शक्ल-सूरत से शरीफ, समझदार और पढा-लिखा दिखने वाला यह शख्स कुछ महीने पहले लखनऊ पहुंचा और दर्जन भर से ज्यादा मझोले-छोटे अखबारों के मालिकों को अपनी नई विज्ञापन एजेंसी के बारे में जानकारी देते हुए कमीशन के आधार पर विज्ञापन मुहैया कराने का प्रस्ताव दिया. नेकी और पूछ-पूछ. मीडिया मालिकों ने सहर्ष हां कर दिया. आचार्यजी ने जमकर विज्ञापन दिए. बड़ी बड़ी कंपनियों के. आरओ भी दिए. कंपनियों के मेल भी फारवर्ड किए. कुछेक को पेमेंट के पोस्टडेटेड चेक भी दिए. आमतौर पर विज्ञापन छपने के 90 दिन के भीतर पेमेंट की व्यवस्था होती है. 90 दिन आते-आते और मीडिया मालिकों के पेमेंट के दबाव बढते जाने के बाद आचार्य जी एक दिन अचानक रफूचक्कर हो गए. मोबाइल बंद. मेल बंद. पता-ठिकाना खाली-खाली. कुल करोड़ों रुपये की चपत लगाकर चले गए आचार्यजी.
डेली न्यूज एक्टिविस्ट समेत दर्जन भर अखबारों का कुल कई करोड़ रुपये का बकाया इन आचार्यजी पर है. बताया जाता है कि आचार्यजी का संबंध बड़ी विज्ञापन एजेंसियों से था और विज्ञापन एजेंसियों द्वारा रिलीज किए जाने वाले विज्ञापन को बिचौलिया की भूमिका निभाते हुए आचार्य जी इन अखबारों में छपवाते रहे और पेमेंट खुद मार गए. पेमेंट खुद मारने के लिए आचार्यजी ने इन मीडिया हाउसों के फर्जी लेटरपैड सिग्नेचर आदि तैयार करा लिए. मतलब ये कि आचार्य जी बेहद चतुर आदमी हैं. बड़ी एड एजेंसियों को मीडिया हाउसों के फर्जी दस्तावेज दिए और मीडिया हाउसों तक विज्ञापन के फर्जी आरओ मेल आदि भेजते रहे.
कहा ये भी जा रहा है कि आचार्य जी ये धोखाधड़ी विज्ञापन एजेंसियों में बैठे कुछ बेईमान लोगों की मिलीभगत के चलते कर पा रहे हैं. फिलहाल आचार्यजी लापता हैं. अगर आप इन्हें खोज पाएं, देख पाएं तो इसकी सूचना लखनऊ की पुलिस को दे दें ताकि इनसे पूछताछ कर बाकी धोखाधड़ी के बारे में भी जानकारी ली जा सके. नीचे आचार्य जी के उस बायोडाटा को प्रकाशित किया जा रहा है जो इन्होंने लखनऊ के मीडिया हाउसों को दिए हैं…
Comments on “कई मीडिया मालिकों को ठगने वाला आचार्य”
bahti hva sa tha wo kha gya use dhudho harakhor ko khojo. rajsthan me badh wo laya . sukhe me barsat karaya.sabko naye rah dikhaya aese kamine ko khojo
bahti hwa sha tha wo kha gaya use dhudho. dunia ko rah dikhane walo ko rah dikha gya wo kha gya use dhudho