मन कुछ खिन्न सा है. सा क्यों, खिन्न है. बल्कि कहूं कि बेहद क्षुब्ध है, तो ज्यादा सही होगा. अंबानी, टाटा, राडिया, बरखा, वीर, प्रभु, मीडिया, टेप लीक, पदमश्री, नैतिकता, पत्रकारिता, दिग्गज, राजनीति, कारपोरेट, भ्रष्टाचार, 2जी स्पेक्ट्रम, कामनवेल्थ, सीबीआई, केंद्र सरकार, दबाव, जांच, नाटक, सुप्रीम कोर्ट, जनता, सत्ता, कारपोरेट, चुप्पी, भ्रष्टाचार, भविष्य, देश, विश्व, मानव…
….सैकड़ों शब्द… हजारों विचार…. सब गुत्थमगुत्था…. काहिलों-कायरों-अटके हुओं की भीड़ वाले इस देश में जिसका जो मन हो रहा, वो कर ले रहा और बाकी लोग दांत चियारे, आंख फाड़े टुकुर टुकुर ताकते रह जा रहे हैं, अरे अरे अरे कहते हुए. मनुष्य के उपजने से लेकर आज तक के हालात पर सरसरी नजर डालने पर तो अब यही लगने लगा है कि मनुष्य मूलतः जानवरों की ही कोटि का जानवर है जो थोड़ा समझदार-सा जानवर है और उसके अंदर तमाम समझदारी के बावजूद उसे मूलतः जानवरीय बेसिक इंसटिंक्ट ही संचालित करते हैं.
अगर ऐसा न होता तो समझदारी भरे लाखों दर्शन, समझदार लाखों गुरु, समझदार लाखों नेता इस दुनिया-देश को हिंसा, शोषण, तनाव मुक्त कर चुके होते और दुनिया में करुणा, ममता, प्यार, संगीत, ध्यान, अध्यात्म, भाईचारा, बराबरी, समृद्धि का राज होता. कोई आत्महत्या नहीं करता. किसी को गोली नहीं मारी जाती. कोई भ्रष्ट नहीं होता. कहीं भ्रष्टाचार का नामोंनिशान न होता. पुलिस, सेना, सीबीआई जैसे विभागों की जरूरत न होती. दूसरी दुनिया के अदृश्य लोगों को हम लोग खोज चुके होते और मंगल, चांद पर अपनी बस्ती बसाकर पृथ्वी के भार को कम करने व पर्यावरण को बचाने की दिशा में कदम उठा रहे होते.
लेकिन हो क्या रहा है. सीबीआई, सेना, पुलिस की संख्या में इजाफा होता जा रहा है. भ्रष्टाचार के नए नए मामले सामने आते जा रहे हैं. आदर्श की बातें बस्ते में कैद हैं और पूंजी सबसे बड़ा आदर्श बन चुका है. इसी पूंजी को ज्यादा से ज्यादा हासिल करने के लिए गरीब से लेकर बेहद अमीर तक दिन रात मरे जा रहे हैं और इस मरे जाते रहने की प्रक्रिया में मानवीयता, करुणा, ममता, ईमानदारी, बराबरी, अध्यात्म, मूल्य.. सबकी ऐसी की तैसी होती जा रही है. जो पकड़ा जा रहा है वो चोर, बाकी जो नहीं पकड़े जा रहे वे इन्हीं आदर्शों की बड़ी बड़ी बातें करते दिखते हैं लेकिन अंदरखाने वे सिर्फ और सिर्फ ज्यादा से ज्यादा पूंजी उगाहने के काम में लगे रहते हैं.
पूंजी उगाहने का एक तंत्र विकसित हो चुका है. राजनीति के लोग कारपोरेट को मदद करते हैं पूंजी उगाहने में तो कारपोरेट के लोग पूंजी के बल पर राजनीति को अपने अनुकूल बना लेते हैं और पूंजी संरक्षित राजनेता पूंजी के खेल में जुटे रहते हैं. ब्यूरोक्रेट, पत्रकार, जज… इनका बहुत बड़ा हिस्सा राजनीति और कारपोरेट की कृपा पर एजेंडे, फैसले, खबरें तय करता है.
ये सारी जो बातें बोल रहा हूं, लिख रहा हूं, इनके प्रमाण हम सभी को पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम के दौरान मिले हैं. ऐसे में मन का खिन्न होना लाजिमी है. लेकिन मन सिर्फ खिन्न रखने से भी काम नहीं चलने वाला है. किस चीज से काम चलने वाला है, ये भी समझ में नहीं आ रहा. ऐसे में आज ओशो रजनीश के एक टेप को सुनता रहा. करीब 35 मिनट का ये टेप है.
सन 1972 में ओशो के एक प्रवचन की रिकार्डिंग है. विषय है भारत का भविष्य. रजनीश के पूरे लेक्चर को सुनकर मजा आ गया. वाकई बूढ़ों का देश है भारत, ऐसा मैं मानने लगा हूं. भड़ास4मीडिया को ही देखिए. मैंने ये पोर्टल क्या शुरू किया, मुझे महान मानने वालों की अब लाइन लग गई है. अरे यार, ऐसा क्या काम कर डाला जो महान हो गया. लेकिन दिक्कत ये है कि जब ज्यादातर लोग चुप रहने में ही अपनी सुरक्षा व भलाई समझते हों तो कोई बोलने लगे तो उसे चुप्पा लोग एक्स्ट्रा आर्डिनरी मानकर महान मानने लगते हैं.
तो, जिस देश में बोलना अब साहस का काम माना जाने लगा हो तो अंदाजा लगा सकते हैं कि हम कितने पतित, डरपोक, कायर और काइयां हो चुके हैं. बाजार व सिस्टम ने भोगों को, जीते रहने को, सुरक्षा को, निजता व निहित स्वार्थ को सबसे बड़ा आदर्श बना दिया है. ये ऐसे आधुनिक आदर्श हैं जो आपस में एक दूसरे को किसी बदलाव वाले विचार के आधार पर कनेक्ट होने और रिएक्ट करने से रोकते हैं.
मेरा प्रवचन लंबा हो जाएगा. इसलिए मैं अपनी बोलती बंद कर ओशो को सुनवाता हूं. मेरा अनुरोध है कि ओशो को आप सुनें जरूर. शुरुआत थोड़ी धीमी है लेकिन जैसे जैसे प्रवचन आगे बढ़ता है, ओशो तेवर में आने लगते हैं और जाने कैसी कैसी बातें कहते हैं कि खून में उबाल आने लगता है या फिर खुद को व अपने देश को धिक्कारने का मन करने लगता है. हो सकता है ओशो का यह भाषण ‘भारत का भविष्य’ आप टेक्स्ट फार्म में पढ़ चुके हों लेकिन उन्हें सुनने का मौका मत चूकिए. ओशो को मैं निजी तौर पर बहुत प्यार करता हूं.
इस भाषण में ओशो ने पुरातनपंथियों की तो क्लास ली ही है, वामपंथियों की भी जमकर बखिया उधेड़ी है. शायद यही कारण है कि ओशो को किसी विचारधारा वालों ने नहीं अपनाया क्योंकि ओशो ने सबकी अच्छाइयों-बुराइयों का भंडाफोड़ किया पर दुर्भाग्य यह कि अब ओशो के न रहने के बाद उनके नाम पर खुद एक बड़ी दुकान खुल गई है. यही हर विचारधारा की नियति है. हर विचारक की मौत के बाद उसके नाम व उसके काम व उसके विचार पर दुकान सजा लेना लेकिन उसे जीवन में कतई न उतारना. दुकानदारियों वाले इस देश में मौलिक चिंतन करने वाला का पैदा होना भी एक जटिल काम है.
इतने वाद हैं, इतने विचार हैं, इतने आदर्श हैं, इतनी दुकानें हैं, इतने ड्रामे हैं, इतने लुभावने और सयाने प्रस्ताव हैं कि हर कोई कहीं न कहीं अटक जाता है. कोई आत्मा के नाम पर, कोई क्रांति के नाम पर कोई परंपरा के नाम पर. ऐसे में खुले और विस्तृत दिमाग के नौजवानों का अकाल सा है. ओशो ठीक कहते हैं कि हमारे देश के युवा सबसे बूढ़े लोग हैं क्योंकि वे सबसे ज्यादा डरपोक हैं. सुनिए ओशो को. नीचे दिए गए आडियो प्लेयर को क्लिक करें, साउंड फुल कर लें, आडियो प्लेयर का भी और अपने कंप्यूटर या लैपटाप का भी. आडियो आन करने के बाद शुरुआत में एक-दो मिनट तक का धैर्य धारण करें फिर ध्यान से सुनें.
Comments on “कायर, बूढ़े, अटके हुए लोग और ओशो का यह भाषण”
आशो का प्रवचन सुन भी लिया तो क्या होगा? देश को जन आंदोलन की जरूरत है। चिंता यह करनी है कि आंदोलन खड़ा कैसे किया जाए? जो कर रहे हैं वे अहम छोड़कर एक कैसे हों? प्रवचन सुनना पलायन से पूर्व की अवस्था है।
bahut accha to hai lekin ye sunane ke liye thik hai.jamini dharatal pe amal me laanaa itna aasan nahi
hi Yashwant,
achha laga ye jan kar ki OSHO ko pyar karne walo me tum bhi shamil ho !
waqt bura jarur chal raha hai par aane wala kal aaj se achha hoga isme koi shaq nahi !
Your thought is good…
i also love the asho thoughts….
what u think we need to work for change the india current status for future india…
i never blame on politicians[b][/b]
yashwant or osho ki mahimagaan iski umeed nahi ti kuch din palhle bi ek or badia lekhak webdunia ke deepak asim anhad ne bi yahi kiya tha asa kyo bhai 2 4 achi achi baateya parvachan kar lena koi badi baat nahi ha sabhi kathmulla or bazrangi gurcharandas nilkani type carporati bi asa karte hi ha
आजकल तथाकथित संत ‘आशाराम’बापू का ‘पैदाइशी संत’ बेटा नारायण साईं “रजनीश या ओशो” के प्रवचनों को पढ़कर उन्ही की शैली में प्रवचन देता है.आशाराम पहले एक मामूली साईकिल सुधारक था .उसके बाद यकायक वह संत के रूप में समाज के सामने आ गया .आजकल इस तथाकथित बापू के पास पाँच हजार करोड़ की नगदी है.गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी भी इसके खिलाफ सारे सबूत मिल जाने के बाद भी कोई कारवाई नहीं कर पा रहे है. इस देश में धर्म के नाम पर धंधा खूब अच्छी तरह से किया जा सकता है. “ओशो” ने तो सागर विश्वविद्यालय से दर्शन-शास्त्र विषय में गोल्डमेडिल लेकर स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की थी . yashovardhan.tkg@gmail.com
ओशो पढने की चीज नहीं हैं। न हीं समझने की । ओशो को आत्मसात करना जान लो खुद ब खुद ओशो को समझ जाओगे । कभी नाम को उतार फ़ेको किसी अनजान शहर में जाकर फ़िर देखो उसका आनंद। कभी अपने मन में पागल की तरह मुस्कुराओ , बहुत मजा आयेगा । कल कल मत करो आज तो जी लो । जिसने ओशो की बातों को आत्मसात कर लिया वही ओशो को समझ सकता है। दिक्कत यह है की अधिंकांश लोगो ने समाधी से संभोग तक के आगे कूछ पढा हीं नही । उसको भी अच्छी तरह नही पढा। सिर्फ़ संभोग शब्द पर अटक गयें । सभोग के समय स्खलन के क्षण में जिस आनंद को आप हम क्षण मात्र के लिये महसुस करते हैं । समाधी की अवस्था में उसी आनंद को आप महसुस करते हैं । मित्रों आलोचना के पहले जिसकी आलोचना कर रहे हो उसे तो समझ लो।
Radhe-Radhe !
Ucchaaran va Aacharan mei bahut antar hotaa hai…Osho ne maatr bhatkaya hai logo ko , Shabdon kaa jaal bahut accha thaa unke paas, par usmei fansne waale rattu toton ki bhi kamee nahi..kuch to unhone Galat logon ko sahi Vastu dedi , aor kuch ve swayam hi bhatke hue the… Jai Jai Shri Radhe !
From – ” Balshuk Gopesh (Shri Dham Vrindavan)
Radhe-Radhe !
Uccharan va Aacharan mei bahut antar hotaa hai.osho ne maatr bhatkaya hai janta ko.Shabdon kaa jaal bahut accha thaa unke paas , tabhi to us shabdjaal mei fansne waale Rattu totaaon ki kamee nahi hui…kuch to unhone galat logon ko sahee cheej dedi , aor kuch wo swayam hi bhatke hue the…..Jai Jai Shri Radhe ! From – ” Balshuk ” Gopesh (Shri Dham Vrindavan
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”भारत का भविष्य”ओशो की शानदार कृति है,आपको भी पसंद आई ये जान के ख़ुशी हुई….भारत की समस्याओ को लोगो के सामने अगर किसी ने रखा है तो वाकई वो ओशो ही है,,पर अफ़सोस ये है की हम सिर्फ लेख लिखते है और कुछ करते नहीं,,,पर मैं कुछ जरुर करूँगा,क्युकी मैं बूढ़ा नहीं हुआ हु,,,और आप सब से निवेदन है जो की ओशो की बातो को दिल के गहराई तक उतार चुके है कृपया कुछ करने का भी सहस करे,हमें भी कुछ करना होगा नहीं तो लेख बूढ़े ही लिखते है…..