लेता है माओवाद, नक्सलवाद और फिर सुशासन के तहत इस आम जन को सुशासित करने के लिए सुशासन के बाबुओं को एक सुसज्जित सेना का सहारा लेना पड़ता है! वाह रे! आपका सुशासन नितीश बाबु!
    19.हैवानियत और निरंकुशता के साथ साथ उच्च न्यायालय के आदेश की अवमाननना का डर की एक कहानी जिसका रचयिता यही संजय सिंह है वो भी सुन लीजिए! कृषि निदेशालय से निर्गत कृषि निदेशक, बिहार ने बिहार एग्रो इंडस्ट्रीज, फारविसगंज (यह प्रतिष्ठान भी विगत 35 वर्षों से कार्यरत है और दानेदार मिश्रित उर्वरक का उत्पादन करता है) को एक पत्र लिखा जो इस प्रकार है :-

    प्रेषक, पत्र संख्या: 1321/22-11-2010
    अरविंदर सिंह, भा०व०से०,
    कृषि निदेशक, बिहार!

    सेवामें,

    जिला कृषि पदाधिकारी,
    अररिया!

    विषय:- में० बिहार एग्रो इंडस्ट्रीज, फारविसगंज के द्वारा पुनः उत्पादन कार्य शुरू किये जाने के सम्बन्ध में!
    महाशय,
    उपर्युक्त विषयक प्रसंग में कहना है की में० बिहार एग्रो इंडस्ट्रीज, फारविसगंज ने CWJC16645/10 में पारित न्यायादेश के आलोक में पुनः उत्पादन कार्य शुरू करने की सूचना दी है! न्यायादेश के आलोक में प्रयोगशाला सुविधा की जांच की प्रक्रिया की जा रही है! कृषि निदेशालय से तदोपरांत समुचित आदेश पारित किया जाएगा! कृषि निदेशक के द्वारा जब तक विनिर्माण प्रमाण पत्र का नवीकरण नहीं किया जाता है तब तक विनिर्माण कार प्रारम्भ करना उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985 के खंड 18 का उल्लंघन है और गैरकानूनी है!
    आप अपने स्तर से जांच कर न्यायसंगत कार्रवाई करना सुनिश्चित करें!

    ह. अरविंदर सिंह दिनांक २२.११.२०१० (मो. न. ९४३१८१८७०४)

    20.बिहार एग्रो इंडस्ट्रीज, फारविसगंज के मामले में जिला कृषि पदाधिकारी, अररिया श्री बैद्यनाथ यादव ने दिनांक 10/12/2010 को पत्र संख्या 1038 से परियोजना कार्यपालक पदाधिकारी, अररिया को संबोधित करते हुए लिखा जो इस प्रकार है :-
    विषय:- मेसर्स बिहार एग्रो इंडस्ट्रीज, फारविसगंज द्वारा कृषि निदेशक, बिहार, पटना के पत्र संख्या 3121 दिनांक 22/11/2010 में निहित निदेश का उल्लंघन कर पुनः उत्पादन कार्य प्रारंभ करने के सम्बन्ध में!
    प्रसंग:- कृषि निदेशक, बिहार, पटना का पत्र संख्या 1321 दिनांक 22/11/2010!
    महाशय,
    उपर्युक्त विषय के सम्बन्ध में कहना है की इस कार्यालय के पत्र संख्या 1002 दिनांक 30/11/2010 द्वारा आपको उपरोक्त निर्माता कंपनी को जांच करने का निदेश दिया गया था!
    कृषि निदेशक, बिहार पटना के विषय अंकित पत्र जिसकी प्रति विनिर्माता इकाई को भी दी गयी है में निहित निदेश की उन्हें विनिर्माण प्रमाण पत्र का नवीकरण होने तक, विनिर्माण कार्य पुनः आरम्भ नहीं करना है, ऐसा करने से उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985 का खंड 18 का उल्लंघन होगा एवं गैरकानूनी भी है!
    कृषि निदेशक, बिहार पटना के इस निदेश के बावजूद भी सम्बंधित विनिर्माता कंपनी के द्वारा उर्वरक नियंत्रण आदेश का उल्लंघन कर विनिर्माण कार्य किया जा रहा है!
    अतः आपको निदेश दिया जाता है की अविलम्ब निम्नांकित कार्रवाई करना सुनिश्चित करें:-
    (i)विनिर्माण इकाई में विनिर्माण कार्य में रोक लगा दें!
    (ii)विनिर्मित सामग्री एवं कच्चा माल का जब्ती सूची तैयार कर निर्मित सामग्री का नमूना संग्रह कर प्रयोगशाला में भेजें!
    (iii)कच्चा माल कहाँ से प्राप्त किया गया है उसका स्त्रोत्र प्राप्त कर साक्षय तैयार कर कार्रवाई करें!
    (iv)कृषि निदेशक, बिहार, पटना के प्

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