मूल रूप से भरथना, इटावा निवासी ब्रिजेन्द्र सिंह यादव खानदानी तौर पर पुलिस वाले हैं क्योंकि उनके परिवार के कई सदस्य पीढ़ियों से पुलिस में रहे हैं- बाबा, पिता, पांच में से चार भाई और अन्य करीबी रिश्तेदार. वैसे तो वे उत्तर प्रदेश पुलिस के एक सिपाही मात्र हैं पर वे ऐसे हैं जिनके कारण आज उत्तर प्रदेश पुलिस के बड़े-बड़े अधिकारी हलकान हैं. इस जांबाज़ पुलिस वाले ने पुलिस के अधिकारियों द्वारा अधीनस्थ कर्मचारियों को एक लंबे समय से कई प्रकार से शोषित करने के मुद्दों को बड़े जोर-शोर से उठाया है. वे यह काम पिछले पन्द्रह सालों से कर रहे हैं जिसके दौरान उन्होंने पुलिस वालों के वेलफेयर के लिए संस्था बनाने के लिए अथक प्रयास किये और इस काम में बहुत कुछ झेला भी.
उन्हें नौकरी से बर्खास्त किया गया, कई बार सस्पेंड किया गया और उन पर एनएसए भी लगाया गया. पर ब्रिजेन्द्र यादव इन बातों से कभी नहीं घबराए और ना ही अपने मकसद से पीछे हटे. उनका खुद का संघर्ष शुरू से ही आईपीएस अफसरों के खिलाफ रहा पर चूंकि उनकी बातों में इतना दम और उनके उद्देश्य में इतनी सच्चाई दिखती है कि खुद एक आईपीएस अफसर की पत्नी होने के बावजूद मैं उनके प्रति पूरी सहानुभूति रखती हूं. मुझे लगने लगा है कि आईपीएस अफसरों को इस सिपाही से सबक लेना चाहिए कि किस तरह वह वर्दी के कर्तव्य को निभाते हुए बुराई और असमानता के खिलाफ लड़ रहा है. पेश है उनसे हुई एक लंबी वार्ता के प्रमुख अंश.
– ब्रिजेन्द्र जी, ये पूरा मामला क्या है?
— प्रकरण ये था कि ‘द कमिटी फॉर द वेलफेयर ऑफ द मेम्बर्स ऑफ द पुलिस फ़ोर्स इन यूपी’ नाम की एक संस्था अराजपत्रित अधिकारियों के लिए आईपीएस अफसरों द्वारा 1961 में रजिस्टर्ड कराई गयी थी. इसकी मेम्बरशिप थी- “आल ऑफिसर्स ऑफ द यूपी पुलिस फ़ोर्स अबव द रैंक ऑफ सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस एंड दियर वाइफ”. इस प्रकार केवल आईपीएस अधिकारी और उनकी पत्नियां ही इस कमिटी के पदाधिकारी हो सकते थे. 1961 से ले कर अब तक सिपाही से लेकर इन्स्पेक्टर की ओर से इस संस्था में कोई सदस्य नहीं है. इन लोगो ने हम लोगों से कोई कंसेंट नहीं ली. ये लोग हमारी बिना सहमति के हमारा पैसा सन 1961 से लगातार काट रहे हैं. दस रुपये शिक्षा, पांच रुपये रक्षा, चार रुपये डीएएफ, चार रुपये एमएलएस, दो रुपये मंदिर के नाम पर और इस तरह कुल पचीस रुपये वेतन मिलने के स्थान पर ही काट लेते हैं. इसके बाद वेतन देते हैं. करीब साढ़े तीन लाख कर्मचारी हैं तो सत्तासी लाख रुपये महीना और बारह महीने का हो गया दस करोड पचास लाख रुपये.
इसके अलावा एक पूर्व डीजी थे श्रीराम अरुण. इन्होंने एक नयी स्कीम चलाई जिसमें नवम्बर-दिसम्बर में 340 रुपये प्रति कर्मचारी काटा जाता है. करीब ग्यारह करोड़ बीस लाख रुपया इस तरह काट लेते हैं. हमने देखा दस-पांच जिलों में और कई कर्मचारी भी मेरे साथ हैं जो कहते हैं कि किसी को इस बीमा का कोई लाभ नहीं मिलता है. ये लोग करोड़ों रुपये का पीएफ घोटाला करते हैं. इसके अलावा कई और मामलों में वेलफेयर का पैसा आता है जैसे राज्यपाल महोदय ने पन्द्रह सौ रुपये दिए हैं लावारिश लाश के लिए, पर सिपाहियों को ये लोग एक रुपया नहीं देते हैं जबकि रोज पचासों लोग मरते हैं और ये लोग एक रुपया नहीं देते हैं सिपाहियों को. ये भी रकम खा जाते हैं. सिपाही अपनी जेब से ड्यूटी पर पैसा जुटा कर क्रिया-कर्म करता है क्योंकि उसकी ड्यूटी है, नौकरी करनी है तो ठीक, नहीं तो सस्पेंड होगा, बर्खास्त होगा. अब जब वह बरामदगी के लिए जाता है तो उसके पास पैसा नहीं पहुंचता है. इसी तरह की कई अन्य अनियमितताएं हैं जो ये अधिकारी करते हैं.
फरवरी 1989 में नेशनल पुलिस कमीशन ने लिखा था कि- “अकोर्डिंग टू इन्फोर्मेशन अवेलेबल टू कमीशन, असोशिएशन फॉर पुलिसमैन इज आलरेडी देयर इन मेनी स्टेट्स.” लगभग हर राज्य में अधिकारी और कर्मचारी की अलग-अलग असोशिएशन चल रही है और अपना-अपना वेलफेयर देख रही हैं. लेकिन सिपाही के लिए उत्तर प्रदेश में कोई एसोशिएशन नहीं है. मैंने 1993 में हाईकोर्ट में एक रिट की थी. 27/08/1993 को निर्णय मेरे पक्ष में हुआ कि पुलिस महानिदेशक यह देखें कि नियमों के अनुसार रजिस्ट्रार सोसायटी के पास संगठन पंजीकृत हो. एडीजीपी उस समय श्रीराम अरुण थे. इन्होने पुलिस महानिदेशक की ओर से मेरे खिलाफ एक बवंडर खड़ा कर दिया कि ब्रिजेन्द्र सिंह विद्रोह करा सकते हैं, सन 1973 में विद्रोह हो गया है, ऐसी स्थिति में पुलिस महानिदेशक ऐसी संस्था के पंजीकरण का घोर विरोध करते हैं. इन लोगों ने ऐसा इसीलिए कहा था क्योंकि ये लोग बहुत ज्यादा पैसा खा रहे थे. अब यदि संस्था रजिस्टर्ड हो जाए तो हिसाब-किताब माँगना शुरू कर देंगे.
फिर माननीय मुलायम सिंह, मुख्य मंत्री ने एनेक्सी भवन बुलवाया और पीएल पुनिया, राज बब्बर और मुख्य सचिव, गृह सचिव और डीजीपी सब लोग मौजूद थे. हमसे कहा गया कि आप को सब-इन्स्पेक्टर बना दे रहे हैं और आप इस काम को बंद कर दीजिए. मैंने मना कर दिया. आप मुलायम सिंह से चाहें तो पूछ सकती हैं. यदि वे मना करें तो आप हमारी वार्ता कराइये उनसे. मैंने जब मना कर दिया तो फिर इन लोगों ने मेरे खिलाफ रिपोर्ट दे दी. तब मैंने हाई कोर्ट में एक और रिट की. जस्टिस ए रफत आलम जी ने मेरे पक्ष में फिर जजमेंट किया.
फिर इन लोगों ने कहा कि ब्रिजेन्द्र सिंह यादव अध्यक्ष हैं जो ठीक नहीं है, मैंने कमिटी से ही अपना नाम हटा दिया कि यदि एक व्यक्ति से संस्था का नुकसान हो रहा है तो हम इसके सदस्य, पदाधिकारी कुछ नहीं रहेंगे. हटने के बाद उन लोगों ने कहना शुरू किया कि अभी तो हट गए हैं पर आगे फिर बन जायेंगे. तो हमने हाई कोर्ट में रिट की जहां जस्टिस शीतला प्रसाद ने रिट पेटिशन अलाऊ कर दी और कह दिया- “डिसाइड अकोर्डिंग टू ला.”
उसके बाद हमारी संस्था का रजिस्ट्रेशन हो गया और हमने इसे चलाने का प्रयास किया. तो इस पर आपत्ति लगा दिया और जो आरपी सिंह हैं उस समय थे पुलिस अधीक्षक गोरखपुर. इन्होंने जा कर के कहा कि ये विद्रोह करवा देगा, इसे अरेस्ट करवा दिया जाए. लिहाजा मैं भाग गया इटावा, दिल्ली. इसके बाद मैंने इस मामले की विधिवत पैरवी की. हमने फिर हाई कोर्ट में रिट किया पर तब तक रीनिएवल का समय निकल गया पांच साल. फिर एक बार हाई कोर्ट में रिट की और अबकी जज साहब ने मेरी पूरी प्रेयर ही अलाऊ कर ली. तो हमारी संस्थान ‘कल्याण संस्थान’ नाम से 2014 तक के लिए रजिस्टर्ड है. अब संस्था वैध हो गयी तो मैंने सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के अंतर्गत ‘द कमिटी फॉर द वेलफेयर ऑफ द मेम्बेर्स ऑफ द पुलिस फ़ोर्स इन यू पी’ के बारे में जानकारी प्राप्त किया. वहाँ से 04 दिसम्बर को मेरे पास लेटर आया कि इस नाम की संस्था का कोई भी रीनिवल सोसाइटी रजिस्ट्रेशन कार्यालय में नहीं कराया गया है अतः यह संस्था अपंजीकृत हो गयी है. ना ही इसकी आय-व्यय का लेखा-जोखा दिया गया है.
– यह संस्था अपंजीकृत किस साल से है?
— इन्होने कभी रीनीवल कराया ही नहीं है. एक बार पंजीकृत 1961 में कराया फिर रीनीवल कराया ही नहीं है. यदि कराते तो आय-व्यय का लेखा-जोखा देना पड़ता. फिर मैंने उच्च न्यायालय में इनके घोटाले की एक रिट याचिका दायर की तो जस्टिस दिलीप गुप्ता जी ने उसे पीआईएल में बदल दिया. पीआईएल मुख्य न्यायाधीश के पास चली गयी. मा० मुख्य न्यायाधीश ने इस प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए इसे स्वीकार कर लिया और नोटिस इशू कर के इनका जवाब-तलब कर लिया. 12/01/2011 को तारीख लगी है.
– अभी प्रकरण में निर्णय नहीं किया गया है?
— नहीं, अभी ये काउंटर देंगे, तो मैं रीजोइंडर दूंगा. कल जी न्यूज़ वालों ने एडीजी साहब से बात कराई, तो वे कह रहे थे कि इस धनराशि का सिपाहियों में उपयोग होता है पर सच्चाई है कि सर्वे कर लो तो एक सिपाही नहीं मिलेगा. कोई वेलफेयर नहीं करते. इस पैसे का पूरा का पूरा घोटाला है.
– कोई नहीं जानता आईएम पैसों का क्या हो रहा है?
— मैंने कुछ पता किया था कि ये पैसा हेड क्वार्टर चला जाता है, डी जी पी कार्यालय. ये सब बाबुओं ने विश्वस्त सूत्रों से बताया है. अरे भाई, ये लोग डी ई एफ के नाम पर चार रूपया अलग से लेते हैं. पूर्व डीजीपी ने कह दिया था कि वे जिले के एसपी जानें, तो वे क्या जानें, उनके पास तो चार ही रुपये हैं. बाकी तो पुलिस मुख्यालय पैसा आता है. अभी बागपत में पांच पूर्व आईपीएस के खिलाफ मुक़दमा कायम हुआ है भ्रष्टाचार का और गबन का. एक लोकल सिपाही ने यह पूछ लिया तो उस पर भी उलटे मुक़दमा लिख गया है.
– क्या ये पैसे की वसूली जबरदस्ती है?
— जब हम उस संस्था के सदस्य ही नहीं हैं, पदाधिकारी ही नहीं हैं तो हमारी मर्जी कैसे होगी. उलटे तो इन लोगों पर मुकदमा भी लग जायेगा अवैध वसूली का. ये तो कर्मचारी को पता भी नहीं होता है कि कट क्या रहा है.
– आपको इस बात की जानकारी कैसे लगी?
— हमको तो यह जानकारी तब लगी जब हमारी संस्था का इन लोगों ने विरोध किया. तो हमने एफिडेविट दिया कि हमसे कोई विद्रोह का भय नहीं है. पर मेरा ट्रांसफर झाँसी से कर दिया चित्रकूट, वहाँ से कर दिया बांदा, वहाँ से जालौन. फिर जालौन से उठा कर भेज दिया गाजीपुर. मेरी इच्छा थी कि सैनिक स्कूल की तर्ज पर पुलिस स्कूल खोलूं. हमारे बच्चे अच्छी शिक्षा नहीं पा पाते. हमारा संगठन होता तो कई मामलों में अपने लोगों का भला हो जाता. इस तरह से शासन से प्रदत्त सुविधाएँ हम वास्तव में उपयोग कर पाते. मान लीजिए कि प्रमुख सचिव हरीश चंद्र गुप्ता ने यह आदेश किया कि 26 साल की नौकरी या 45 साल से अधिक उम्र के सिपाहियों से परेड के बाद की ड्यूटी नहीं जी जाए और उनसे सी आर नहीं कराया जाए. पर ये अधिकारी पचपन-अट्ठावन साल के लोगों से ये सब ड्यूटी करा रहे हैं. कई तो गिर के मर भी चुके हैं यू पी.
– तो आपका उद्देश्य क्या था एसोशिएशन बनाने के पीछे?
— पुलिसवालों की वाजिब समस्याओं को दूर करने के लिए ही हमारी संस्था बनायी गयी है. लेकिन इन लोगों ने केवल आईपीएस अधिकारियों तक बात को सीमित रखा था. मेरे पास एक चिट्ठी है जिसमे एक बड़े अधिकारी ने साफ लिखा कि यदि ये लोग अपने मकसद में कामयाब हो गए तो आईपीएस के लिए बहुत नुकसानदेह हो जाएगा और हमारी आईपीएस एसोशिएशन कमजोर हो जायेगी. इस तरह की मानसिकता है इनकी. जब मुझे मालुम हुआ कि ये लोग चारों तरफ घोटाला में फंसे हैं और उलटे मेरा विरोध कर रहे हैं तो मैंने इनका पोल खोलने का बीड़ा उठाया.
– वरिष्ठ अधिकारियों से लड़ाई में आपको नौकरी में दिक्कत नहीं आई?
— हमको इन साहब लोगों ने प्यार से रोटी नहीं खाने दी. कोई ना कोई पंगा लगाते रहे- सस्पेंड फिर ट्रांसफर, फिर सस्पेंड, फिर ट्रांसफर और यह क्रम चलता ही रहा. अभी हमारी संस्था का जो अध्यक्ष है फतेहपुर का, उसे देर से आने के आरोप में सस्पेंड कर दिया. इनका मतलब है कि किसी प्रकार से हम लोगों का शोषण करें.
– आपकी संस्था का प्रसार कहाँ तक है?
— सर, हम को ये लोग कुछ करने ही नहीं देते. हम बहुत कुछ कर देते पर ये लोग कुछ करने ही नहीं देते. पर फिर भी मैं अपना पैसा खर्च करके इन लोगों को न्याय तो दिलाता ही रहता हूँ.
– इसमें परिवार का सहयोग रहता है?
— इसमें सबों का सहयोग है- परिवार का, बच्चों का, दोस्तों का, सहयोगियों का.
– आपको लगता है कि इसमें कल को और लोग भी जुडेंगे?
— यह सत्य है कि आज बहुत सारे लोग इसमें सामने नहीं आ रहे हैं पर आत्मिक रूप से सब मेरे साथ हैं. ये सब साढ़े तीन लाख लोग मेरे साथ हैं. साढ़े नौ साल मैं बर्खास्त रहा, एनएसए झेला हम लोगों ने, कई मुकदमे लगाये, कई बार सस्पेंड रहा तो इन लोगों की सिम्पेथी तो जाहिर है कि मेरी ओर रहती है.
सिपाही बिजेंद्र सिंह यादव से बातचीत पीपल’स फोरम, लखनऊ की संपादक डा. नूतन ठाकुर ने की.
shivram singh, CC, 37pac Kanpur
January 20, 2011 at 8:44 am
thankyou & welldone. keep it up. I want To join you. what is your personal id or contect no.
madanpuri
January 18, 2011 at 10:23 am
yadav ji you are great. aapne bahaduri ka kam kiya hai.
satyapal yadav
January 18, 2011 at 5:30 am
सबसे पहले दण्डवत यादव जी को.. तत्पश्चात आपको प्रणाम कि आप ने इस पूरे वार्तालाप को छापा. यादव जी धन्य हैं. उन्होंने एक बड़े घोटाले को उजागर किया. कमाल यह है कि मीडिया में अन्यत्र कहीं इसकी कोई चर्चा नहीं..
satyapal yadav
January 17, 2011 at 3:53 pm
ips labi ki dadagiri khatm kar deni chahiye kyo ki sabhi galt kam yahi karate hai iska fal uske niche ke karmachari bhugate hai . taja exmple bada shilu rape aur kanpur kand hai ab aap samajh gaye honge.
Virendra
January 15, 2011 at 6:29 am
well done. Keep it up.
awanish yadav
January 11, 2011 at 3:06 pm
yadav ji aap badhai ke paatr hain.
gopal
January 3, 2011 at 10:24 am
व्रिजेन्द्र जी को मेरा शत शत नमन नूतन जी और यशवंत जी आप दोनों से एक अनुरोध है
की इस मामले को एक मुहीम के तहद आगे ले जाना चाहिए और दोसियो को सजा दिला कर ही छोड़ना चाहिए
वरना येसे ईमानदार पोलिस वालो की होसला कमजोर होता है
वरना इस देश में सजा किसको मिलता है……………………….Pls…..
pranjali
December 23, 2010 at 9:29 am
badhai ho nutanji apko is bahut ache aur khare khare sakshatkar ke liye. jis bebaki se apki kalam bade bade naamo ka sir kalam karti hai vo kabile tarif hai isko pad kar bahuto ki bhadas nikalti hai.
भारतीय़ नागरिक
December 23, 2010 at 5:06 pm
सबसे पहले दण्डवत यादव जी को.. तत्पश्चात आपको प्रणाम कि आप ने इस पूरे वार्तालाप को छापा. यादव जी धन्य हैं. उन्होंने एक बड़े घोटाले को उजागर किया. कमाल यह है कि मीडिया में अन्यत्र कहीं इसकी कोई चर्चा नहीं..
Gireesh
December 24, 2010 at 10:38 am
यादव जी को शत शत नमन। नूतन जी क्या हमको यादव जी को कोई सम्पर्क सूत्र मिल सकता है। हम उनको सम्मानित करना चाहते हैं।
धन्यवाद…
Gireesh
December 24, 2010 at 10:39 am
यादव जी को शत शत नमन। नूतन जी क्या हमको यादव जी को कोई सम्पर्क सूत्र मिल सकता है। हम उनको सम्मानित करना चाहते हैं।
धन्यवाद…
Gireesh
December 24, 2010 at 10:41 am
यादव जी को शत शत नमन। नूतन जी क्या हमको यादव जी को कोई सम्पर्क सूत्र मिल सकता है। हम उनको सम्मानित करना चाहते हैं।
धन्यवाद…
Raju Rajna Singh
December 25, 2010 at 6:04 pm
Congrats Yadavji
Keep on fighting and just don’t give up. Success will surely kiss your feet…….sooner than later
raju
Gaurav Agrawal
December 26, 2010 at 5:21 am
ye sachchai hai up police k.. vakai jab bade adhikari es tarah ghotle krenge,,, apne adhinastho ke vetan me aise paise katenge,, unhe justice ki duty karne ko kahenge aur unke sath hi anyay karte rahemge..to ya to wo ladega.. thakega aur toot kar baith jaega ya ense seekhte hue apna jugad katrega..aur yahi ye hawaldar aur daroga aur inspector kar rahe hai..
kothri kajal ki hai to koi bhala saaf kais rah sakta hai..bahut bahut badhai ke patra hai aap bijendra g..itni himmat aaj birle hi dekhne ko milti hai..
shishu sharma
December 27, 2010 at 7:59 am
congates yadav ji,nootan ji ek achi khabar se rubru karanae ko aapko thanks.
Constable digvijay singh chauhan
January 22, 2011 at 4:55 pm
ustad aap ki pahel aur zazbe ke hum sarvada saath hai…..
सुधान्शु कुमार तिवारी
February 9, 2011 at 7:39 am
यादव जी को शत शत नमन मैं आपको सलाम करता हुँ ।
नमन
September 26, 2011 at 6:54 pm
यादव जी आप बधाई के पात्र है पर जरा ये सोचिये आप इन बेचारे घूस के आदी हरामखोर अधिकारियो के पेट पे लात मारेगे तो ये बेचारे बीमार भूखो मर जायेगे इन के लिये कुछ टुक्डो का भी इन्त्जाम कर दीजिये वैसे आप्के प्रयास के लिये शब्द नही है मेरे पास..
brijesh
October 1, 2011 at 2:12 pm
यादव जी,मैं भी पुलिस को अच्छी तरह से जानता हूं। पुलिस परिवार से हूँ। पर पुलिस के दरोगा,दीवान,सिपाही बिना संस्था के ही जो कहर समाज पर ढाहते है । वह किसी से छुपा नहीं है.।जिस दिन यूनियन बन जायेगी। उस दिन क्या होगा भगवान ही मालिक है
SHYAM YADAV
October 11, 2014 at 9:33 pm
यादव जी,मैं भी पुलिस को अच्छी तरह से जानता हूं। पुलिस परिवार से हूँ। पर पुलिस के दरोगा,दीवान,सिपाही बिना संस्था के ही जो कहर समाज पर ढाहते है । वह किसी से छुपा नहीं है.।जिस दिन यूनियन बन जायेगी। उस दिन क्या होगा भगवान ही मालिक है