बीबीसी के कूटनीतिक सम्पादक ब्रायन हनरहन की 61 साल की उम्र में लन्दन में मृत्यु हो गयी. उन्हें कैंसर हो गया था. 1970 में बीबीसी से जुडे ब्रायन हनरहन ने हालांकि क्लर्क के रूप में काम शुरू किया था लेकिन बाद वे बहुत नामी रिपोर्टर बने. भारत में उन्हें पहली बार 1984 में नोटिस किया गया जब वे मार्क टली और सतीश जैकब के साथ इंदिरा गाँधी की हत्या की रिपोर्ट करने वाली टीम के सदस्य बने.
इंदिरा गाँधी की हत्या की रिपोर्ट करके बीबीसी ने पत्रकारिता की दुनिया में अपनी हैसियत को और भी बड़ा कर दिया था. यह वह दौर था जब बीबीसी की हर रिपोर्ट को पूरा सच माना जाता था. ब्रायन हनरहन हांग कांग में रहकर एशिया की रिपोर्टिंग करते थे. बीबीसी ने ही बाकी दुनिया को बताया था कि इंदिरा गाँधी की हत्या हो गयी थी जबकि सरकारी तौर पर इस बात को बहुत बाद में घोषित किया गया.
इंदिरा गाँधी की हत्या के दौरान भारत की राजनीति बहुत भारी उथल पुथल से गुज़र रही थी. पंजाब में आतंकवाद उफान पर था. पाकिस्तान में जनरल जिया उल हक का राज था और उन्होंने बंगलादेश की हार का बदला लेने का मंसूबा बना लिया था. उनको भरोसा था कि आतंकवादियों को सैनिक और आर्थिक मदद देकर वे पंजाब में खालिस्तान बनवाने में सफल हो जायेगें. इंदिरा गाँधी के एक बेटे की बहुत ही दुखद हालात में मौत हो चुकी थी वे अन्दर से बहुत कमज़ोर हो चुकी थीं. हालांकि राजीव गाँधी राजनीति में शामिल हो चुके थे और कांग्रेस पार्टी के महासचिव के रूप में काम कर रहे थे लेकिन आम तौर पर माना जा रहा था कि अभी उनके प्रधान मंत्री बनने का समय नहीं आया था. लोगों को उम्मीद थी कि वे कुछ वर्षों बाद ही प्रधान मंत्री बनेंगे.
इंदिरा गाँधी की उम्र केवल 67 साल की थी और लोग सोचते थे कि वे कम से कम 10 साल तक और सत्ता संभालेंगी. दिल्ली में अरुण नेहरू और उनके साथियों की तूती बोलती थी. यह सारी बातें दुनिया को बीबीसी ने बताया जिसके सदस्यों में ब्रायन हनरहन भी एक थे. यह अलग बात है कि इस टीम के सबसे बड़े पत्रकार तो मार्क टली ही थे. इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद 1 नवम्बर से शुरू हुए सिख विरोधी दंगों और राजीव गाँधी की ताजपोशी की रिपोर्ट करने में भी बीबीसी ने दुनिया भर में अपनी धाक जमाई थी. सिख विरोधी दंगों में कांग्रेस के कई मुकामी नेता शामिल थे और जब बीबीसी ने सबको बता दिया कि सच्चाई क्या है तो किसी की भी हिम्मत सच को तोड़ने की नहीं पड़ी. यह ब्रायन हनरहन की रिपोर्टिंग की ज़िंदगी का दूसरा बड़ा काम था. वे इसके पहले ही अपनी पहचान बना चुके थे.
उन्होंने ब्रिटेन के फाकलैंड युद्ध की रिपोर्टिंग की थी और बीबीसी रेडियो के श्रोताओं में उनकी पहचान बन चुकी थी. हांग कांग में अपनी तैनाती के दौरान ब्रायन हनरहन ने दुनिया को बताया था कि कम्युनिस्ट चीन में डेंग शियाओपिंग ने परिवर्तन का चक्र घुमा दिया है. बाद में वे 1989 में चीन फिर वापस गए और तियान्मन चौक से रिपोर्ट किया. इस साल के नोबेल पुरस्कार विजेता वेन जियाबाओ के बारे में पहली रिपोर्ट 1989 में ब्रायन हनरहन ने ही की थी. 1986 में जब रूस में गोर्बाचेव की परिवर्तन की राजनीति शुरू हुई तो ब्रायन हनरहन बतौर नामाबर मौजूद थे.
पश्चिम की दुनिया को उन्होंने ही बताया कि रूस में पेरेस्त्रोइका और ग्लैस्नास्त के प्रयोग हो रहे हैं. गोर्बाचेव की इन्हीं नीतियों के कारण और बाद में सोवियत संघ का विघटन हुआ. कोल्ड वार के बाद पूर्वी यूरोप में जो भी परिवर्तन हुए उनके गवाह के रूप में ब्रायन लगभग हर जगह मौजूद थे. जब जर्मन अवाम ने बर्लिन की दीवार पर पहला हथौड़ा मारा तो बीबीसी ने वहीं मौके से रिपोर्ट किया था और वह रिपोर्ट ब्रायन की ही थी. बर्लिन दीवार का ढहना समकालीन इतिहास की बड़ी घटना है और हमें उसका आँखों देखा हाल ब्रायन ने ही बताया था.
बीबीसी रेडियो और टेलिविज़न के दर्शक उनकी रिपोर्ट को बहुत दिनों तक याद रखेंगे. जब अमरीका पर 11 सितम्बर 2001 को आतंकवादी हमला हुआ तो ब्रायन हनरहन बीबीसी स्टूडियो में मौजूद थे और उनकी हर बात पर बीबीसी के टेलिविज़न के श्रोता को विश्वास था. बाद में उन्होंने न्यूयार्क जाकर अमरीका की एशियानीति को करवट लेते देखा था और पूरी दुनिया को बताया था. एशिया की बदली राजनीतिक हालात के चश्मदीद के रूप में उन्होंने आतंकवादी हमलों की बारीकी को दुनिया के सामने खोल कर रख दिया था. बीबीसी रेडियो के रिपोर्टर के रूप में ब्रायन ने पोलैंड में सत्ता परिवर्तन और उससे जुड़ी राजनीति को बहुत बारीकी से समझा था और उसे रिपोर्ट किया था.
जब पोलैंड में राष्ट्रपति के रूप में कम्युनिस्ट विरोधी लेक वालेंचा ने सत्ता संभाली थी तो ब्रायन हनरहन वहां मौजूद थे. उन्होंने पोप जान पाल द्वितीय की मृत्यु और उनके उत्तराधिकारी के गद्दी संभालने की घटना को बहुत ही करीब से देखा था और रिपोर्ट किया था. एशिया और पूर्वी यूरोप की राजनीति के जानकार के रूप में ब्रायन हनरहन को हमेशा याद किया जाएगा. ब्रायन अपने पीछे पत्नी, आनर हनरहन और एक बेटी छोड़ गए हैं.
लेखक शेष नारायण सिंह देश में हिंदी के जाने-माने स्तंभकार, पत्रकार और टिप्पणीकार हैं. इन दिनों मुंबई में डेरा डाले हुए हैं.
Comments on “अलविदा ब्रायन हनरहन”
प्रणाम सर,
ब्रायन हनहरन साहब को मेरी श्रद्धांजलि।
शेषनारायण जी आपको बहुत बहुत साधुवाद एक बड़े पत्रकार को श्रध्दांजली देने के लिए, लेकिन जब आप उनके काम का ज़िक्र करते हुए इस साल के नोबेल पुरुस्कार विजेता की बात करते हैं तो आपने विजेता का नाम ग़लत लिखा है उनका नाम वैन जियाबाओ नही है बल्कि उनका नाम लिउ जियाबाओ है. दूसरी बात आपके लेख से एसा आभास होता है कि इंदिरा गांधी हत्या की रिपोर्टिंग मे ब्रायन की बड़ी अहम भूमिका रही जबकी एसा नही है..ये ख़बर सतीश जैकब ने ब्रेक की थी.
लिऊ को वेन लिख कर मैंने गलती की . सुधारने के लिए धन्यवाद . दोनों नामों में घपला हो गया ..लेकिन ब्रायन उस टीम के सदस्य थे. मैंने यही तो लिखा है .उस टीम में सबसे बड़े पत्रकार मार्क टली ही थे. सतीश एक वरिष्ठ सदस्य थे जबकि ब्रायन नए थे
Brain jee ko Bhaavbheeni shraddhanjali !