: पीसीआई और मेरी यादें – पार्ट दो : 1980 में इंदिरा गांधी दुबारा प्रधानमंत्री बनीं. उसी साल अगस्त में मुरादाबाद में दंगा हो गया. मैंने उस दंगे की तस्वीरें खींची थीं. उनमें से एक तस्वीर दुनिया के कई अखबारों में छपी थी. इस तस्वीर में वह घटना थी, जिसमें चार-पांच सूअर ईदगाह के पास एक आदमी की लाश को खाते दिख रहे थे.
जब यह तस्वीर छपी तो बहुत हल्ला-गुल्ला हुआ. मुझे भारत सरकार के प्रधान सूचना अधिकारी ने लताड़ा था. मैंने भी उनसे उसी अंदाज़ में बात की. एक दो दिन बाद असली भारत के संपादक अजय सिंह को उन तस्वीरों को छापने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया. अखबार के प्रिंटर और प्रकाशक मल्होत्रा जी थे. वे भी गिरफ्तार हो गए. शाम को तीन पुलिस वाले मेरे आवास पर सादी वर्दी में आये और मुझसे ही पूछने लगे कि त्यागी जी कहाँ हैं. उन्होंने पूछा कि आप यहीं रहते हैं. मैं सतर्क हो गया और उनसे बताया कि हाँ मैं यहीं रहता हूँ. जब उन्होंने मेरा नाम पूछा तो मैंने कह दिया कि मेरा नाम मक़सूद है. उन्होंने कहा कि त्यागी जी हमारे दोस्त हैं और हमें उनसे ही मिलना है.
मैंने उनसे बताया कि त्यागी जी लखनऊ चले गए हैं. वहां से बनारस और कानपुर होते हुए एक हफ्ते बाद वापस लौटेंगे. मैंने कहा कि अगर आप दोस्त हैं तो आप नई दिल्ली स्टेशन चले जाइए, वहीं स्टेशन के सामने जूते की एक दुकान है, वे वहीं जूते खरीद रहे होंगे. अभी तो ट्रेन जाने में एक घंटा बाकी है. जाते हुए उन पुलिसवालों को मैंने यह कहते सुना कि भाग गया साला. मैंने अपना नाम इसलिए छुपाया कि यह लोग कह रहे थे कि दोस्त हैं और उसे पहचान तक नहीं रहे हैं, जबकि दोस्त सामने खड़ा है.
थोड़ी देर बाद मैं अपना स्कूटर और कपड़े लेकर चला गया. जगह बदल-बदल कर रहता रहा. एक दिन मैं गुलमोहर पार्क में अपने दोस्त राजेश चौधरी के मकान पर था. मैंने देखा कि एक मझले शरीर का आदमी लुंगी पहने बैठा था और अखबार पढ़ रहा था. मैंने अपने दोस्त से कहा कि यह आदमी यूएनआई में क्राइम रिपोर्टर है. कहीं यह पुलिस को मेरे बारे में बता तो नहीं देगा. राजेश चौधरी ने कहा कि यह मेरे चाचा के लड़के हैं इनसे मत घबराओ. इस तरह से मैं पहली बार आज के नामी पत्रकार विनोद शर्मा से मिला.
थोड़े दिनों बाद मेरे कुछ दोस्तों ने पैसे देकर मुझे प्रेस क्लब का मेंबर बनवा दिया. मैं कभी-कभी प्रेस क्लब जाने लगा. एक दिन विनोद शर्मा ने कहा कि ”त्यागी, बात सुन, यह हिन्दुस्तान टाइम्स का एआर विग है, कई बार इलेक्शन हार चुका है, इसे इस बार जितवाना है. चुनाव के वक़्त आप कहीं मत जाइए, यहीं जमे रहिये.” मैंने भी कह दिया कि कहीं नहीं जायेंगे. उस चुनाव में विग पहली बार जीते, लेकिन दूसरे साल चुनाव कराने के लिए उन्होंने हम लोगों को नहीं बुलाया. विनोद शर्मा, हांडू, जसविंदर (जस्सी) और मैं विग के घर पहुंच गए.
हमने देखा कि जो टीम विग के खिलाफ चुनाव लड़ी थी, उसी को उन्होंने अपने घर बुला रखा था. मेरी एआर विग से कुछ कहासुनी हो गयी. मैंने कहा कि सेक्रेटरी साहब बताइये कि क्लब में खाने के रेट क्यों बढे हैं. पहले क्लब में खाने का थाली सिस्टम था. मैंने पूछा कि शाकाहारी और मांसाहारी थालियों की कीमत में दुगुने की वृद्धि हुई है. उन्होंने कहा कि उनकी वहां चल नहीं रही थी. चमन भारद्वाज और विजय जाली ने उन्हें बंधक बना रखा था. साल भर में वे लोग पचासों बार 50-50 आदमियों का खाना लेकर गए होंगे. मैंने पूछा कि आपने हम लोगों को यह पहले क्यों नहीं बताया. आप झूठ बोल रहे हैं. यह आपका चुनावी हथकंडा है. आपके घर में जिस पुलिस अधिकारी ने खाने का इंतज़ाम करवाया है, हमें इस दावत के बारे में उसी ने बताया.
वहीं पर विग ने हमें बताया कि वे दुबारा चुनाव लड़ना चाहते थे. मैंने कहा कि इस बार अगर आप चुनाव लड़ेंगे तो आपके गले में जूतों की माला पड़ेगी. विनोद शर्मा ने मुझे चुप कराया और कहा कि तुम्हे सारी बातें यहाँ नहीं बतानी चाहिए थीं. विग के खिलाफ लड़ रही पूरी टीम चुनाव जीत गयी. दो लोग तो बिना किसी विरोध के जीत गए. दूसरी टीम के कुछ लोगों ने जसविंदर जस्सी को एक दावत दी. वह जगह जेएनयू के पास कहीं थी.
पहली बार जब एआर विग क्लब के महासचिव और सीएस पंडित अध्यक्ष थे तो एक रात क्लब के सदस्यों ने हल्ला मचा दिया कि शराब में मिट्टी का तेल मिला हुआ है. विग और पंडित को फोन हुआ. विग तो नहीं आये लेकिन चन्द्र शेखर पंडित आये. उन्होंने बोतलों को सील करा दिया. एक कमेटी बनी, जांच हुई और विजय पाहुजा नाम का एक कर्मचारी दोषी पाया गया.
15-20 दिन के बाद एआर विग ने मुझे नोटिस भेज दिया, जिस में लिखा था, “आप क्लब को बदनाम कर रहे हैं.” इस बीच एक दिलचस्प बात और गयी थी. विजय पाहुजा ने अपने भतीजे को बार काउंटर पर रखवा दिया था. उसे बार के सेल का इंचार्ज बना दिया गया. एक दिन विजय पाहुजा का भतीजा बार के 15 दिन के सेल का सारा पैसा लेकर चम्पत हो गया. बात का जब खुलासा हुआ तो पता चला कि वह कहीं ज़रूरी काम से चला गया था. कुछ लोग कहते हैं कि उसने पैसा नहीं लौटाया था जबकि कुछ लोग कहते हैं कि उसने किश्तों में पैसा लौटा दिया था. हम जानते हैं कि महासचिव की मर्जी के बिना कोई भी कर्मचारी ऐसा काम नहीं कर सकता. यानी पहले भी क्लब को आज की तरह लूटा जाता रहा है.
…जारी….
लेखक विजेंदर त्यागी देश के जाने-माने फोटोजर्नलिस्ट हैं और खरी-खरी बोलने-कहने-लिखने के लिए चर्चित हैं. पिछले चालीस साल से बतौर फोटोजर्नलिस्ट विभिन्न मीडिया संगठनों के लिए कार्यरत रहे. कई वर्षों तक फ्रीलांस फोटोजर्नलिस्ट के रूप में काम किया और आजकल ये अपनी कंपनी ब्लैक स्टार के बैनर तले फोटोजर्नलिस्ट के रूप में सक्रिय हैं. ”The legend and the legacy : Jawaharlal Nehru to Rahul Gandhi” नामक किताब के लेखक भी हैं विजेंदर त्यागी. यूपी के सहारनपुर जिले में पैदा हुए विजेंदर मेरठ विवि से बीए करने के बाद फोटोजर्नलिस्ट के रूप में सक्रिय हुए. विजेंदर त्यागी को यह गौरव हासिल है कि उन्होंने जवाहरलाल नेहरू से लेकर अभी के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तस्वीरें खींची हैं. वे एशिया वीक, इंडिया एब्राड, ट्रिब्यून, पायनियर, डेक्कन हेराल्ड, संडे ब्लिट्ज, करेंट वीकली, अमर उजाला, हिंदू जैसे अखबारों पत्र पत्रिकाओं के लिए काम कर चुके हैं. विजेंदर त्यागी से संपर्क 09810866574 के जरिए किया जा सकता है.