“अरे भाई, आप लोग तैयार हैं? थोडा जल्दी कर देते, हमें कुछ और भी कार्यक्रम कवर करने हैं…” ये शब्द थे एक बड़े हिंदी अखबार राष्ट्रीय सहारा, लखनऊ के एक फोटोग्राफर साथी के. वे हम लोगों का एक छोटा सा पर सांकेतिक रूप से महत्वपूर्ण कार्यक्रम कवर करने आये थे. जगह था लखनऊ का शहीद स्मारक. दिन बारह अक्टूबर. समय लगभग सवा छह बजे शाम. मौका था आरटीआई एक्ट के पांच साल हो जाने के अवसर पर इन वर्षों के दौरान मार दिए गए आरटीआई शाहीद्दों को श्रद्धांजलि का. अँधेरा हो गया था और उस जगह पर मात्र हम लोगों द्वारा जलाई गयी मोमबत्तियां ही कुछ प्रकाश दे रही थीं. हम लोगों की संख्या दस-बारह की रही होगी. नेशनल आरटीआई फोरम की ओर से मैं और अमिताभ जी थे. यूथ इनिशिएटिव के अखिलेश जी थे. हिमांशु, अभिषेक और आलोक थे. विधि के प्रवक्ता देवदत्त शर्मा थे और दूसरे कुछ साथी थे. श्रद्धांजलि और स्मरण का कार्यक्रम हो गया था. हिंदुस्तान टाइम्स अखबार से फोटोग्राफर अशोक दत्त जी फोटो ले कर जा चुके थे.
सहारा के फोटोग्राफर साथी का नाम मैं पूछ नहीं पायी थी पर उनकी और अशोक दत्त जी की कई बातें ऐसी थीं जिन्होंने मुझे अखबारों में फोटोग्राफरों की भूमिका पर गहरे से सोचने को विवश कर दिया. पहले अशोक जी की बात करें. जब ये आये तब हमारा कार्यक्रम शुरू नहीं हुआ था. हम लोग कुछ ही संख्या में थे और इधर-उधर बिखरे हुए थे. बस धीरे-धीरे तैयारी चल रही थी. पर इन्होंने आने के साथ गजब का को-आपरेशन किया. हम लोगों को सही ढंग से सिलसिलेवार खड़े होने का तरीका बताया. बैनर पकड़ने के ढंग में भी मदद की और बड़े ही आराम और प्रेम से फोटोग्राफी के कार्य को अंजाम दिया. उसमें भी एक मजेदार बात ये हुई थी कि जैसे ही बाकी सारी तैयारियां हो गयीं और मोमबत्ती जलाने की बारी आई, मालूम हुआ कि हड़बड़ी में दियासलाई है ही नहीं. अशोक जी ने इस पर कोई आपत्ति जाहिर नहीं की और हमें कहा कि बगल से माचिस ले आयें. फिर फोटो खींचने के बाद प्रेस नोट के लिए कहा. उस समय तक देव दत्त शर्मा जी आये नहीं थे, इसीलिए प्रेस नोट नहीं था. वे तुरंत बोले- “कोई बात नहीं. ये मेरा मोबाइल नंबर है. आने पर बता दीजियेगा.”
सहारा के फोटोग्राफर साथी भी कम सहयोगी नहीं थे. उन्होंने हमें अच्छा फोटो बनाने का एक दूसरा पोज दिलाया और उस पर बड़े अंदाज और प्रेम से फोटो लिया. तब तक देवदत्त शर्मा जी आ तो गए थे पर प्रेस नोट की फोटो प्रतियां नहीं हुई थीं. फोटोग्राफर मित्र ने कहा- “चिंता की कोई बात नहीं है. आप हमें प्रेस नोट दीजिये.” हमने कहा कि भाईसाहेब, एक ही है. कहे- “अरे लाईये तो. हम ले नहीं जायेंगे.” फिर उस प्रेस नोट को हमारे सामने ही रख कर उसका एक शानदार क्लोज-अप लिया जिससे वह पढ़ा जा सके. फिर हममे से एक-दो महत्वपूर्ण आयोजकों का नंबर लिया और तब गए.
जब राष्ट्रीय सहारा के फोटोग्राफर साथी फोटो खीच रहे थे तो उस समय अमर उजाला के भी एक नौजवान फोटोग्राफर मित्र पधार गए. मैंने उनका भी लगभग वही अंदाज़ देखा. पहले कई एंगल से फोटो और उसके बाद प्रेस नोट का नजदीक से फोटो. यानि कि एक पूरा न्यूज़ लगभग तैयार. यह भी मालूम हुआ कि इन लोगों को जो थोड़ी-बहुत हड़बड़ी थी उसका कारण ये नहीं था कि वे घर भागने को व्याकुल हों. बल्कि उन्हें उस रोज कई और महत्वपूर्ण कार्यक्रम की तस्वीरें लेनी थी.
मुझे उस दिन ठीक से मालूम हुआ कि अखबारों और टीवी में फोटोग्राफरों-कैमरामैनों की भूमिका कितनी अधिक महत्वपूर्ण और आवश्यक होती है और फोटोग्राफर साथी कितने सारे काम एक साथ करते हैं.
डॉ नूतन ठाकुर
संपादक
पीपल’स फोरम, लखनऊ
Comments on “इन फोटोजर्नलिस्ट साथियों को सेल्यूट करती हूं”
madam namaskar. apne photographers ke kam ki liye jo likha hai uske liye main apka photographrs ki taraf se sukriya ada karta hun. photographers wakai he akhbaro or tv main mahtvpurn bhomika nibhate hai. apko ek bar fir se thanks
madam namaskar, अखबारों और टीवी में फोटोग्राफरों-कैमरामैनों की भूमिका कितनी अधिक महत्वपूर्ण और आवश्यक होती है और फोटोग्राफर साथी कितने सारे काम एक साथ करते हैं. आपने फोटोग्राफरों-कैमरामैनों की jo तस्वीर byan ki hai uske liye apko many many thanks
dhanaybaad apne kuch der me hi chhayakaro ki sthiti samjh li banaras ke photo grafars ki taraf se apko salam.
photo grafers ki itni achchi tarif maine aaj tak nahi suni apko banaras ke sabhi chhayakaro ki taraf se bahu bahu dhanaybaad.