भड़ास4मीडिया पर पदमजी का संपूर्ण इस्तीफानामा जल्द की सूचना आनलाइन करने के 24 घंटे के भीतर ही इस्तीफानामा पेश किया जा रहा है। हिंदी पत्रकारिता के लिए यह इस्तीफानामा एक ऐतिहासिक दस्तावेज की तरह है जिसमें कई बड़े नाम आएंगे और उनसे जुड़े कुछ प्रकरणों का भी खुलासा होगा। यहां यह बता दें कि अजय उपाध्याय के दैनिक हिंदुस्तान से जाने और मृणाल पांडे के बतौर प्रधान संपादक दैनिक हिंदुस्तान आने के ठीक बाद 26 अप्रैल 2002 को यह इस्तीफा सौंपा गया था। तो लीजिए, मशहूर खेल पत्रकार पदमपति शर्मा के संपूर्ण और असंपादित इस्तीफेनामे का पहला भाग….
श्रद्धेय मृणाल जी
जिस दिन आपके इस प्रतिष्ठान में आने की सूचना मिली, जी खुश हो गया, लगा कि हिंदी भाषा की एक श्रेष्ठ विदुषी के आने के बाद अब हिंदुस्तान को नया कलेवर मिलेगा। साथ ही भाषा के साथ जो अराजकता चल रही है, अब वो भी खत्म हो जाएगी।
मैं आपसे मिल कर यह आग्रह करने को था कि आप वर्तनी के संदर्भ में सारे संस्करणों को स्पष्ठ निर्देश दें ताकि भाषाई एकरूपता दृष्ठिगत हो सके। व्यक्तिगत रूप से भी मैं इसलिए आह्लादित था कि अब खेल डेस्क भी बिना तनाव के काम कर सकेगी क्योंकि पिछले पौने दो वर्षों से मैं संपादक-सचिवालय की कार्य प्रणाली से बेहद निराश था। यहीं मैं यह भी स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि निस्संदेह हिंदुस्तान (यूपी व बिहार संस्करण) के खेल पृष्ठ तो उत्तरोत्तर समृद्ध होते चले गए, लेकिन मैं अपने मित्रों को खोकर दिन-प्रतिदिन अकिंचन होता रहा।
जब मैंने कार्यभार संभाला तब निवर्तमान संपादक श्री अजय उपाध्याय का प्रथम आग्रह था कि पदम जी सबसे पहले कालमों की व्यवस्था कीजिए। यह पूछने पर कि पहले आपके यहां गावस्कर के कालम प्रकाशित होते थे, अजयजी का उत्तर था, चूंकि वह अंग्रेजी में है इसलिए खेल डेस्क उसका प्रयोग नहीं करती। फिलहाल मुझे नहीं मालूम कि गावस्कर का कालम आता भी है या नहीं।
अपने 25 वर्ष पुराने मित्र दिलीप वेंगसरकर ने मेरा आग्रह स्वीकार कर लिया और हमें उनका कालम निःशुल्क मिल गया। शर्त यह थी कि उनके स्तंभ के बीच में 5-1 का प्रायोजक लोगो लगाना था। अजयजी ने कार्यकारी अध्यक्ष से इसकी अनुमति भी ले ली थी। लेकिन वह समस्त संस्करणों में लोगो नहीं लगवा सके और वेंगसरकर को काफी आर्थिक क्षति उठानी पड़ी। वेंगी को अखबार की प्रतियां भी नहीं भेजी जा सकीं। क्योंकि उनमें लोगो जो नहीं थे. अजयजी से बार-बार इस अनुरोध के बावजूद कि आप स्वयं वेंगसरकर से बात करके मामला सुलझा लें, उन्होंने कुछ भी नहीं किया और वेंगी के साथ मेरे संबंध विच्छेद हो गए।
दूसरा मामला देवाशीष दत्ता का था। यहां मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि देवाशीष बांग्ला दैनिक में होने के बावजूद इस समय देश के शीर्षस्थ क्रिकेट पत्रकार हैं और भारतीय टीम के ड्रेसिंग रूम के सर्वाधिक सन्निकट भी। उनके साथ मेरा रिश्ता भाई जैसा है और जो एक पुराना कर्ज अभी तक चुका रहा है। आज से 18 वर्ष पूर्व भारतीय क्रिकेट टीम के पाकिस्तान भ्रमण के दौरान देबू से पहली मुलाकात विचित्र परिस्थितियों में हुई. उसे वहां डेंगू हो गया था। साथियों के विरोध के बावजूद मैं उसे अपने कमरे में ले आया और उसकी चिकित्सा कराई। उसके नाम पर दूसरे टेस्ट की पूरी रिपोर्ट मैं टेलीफोन के माध्यम से उसके अखबार को भेजता रहा। उस दिन से देबू मेरे साथ हो लिए।
देबू जबरदस्त खोजी पत्रकार है और भारतीय क्रिकेट टीम की अंतरंग खबरों को निकालने में लाजवाब। दैनिक जागरण, अमर उजाला और अब हिंदुस्तान में भी वह खबरें देता रहा। अजय जी की अनुमति से ही देवाशीष घरेलू व विदेशी श्रृंखलाओं की कवरेज करते रहे। लेकिन भुगतान के नाम पर उन्हें आश्वासनामृत ही मिलता रहा। अक्तूबर 2000 का पहला बिल रहा होगा। अजय जी ने कहा कि अभी फरवरी माह के पारिश्रमिकों के भुगतान चल रहे हैं, समय आने पर देबू का भी होता रहेगा। इसी आशा के साथ देबू खबरें भेजता गया। मैं उन्हें प्रकाशित करता रहा और बिल इकट्ठे होते चले गए। देबू ने अजयजी से कई मुलाकातें कीं, हमेशा यही कहा गया कि धीरे-धीरे एक साल के भीतर भुगतान होते रहेंगे।
उसी कड़ी में मैंने आपको फोन किया था कि उसे वेस्टइंडीज जाना था और पैसे की जरूरत थी। कोई बिल रहा होगा और अजय जी ने उसे 27 मार्च तक भेज देने का वादा किया था। लेकिन वह भेजा नहीं गया। इधर अजय जी के जाने से मेरी समझ में नहीं आया कि क्या करूं? अंत में आपको फोन किया। सोचा था कि आप बुलाएंगी तो सारी फाइल आपके सामने रखकर बताऊंगा कि किस तरह से मैं जूझता रहा था।
यहां यह भी बताना समीचीन रहेगा कि भारतीय टीम के वर्तमान दौरे के लिए देबू की सेवाएं एचटी भी ले रहा है। मैंने उनके कई समाचार एचटी.काम से उठाए हैं और मेरे कहने का आधार भी यही है।
कंपनी के उपाध्यक्ष वाईसी अग्रवाल मझसे कहते रहे- सबसे बढ़िया कवरेज होनी चाहिए और पैसा- नो लिमिट।
जारी….