: अपराधी सुधारने की बसपाई फैक्ट्री फेल : रीता का घर फूंकने वाले को सम्मानित कर चुकी है बसपा : पीस पार्टी की कलंगी पर सजे बीकापुर के एमएलए जीतेंद्र सिंह : धनंजय की कोशिशों पर पानी फेर थामा पीस पार्टी का झंडा : अपनी पार्टी के डेढ दर्जन के करीब जनप्रतिनिधियों की कारण-बेकारण हत्या करने वाली बसपा को आज पार्टी के ही एक विधायक जितेंद्र सिंह ने करारा झटका देते हुए पीस पार्टी ज्वाइन कर लिया।
पीस पार्टी अब सपा-बसपा (एक-दूसरे के आयारामों-गयारामों को जोड़ने में येन-केन-प्रकारेण जुटीं दो पार्टियां) के असंतुष्टों को एक मजबूत ठिकाने के तौर पर दिखायी देने लगी है। बसपा की शह पर लखनऊ में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता जोशी का घर फूंकने के मामले में आरोपित रहे जीतेंद्र सिंह को विधानसभा से बर्खास्त करवाने के लिए बसपा में कवायद तेज हो गयी है। हैरत की बात है कि बसपा की मुखालिफत करने वाली सपा जैसी बड़ी पार्टी ने इस मामले पर अभी तक चुप्पी ही साधे रखी है।
करीब दो साल पहले मायावती ने एक संवाददाता सम्मेलन में अपनी पार्टी से अरूणशंकर शुक्ल अन्ना को बर्खास्त करने की घोषणा की थी। तब वे मेरे एक सवाल का जवाब तक नहीं दे पायी थीं। अपने आवास पर पत्रकारों से बातचीत में मायावती ने कहा था कि वे दूसरे दलों द्वारा झूठे आरोप लगाकर प्रताडित किये जाने वाले लोगों को सुधारने के प्रयास कर रही थीं। मायावती के मुताबिक इसी सिलसिले में अन्ना ने सपा सरकार में अपने साथ हुए अन्याय और झूठे मामलों में फंसाने के षडयंत्रों का खुलासा किया था और खुद के बसपा का अनुशासित कार्यकर्ता बनने का वादा भी।
मायावती के मुताबिक अन्ना ने उनसे वादा किया था कि वे कभी भी आपराधिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे और पार्टी के निष्ठावान बने रहेंगे। इसी वादे पर अन्ना को पिछले लोकसभा चुनाव में उन्नाव से टिकट दे दिया गया था। पत्रकारों से मायावती ने कहा कि इसके बावजूद अन्ना ने अपनी हरकतें नहीं छोड़ी और अपराध व माफिया के रवैये को उन्होंने अपनाये रखा। अन्ना ने पार्टी विरोधी हरकतें भी कीं, इसीलिए उन्हें अब पार्टी से निकाल दिया गया।
मेरा सवाल था कि ऐसे कई अपराधियों को बसपा में शामिल कर उन्हें सम्मानित और फिर निष्कासित किया जा चुका है, ऐसे में क्या बसपा को अपराधियों की सुधार की एक असफल फैक्ट्री क्यों न मान लिया जाए। अपनी बात कहने के बाद तेजी से उतर कर बाहर जाती मायावती मेरे इस सवाल पर चार कदम पलटी थीं, लेकिन कुछ क्षण ठिठक कर वे बिना जवाब दिये वापस चली गयीं। जाहिर है कि उनके पास इसका कोई जवाब नहीं था।
सही बात तो यह है कि बसपा ने पहले एक खास जाति का सहारा लेने के बाद सामाजिक सद्भाव की मिसाल का नाटक करने के लिए ब्रह्मणों और क्षत्रियों व बनियों को साथ लेकर चलने का ऐलान किया था। लेकिन इसके साथ ही गेस्टहाउस कांड में मुलायम सिंह के साथ माफियाओं का साथ याद कर मायावती को लगा कि बाहुबल को पालना उनके लिए फायदेमंद रहेगा। इसके लिए ऐसों की हरकतों को संरक्षण और उन्हें पुरस्कृत भी किया गया। इंतजार आब्दी और जीतेंद्र सिंह इसका ताजा उदाहरण हैं जिन्हें रीता जोशी का मकान फूंक डालने की एवज में बाकायदा राज्यमंत्री तक के संवैधानिक ओहदे तक से नवाजा गया। लेकिन आखिरकार उनके यह सारे प्रयोग असफल हो गये। वे भूल गयीं कि इन बाहुबलियों को जब मुलायम सिंह नहीं सम्भाल पाये तो वे कैसे इसे साकार करेंगी।
अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी, उमाकांत यादव, रमाकांत यादव, अरूणशंकर शुक्ल अन्ना और धनंजय सिंह सिंह जैसे लगभग सभी बाहुबलियों को वे सम्भाल ही नहीं पायीं और आखिरकार उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। देखकर उन्होंने पहले तो बनियों से पिण्ड छुडाया और फिर ठाकुरों पर मार की बारिश कर दी। अखिलेश दास और नरेश अग्रवाल का नाम उल्लेखनीय है। ब्राह्मणों के भी खूब पर कतरे गये। इनमें सुभाष पांडेय और अनंत मिश्र अंतू बडे नाम हैं। चर्चा तो सतीशचंद्र मिश्र का कद छोटा कर दिये जाने की भी है जिनका सरकारी दफ्तर पुराने डीजीपी करमवीर के नाम कर दिया गया है। इतना ही नहीं, मायावती तो अपना मुस्लिम खाता भी नहीं बचा पायीं। एक ओर तो नसीमुद्दीन के पैरों की जूती से ज्यादा किसी को भी तवज्जो ही नहीं दी गयी, और जो बाकी बचे उन्हें भी औने-पौने निपटा दिया गया है।
हालांकि यह सही है कि मायावती के खिलाफ प्रदेश में बेहद खराब हवा बह रही है, लेकिन वहीं यह भी हकीकत ही है कि मायावती का विकल्प बन पाने की ताब फिलहाल किसी में नहीं। लेकिन इसके बावजूद बसपा के सर्वजन हिताय के नारे के साथ दूसरी जातियों और समूहों को जोड़ने और फिर उन्हें उनकी हैसियत जताने की कवायद आने वाले विधानसभा चुनाव में खासी भारी पड़ सकती है। कहने की जरूरत नहीं कि बसपा से जुडे पांच दर्जन से भी ज्यादा नेताओं को बाहर का रास्ता अब तक दिखाया जा चुका है। जाहिर है कि अब वे अपने खेमों के साथ बसपा का ताना खींचने और बाना कसने की जुगत ही भिड़ा रहे हैं।
लेखक कुमार सौवीर लखनऊ के जाने-माने और बेबाक पत्रकार हैं. कई अखबारों और न्यूज चैनलों में काम करने के बाद इन दिनों आजाद पत्रकारिता कर रहे हैं.उनसे संपर्क 09415302520 के जरिए किया जा सकता है.
Comments on “चार साल बाद मायावती को पता चला कि जितेंद्र सिंह समाजविरोधी हैं”
बेबाक और बेधडक प्रञकारिता के प्रख्यात उदाहरण है सौवीर जी , और उनके सवालों का जवाब दे पाना हर किसी के बस की बात नही