नई दिल्ली. दिल्ली यूनियन आफ जर्नलिस्ट्स (डीयूजे) ने सभी मीडियाकर्मियों से 16 नवम्बर (राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस) को पत्रकारिता बचाओ (सेव जर्नलिज्म) के रूप मनाने की अपील की है. वजह है नव उदारीकरण और आर्थिक मंदी के दौर में अभिव्यक्ति की आजादी पर तरह-तरह के बंधन, जिनकी वजह से पत्रकारों को निडर होकर काम करने में कठिनाई बढ़ी है.
देश में पत्रकारिता पर बढ़े संकट की ओर ध्यान दिलाने के इरादे से डीयूजे और दिल्ली मीडिया रिसर्च सेंटर ने 16 नवम्बर को पत्रकारिता बचाओ दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की है. इस मौके पर ‘पेड न्यूज’ की छानबीन कर प्रेस कौंसिल आफ इंडिया में जमा की गई रपट में घालमेल कर एक दूसरी ही रपट बनाने और उसे सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में जमा करने के वाकए पर डीएमआरसी की ओर से एक पुस्तिका भी मंगलवार को केरल भवन में जारी होगी. इसमें दोनों रपटें होंगी. साथ ही इस मुद्दे पर एक गोष्ठी होगी.
डीयूजे के महासचिव एसके पांडे ने रविवार को कहा – यह पुस्तिका इस लिहाज से अहम है क्योंकि पेड न्यूज के मुद्दे को आंध्र प्रदेश जर्नलिस्ट्स यूनियन ने हैदराबाद में और डीयूजे ने दिल्ली में उठाया था. इस मुद्दे पर सक्रिय भूमिका दिग्गज पत्रकार प्रभाष जोशी ने निभाई. उन्होंने न केवल इस मुद्दे पर लिखा बल्कि डीयूजे के मंच से इसके खिलाफ मुहिम छेड़ी. बाद में इस आंदोलन से दूसरे पत्रकार मसलन अजित भट्टाचार्य, कुलदीप नैयर आदि जुड़े और उन्होंने इस मुद्दे पर गौर करने के लिए प्रेस कौंसिल पर दबाव डाला. प्रेस कौंसिल ने खुद छानबीन कमिटी बनाई. कमिटी की ओर से जमा की गई मूल रपट की बजाए विभिन्न दबावों पर एक और रपट बनाई गई, जिसे सूचना प्रसारण मंत्रालय को भेजा गया. प्रेस की आजादी में दखलंदाजी का यह एक ऐसा नमूना है, जो एक लोकतांत्रिक देश के लिए उचित नहीं है.
मीडिया में प्रिंट के अलावा टीवी- केबल- वेब जैसे माध्यमों में डेढ़ दशक में हुए विकास के आकलन के लिए उन्होंने देश में मीडिया कमीशन के गठन पर जोर दिया. साथ ही प्रेस कौंसिल आफ इंडिया को पुनर्गठित करके उसे कानूनी अधिकार देने की मांग भी की.
पांडे ने कहा कि अखबारी कर्मचारियों और पत्रकारों के वेतन के संबंध में गठित जस्टिस मजीठिया कमीशन की रपट को आखिरी रूप देने में जान बूझकर छोटी-मोटी वजहों के नाम पर देर कराई जा रही है. इससे पत्रकारिता के पेशे से जुड़े लोगों में संदेह की स्थिति बनी है. उन्होंने कहा कि समाज के प्रति जिम्मेदारी का क्षेत्र पत्रकारिता है. ऐसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में ठेके पर नियुक्ति अभिव्यक्ति की आजादी पर दबाव है, जिससे पत्रकार आज प्रभावित है.
पत्रकारों के लिए पेंशन और सामाजिक सुरक्षा की जरूरत बताते हुए पांडे ने कहा कि अफसोस इस बात का है कि पत्रकारों को पेंशन नहीं के बराबर मिलती है और उनकी सामाजिक व आर्थिक सुरक्षा के संबंध में कोई राय मशविरा कहीं नहीं हो रहा है. उन्होंने कहा कि देश में मीडिया और उससे जुड़े लोगों पर बढ़ते दबावो के मद्देनजर यह जरूरी है कि सभी मीडियाकर्मी 16 नवम्बर को पत्रकारिता बचाओ दिवस के रूप में मनाएं. साभार : जनसत्ता.
David lakra
November 15, 2010 at 5:38 am
Ye bhaut sahi kadam hai aaj wakai me patrakarita ko aaj bachane ki jarurat hai .sabhi jimmedaar patrakaro ko isme shamil hoona chayie.
radhey shyam tiwari
November 15, 2010 at 1:20 pm
16 nov. ko (सेव जर्नलिज्म) mnay jane par aap ko bhadhae.