राज एक्सप्रेस के मालिक हैं अरुण शहलोत. इनके यहां राज एक्सप्रेस में पहले हृदयेश दीक्षित संपादक हुआ करते थे. बेआबरु होकर इन्हें राज से बाहर जाना पड़ा. जाहिर है, बाहर करने का फैसला अरुण शहलोत ने ही लिया होगा. लेकिन आजकल के चालाक पत्रकार और बड़े पदों पर आसीन पत्रकार किसी भी मामले में मालिक को कभी दोषी नहीं मानते. वे हमेशा दोष किसी निर्दोष पत्रकार के मत्थे मढ़ देते हैं. हृदयेश दीक्षित गए तो रवींद्र जैन को पूरा पावर मिल गया और संपादक बना दिए गए.
हृदयेश तभी से रवींद्र जैन से खार खाए थे. रवींद्र जैन ने राज की कमान मिलते ही हृदयेश के लोगों को एक एक कर निपटाया. इससे हृदयेश बहुत ज्यादा चिढ़ गए और मौका मिलने पर रवींद्र जैन को निपटाने का इरादा कर लिया. वो दिन आ गया. अरुण शहलोत का करोड़ों का माल टूटा और हृदयेश दीक्षित बैठ गए इसकी विवेचना करने. विवेचना करते-करते उन्होंने इसके लिए दोषी रवींद्र जैन को घोषित कर दिया. अरुण शहलोत को बिलकुल निष्पाप और निर्दोष माना. शायद इसलिए ताकि राज में हृदयेश के जाने का मौका बना रहे, बचा रहे. जरा कोई हृदयेश दीक्षित से पूछे कि अगर राज एक्सप्रेस में रवींद्र जैन ने सरकार के खिलाफ, सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ, नौकरशाहों और मंत्रियों के खिलाफ खबरें लिखीं तो इसमें कौन सा बड़ा पाप किया. दूसरे, अगर अरुण शहलोत को रवींद्र जैन की खबरों के ताप व ताव से कोई दिक्कत हो रही थी, तो अरुण शहलोत को साफ साफ कह देना चाहिए था, जैसा कि हर लाला करता है.
रवींद्र जैन अपनी नौकरी दांव पर लगाकर सरकार से मोर्चा कतई नहीं खोलते. तो माना जाना चाहिए कि रवींद्र जैन ने जो खबरें लिखीं उसके पीछे कहीं न कहीं अरुण शहलोत का समर्थन प्राप्त था. अब अगर अरुण शहलोत को सरकार विरोधी खबरें लिखने-लिखवाने की सजा किसी और रूप में मिली हो तो इससे उन्हें परेशान नहीं होना चाहिए. सत्ता और शासक हमेशा मीडिया को पटाए रखने को इच्छुक रहते हैं. जो इनसे नहीं पटता, उन्हें निपटाने को इच्छुक रहते हैं. इसका लंबा चौड़ा इतिहास है. रामनाथ गोयनका, प्रभाष जोशी, इंडियन एक्सप्रेस, जनसत्ता…. के उदाहरणों से साबित होता है कि कैसे मीडिया के मालिकों को सरकारें दबाव में लेती हैं और बारगेन करते हुए संपादकों को शहीद करा देती हैं. अगर माल तोड़े जाने से घबराए अरुण शहलोत सरकार के इशारे पर रवींद्र जैन की बलि चढ़ा देते हैं तो ये कोई नई बात नहीं होगी क्योंकि ऐसा होता रहा है.
नई बात सिर्फ यह है कि अरुण शहलोत जैसा मालिक भी है जो सरकार और मंत्रियों से सीधे टकराने की साहस रखता है, और जाहिर है, ऐसे साहसी मालिकों को साहसी पत्रकार चाहिए होते हैं, जो हृदयेश दीक्षित कभी साबित नहीं हो सकते क्योंकि दुकानदारी करने और पत्रकारिता करने के तौर-तरीके में बड़ा फर्क होता है. लीजिए, हृदयेश दीक्षित के अखबार प्रदेश टुडे में छपी समीक्षा पढ़िए और वो अरुण शहलोत के माल के ढहाए जाने की कुछ तस्वीरे देखिए. क्लिक करें…
हृदयेश दीक्षित की समीक्षा (एक)
harvansh
May 10, 2011 at 4:50 pm
arun sehlot ne kisano se zabardasti zamin kharidi jo nahi mana use pitwa diya, unki fasale katwa di to aise ghatiya malik ke sath to yahi hona tha , ravindra jain aur yeh dan ugahi karte jo nahi mane uske khilaf chaap di khabar , ab sahab kehte hai mai bharpai karunga jo ki woh karne nahi wale.
Arun sehlot ke sath yeh to achcha hua unka ghamand zarur tuta hoga
ashu
May 8, 2011 at 2:29 pm
raj express ke cmd arun je ke saath sahi nahe huya. par ye to btana hi hoga pradesh sarkaar ko ki das saal pahle kaha thi pradesh sarkaar jab maal ko noc de thi ? isme koye shak nahi ki sarkaar ke birodh me or sach kahane ke karan he maal ko dha diya gaya he . ya sab sochi samji karvahee thi.
Zahrella
May 10, 2011 at 8:56 am
प्रिय यशवंत जी ऐसा लगता है की आपको अरुण सहलोत या रवीन्द्र जैन की तरफ़ से कुछ माल खाने को मिला है जो आप अरुण सहलोत की विरदावली गा रहे हैं.अरुण सहलोत जैसा घटिया मलिक शयड ही कोई होगा .ये अपने पेपर के दम पर नंगा नाच रहा है.यहाँ जो एक बार आगेया वो फिर कहीं और नौकरी की कोशिश नही कर सकता है.अगर अरुण को पता चल जाए तो अपने पालतू गुंडों से उन्हे पितवाता है.हालही में इन्दोर एडिशन के कुछ लोगों ने प्रभात किरण में ट्राइ मारी तो अरुण सहलोत ने वीडियो कनफ्रेंसे में उनकी मया और बहनों से जो आत्मीय संबंध स्थापित करने वाली गलिया और गहर से उठवा लेने की धमकियाँ दी वो सारे इन्दोर में चर्चा का विषय बना हुआ है.ये हर महीने की २५ तारीख के बाद वेतन बाँटता है ताकि अगर कोई छोड़ कर जाना चाहे तो उसकी एक महीने की सॅलरी ये मार ले. पी.एफ काटना तो दूर रहा ये वेतन भी आधा काट कर देता है.राज्य सरकार इस गुंडे की सारी करतूत जानती है फिर भी मूह सी कर बैठी है.अतः आपसे निवेदन है की ऐसे रावणों की प्रशंसा पैसा खा कर भी ना करें .अन्यथा बी.एम. द्वेदी जैसे कितने लोगों को आत्म हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.Please dont disclose my name.
sarita argarey
May 16, 2011 at 1:18 pm
हृदयेश दीक्षितजी के लेखों पढ़ने को पढ़ने के बाद उनके पत्रकार होने के दावे पर शक होता है । हर वाक्य में वे पत्रकारिता की आड़ में दुकानदारी की पैरवी करते नज़र आते हैं । क्या नौकरशाही और सरकार की अनियमितताओं को जनता के सामने लाना गुनाह है । हृदयेश दीक्षितजी ने अपने लेखों में एक तरह से पत्रकारिता के बुनियादी उसूलों का मज़ाक बनाया है । क्या भ्रष्टाचारियों से हाथ मिलाकर खबरों के तौर पर बोया जाने वाला झूठ ही पत्रकारिता है ? हालाँकि अरुण सेहलोत का ग्रुप भी दूध का धुला नहीं है । मगर आनन फ़ानन में की गई कार्रवाही सरकार की नीयत पर भी सवाल खड़े करती है । यदि सरकार वाकई भूमाफ़ियाओं के खिलाफ़ सख्त है तो भास्कर ग्रुप के डीबी मॉल, जवाहर चौक के एमएलए क्वार्टर्स और सरकारी ज़्मीनों पर अधिकारियॊं तथा नेताओं की मदद से खड़ी की गई कॉलोनियों पर बुलडोज़र क्यों नहीं चलाती ?
karan singh
May 21, 2011 at 1:38 pm
ravindra jain ne jab tak sehlot ji ko adhikariyon se paisa vasool kar diya, ravindra ji achchhe the. ab jaan par ban aai to bure ho gaye. dono hi barabar ke doshi hain. hridesh dixit to khud patrakarita ki aad me madhyanha bhojan ki supply karte haim.