: पत्रकारों की ईमेलबाजी का मामला गरमाया : लखनऊ : करप्शन को लेकर चली चली जूतमपैजार और ईमेल बाजी को लेकर खफा पत्रकारों ने तय किया है मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति के सदस्यों की एक आम सभा बुलाकर एक दूसरे पर कीचड़ उछालने वाले बड़े पत्रकारों से सफाई मांगी जाए। कल राजधानी लखनऊ के जीपीओ स्थित प्रेस रूम में 50 के लगभग पत्रकार जुटे। इनकी जुटान किसी दूसरे मामले को लेकर थी।
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मसूद भाई ही देखेंगे लखनऊ के जीपीओ प्रेस रूम का कामकाज
: कपिल सिब्बल के सामने जाएगा लखनऊ के जीपीओ प्रेस रूम का मामला : लखनऊ : लखनऊ के जीपीओ स्थित प्रेस रूम पर बीएसएनएल के कब्जे के बाद उसके फिर से पत्रकारों के पास वापस आने के बाद अब एक बार फिर से तय किया गया है कि यहां का कामकाज वरिष्ठ पत्रकार मसूद भाई ही देखेंगे। कल जीपीओ प्रेस रूम में हुयी बैठक में मौजूद सभी पत्रकारों ने एक मत होकर यह फैसला लिया।
पत्रकार के हमलावर अफसर को सरकार ने प्राइज पोस्टिंग से नवाजा
: बीपी अशोक को बनाया गया मेरठ का एएसपी सिटी : इंडियन ब्राडकास्टर्स एसोसियेशन ने पाया था दोषी : मुख्यमंत्री मायावती के खासमखास है बीपी अशोक : न जांच, न आरोप पत्र, हफ्ता भर पहले किया बहाल : लखनऊ में इलेक्ट्रानिक पत्रकारों पर बर्बर हमला करने वाले लखनऊ के निलम्बित अपर पुलिस अधीक्षक बीपी अशोक को प्रदेश सरकार ने उनकी करतूतों पर उसे क्लीनचिट दे दी।
कई मीडिया मालिकों को ठगने वाला आचार्य
[caption id="attachment_19136" align="alignleft" width="94"]जालसाज अजेय आचार्या[/caption]: इनकी शक्ल आप भी याद रखें ताकि कभी बिजनेस बढाने के लिए खूब विज्ञापन दिलाने की बात करते हुए ये नजर आएं तो आप सावधान हो जाएं : लखनऊ के 12 से ज्यादा अखबार मालिकों को इस आचार्य की है तलाश : कई करोड़ का गड़बड़झाला करके हो चुका है फरार : इनका नाम अजेय कुमार आचार्या है. ये नाम भी सही है या नहीं, इस पर संदेह है लेकिन चूंकि इन्होंने अपना यही नाम लखनऊ के दर्जन भर से ज्यादा मीडिया मालिकों को बताया था, सो, लोग इन्हें इसी नाम से जानते हैं. इन्होंने अपने बायोडाटा में अपना पता भावनगर, गुजरात बताया है.
नकारे जाने से बौखलाए हैं बुखारी जैसे लोग
कोई नेता पत्रकार पर हाथ तभी उठाता है जब उसकी हैसियत समाज में खत्म हो जाती है. अहमद बुखारी जिस तरह की राजनीति कर रहे हैं उसे इस देश के मुसलमानों ने नकार दिया है. इसी के परिणामस्वरूप आज बुखारी मारपीट पर उतर आये. इसकी जितनी भी निंदा की जाये कम है. सभ्य समाज में इस तरह की हिंसा का कोई मतलब नहीं है. अहमद बुखारी मुसलमानों को किस तरह गुमराह करने की कोशिश करते रहे हैं, यह सबको पता चल चुका है. अब मुसलमान उन्हें घास नहीं डाल रहा . बौखलाए बुखारी अब खबरों में बने रहने के लिए इस तरह की बदतमीजियों पर उतर आये हैं. दरसल बुखारी की पीड़ा भी जायज है. अयोध्या के फैसले के बाद भी देश में अमन चैन का माहौल रहना बुखारी और तोगड़िया जैसों को दुःख पहुंचाता ही है. अगर इस तरह का प्यार का वातावरण रहेगा तो इन लोगों को कौन पूछेगा.
बुखारी ने सवाल पूछने वाले पत्रकार की दाढ़ी नोंची
मौलाना अहमद बुखारी अब अवाम की जुबान कुचलने पर आमादा हो गये हैं। लखनऊ में आज उन्होंने एक पत्रकार को भरी प्रेस कांफ्रेंस में जमकर पीटा। हाईकोर्ट के फैसले पर मौलानाओं से बात करने यहां आये दिल्ली की जामा मस्जिद के ईमाम अहमद बुखारी ने सवाल पूछने की हिमाकत करने पर भरी प्रेस कांफ्रेंस में दास्तान-ए-अवध के सम्पादक मोहम्मद वहीद चिश्ती की दाढी नोंची, टोपी उछाली और थप्पड़ों की बौछार कर दी।
वाकई गलत खबर छापी थी तीन अखबारों ने
: राष्ट्रीय सहारा में प्रकाशित आज खबर से पुष्टि हुई : पंचायत चुनावों के प्रस्तावित कार्यक्रम को राज्य सरकार द्वारा मंजूरी दिए जाने की जो गलत खबर कल लखनऊ के अखबारों हिंदुस्तान, जागरण और अमर उजाला में प्रमुखता से प्रकाशित हुई, उस खबर का एक तरह से खंडन आज राष्ट्रीय सहारा, लखनऊ में प्रकाशित हुआ है. राष्ट्रीय सहारा अखबार में पेज नंबर वन पर प्रकाशित खबर में पंचायत चुनाव को लेकर सही तस्वीर पेश की गई है. अधिकारियों के वर्जन व तथ्यों पर आधारित खबर से स्पष्ट हो चला है कि तीन अखबारों ने गलत सूचनाएं अपने पाठकों तक पहुंचाई. राष्ट्रीय सहारा, लखनऊ में आज प्रकाशित पूरी खबर इस प्रकार है-
यूपी के अखबारों ने ये क्या कर डाला!
खबरों की होड़ में एक दूसरे से आगे निकलने की अंधी दौड़ में किस तरह गलत सूचनाएं जनता तक पहुंचाई जा रही है, इसका नायाब उदाहरण आज यूपी के तीन बड़े अखबारों में देखा जा सकता है. दैनिक जागरण, हिंदुस्तान और अमर उजाला ने आज पहले पेज पर प्रमुखता से खबर प्रकाशित की है कि उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के कार्यक्रम को प्रदेश सरकार की तरफ से मंजूरी दे दी गई है. लेकिन सच्चाई यह है कि अभी सिर्फ चुनाव आयोग ने अपनी तरफ से पंचायत चुनाव कराने का प्रस्तावित कार्यक्रम तैयार कर प्रदेश सरकार के पास भेजा है.
आठ को मान्यता, पांच की निरस्त
उत्तर प्रदेश सरकार ने लखनऊ के आठ पत्रकारों को राज्य मुख्यालय की मान्यता से नवाजने के साथ ही पांच पत्रकारों की मान्यता निरस्त कर दी है। ऐसा पहली बार हुआ कि मान्यता-मुक्त हुए पत्रकारों का सरकारी भवनों में प्रवेश भी प्रतिबंधित कर दिया गया है। उत्तर प्रदेश में पत्रकारों को मान्यता देने के लिए सूचना विभाग के अधीन बनी उप समिति ने गत दिनों एक बैठक कर कुल आठ पत्रकारों को राज्य मुख्यालय की मान्यता देकर उपकृत किया। इस बैठक का उन पत्रकारों को लम्बे समय से इंतजार था, जो राज्य मुख्यालय की मान्यता पाने की लाइन में थे। उनमें से आठ को मान्यता मिल गई, जबकि मान्यता न मिलने से निराश पत्रकारों ने उपसमिति पर दोहरे मापदण्ड अपनाने का आरोप लगाया है। उपसमिति ने जिन पत्रकारों को राज्य मुख्यालय की मान्यता दी है, उनमें ‘वॉयस ऑफ़ इण्डिया’ न्यूज चैनल के अनुराग शुक्ला और दिनेश यादव, कैमरामैन मनीष तिवारी, ‘महुआ’ चैनल के कुमार शौबीर, ‘ईटीवी’ उत्तर प्रदेश के अनिल सिन्हा को राज्य मुख्यालय की मान्यता दी गई है। इनके अलावा ‘यूनाइटेड भारत’ के एसपी सिंह, ‘राहत टाइम्स’ के अमित सक्सेना और ‘समाजवाद का उदय’ अखबार के प्रभात त्रिपाठी को भी राज्य मुख्यालय की मान्यता मिल गई है। ‘ईटीवी’ छोड़ कर ‘पी7 न्यूज’ चैनल ज्वाइन करने वाले ज्ञानेन्द्र शुक्ला को उपसमिति ने मान्यता के लिए उपयुक्त नहीं माना। जिन्हें मान्यता मिल गई, उनकी तो बल्ले-बल्ले हो रही है, लेकिन कुछ दुखी भी हैं।
लखनऊ के मीडिया जगत में खलबली
सूचना निदर्शिनी से पत्रकारों के नाम-पते गायब : सरकार पर जासूसी कराने का आरोप : लखनऊ के पत्रकारों में इन दिनों प्रदेश सरकार की मीडिया विरोधी नीतियों को लेकर भारी गुस्सा है। सबसे ज्यादा रोष इस बात पर है कि पहली बार ‘सूचना निदर्शिनी’ से सिर्फ पत्रकारों के नाम-पते गायब कर दिए गए हैं। गुस्साए मीडियाकर्मियों का दूसरा आरोप है कि एनेक्सी स्थित मीडिया सेंटर पहुंचने वाले पत्रकारों की इन दिनों जासूसी कराई जा रही है। वहां के रजिस्टर में हर पत्रकार के नाम-पते दर्ज हो रहे हैं। लखनऊ के पत्रकारों में एक ओर जहां मान्यता की चर्चाएं सुर्खियों में हैं, वही मीडियाकर्मियों के साथ प्रदेश सरकार के ताजा रवैये ने खलबली मचा रखी है। जिसको लेकर पत्रकारों में सबसे ज्यादा रोष है, वह है सूचना विभाग की इस साल की डायरी ‘सूचना निदर्शिनी’। जब से प्रदेश का सूचना विभाग यह डायरी प्रकाशित कर रहा है, उससे पहली बार पत्रकारों को बाहर कर दिया गया है। हर साल इस डायरी में प्रदेश के मुख्यमंत्री, राज्यपाल, दोनों के स्टॉफ के अधिकारियों, सभी मंत्रियों, विधायकों, एमएलसी, आईएएस, आईपीएस, सूचना विभाग प्रमुख अधिकारियों, निगमों के अध्यक्षों और सभी प्रमुख अखबारों के मान्यता प्राप्त वरिष्ठ पत्रकारों के फोन नंबर, पते आदि प्रकाशित होते रहे हैं। पहली बार इस डायरी में सिर्फ पत्रकारों के नाम-पते नहीं छापे गए हैं। इस रवैये से नाखुश पत्रकारों का मानना है कि माया सरकार सुनियोजित तरीके से मीडियाकर्मियों को दरकिनार रखना चाहती है।