अमर सिंह पिछले कुछ दिनों से अच्छा खासा मनोरंजन कर रहे हैं. देश की जनता मजे ले रही है. अमर सिंह टीवी पर प्रकट होकर जिस जिस तरह की आवाजें निकालकर भूषण पिता पुत्र को गरिया रहे हैं, वो बहुतों को पसंद आया. खुद को झंडूबाम कहने वाले अमर सिंह की खासियत यह है कि जब वे आगबबूला होते हैं किसी के खिलाफ तो झंडूबाम नहीं बल्कि बम हो जाते हैं.
भूषण पिता पुत्र पर अमर का गुस्सा ढेर सारी भड़ास निकाल लेने के बाद भी ठंडा नहीं पड़ा है. तभी तो उन्होंने अपने ब्लाग पर भी फुफकार फुफकार कर भूषण पिता पुत्रों पर डंक मारा है. अमर सिंह के ब्लाग की ताजी पोस्ट पढ़िए. -एडिटर
वर्ष २००६, नैतिकता और शांति भूषण
– अमर सिंह –
अनावश्यक रूप से मीडिया और तथाकथित सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधियों के निशाने पर एक विवादित व्यक्तित्व के रूप में मैं आ गया हूँ. भ्रष्टाचार एक भयंकर व्याधि है जो हमारे समाज की अपरिहार्य संस्कृति बन गयी है. नकद लेते हुए भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण की तस्वीर याद कीजिये, छत्तीसगढ़ के बड़े भाजपाई नेता दिलीप सिंह जी का विडियो स्टिंग याद कीजिये, बेल्लारी माइंस के अवैध खनन के आरोपी येदुरप्पा सरकार के रेड्डी बंधुओं का सुमिरन कीजिये और साथ-साथ जैन हवाला डायरी में महज आरोप मात्र लगने पर भाजपा के वरिष्ट नेता श्री लाल कृष्ण आडवानी जी का बेबाक त्यागपत्र भी स्मृति पटल पर अंकित रखिए. हरिदास मूंदडा कांड में तत्कालीन वित्त मंत्री कृष्णामचारी का त्यागपत्र, चीन से पराजय के बाद कृष्ण मेनन जी का त्यागपत्र, वोलकर रिपोर्ट में नाम मात्र आने पर श्री नटवर सिंह जी की विदाई, एक पत्र देने के सामान्य अपराध के लिए श्री माधव सिंह सोलंकी का विदेशमंत्री का पद छोड़ना, आकस्मिक दुर्घटनाओं की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए श्री लाल बहादुर शास्त्री, डॉ. कर्ण सिंह और श्री माधवराव सिंधिया जी का त्यागपत्र देना. कामनवेल्थ गेम के मामले में बगैर पक्षपात के अपने ही दल के सांसद श्री सुरेश कलमाडी के विरुद्ध कार्यावाही, टूजी में अपनी सरकार के मंत्री ए.राजा की गिरफ्तारी, देश के प्रसिद्ध उद्योग घरानों से सख्ती, अपनी सास को एक फ्लैट आवंटित करने के अपराध में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्री अशोक चौहान का इस्तीफा और बिना किसी सबूत और आधार के अन्ना हजारे साहब की तल्ख़ टिप्पणी पर मंत्रिमंडलीय समिति से श्री शरद पवार का स्वतः त्यागपत्र दे देना, यह हिन्दुस्तान का तथाकथित भ्रष्ट “पोलिटिकल क्लास” है जिसके लिए सिविल सोसाइटी के बड़े पुरोद्धाओं ने कहा कि भ्रष्ट नेताओं को चील-कौवों का आहार बना कर उनके भोजन के लिए छोड़ देना चाहिए.
ईमानदारी, पारदर्शिता, और जवाबदेही सिर्फ नेताओं का दायित्व नहीं बल्कि तथाकथित सिविल सोसाइटी की ईमानदारी के ठेकेदारों की भी जिम्मेदारी है. १९६६ में ५ हजार रुपये की पेशगी २००९ में ९५ हजार की अदायगी, १९६६-२००९ के अंतराल में १ लाख देकर २५ करोड़ की संपत्ति हड़पने पर १.५ करोड़ की स्टंप चोरी के आरोपी पिता-पुत्र, करोड़ों के एक नहीं दो-दो फ़ार्म लैंड ३५ लाख की टोकन राशि देकर वर्षों तक के sraggered पेमेंट पर मायावती जी का उपहार लेने वाले पिता-पुत्र, तमिलनाडु की नोआसिस कंपनी के विरुद्ध बेटे की P.I.L. का काँटा और बाप की वकालत की राहत, फिर भी साहब में निपट बेशर्मी, बेहयाई और लज्जाहीनता है. टूजी, राजा, उद्योगपति और अन्य भ्रष्टाचार के आरोपियों के मामले में तो सरकारी उपक्रमों और CBI पर विश्वास है लेकिन बाप-बेटे खुद अपनी आवाज और कुकर्मों की जांच के लिए सरकारी नहीं, अपने चेलों की लैब की रिपोर्ट चाहते हैं. इस हिसाब से तो राजा की जांच DMK प्रमुख श्री करूणानिधि जी को सौंप देनी चाहिए. यदि श्रीमती किरण बेदी और अरविन्द केजरीवाल का ईमानदारी का सर्टिफिकेट बाप-बेटे के लिए ठीक है तो राजा के लिए करुणानिधि और कपिल सिब्बल के सर्टिफिकेट में क्या बुराई है.
मनमोहन सिंह जी का विकीलीक्स सच और भाजपा का विकीलीक्स झूठ, अमरसिंह का सीडी असली और बाप-बेटे की सीडी नकली, करूणानिधि-सिब्बल गलत और बाप-बेटे की जोड़ी का हमला सही, सरकारी लैब-हिंदुस्तान टाइम्स की प्रकाशित लैब रिपोर्ट झूठी और बाप-बेटों के चेलों की लैब रिपोर्ट सही. अमर सिंह को नहीं जानते सिर्फ anti-defection law पर मुफ्त में अपनी सलाह दे देते हैं, उनसे चार्टर प्लेन और ५० लाख उनके तत्कालीन एडवोकेट जनरल से वसूल कर २८ फरवरी २००६ को लखनऊ उनका केस लडने चले जाते है. इस सीडी की आडियो फ़ाइल 1.MP3 जो १५ जनवरी २००६ को १२.४६ बजे २,२६० केबी पर १ मिनट ५५.५५९ सेकेण्ड के लिए एपल मेकिनटोश पद्धति पर बनाई गई है. साल २००६, इसी साल जनवरी और फरवरी के महीने में मेरी शांति भूषण जी से मुलाकातें हुई जिसमें उन्होंने श्री मुलायम सिंह जी का राजनरायण प्रेम अपने और राजनरायण जी के एतिहासिक रिश्ते का हवाला और राजनरायण जी के वकील के रूप में श्रीमती इंदिरा गांधी को केस में पराजित करने वाला पुरोद्धा बताते हुए तत्कालीन क़ानून मंत्री भारद्वाज और हमारा मुकदमा सुन रहे जस्टिस भल्ला की निकटता का हवाला देते हुए इस तथ्य को विधिक रूप से तत्कालीन मुख्य-न्यायाधीश इलाहाबाद के संज्ञान में लाने की सलाह भी अपनी कान्फ्रेंश में दी थी. ८५ वर्ष की आयु में भी लाखों लेकर एक दिन में दो-तीन अदालतों में जाना, हफ्ते में कम से कम दो बार बाहर की अदालतों में जाना, २००६ की बातें, मुलाकातें, चार्टर प्लेन और नकदी भुगतान फिर खुद की हमारे मामले में कोर्ट की उपस्थिति तो शांति भूषण जी कट-पेस्ट और सप्लाइसड नहीं हो सकती.
और हाँ, फिर वही २००६ का खतरनाक साल २३ मई २००६ को इलाहाबाद में तत्कालीन मुख्य-न्यायाधीश की अदालत में आप शिकायतकर्ता की मर्जी के बगैर किसके द्वारा प्रायोजित चार्टर प्लेन से बिन बुलाए मेहमान की तरह कोर्ट पहुँच कर कहने लगे पिटीशनर चाहे ना चाहे, मान ना मान मैं तेरा मेहमान और फिर अदालत का मामला खारिज की फटकार पर लौट आए. उफ़, ये २००६ में यह आपकी PIL presence भी क्या doctored है? जस्टिस बालाकृष्णन, जस्टिस सबरवाल, जस्टिस कपाड़िया, जस्टिस भल्ला, जस्टिस मदनमोहन पुंछी किसी को भी सामान्य बातों पर भी आप पिता-पुत्र ने नहीं छोड़ा तो फिर समाज आप चाहे जितनी जोर-जोर से चीखें कि “अन्ना बचाओ- अन्ना बचाओ” आपको नहीं छोडेगा और कहेगा कि ईमानदारी, पारदर्शिता और जवाबदेही के इकलौते ठेकेदार आप ईमानदार बाप-बेटे की जोड़ी नैतिकता की दुहाई देकर लोगों से अबकी बार त्यागपत्र मांगे नहीं, साहस कर खुद दें दे ताकि करोड़ों नौजवानों की उम्मीदों के गांधी अन्ना हजारे को और उनके आंदोलन को दाग ना लगे ताकि अन्ना हजारे की ट्रस्ट की जांच करने वाले जस्टिस सावंत की रिपोर्ट की यह उक्ति “ईमानदार, ग्रामीण, सरल अन्ना को उनके इर्द गिर्द के लोगों से खतरा है.” एक बार फिर कहीं उजगार ना हो जाए. मै भी अन्ना हजारे समर्थक ही हूँ इसलिए चोर को पकडने के लिए डाकू की नियुक्ति का हिमायती कतई नहीं – मेरा क्या, मेरा तो हाल कुछ यूँ है-
“दोस्त करते है मलामत, गैर करते है गिला,
क्या क़यामत है मुझी को सब बुरा कहने को हैं”
जबकि सर, विकीलीक्स, टाटा-राडिया टेप, हसन अली, शाहिद बल्वा कहीं पर किसी मिठ्ठू ने मेरे नाम के सीताराम का जाप अब तक नहीं किया है.
अमर सिंह के ब्लाग से साभार
Hitendra Shahi
April 23, 2011 at 10:08 am
amar singhji sanjay dutt ke cell phone par under world ki dhamki wale bayan tatha sanjay dutt ka use bayan se asuvidha me parne par sidha palti marna aaj v desh ki janta nahi bhuli hai.yah chhota sa example aapki originality ko samne le aata hai.
नितिन ठाकुर
April 23, 2011 at 9:23 pm
भारत में राजनीतिक रुप से हाशिये पर पहुंच चुके अमर सिंह ने ये मुद्दा अपने तरीके से भुना लिया है और जो उन्हें चाहिए था वो मिल रहा है। जिस नेता जमात को वे बेशर्मी से बचा रहे हैं उनमें शास्त्री जी जैसे दो-एक अपवादों को तो कोई भी गाली दे ही नहीं रहा है तो उनका नाम यहां उन्होंने बस अपने तर्क को मजबूत करने के लिए ही इस्तेमाल कर लिया।वैसे भी उन्हें इस्तेमाल करना अच्छा आता ही है। वैसे वो ये ना भूलें कि खुद भी वो छोटे नीरा राड़िया तो रहे ही हैं। जन लोकपाल की हवा देश में बनते ही वो कांग्रेस के लिए संकटमोचक बन कर अवतरित हो गए हैं जैसे कि पहले भी वो कई मौकों पर कर चुके हैं।कांग्रेस के दरवाज़े पर वो हमेशा खड़े दिखते हैं चाहे फिर वो कांग्रेस का डिनर हो या विश्वासमत पर वोटिंग। अमर सिंह इस देश में अपनी विश्वसनीयता बहुत पहले खो चुके हैं। हां,भूषणों ने जो किया है उसका भुगतान भी वो करेंगे जैसे वनवासी अमर सिंह कर रहे हैं।
आशीष
April 24, 2011 at 10:14 am
इसको को पटरा वाला पैजामा पहना कर उत्तर प्रदेश की सडकों पर ये कहते हुए दोड़ाना चाहिए की “मैं दलाल हूँ ,मैं सिर्फ एक दलाल हूँ”. और अगर ये जंतु न दोड़े तो कम्बल ओढाकर, सड़क पर लाठी लेकर पीटना चाहिए (क्यूंकि मैं हिंसा के खिलाफ हूँ लेकिन ऐसे जंतु को पीटना जरूरी है इसलिए कम्बल ओढ़ने पर कम चोट लगेगी बेचारा जानलेवा बीमारी इलाज़ करा कर आया है ) >:(
Vaibhav Rastogi
May 12, 2011 at 5:59 am
amar singh is a broker ..a cheap broker . jaise vibihisad ka naam liya jaata hai Ramayan mein aise hi amar singh ka naam bhee liye jaayega.