मित्रों, कुछेक दागदार लोगों की वजह से मीडिया दलाली करने वालों की जमात जैसा लगने लगा है। हम सबने ऐसे कई दागी चेहरों पर से, नकाब उतारे। यह अच्छी बात है। लेकिन ऐसे घनघोर माहौल में भी अगर कुछ लोग दलालों के सामने नहीं झुके तो उनको सामने लाना जरूरी है। वरिष्ठ पत्रकार अंबिकानंद सहाय अमरसिंह को ठेंगे पर रखते थे। अपने से ज्यादा ताकतवर होने के बावजूद वे अमरसिंह के सामने कभी नहीं झुके। इसी पूरे मसले पर मेरा यह लेख पढ़ें… -निरंजन परिहार, वरिष्ठ पत्रकार, मुंबई
मलिन मीडिया में संजीवनी जैसे सहाय साहब
निरंजन परिहार
प्रभु चावला, वीर संघवी, बरखा दत्त और ऐसे ही कुछ और दलाल दोषित हो चुके दोहरे चेहरों की वजह से मीडिया की छवि भले मलीन हुई हो। लेकिन इस घनघोर और घटाटोप परिदृश्य में अंबिकानंद सहाय नाम का एक आदमी ऐसा भी निकला, जो मलीन होते मीडिया की भीड़ में हम सबके बीच रहते हुए भी बहुत अलग और बाकियों से आज कई गुना ज्यादा ऊंचा खड़ा दिखाई दे रहा है। प्रभु चावला मीडिया में अपने आपको बहुत तुर्रमखां के रूप में पेश करते नहीं थकते थे। लेकिन रसूखदार, रंगीन और रसीले अमरसिंह के उनके सामने गें-गैं, फैं-फैं करते, लाचार, बेबस और दीन-हीन स्वरूप में करीब-करीब पूंछ हिलाते हुए नजर आते हैं। अमरसिंह धमकाते हैं, और प्रभु चावला अमरसिंह से करबद्ध स्वरूप में दंडवत होकर माफ करने की प्रार्थना करते नजर आते हैं। वही अमर सिंह अपने इन्हीं टेप में सहारा समय के तत्कालीन मुखिया अंबिकानंद सहाय और सुधीर कुमार श्रीवास्तव के नाम पर खुद को बेबस और लाचार महसूस करते नजर आते हैं। वह भी उन दिनों जब अमर सिंह की सहारा परिवीर में तूती बोलती थी। हर सुबह मीडिया के किसी आदमी के दलाल हो जाने की खबरों के माहौल बीच यह एक बेहद अच्छी और सुकून भरी खबर है। यह साफ लगता है कि माहौल भले ही ऐसा बन गया हो कि मीडिया सिर्फ दलालों की मंड़ी बन कर रह गया है। लेकिन अंबिकानंद सहाय के रूप में दूर कहीं कोई एक मशाल अब भी जल रही है, जिसे मीडिया में मर्दानगी की बाकी बची मिसाल के तौर पर पेश किया जा सकता है।
अमर सिंह के टेप से टपकती बातों और नीरा राडिया के नजरानों के राज खुलने के बाद कइयों की भरपूर मट्टी पलीद हुई है। प्रभु चावला, वीर संघवी, बरखा दत्त और ऐसे ही कुछ और नाम इसके सबसे बड़े सबूत हैं। इन टेप के सार्वजनिक हो जाने के बाद अमरसिंह और राड़िया ने मीड़िया की इन मरी हुई ‘महान’ आत्माओं को सबके सामने नंगा करके खड़ा होने को मजबूर कर दिया है। लेकिन कोई जब औरों को नंगा करता है, तो उसके अपने शरीर पर भी कपड़े कहां बचे रहते हैं ! इसीलिए प्रभु चावला को गिड़गिड़ाने पर मजबूर करनेवाले और रजत शर्मा को अपना बुलडॉग कहनेवाले अमरसिंह सहारा समय के तत्कालीन मुखिया अंबिकानंद सहाय और सुधीर कुमार श्रीवास्तव के बारे में बात करते हुए खुद लाचारी और बेबसी के साथ हांफते हुए नजर आते हैं। अंबिकानंद सहाय की पत्रकारीय
आज की तारीख में तो अंबिकानंद सहाय संभवतया एकमात्र ऐसे पत्रकार हैं, जिनके बारे में बात करते हुए अमर सिंह अपने ही टेप में मान रहे हैं कि ‘सहाय साहब’ को मैनेज नहीं किया जा सकता। पूरी बातचीत में यह संकेत साफ है कि सहारा समय के संचालन और खबरों के सहित अपने कामकाज के मामले में अंबिकानंद सहाय अपनी कंपनी के डायरेक्टर अमर सिंह को किसी भी तरह के हस्तक्षेप की कोई इजाजत नहीं दे रहे थे। अंबिकानंद सहाय ने कभी भी अमरसिंह को कतई नहीं गांठा। अमरसिंह सहारा मीडिया में अपनी एक ना चल पाने की वजह से कितने परेशान थे, इसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि सबके सामने सहाय साहब कहनेवाले अमरसिंह शिकायती लहजे में अभिजीत सरकार के साथ बातचीत में झुझलाहट में अंबिका सहाय कहकर अपनी भड़ास निकालते नजर आते हैं। जबकि सभी जानते हैं कि सहारा इंडिया परिवार के मुखिया सहाराश्री सुब्रता रॉय सहारा तक अंबिकानंद सहाय को सम्मान के साथ अकेले में भी सहाय साहब कहकर बुलाते हैं।
बाद में तो खैर, यह विवाद बहुत आगे बढ़ गया। अमरसिंह खुद इस टेप में कह रहे हैं कि अगर हमारी इतनी भी नहीं चलती है तो, मैंने तो चिट्ठी भेज दी है और अब मैं रहूंगा भी नहीं। इस पूरे वाकये के अपन चश्मदीद हैं। अपन अच्छी तरह जानते है कि, सहाय साहब ने सहारा से अचानक अपने आपको अलग कर लिया। क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि सहाराश्री और अमरसिंह के साथ संबंधों में खराबी की वजह उनको नहीं माना जाएं। वैसे संबंधों के समीकरण का भी अपनी अलग संसार हुआ करता है। सहारा मीडिया के मुखिया से हटने के बाद भी अंबिकानंद सहाय आज भी सहाराश्री के बहुत अंतरंग लोगों में हैं। और अमरसिंह की आज सहारा परिवार में क्या औकात हैं, यह पूरी दुनिया को पता है।
सहाय साहब, आपको हजारों हजार सलाम। इसलिए कि आप दलालों के सामने कतई झुके नहीं। लेकिन मीडिया की मंडी में अंबिकानंद सहाय जैसे और कितने लोग हैं, उनको भी ढूंढ़ – ढूंढकर सामने लाने की जरूरत है। ताकि यह साबित किया जा सके कि मीडिया में अब भी मजबूत लोगों की एक पूरी पीढ़ी मौजूद है। वरना प्रभु चावला, वीर संघवी, बरखा दत्त और ऐसे ही कुछ और दलाल साबित हो चुके लोगों ने तो मीडिया की इज्जत का दिवाला निकाल ही दिया है। बात गलत तो नहीं?
पेश है सहाराश्री सुब्रत राय के करीबी रिश्तेदार अभिजीत सरकार से फोन पर हुई अमर सिंह की शिकायती बातचीत के अंश…..
अभिजीत—हलो..
अमर सिंह—हां अभिजीत..
अभिजीत—जी जी जी सर, सर…
अमर सिंह—वो असल में …वो दूसरे लाइन पर कोई आ गया था। (ये सब कहते हुए अमर सिंह जोर जोर से हांफ रहे हैं)
अभिजीत—जी सर जी सर
अमर सिंह—हां क्या पूछ रहे थे तुम
अभिजीत—मैं बोल रहा था, कोई प्रॉब्लम हो गया था क्या शैलेन्द्र वगैरह के साथ
अमर सिंह—नहीं शैलेन्द्र वगैरह से ज्यादा प्रॉब्लम अंबिका (नंद) सहाय के साथ है और सुधीर श्रीवास्तव के साथ है।
अभिजीत—क्या हुआ है सर
अमर सिंह— प्रोब्लम ही प्रोब्लम है। बात ये है कि कोई ……नहीं है। मने कोई कुछ भी करना चाहे करे, उसमें हमें कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन, अगर दादा ने बोला है तो ये लोग कुछ भी करें बता दें। हमारी जानकारी में रहे।
अभिजीत— डू यू वॉण्ट मी टू इनिसिएट समथिंग।
अमर सिंह—नहीं नहीं कुछ नहीं। मैंने तो चिट्ठी भेज दी कि मैं रहूंगा नहीं इसमें और मैं रहने वाला भी नहीं हूं। इनिसिएशन क्या करना है।
अभिजीत—नहीं, फिर उनलोग को बोलें जा के कि आपसे मिलें और क्या।
अमर सिंह— नहीं नहीं मुझे जरूरत नहीं है। हलो।
अभिजीत—जी सर।
अमर सिंह—मेरा काम तो चल जाएगा।
अभिजीत—नहीं, आपका तो चल ही जाएगा सर। उनलोगों को तो मिलना चाहिए न। दे शुड पे रेस्पेक्ट टू यू न सर।
अमर सिंह—नहीं नहीं, वो नहीं करेंगे। अंबिका (नंद) सहाय वगैरह नहीं करेंगे। उनकी ज्यादा जरूरत है परिवार (सहारा परिवार) को।
यह बातचीत सुनने के लिए नीचे दिए गए आडियो प्लेयर पर क्लिक करें…
लेखक निरंजन परिहार राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं.
Comments on “अमर सिंह को ठेंगे पर रखते थे अंबिकानंद सहाय!”
ye khabar patrakarita ki sachai ke liya ladne wale sabhi nirash patrakaro ke liye bahaut sukoon daine wali hai…
काश ! ये सारी बातें सच होती…अंबिका जी को सहारा में नौकरी कैसे मिली ..टीवी में सिवाय टोपी पहनकर कर आने के किया क्या ..अब आजाद टीवी में क्या कर कर रहे है सबको पता है ?..दरअसल, ये छोटे टाइप के दलाल है और अपने कैरियर में सिवाय दलाली के कुछ किया हो तो पत्रकारिता के नाम पर तो प्लीज हमें बता दें..
अंबिकानंद सहाय बहुत बडे दोगले टाइप के दल्ले हैं. उन के पास पत्रकारिता के नाम पर सिवाय दलाली के कुछ नहीं है. एक समय में अमर सिंह के बाप मुलायम सिंह की पिछाडी धोने में इस कदर व्यस्त थे कि पूछिए मत. जब मुलायम ने मायावती को २ जून को अपने गुंडों से पिटवाने की कोशिश की थी तब वह टाइम्स आफ़ इंडिया के पिल्लू थे और और मुलायम सिंह के पिट्ठू. सभी अखबारों में यह खबर लीड थी पर टाइम्स में सार्ट डी सी. इनकी एक रखैल थी. एक आई.पी.एस. की बीवी को अंबिकानंद ने नौकरी दे कर बनारस के एक मठ पर कब्जा कर लिया. और जिस को अंबिकानंद सहाय की ईमानदारी पर बडा नाज़ हो वह लखनऊ आ कर अलीगंज स्थित उन का महल देख ले.मायावती के पत्थर शर्मा जाएं. वो क्या खा कर अमर सिंह जैसों का विरोध कर पाएंगे? अब ज़्यादा मुंह न खुलवाएं. बस इतना समझ लें कि अंबिकानंद सहाय पत्रकारिता के नाम पर सिर्फ़ और सिर्फ़ कलंक हैं, बदनुमा दाग हैं.
सहायजी को सौ – सौ सलाम। उन्होंने अमरसिंह जैसे दल्ले के दलदल से अपने को दूर ही रखा। अमरसिंह इतने रपेशान नहीं होते तो इस्तीफे की धमकी नहीं देते। अंबिकानंद सहाय के बारे में अमर सिंह की असहाय टिप्पणी ध्यान खींचती है। अंबिकानंद सहाय सहारा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और संपादकीय प्रमुख थे। आजकल आजाद न्यूज के न्यूज डायरेक्टर हैं। तब अमर सिंह सहारा के निदेशक हुआ करते थे। फिर भी अमरसिंह को घुसने नहीं दिया, और प्रभु चावला की तरह उनके सामने दंडवत नहीं किय़े। अंबिकानंद सहाय देश के एकमात्र ऐसे पत्रकार हैं, जिनके संदर्भ में बात करते हुए अमर सिंह मान रहे हैं कि उन्हें कतई मैनेज नहीं किया जा सकता। टेप सुनने के बाद साफ प्रतीत होता है कि सहारा के अपने कामकाज में अंबिकानंद सहाय दलाल अमर सिंह को हस्तक्षेप की कोई इजाजत नहीं दे रहे थे। बहुत बहुत बधाई सहाय साहब।
ye writer ambika nand sahay ka chamcha lagta hai. khub tel lagaya hai.
अंबिकानंद सहाय के हौसले को सलाम। ऐसे समय में जब पत्रकारिता,सियासत और दलाली का घालमेल अपने चरम पर है सहाय जी के बारे में पढ़कर अच्छा लगा। कुछ लोग व्यक्तिगत खुन्नस की वजह से अपनी भड़ास निकाल रहे हैं। ऐसे ध्वज विध्वंसकों को सहाय जी नहीं भा रहे। लानत है उन पर।
Dear Niranjan Sir…
hope you got answer in above 3 comments. you are also doing same thing as Great Vir did, paid News. How much you got from Sahayjee for this article?
आज मीडिया में शोषण की बात खूब होती है। बड़े पत्रकार तो लाखों में खेल रहे हैं, लेकिन छोटे कहे जाने वाले पत्रकारों की सैलरी बहुत कम है। ऐसे में, अंबिका नंद सहाय का वो कदम याद आता है जब उन्होंने सहारा में रहते हुए पत्रकारों की सैलरी जबर्दस्त ढंग से बढ़वायी। अपने जीवन में सैकड़ों लोगों को नौकरी दी। बेहद जिंदादिल, नेक और उदार इंसान हैं सहाय जी। वैसे, इस देश में राम को रावण और गांधी को गोडसे सिद्ध करने वालों की भी कमी नहीं है। जिस टेप की चर्चा यहां हो रही है उससे साफ साबित है कि अमर सिंह, सहाय जी को मैनेज नहीं कर पाए। जहां लोग समझौतों को नौकरी का आदर्श मानकर स्वीकार कर लेते हैं, सहाय जी के लिए मुश्किल नहीं थी कि वो भी अमर सिंह से दोस्ती का हाथ बढ़ा लेते। लेकिन बजाए अमर सिंह से समझौता करने के, उन्होंने सहारा को अलविदा कहना बेहतर समझा। इसे स्वीकारने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए। सहाय जी टाइम्स के लखनऊ एडिशन के संपादक दशक भर से ज्यादा समय तक रहे। टाइम्स ऑफ इंडिया काफी ताकतवर अखबार था उस दौर में। आज भी है। वे चाहते तो इस पद का काफी दुरुपयोग कर सकते थे। और लोगों की तरह दलालों के साथ मिलकर पैसे बना सकते थे। लेकिन, लखनऊ में एक घर बनाने के अलावा वो कुछ न कर सके। यह भी देखिए कि उस घर के लिए लिए गए लोन की किस्त वो आज भी चुका रहे हैं।
Ambika Nand sahy ne wastav me patrakarita ko naya ayam diya he… wastav me we ek sache patrakar he..jiski badolat choutha stamv aaj bhi surakshit he… ambika nand sahy se to logo ko sikh lena chiya…
ambika ji ka stand aj bhi saf he… we dalal pravrity ke logo ko apne as-pas bhi fatkne naahi dete. wo ek webak insan he, jinho ne patrakrita ko bahut kuch diya.. he or bahuto ne to unki ungli pakar ke is rase me dourna sikha he… kuch logo ka swarth sidh nahi hua ho ga wo naraj ho sakte he…lakin jivan me acha krne ki sikh to hum log jarur le sakte he. or ese logo ko me salam krta hu…..
bhi Ambika Nand ji to ese insan he jo kisi ka bura kr hi nahi sakte…. or puri industry me un se acha insan dhundhne pr bhi nahi mile ga… bhagwan unhe lambi ayu de, taki new pidhi ko unka margdarshan milta rhe… or hum log age… patarakarita ko dalal pravriti le logo se unke margdarshan me bachate rhe
manoj pande aur mh aslam se sacchai jaanne ke baad bhi in kathit rajnitik vishleshak ko kuch kahna hai
इतने अंधेरे में एक दीए की तरह से रोशनी कर रहे सहायजी के बारे में कुछ गए गुजरे लोगों के कमेंट पढ़कर दुख हुआ। आप मुद्लोदे की बात करें तो, अच्छा रहेगा। सहाय साहब ने 40 साल से मीडिया में काम किया है। हो सकतचा है कुछ लोगों का उनसे दिल भी दुखा है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि लोग अपनी औकात पर उतर आएं। क्या तुमको अपने मां बाप ने यही सिखाया है किया। मीडिया में ऐसे बिना मतलब की बकवास करने वालों की वजह से ही मीडिया की इज्जत खराब हो रही है। सहाय साहब ऐसे लोगों को माफ कर दिजिए।
अमर सिंह के दलाल यहां भी आ गए !!!
Niranjan bhai aapne sahi samay par sabke samne sahi baat ki jaankari dia hai sabse pahle to iske liye bahut bahut dhnyavad, aapne ek hero ko samne laya hai, mai bbat kar raha hun Ambika Sahay sir ke baare men kai jagahon par jahan patrkar bik rahe hain wahin par Sahay sir patrkarita Jgat ke liye ek Missal ban kar Ubhre hain, aise bykti ke saath pure desh ke ke yua ko saath aana chahiye Niranjan bhai main yah aapse gujarish karna chahta hun ki aapke jaison ko hi yah bida uthana chiye ta ki aage patrakarita dagdaar na ho
कुछ कमेन्ट मुझे अमर सिंह के सामने घिघियाने वाले पत्रकारों के चमचों के नज़र आ रहे हैं या फिर ये वो लोग हो सकते हैं जिन्हें अमर सिंह ने कभी “आरती” दी थी या दिलवाई थी… या फिर ये वो लोग हैं जो भविष्य में “राडिया स्कूल ऑफ़ जर्नालिस्म” खोलने वाले हैं…. अच्छा लगता कि जब ये लोग उन पत्रकारों की भर्त्सना करते, जिन्होंने अमर सिंह से बात के दौरान तमाम उन समर्पित पत्रकारों को शर्मिन्दा किया, जिनकी आजीविका केवल हर महीने मिलने वाले वेतन से चलती है… मै ये कतई नहीं कहना चाहता कि श्री सहाय मर्यादा पुरुषोत्तम हैं… लेकिन हाँ, मै उस समय सहारा में था जब श्री सहाय ने एक एंकर को डांटा था कि तुम बस से क्यों आते हो और उसने बताया था कि उसका वेतन केवल पांच हज़ार रूपये है… अगले दिन से ही सभी एंकरों को ऑफिस कार से पिक-ड्रॉप मिलने लगा और तनख्वाह भी बढ़ी… आज सहारा टीवी में पत्रकारों की ज़्यादा तनख्वाह की नींव सहाय साहब ने ही डाली थी… सहारा में रहते हुई अमर सिंह का दिमाग सही किया, जिनसे ढेर सारे पत्रकार गाली खाते रहे और अमर भाई- अमर भाई करते रहे… इस सीडी को सुनकर तो मै बस यही कह सकता हूँ कि कम से कम किसी पत्रकार के पास इतनी कूव्वत है, जिनके सामने अमर सिंह झुकते नज़र आ रहे हैं… सहाय साहब धन्यवाद.
sahai ji ko shat shat naman
is dalaloln se bhari industry unke jaisa patrakaar hona garv ki baat hai….aur ye garv humein hona chaahiye….hats off to u sahai sahab
media k dalalon ne yahan bhi apna kartab dikhana nahi choda……sahai sahab jaise nishthawaan aur sammanit patrakaar hi aisa koi kadam utha sakte hain jisme chamchagiri na hokar kartavya zyada ho……
दलाल पत्रकारों को नेता लोग कुत्ता कहते हैं। अमरसिंह तो सार्वजनिक तौर पर रजत शर्मा को अपना बुलडॉग कहते हैं। बुलडॉग यानी बड़ा कुत्ता। लेकिन बरखा दत्त, वीर संघवी तथा प्रभु चावला जैसे लोगों को मीडिया के कुत्ते कहा जा सकता हैं। ये लोग जहां भी खाने को दिखा हर जगह मुंह मारने लग गए हैं। प्रभु चावला तो आदमी हैं या जोकर, जो अपने टीवी शो में भी मसखरे से ही लगते है। ऐसे लोगों के बीच अंबिकानंद सहाय जैसे लोग शेर कहे जा सकते हैं। जो, ना तो राड़िया की दलाली किए और ना ही अमरसिंह के सामने सर झुकाकर खड़े रहे। आपने मीडिया की लाज बचा ली, सहायजी। इन कुत्तों ने तो हम सबको सर झुकाने के लायक कर दया था, आपने हमारा सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है। लेकिन फिर भी क्या ये पूंछ हिलाने वाले कभी सुधरेंगे।
अम्बिका नन्द सहाय जैसे कुछ ही पत्रकार हैं जो देश में पत्रकारिता की इज्ज़त बचाएं हुवे हैं ओसे पत्रकार के बारे में अनर्गल टिप्पड़ी कर के उन्हे बदनाम करने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है सहारा में रहते हुवे उन्होंने पत्रकारों के हित के लिए जो किया वह टिप्पड़ी करने वाले नहीं जानते.सहाय जैसे पत्रकार के जज्बे को सलाम करना चाहिए. न कि उन पर कीचड उछला जाये. अमर सिंह क्या हैं और क्या थे यह जग जाहिर है. सहारा में रहते हुवे सहाय जी उनका जिस तरह मुकाबला किया वह सराहनीय है पत्रकारों की दलालों की मंडी में यदि कोई ईमानदारी की लड़ाई के लिए कोई तन कर खड़ा है तो उसका स्वागत है
टेप में अमर सिंह व अभिजीत सरकार की बातचीत से साफ़ जाहिर है कि अम्बिकानन्द जी दलालो के सामने नहीं झुके,वह झुक भी सकते थे बस यही बात सबकुछ समझने के लिए काफी है.
अम्बिका दत्त मिश्र
लखनऊ
Sahay Sahab & Sudhir Kumarji were, undoubtedly, jewels of the Sahara Media Group. They have got talent, persuasion both and were quite keen to promote the Group. They always worked for discipline and decency in the Group and encouraged everybody for the same. Indeed, both of them are quite religious, courteous and never gave any impression of being so hi-profile. Kudos to Sahah Sahab, for setting such a high standard in Media Life. Regard, Nirukt Bhargava, Ujjain
sahay sahib ko itne bhole bhi mat thahrao ki vo parmatma lagne lagai. unme sach ka samna karne ka to sahah bacha nahi. iseliye is kam se alag hokar ramnam japna chachiye.
Jantantra ke chaupyon me media ka andaje bayan nirala hai. kyonki media hi karyapalika] vidhayika tatha nyayapalika ki naak me nakel dalkar unhen nirankush hone sa bachati hai tatha swasth samaj evam rashtra ke nirman me apni mahti bhumika ada karti hai. Lekin jab media hi gada-bada ho jaye to ‘Allaah jaane kya hoga aage’. Jordaar khair-makdam hona chahiye varisth patrakaar sri Ambikanand Sahay ka, jinhone is sankraman kaal me bhi apne fauladi iradon se nijta, swabhiman evam rashtriya asmita ke raksharth us samay Sri Amar Singh ki ankhon me ankhen dalkar unhe nashihat di jab unki tuti bolti thi. Kyonki jurm sahan karna sabse bara apradh hai. Rashtra kavi Ramdhari Singh Dinkar ki panktiyan to barbas hi yaad aa jati hai- ”JO TATASTH HAI ITIHAS LIHEGA UNKA APRADH.” Badhai ho Sahay sahab hame aap par naaj hai.
निरंजन परिहार और यशवंतसिंह आप दोनों ठाकुरों ने मीडिया में कम से कम एक अच्छे व्यक्ति को तो आखिर ढूंढ ही निकाला। अंबिकानंद सहाय को मिडिया में दलालों के विरोध में खड़े मजबूत मिसाल के रूप में पेश किया जा सकता है।
अंबिकाजी के बारे में हम इतना ही कहेंगे कि हाथी जब चलता है, तो कुछ कुत्ते उसको हैरत से देखते हैं, तो कुछ कुत्ते भौंकते भी है। मीडिया में रहनेवाले बरखादत्त एवं प्रभू चावला जैसे लोग हैरत से देख रहे हैं। साथ ही कुछ कुत्ते भौंक रहे हैं। इन कुत्तों के कमेंट से दुखी मत होना अंबिकाजी। आपने सहारा में रहते हुए भी सहारा के डायरेक्टर बनकर बैठे अमरसिंह की हालत धोबी के कुत्ते जैसी कर दी थी। टेप में अमरसिंह की बेचारगी से साफ लग रहा है। यह हुई ना शेरों वाली बात।
-सिद्धार्थ प्रकाश तिवारी, मुंबई
ambika ji patrkarita may ek meel ka pathar hai. patrkarita may manoj pandey or mohd. aslam jaise log, jinka patrkarita may do kadam ka bhee safar nahi poora hua hai unke mooh se is tarah ki baat se lagta hai ki ye dono suraj ko diya dikha rahe hai. isse behtar hota ki ye dono sahay sahab se kuch seekh lete. lekin ye to amar bhakt hai or usi ka anusaran karenge.
sir u r a big personality..god give u more enrgy and power…
kisi imandar ke bare dusaro ko batana utana hi jaruri hai jitana dalalo ke bare me . parihar sahab ne jo ambika parsadji ke bare me likha hai is tarah ka paryas har kisi ko karana cahia .keval negetive likhane se kam nahi calega .
Amar Singh who? From where? For what? For whom? and Why do we need him?..
These are some of the many questions which still needs to be answered in the political and Bollywood arena. Mr Singh did consider himself as “Superman” and went overboard — slipped and now dreading the world of oblivion. It is a good lesson to him and his cronies who play a “middleman” role in politics and “contact exploitation”. His role during Mr Abhishek Bachchan’s wedding as “Chotey Bhaiya” seems to have “flopped” in the Bollywood as well. It seems that Big B i(for whom I have great regards) is feeling the pinch now.
It is unfortunate that for some “TV entertainment and so called interesting bites” we have been giving Mr Amar Singh lot of footage. It is time to archive all these footages and use them for Journalism schools on how not to get exploited by “middlemen”. A perfect case study.
Thanks to Mr Ambikanand Sahay for exposing such racketeers. If we allow such men to enter this arena (specially through the back door of Rajya Sabha), we are the ones who are going to face the brunt and suffer.
भारत के पत्रकारिता जगत में जो अम्बिका सर ने जो आयाम दिया जो पहचान दिया वो नहीं भूलने वाला क्षण है. मुझे याद है अम्बिका सर ने ही पत्रकारों को सम्मानित वेतन देने का ऐतिहासिक और दबंग फैसला लिया था. जिसके बाद सभी चैनल वालो ने अपने अपने स्टाफ की वेतन वृद्धि की. आज भी पत्रकारिता में अम्बिका सर जैसे ईमानदार लोग है और वो आज सफल पत्रकार भी है. अमर सिंह जैसे दल्ले को धुल चटाने वाले अम्बिकानंद सहाय सर जैसी शख्सियत को मेरे जैसे छोटे पत्रकार का सलाम. [b][/b][b][/b]
AMBIKANAND JII KO NAA TO MAINEE DEKHA HAI NAA SHATH ME KAM KIYA HAI. JITANA COMMENT PAHA USSE LAGTA HAI KE WASTAV ME PATRAKARITA KO NAYA AAYAM DIYA HAI.. SHCH TO YAH HAI KI SAHARA KO IN JAISE LOGOON KI JAROORAT HII NAHE HAI, AGR HOTI TO KAMLESHWAR AUR NAWAR JAISE LOG CHAND DINO ME KINARE NA KAR DIYE JATE. SAHARA KO RANVIJAY AUR UPENDRA JAISHA CHMCHA CHAHIYE:)
बात उन दिनों की है जब २००४ में सहारा समय ने क्षेत्रीय चैनल की शुरुआत की थी २००५ में बेस्ट न्यूजरूम का खिताब इस चैनल को मिल चूका था . सब से खास बात हर पत्रकारों को पूरा सम्मान और काम की कीमत मिली . लोग कहते थे की अम्बिका जी का राज है काम को सम्मान और भरपूर वेतन मिल रहा है …बाद में मिले ने मिले . मैं खुद भी उनके सहारा छोड़ने के बाद उनसे गाजियाबाद में उनके आवास में जा कर उनसे मिला था ….कमाल के आदमी हैं चेहरे पर कोई शिकन नहीं वही रौब और छोटो के लिए प्यार भरा व्यवहार .कमाल के व्यक्तित्व हैं .सिखाया की काम कैसे किया जाता है .आज देख लो हर स्ट्रिंगर सहारा का वसूली एजेंट बना हुआ है बाकायदा वसूली का टारगेट दिया जाता है .मगर उस समय रिपोर्टर को खबरों के अलावा और कोई काम करने का निर्देश नहीं था .