जब से आईआईएमसी सवालों के घेरे में आया है तभी से वहाँ के हिन्दी पत्रकारिता के निदेशक प्राध्यापक आनन्द प्रधान चुप हैं. सूत्रों के अनुसार कुछ कहते भी हैं तो बस इतना ही कि जो हुआ वो कागजी या तकनीकी गलती के कारण हुआ. चलिए एक बार को ये मान भी लें तो कोई बात नहीं, जब कभी ऐसे मामले उजागर होने शुरू होते हैं तो आम तौर पर ऐसे ही नन्हे-मुन्ने बयान रटी-रटाई अवस्था में सामने आते हैं.
मगर अपने आपको ओबीसी एक्टिविस्ट के तौर पर स्थापित कर दिल्ली विश्वविद्यालय के खिलाफ लम्बी फेसबुकिया लड़ाई लड़ रहे आईआईएमसी के एक और प्राध्यापक की चुप्पी भी आईआईएमसी को सवालों के घेरे में किये हुए है. और वो महानुभाव हैं माननीय श्री दिलीप मंडल जी जो दिल्ली विश्वविद्यालय में ओबीसी / एससी / एसटी की सीटें चोरी होने के मामले को प्रमुखता से उठाते रहे हैं, जिस कारण उन्हें वाहवाही भी लगातार मिलती रही. दरअसल, पिछले दिनों दिलीप मंडल जी ने एक पोस्ट अपनी फेसबुक पर डाला, जिसमें लिखा कि दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिले के लिए जो सूची निकाली गयी है उसमे इस बात का ज़िक्र नहीं किया गया है कि कौन किस कोटे से है. बेहद वाजिब सवाल किया था मंडल जी ने. वो इसमें गरजते हुए लिखते है कि “इन जातिवादियों को अभी और डराने की ज़रूरत है. चोर रोशनी देख कर भागता है”.
मंडल जी की इस बेबाकी से प्रभावित हो मैंने उन्हें एक पत्र (फेसबुक पर) लिखा. इसमें इस बात का खुलासा करते हुए समर्थन माँगा गया कि आपके अपने संस्थान आईआईएमसी में भी जब सत्र 2011-12 के लिए दाखिला सूची निकाली गयी तो उसमें भी यह बात छिपाई गयी कि कौन किस कोटे से है. अब बताईये आप इस पर चुप क्यों हैं? क्या आपको इस पूरे मसले की जानकारी नहीं थी जबकि आप तो दिल्ली विश्वविद्यालय तक की जानकारी रखते हैं कि वहां किस विभाग में क्या झोलझाल हो रहा है. इस सम्बन्ध में मैं आपको फेसबुक पर दो पत्र लिख चुका हूँ. वो ख़त आपको टैग भी किया है. सभी जान रहें हैं. आप अभी भी बेखबर बने हुए हैं जबकि आपके बारे में जितना पढ़ा और सुना है उसमें आप कहीं भी ऐसे व्यक्ति नहीं लगते कि आप किसी से डर जाएँ. फिर ये चुप्पी क्यों?
आप कब बोलेंगे? यही बता दीजिये. आप किस बात का इंतज़ार कर रहे हैं. आनन्द प्रधान जी के बयान में तो चलिए आरटीआई का इंतज़ार भी किया जाए. आपके मसले में तो सब साफ़ ही साफ़ है. आप जैसा एक्टविस्ट सिर्फ इसलिए चुप हो कि उसे अपनी नौकरी खतरे में लगे, ये भी बात नहीं मानी जा सकती. इतना तो आपको जानने वाले समझते ही हैं. फिर आप चुप क्यों हैं? दूसरों के संस्थान में होता है तो आप हल्ला कर देते हैं और करना भी चाहिए, मगर अपने यहाँ आप बेखबर भी लगते हैं और लगातार चुप भी रहते हैं जबकि मसला जो दिल्ली विश्विद्यालय का था, वही आईआईएमसी का भी है. मगर आप चुप हैं. लगातार चुप हैं. बस!चुप ही चुप हैं..! जबकि आपसे तो सीधा समर्थन माँगा गया है. आप कुछ तो कहिये….
इस संबंध में जो पत्र आपको लिखा गया था वो निम्नलिखित है…
सेवा में,
श्री दिलीप मंडल जी,
आईआईएमसी,
अरूणा आसफ अली रोड,
नई दिल्ली-110067
विषय ; घोखाधड़ी के विरोध में समर्थन हेतु |
मान्यवर,
ये बेहद खुशी की बात है की आपके माध्यम से पिछले काफी समय से दिल्ली विश्वविद्यालय में ओबीसी की सीटों की चोरी के मामले उजागर हो रहे हैं. ये कटु जातिवादियों के मुंह पर एक जोरदार तमाचा है, मगर इसमें उन लोगों को भी जागने की ज़रूरत है जिनके अधिकारों का हनन हो रहा है अर्थात जिनकी सीटे बड़ी आसानी से लूट ली जाती हैं. कल दिनांक 2-08-11 को फेसबुक के माध्यम से आपका एक स्टेटस पढ़ा, जिसकी हू-ब-हू नकल निम्नलिखित है :
Dilip Mandal : देश की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी DU में खलबली। आज M.Phil सोशियोलॉजी की एडमिशन लिस्ट आई है। 28 कैंडिडेट चुने गए हैं। लेकिन यह नहीं बताया गया है कि कौन किसी कोटे से है। यह नोटिस है- The breakup by reserved category and merit is available in the office for hostel purposes and has been sent to the university. जातिवादियों को थोड़ा और डराने की जरूरत है। चोर रोशनी देखकर भागता है। http://www.du.ac.in/fileadmin/DU/students/Pdf/admissions/2011/M.Phil/0282011_MPhil_Socio.pdf www.du.ac.in
मैं आपको ध्यान दिलाना चाहूंगा की इस वर्ष आईआईएमसी सत्र 2011-12 की दाखिला सूची भी इसी प्रकार निकाली गयी थी. पहली सूची में 58 लोग चुने गए, लेकिन यह नहीं बताया गया था की कौन किस कोटे से है. आपके शब्दों में कहें तो अभी इन जातिवादियों को और डराने की ज़रूरत है. और मैं तो बचपन से ही ये मानता आया हूँ की चोर रोशनी देख कर भागता है. हम अपने स्तर पर प्रयासरत हैं, आपसे सहयोग की उम्मीद है… ज़वाब के इंतजार में……..
प्रार्थी
अनूप आकाश वर्मा
संपादक, पंचायत सन्देश
राष्ट्रीय हिन्दी मासिक पत्रिका
….अब मंडल जी कुछ बोलें. कुछ तो बोलें. यही इंतज़ार है….
आपका
अनूप आकाश वर्मा
anoopakashverma@gmail.com
पत्रकार
Comments on “दिलीप मंडल का दोगला चरित्र उजागर”
IIMC में दिलीप मंडल का “लोमड़ दिमाग” तो नहीं काम कर रहा ?
हो सकता है IIMC प्रकरण में दिलीप ने एक ही फिल्म देखी हो -“मैं चुप रहूंगी .”
या फिर आनंद प्रधान के खिलाफ दिलीप मंडल चुपचाप चरस बो रहे हों, कहा नहीं जा सकता.
बहुत चालू चीज़ हैं . एकदम लोमड़ी वाला दिमाग है .
इतना ज़रूर है, जहाँ -जहाँ इस “संत” के चरण पड़ते हैं, वहां बंटाधार होता है .
दिलीप मंडल को जो लोग पिछड़ों-दलितों का महान विचारक और मसीहा समझते हैं , उन्हें जानना चहिये कि श्रीमान दिलीप मंडल जी क़ी पत्नी ब्राह्मन जाति से हैं .
फिर भी दिलीप मंडल ब्राह्मन, क्षत्रिय और अन्य अगड़ी जाति के लोगों को सामाजिक बुराई क़ी जड़ मानते हैं .
अर्थात, गुड़ खाओ और गुलगुले से परहेज क़ी नसीहत दो .
लगता है कथित सुडो इन्तेलेक्टुअल सवर्णों का के मनोविकारों से दिलीप जी का आसानी से पीछा छुटना मुश्किल है. मुद्दे को एकतरफा ले जाने वाले ये ज्ञानी विज्ञानी अब दिलीप जी के निजी जीवन तक उतर आने की नीचता पर आ गए . खैर जो भी हो विद्वान पुरोधाओं दिलीप जी ने तो विजातीय विवाह कर जतियायता को खत्म करने का ही एक प्रयास किया है भले ही यह फैसला उनके लिए बेहद ही निजी हो. और हाँ याद रहें उनकी लड़ाई सवर्णों के खिलाफ नहीं है ये तो साबित हो ही गया , हाँ समाज में हासिये पर रहें लोगों को हक दिलाने की लड़ाई शामिल कौन होगा और किसका दोहरा चेहरा उजागर होगा .. ये जरुर स्पष्ट हो जायेगा.!
अगर आप वही चन्दन राय हैं जिन्होंने बंगाली मार्केट के बेसमेंट से निकलने वाली सुनील सौरभ जी की बंद हो चुकी पत्रिका, एक बंद हो चुका अख़बार स्वाभिमान टाइम्स में काम कर चुके हैं तो हमें अफ़सोस है कि आप दिलीप मंडल को ठीक से नहीं समझते .
आप कंडोम बनने की कोशिश कर रहे हैं, जिनका दिलीप मंडल जैसे लोग इस्तेमाल कर फेंक देते हैं.
आपको दिलीप मंडल के निजी जीवन पर लिखे जाने पर मिर्ची लग गई.
दिलीप मंडल अपने से उम्र में काफी बड़े नामवर सिंह और दूसरे सवर्णों को गाली देते फिरें तो ठीक !
अभी तो आपको पांच -दस साल हुए होंगे हिंदी पत्रकारिता करते, जो लोग नब्बे से दिलीप जी को जानते हैं, उनसे पूछियेगा उन्होंने क्यों और किन परिस्थितियों में एक सरकारी नौकरी वाली ब्राह्मन कन्या से विवाह किया.
चन्दन राय जी मैंने कब कहा कि दूसरे धर्म और जाति में विवाह करना गलत है ?
आप तो बिना समझे-बूझे आसमान की ओर मुंह उठाकर थूकने लगे.
मेरे लिखने का मतलब यह था कि दिलीप मंडल जैसे जो लोग जातिवाद का बौद्धिक विकार बाहर फैलाते हैं, उन्हें पहले अपनी निजी ज़िन्दगी को निष्पक्षता के “आर ओ प्युरिफायर ” से साफ़ रखना चाहिए .
आप लोग बहुत गलतियाँ करते हैं, दिलीप मंडल आईआईएमसी में प्राध्यपक नहीं है, वो आईआईएमसी के प्रशासनिक मुद्दों पर बोल भी नहीं सकते. वो वहां महज एक अकेडेमिक सहायक के रूप में काम कर रहे हैं. आईआईएमसी में प्राध्यपको की सूची के लिए संसथान की वेबसाईट देखे.
dileep mandal ji ne shayad maunvrt l liyaa hai..is mudde par…….
unse koi prshaasanik safaai nahi maangi gai…wo to wo de bhi nahi sakate itanaa pataa hai hame……..aapki jaankaari k liye bataa du ki unse unhi vishyo par samarthn maangaa gaya tha jise wo khud DU ksandarbh me uthaate rahe hai…………..hame poori ummeed hai ki wo is masale par bhi usi roop me saamane aayenge…………aap pooraa viavaran ek baar dobaaraa pade….neeraj ji…………